उत्तर प्रदेश कांस्टेबल भर्ती परीक्षा सहित आरओ एंड एआरओ परीक्षा निरस्त, 6 माह के भीतर पुन: परीक्षा

प्रदेश भर में युवाओं में असंतोष की आग भड़क कर कहीं बड़े दावानल में न तब्दील हो जाये, इसे भांपते हुए भाजपा सरकार ने तत्काल आग पर काबू पाने का उपाय कर दिया है। बता दें कि आज दोपहर, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर पोस्ट कर सूचना दी कि यूपी पुलिस आरक्षी नागरिक पुलिस पद के लिए आयोजित परीक्षा-2023 को निरस्त किया जाता है, और इसे अगले 6 माह के भीतर ही पुन: परीक्षा कराने के आदेश दे दिए गये हैं।

योगी आदित्यनाथ ने आगे कहा है, “परीक्षाओं की शुचिता से कोई समझौता नहीं किया जा सकता। युवाओं की मेहनत के साथ खिलवाड़ करने वाले किसी भी दशा में बख्शे नहीं जाएंगे। ऐसे अराजक तत्वों के खिलाफ कठोरतम कार्रवाई होनी तय है।”

लेकिन केशव प्रसाद मौर्य तो कल तक कुछ और कह रहे थे?

इससे पहले जब यूपी में लगातार पेपर लीक पर यवाओं के सड़क पर उतरने को लेकर प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य से सवाल पूछा गया तो उनका कहना था, “युवा सड़क पर उतर जा रहे हैं, आरोप हैं, “पुलिस भर्ती पर अखिलेश यादव जी के पास कोई मुद्दा नहीं है, और इसीलिए ऐसे आरोप लगाते हैं। अभी तक मेरी सूचना के हिसाब से कोई पेपर लीक नहीं हुआ है। जो इस प्रकार का प्रयास कर रहे हैं, उन पर पुलिस ने कड़ी नजर रखी हुई है।” 

इसी फरवरी माह में ये दोनों परीक्षाएं आयोजित की गई थीं। यूपीपीएससी रिव्यू ऑफिसर (आरओ) और असिस्टेंट रिव्यू ऑफिसर (एआरओ) की परीक्षा 11 फरवरी को आयोजित की गई थी। इसके लिए कुल 411 रिक्तियां थीं, लेकिन पर्चा लीक हो जाने के करण पिछले दो सप्ताह से अभ्यर्थी सड़कों पर थे, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही थी। लेकिन अब पुलिस सिपाही भर्ती में 48 लाख से भी अधिक युवाओं का भविष्य अधर में लटक गया था, इसलिए संयुक्त लड़ाई के चलते दोनों परीक्षाओं को रद्द कर राज्य सरकार को 6 माह के भीतर दोबारा परीक्षा संचालित करने का लिखित आश्वासन देना पड़ा है। इसके साथ ही सरकार ने पेपर लीक मामले की जांच के काम को यूपी एसटीएफ के जिम्मे सौंप दिया है। 

लेकिन साथ ही सोशल मीडिया पर लोग मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से पूछने लगे हैं कि जब आपके उप-मुख्यमंत्री पहले ही पेपर लीक को पूरी तरह से नकार चुके हैं, तो अब परीक्षा रद्द करने का फैसला क्यों लिया गया? क्या यह उप-मुख्यमंत्री की ओर से दिया गया गैर-जिम्मेदारानापूर्ण बयान नहीं है, जिसे अब मामले की गंभीरता को देखते हुए परीक्षा रद्द की घोषणा की जा रही है?

सभी जानते हैं कि देश में सरकारी नौकरियों का अकाल पड़ा हुआ है। देश में चाहे केंद्र सरकार के विभाग हों, या भारतीय रेलवे, भारतीय सेना या प्रदेश की राज्य सरकारें हों, हर जगह लाखों की तादाद में रिक्त पदों पर भर्तियां बंद हैं। इन रिक्त पदों में से एक छोटे से हिस्से को ऐन चुनाव से पहले खोला गया है। इसका एक खास प्रयोजन राजनीति में बड़े लाभांश के लिए किया जा रहा है। पहले कई वर्षों तक युवाओं को भूखा-प्यासा रखो। ऐन लोकसभा चुनाव से पहले बंपर भर्ती की घोषणा कर दो।

