सचिन पायलट।

राजस्थान के घटनाक्रम में नया मोड़, सचिन पायलट ने की कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम से बात

नई दिल्ली। एक आश्चर्यजनक घटनाक्रम में विद्रोही नेता सचिन पायलट ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम से बात की है। और यह तब हुआ है जब उन्होंने अपने साथ आए 18 विधायकों की सदस्यता खारिज करने के स्पीकर के फैसले को चुनौती देने के लिए राजस्थान हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।

इंडियन एक्सप्रेस से चिदंबरम ने बताया कि “मैंने उनसे केवल यही बात दोहराई कि नेतृत्व ने सार्वजनिक रूप से उन्हें मिलने के लिए आमंत्रित किया है और सभी मुद्दों पर बातचीत हो सकती है। मैंने उन्हें मौके को हाथ से न जाने देने की सलाह दी।”

एक दूसरे वरिष्ठ नेता ने इस बात की पुष्टि की है कि पार्टी के जो भी नेता पायलट के साथ बात कर रहे हैं उन्होंने उनको इस बात का भरोसा दिलाया है कि वापस आने पर उनका सम्मान सुरक्षित रहेगा।

हालांकि बताया जा रहा है कि एक ऐस समय जब पायलट कैंप ने हाईकोर्ट का रुख किया है तो पार्टी ने विचार करने के लिए विद्रोहियों को और समय देने का फैसला किया है।

एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि “अगर पायलट कैंप कोर्ट से प्रक्रिया को दो-तीन दिन और आगे बढ़ाने के लिए कहता है तो पार्टी का वकील इसका विरोध नहीं करेगा। यह प्रक्रियाएं हैं जिनका हमें पालन करना पड़ता है। लेकिन अगर विधायक लौटते हैं तो उनकी सदस्यता रद्दीकरण की प्रक्रिया वापस ले ली जाएगी….हमें प्रयास करना है गहलोत सरकार को बचाना है।“

राजस्थान के असेंबली सचिवालय द्वारा विधायकों को जारी नोटिस इस बात को साफ करती है कि उन्हें अपने लिखित जवाब तीन दिनों के भीतर भेजने हैं। और उचित कार्रवाई के लिए सदस्यता रद्द करने की याचिका स्पीकर के सामने शुक्रवार को दोपहर में आएगी।

नोटिस में कहा गया है कि अगर विधायक अपनी टिप्पणी या जवाब नहीं देते हैं तो यह याचिका की सुनवाई और उसके निपटारे पर असर डालेगी।

इस बीच, कांग्रेस नेता और राज्य सभा सदस्य जो हाईकोर्ट में पार्टी का प्रतिनिधित्व करेंगे, ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि स्पीकर की सदस्यता रद्दीकरण की प्रक्रिया के खिलाफ विधायकों की याचिका कारण बताओ नोटिस के स्तर पर ही नहीं टिकने वाली है।

उन्होंने कहा कि “इस संवैधानिक चुनौती को जिसको उन्होंने अमेडमेंट के जरिये जोड़ा है, वह 1992 में ही तय हो गया था। इसलिए वो एक पुरानी चुनौती को दोहरा रहे हैं। उनका कहना है कि दसवीं अनुसूची असंवैधानिक है। जब कि उसे 1992 में ही संवैधानिक घोषित किया जा चुका है।”

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