Friday, April 26, 2024

भीड़ खींचने की क्षमता और मध्ययुग की रानी सरीखा व्यवहार करने के लिए उमर और महबूबा पर लगाया गया है पीएसए

नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्रियों महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला के खिलाफ पीएसए लगा दिया है। यानी इन्हें बगैर किसी अदालती सुनवाई और जमानत के अगले छह महीनों तक जेल में रखा जा सकता है। दोनों पांच अगस्त के बाद से ही जेल में बंद हैं। उनके ऊपर पीएसए लगाए जाने के जो कारण गिनाए गए हैं वे बेहद दिलचस्प हैं।

उमर अब्दुल्ला को भारी तादाद में मतदान करने के लिए अपने मतदाताओं को तैयार करने की क्षमता वाला बताया गया है। जबकि महबूबा मुफ्ती के लिए ‘डैडी की लड़की’ और ‘कोटा रानी’ कह कर बुलाया गया है जो अपने नाम और स्वभाव का खतरनाक कामों और कपटी षड्यंत्रों के लिए इस्तेमाल करती है। ये उन तमाम कारणों में से कुछ कारण हैं जिनके चलते जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने उनके खिलाफ पीएसए यानी पीपुल्स सैफ्टी एक्ट का इस्तेमाल किया है।

जम्मू-कश्मीर पुलिस द्वारा अब्दुल्ला के खिलाफ तैयार किए गए पीएसए डोजियर में कहा गया है कि “संबंधित शख्स की लोगों को प्रभावित करने की क्षमता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि चुनाव बहिष्कार और आतंकवाद के चरम दौर में भी वह अपने मतदाताओं को वोट करने के लिए भारी तादाद में निकालने की क्षमता रखता है।”

केंद्र के धारा-370 हटाए जाने के फैसले को ऐतिहासिक करार देते हुए डोजियर में अब्दुल्ला पर लोगों को हिंसा के लिए भड़काने का आरोप लगाया गया है। कहा गया है कि मुख्यधारा का नेता होने के बावजूद यह शख्स राजनीति की आड़ में भारत सरकार के खिलाफ काम कर रहा था। और जनता का समर्थन होने के चलते वह इन सब गतिविधियों को सफल करने में सफल हो जाता। इसमें कहा गया है कि धारा 370 और 35 ए के हटाए जाने के बाद इस शख्स ने अपने सारे लबादे उतार फेंके और फिर केंद्र सरकार के खिलाफ लोगों को उकसाने की गंदी राजनीति में शामिल हो गया।

पीडीपी नेता महबूबा के बारे में पीएसए डोजियर में भी इसी तरह की बातें कही गयी हैं। दिलचस्प बात यह है कि इससे पहले बीजेपी उनके साथ मिलकर सूबे में सरकार चला चुकी है। डोजियर में कहा गया है कि संबंधित महिला को दिमागी तौर पर बेहद गरम और षड्यंत्रकारी माना जाता है। वह अलगावाद को बढ़ावा दे रही थी…जैसा कि खुफिया एजेंसियों की कई रिपोर्टों ने भी इस बात की पुष्टि की है। इस महिला को उसके खतरनाक और कपटी तंत्र के लिए जाना जाता है जो जनता द्वारा दिए गए डैडी की लड़की और कोटा रानी के नामों के अपने प्रोफाइल और स्वभाव के जरिये इस्तेमाल करती है। उसका यह प्रोफाइल कश्मीर में मध्ययुग की रानी से मेल खाता है जिसने षड्यंत्र करके गद्दी हासिल की थी। जिसमें अपने विरोधियों को जहर देकर उन्हें मौत के घाट उतार देने तक की कार्रवाइयां शामिल थीं।

यहां तक कि पीडीपी के पूरे गठन को ही षड्यंत्र का हिस्सा बताया गया है और उसके लिए उसके झंडे समेत पार्टी के तमाम प्रतीकों की ऊल-जुलूल व्याख्या की गयी है। डोजियर में कहा गया है कि पार्टी के झंडे का हरा रंग उसके रेडिकल उत्पत्ति की तरफ इशारा करता है। यहां तक कि उसके चुनाव चिन्ह कलम और दवात तक को कठघरे में खड़ा कर दिया गया है। उसे मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट से उधार लिया गया बताया गया है। यह फ्रंट जमात-ए-इस्लामी समेत कई दलों का मोर्चा था जिसने 1987 के चुनाव में नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस गठबंधन के खिलाफ चुनाव लड़ा था।

इसके अलावा डोजियर में महबूबा के उस बांड पर हस्ताक्षर करने से मना करने का भी हवाला दिया गया है जिसमें धारा 370 पर चर्चा न करने की बात कही गयी थी। इसके साथ ही तीन तलाक, लिंचिंग और नागरिकों के अधिकारों में कटौती संबंधी उनके ट्वीट का भी पीएसए डोजियर में जिक्र है। इसमें कहा गया है कि वह भड़काऊ बयान दे रही थीं जिससे हिंसा भड़कने की आशंका थी। इसके साथ ही उन पर विभाजन पैदा करने के लिए धार्मिक उन्माद भड़काने का भी आरोप लगाया गया है।

दोनों पूर्व मुख्यमंत्री 5 अगस्त से ही जेल की सींखचों के पीछे हैं जब जम्मू-कश्मीर को दो हिस्सों में बांटने का फैसला लिया गया था। उन पर पीएसए इसी 6 फरवरी को तामील किया गया है। सूत्रों का कहना है कि ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि सरकार को उन्हें अब हिरासत में रखना बेहद मुश्किल हो रहा था।

इसके पहले उमर के पिता और पूर्व मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला पर पीएसए पिछले साल सितंबर महीने में ही लगा दिया गया था। पीएसए के तहत किसी भी शख्स को तीन से लेकर छह महीने तक बगैर किसी कोर्ट की कार्यवाही में जाए जेल में बंद रखा जा सकता है। दिलचस्प बात यह है कि इस कानून को बनाने का काम फारूक अब्दुल्ला के पिता शेख अब्दुल्ला ने ही 1978 में किया था जब वह सूबे के मुख्यमंत्री थे। उस समय इसे टिंबर स्मग्लरों की गैर कानूनी गतिविधियों को रोकने के लिए लाया गया था। लेकिन बाद में सरकारों ने इसे अपने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ इस्तेमाल करना शुरू कर दिया।

(कुछ इनपुट इंडियन एक्सप्रेस से लिए गए हैं।)

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