देश में करोड़ों की संख्या में युवा एक अदद सरकारी नौकरी की आस में 5-10 साल से हाड़-तोड़ मेहनत में जुटे हुए हैं। ऐन चुनाव से पूर्व परीक्षाओं की घोषणा से उनके मन में सत्ताधारी दल के प्रति जमा गुस्सा काफी हद तक दूर हो जाता है, और इसका राजनीतिक लाभ चुनाव में वसूला जा सकता है। निश्चित रूप से फरवरी माह में यूपी में दो-दो एग्जाम का आयोजन एक बेहद लाभदायक रणनीति साबित होने जा रही थी। 

लेकिन हाय री किस्मत! आज दो-दो भर्ती परीक्षाओं को रद्द करना पड़ा है। इनमें से एक है उत्तर प्रदेश कांस्टेबल भर्ती परीक्षा, जिसमें करीब 48 लाख छात्र 60,00 रिक्त पदों के लिए अपनी किस्मत आजमा रहे थे। यह परीक्षा पिछले हफ्ते ही 17-18 फरवरी को संचालित की गई थी। ऐसा कहा जा रहा है कि चार परियों में संचालित की गई परीक्षा की दूसरी पारी में ही प्रश्न पत्र लीक की खबर अभ्यर्थियों को मिल गई थी। कई परीक्षार्थियों का कहना है कि टेलीग्राम चैनल पर सबसे पहले उन्हें इसकी जानकारी मिली, जिसमें प्रश्न संख्या के आगे उत्तर लिखे हुए थे। 

प्रदेश में पुलिस कांस्टेबल की भर्ती पिछली बार 6 साल पहले हुई थी। इतनी बड़ी तादाद में कोई अन्य सरकारी नौकरी की वैकेंसी निकलने की दूर-दूर तक कोई संभावना नहीं है। युवा 6 वर्ष से आस लगाये बैठे थे। उसमें से भी सिर्फ 1% के किस्मत में ही यह नौकरी आनी थी। लेकिन उसमें भी पेपर लीक हो जाये तो करोड़ों लोगों को प्रदेश की भाजपा सरकार और प्रशासन पर गुस्सा नहीं आयेगा तो क्या दो कार्यकाल पूर्व की समाजवादी पार्टी के उपर इसका दोष मढ़ना चाहिए? 

यह सवाल इसलिए क्योंकि प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य तो आज भी यही कह रहे हैं। उनकी नजर में कोई पेपर लीक नहीं हुआ है। यदि दूर-दूर तक कोई संभावना है भी तो इसके लिए समाजवादी पार्टी और उससे पहले की बहुजन समाज पार्टी दोषी है, क्योंकि उन्हीं के दौर में पेपर लीक होने की शुरुआत हुई थी, और माफिया पैदा हुए थे, जिन्हें केंद्र की मोदी सरकार खत्म करने के लिए कड़े कानून बनाकर लाई है और प्रदेश की भाजपा सरकार कृत संकल्प है।  

अब आम चुनाव से पहले ही पार्टी के इतने वरिष्ठ नेता का ऐसा गैर-जिम्मेदाराना बयान प्रदेश के पढ़े-लिखे लेकिन हताश युवाओं के गले उतरने के बजाय आग में घी डालने के ही काम आ सकता है। इस बात को केंद्र और राज्य में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लगता है समझ रहे हैं। कल प्रयागराज में उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के मुख्य द्वार के सामने हजारों प्रदर्शनकारियों के हुजूम से एक ही आवाज उठ रही थी कि एग्जाम दोबारा हों।

सुबह से ही युवा लोक सेवा आयोग के दफ्तर के बाहर नारेबाजी करने लगे थे। यहां तक कि अंधेरा हो जाने पर मोबाइल की फ़्लैश लाइट जलाकर आक्रोशित छात्र आयोग के सामने जमे रहे। करीब 8 बजे प्रदर्शनकारी एमजी मार्ग पर आयोग के अध्यक्ष के आवास का घेराव करते देखे गये। बाद में पुलिस ने बीच-बचाव कर किसी तरह छात्रों को शांत कराकर वहां से वापस भेजा। दूसरी तरफ, सलोरी में सैकड़ों की संख्या में प्रतियोगी छात्रों के द्वारा कैंडल मार्च निकालकर विरोध दर्ज की खबर थी। 

काफी अर्से बाद युवा सरकार को झुकाने में सफल रहे 

जबकि दूसरी तरफ, प्रदेश की राजधानी लखनऊ में इको गार्डन पूरे दिन भर प्रदर्शनकारियों की भीड़ से गुंजायमान रहा। शाम तक परीक्षार्थी एग्जाम रद्द कर दोबारा एग्जाम की मांग को लेकर नारेबाजी करते रहे, और सरकार को जमकर कोसा। इसी बीच पुलिस ने बिचौलिए का काम करते हुए प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे युवाओं के बीच में से 5 लोगों को भर्ती बोर्ड के अपर सचिव से मुलाक़ात का प्रबंध कराया। 

वार्ता में शामिल युवा स्वप्निल अग्रवाल ने वार्ता के बाद इको गार्डन में जमा लोगों को जानकारी देते हुए बताया कि प्रशासन को पेपर लीक के संबंध में कई साक्ष्य उनके द्वारा सौंपे गये हैं, जिस पर अधिकारियों की ओर से जांच का आश्वासन दिया गया है। 

इससे पहले शिक्षक भर्ती मामले में 69,000 शिक्षक अभ्यर्थी 6,800 सीटों पर भर्ती की अपनी मांग को लेकर उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के आवास पर प्रदर्शन करने पहुंच गये थे, जिन्हें पुलिसबल ने बल प्रयोग कर वहां से हटाया। 

देश ही नहीं दुनिया में आबादी के लिहाज से विख्यात उत्तर प्रदेश बेरोजगारी की समस्या कोई आज की नहीं है। लेकिन 90 के दशक के बाद मंडल-कमंडल की राजनीति से शुरू होकर गाय, अयोध्या और अब काशी-मथुरा तक सिमट चुकी राजनीति ने समाज के पांव में ऐसी जकड़ बना दी थी कि उसे युवा भविष्य की कोई फ़िक्र ही नहीं रही। कल तक मुस्लिम समाज के आर्थिक बहिष्कार और बुलडोजर राजनीति पर ताली बजाने वाला युवा खुद को ठगा महसूस करने लगा है। 

कल ही कन्नौज से एक बेहद मर्मांतक खबर ने प्रदेश को झकझोर कर रख दिया था। इसमें एक 25 साल के युवा ब्रजेश पाल ने बेरोजगारी से तंग आकर खुदकुशी कर ली थी। ऐसा बताया जा रहा है कि ब्रजेश ने ख़ुदकुशी से पहले अपनी सारी डिग्रियां जला दी थीं। उसने अपने सुसाइड नोट में लिखा- “क्या फायदा ऐसी डिग्री का, जो एक नौकरी भी न दिला सकी। हमारी आधी उम्र पढ़ते-पढ़ते निकल गई। इसलिए अब हमारा मन भर गया है।”

उत्तर प्रदेश के युवाओं के सामने दो ही विकल्प मौजूद हैं। ब्रजेश पाल का विकल्प तो मन के भीतर जन्म लेता ही है, लेकिन लड़कर आत्मसम्मान की रक्षा करने और एकजुट होकर अगर आज युवा खड़ा होने का संकल्प लेता है तो यह न सिर्फ उसके जीवन में एक सकारात्मक कदम होगा, बल्कि प्रदेश में एक नई जीवनी शक्ति को फूंकने बेहद अहम योगदान देने वाला साबित हो सकता है। राज्य की प्राथमिकता को समग्रता में लेने की जरूरत को यदि युवा नहीं समझेगा तो भला कौन समझ सकता है? उसे सिर्फ अपने लिए ही नहीं बल्कि सभी 24 करोड़ लोगों की आवाज बनना होगा, जिसे मंदिर, तीर्थाटन, हाईवे और मन की बात से टहलाने के बजाय प्रदेश में सभी वर्गों के आर्थिक, सामजिक एवं भाईचारे की आवाज को बुलंद करना ही होगा, ताकि नीति-निर्माताओं को अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए तदनुसार नीतियां बनाने के लिए मजबूर किया जा सके, जैसा कई वर्षों बाद आज युवा कर पाने में सफल साबित हुए हैं।   

उत्तर प्रदेश में यह सारा घटनाक्रम राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ के दौरान होना भी एक संयोग ही है। प्रमुख विपक्षी पार्टी की यात्रा निकल रही हो, और छात्र आक्रोशित हों तो सरकार के लिए जनहित में फैसला लेना एक मजबूरी बन ही जाता है।  

इस जीत पर राहुल गांधी ने X पर लिखा है, “छात्र शक्ति और युवा एकता की बड़ी जीत! उत्तर प्रदेश पुलिस परीक्षा आखिरकार निरस्त की गई। संदेश साफ है-सरकार कितना भी सच को दबाने की कोशिश करे, एकजुट होकर लड़ने से ही अपना हक जीता जा सकता है। जो जुड़ेंगे वो जीतेंगे, जो बटेंगे वो कुचल दिए जाएंगे।

(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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