Saturday, April 27, 2024

लखनऊ में 11 अक्टूबर को वामपंथी-लोकतांत्रिक पार्टियों की ‘लोकतंत्र बचाओ-संविधान बचाओ’ रैली

11 अक्टूबर को UP में लंबे अरसे के बाद वामपंथी, लोकतांत्रिक दलों की संयुक्त रैली होने जा रही है। लखनऊ में हो रही इस ‘लोकतंत्र बचाओ, संविधान बचाओ’ रैली को सफल बनाने के लिए वामपंथी कतारें व्यापक अभियान में लगी हुई हैं। वाम दलों की नज़र में रैली के राजनीतिक महत्व को इसी बात से समझा जा सकता है कि इसमें सभी दलों के राष्ट्रीय नेता उपस्थित रहेंगे।

बताया जा रहा है कि रैली को सीपीएम के महासचिव सीताराम येचुरी, सीपीआई के महासचिव डी राजा, सीपीआई (एमएल) के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य, फारवर्ड ब्लॉक के महासचिव जी देवराजन और लोकतांत्रिक जनता दल के अध्यक्ष जावेद रज़ा संबोधित करेंगे।

जाहिरा तौर पर, बढ़ते फासीवादी हमलों के खिलाफ जनता की राजनीतिक गोलबंदी का जरूरी राष्ट्रीय कार्यभार ही रैली का केंद्रबिंदु है।

वाम दलों के संयुक्त बयान में कहा गया है, “हमारे संविधान तथा लोकतंत्र की रक्षा का प्रश्न आज हमारे देश के लिए सबसे बड़ा सवाल बन गया है। भाजपा की मोदी सरकार के केंद्र में स्थापित होने के पश्चात संवैधानिक और लोकतांत्रिक मूल्य और मर्यादाओं पर लगातार हमले किए जा रहे हैं। समता, स्वतंत्रता, सामाजिक न्याय और संघीय गणराज्य की संवैधानिक व्यवस्था को खत्म कर तानाशाही का राज कायम किया जा रहा है। इस प्रकार हमारे पूर्वजों ने अंग्रेजी साम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्ष में जो उपलब्धियां हासिल की थीं उन्हें उन ताकतों द्वारा मिटाया जा रहा है, जिन्होंने आजादी की लड़ाई में आजादी के दुश्मनों का साथ दिया। संविधान और लोकतंत्र बचाने की लड़ाई हमारी आजादी, भाईचारा और भारत को बचाने की लड़ाई है।”

इसके साथ ही मोदी सरकार की घनघोर कॉरपोरेटपरस्ती को निशाने पर लिया गया है, “सार्वजनिक क्षेत्रों, राष्ट्रीय संपत्ति को निजी हाथों में बेचने का अभियान चरम पर है। जनता की मेहनत और उसके योगदान के आधार पर अर्जित संपत्ति मोदी सरकार अपने मित्र पूंजीपतियों को कौड़ी के दाम बेच रही है।”

रैली में जनता के तमाम तबकों के सवालों को पुरजोर ढंग से उठाए जाने की उम्मीद है।

मोदी और योगी सरकार ने जिस तरह आम जनता के जीवन, जीविका और रोजगार पर हमला बोल दिया है, उसकी तीखी आलोचना करते हुए संयुक्त बयान में कहा गया है, “बेहताशा बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी ने लोगों का जीना मुश्किल कर दिया है। वैश्विक भूख-सूचकांक में भारत की स्थिति दिन प्रतिदिन खराब हुई है। केंद्र सरकार जहां पूंजीपतियों पर टैक्स कम कर रही है और उनके कर्ज माफ कर रही है, वहीं आम जनता पर टैक्स बढ़ा रही है। और मामूली कर्जे भी उनसे जबरन वसूल रही है।

“केंद्र सरकार ने बजट में मनरेगा के मद में भारी कटौती करके ग्रामीण गरीबों को काम से वंचित किया है। उत्तर प्रदेश में लाखों मनरेगा मजदूरों की मजदूरी बकाया है। आवारा पशुओं के चलते किसान की खेती का भारी नुकसान हो रहा है। खेत चर जाने तथा सूखा और बाढ़ से फसलें खराब होने के कारण कई किसानों ने आत्महत्या की है।”

सरकार का सिंचाई के लिए फ्री बिजली का वादा खोखला साबित हुआ है। उल्टे किसानों के नलकूपों पर मीटर लगाए जा रहे हैं। किसानों की कृषि जमीन धुआंधार रूप से सरकार अधिग्रहित कर रही है। पूंजीपतियों/ कंपनियों को देने के लिए 30 हजार एकड़ जमीन केवल दो वर्षों के अंदर ली गई है।”

मुसलमानों के विरुद्ध आतंक और दमन के औजार के बतौर अस्तित्व में आया बुलडोज़र गरीबों के घरों तक पहुंच चुका है। उत्तर प्रदेश में भाजपा की योगी सरकार गरीबों की झोपड़ियां पर बुलडोजर चलाकर उन्हें बेघर कर रही है। जंगलों में आदिवासियों को उजाड़ा जा रहा है किंतु सैकड़ों एकड़ जंगल की जमीन कब्जा करने वाले वन माफिया सरकार की कृपा से आबाद हैं। आदिवासियों दलितों तथा भूमिहीनों को जमीन न देकर भू स्वामियों को अवैध रूप से जमीन दी जा रही है।”

जिस कानून-व्यवस्था को योगी राज का USP बना कर पूरे देश में पेश किया जाता है, वह आज पूरी तरह तार तार हो चुकी है। प्रदेश में जंगल-राज कायम है। पिछले 1 महीने में कौशाम्बी, देवरिया, सुल्तानपुर, कानपुर में हुए बर्बर हत्याकांडों में 1 दर्जन लोगों की जान जा चुकी है। सबसे महत्वपूर्ण यह कि ये सारी हत्यायें भूमि विवादों में हुई हैं जिनके बारे में पहले से लोग शासन-प्रशासन से गुहार लगा रहे थे।

जाहिर है प्रदेश में एक प्रभावी सरकार और सक्षम प्रशासन होता तो ये जानें बचाई जा सकती थीं। दलितों पर भी लगातार हमले बढ़ते जा रहे हैं, कानून का राज खत्म हो चुका है। सरकार द्वारा महिला सुरक्षा की सारी घोषणाएं खोखली साबित हो रही हैं।

प्रदेश को सांप्रदायिक उन्माद और विभाजन की आग में झोंककर चुनावी वैतरणी पार करने की संघ-भाजपा की व्यूहरचना के प्रति आगाह करते हुए कहा गया है, “आरएसएस ने उत्तर प्रदेश को सांप्रदायिकता का केंद्र बना दिया है। जनहित के सभी मोर्चो पर फेल, भ्रष्टाचार में लिप्त सरकार जनता का ध्यान भटकाने के लिए मंदिर- मस्जिद, दंगा फसाद, और किसी भी तरह के काण्ड करा सकती है।”

आने वाले दिनों में लोकसभा चुनाव के ठीक पूर्व राम-मंदिर उद्घाटन के आसपास का समय देश और प्रदेश की धर्मनिरपेक्ष-लोकतान्त्रिक ताकतों के लिए कड़ी परीक्षा साबित होने वाला है।

जनमुद्दों- महंगाई, बेरोजगारी, रोजगार सृजन, मनरेगा, गरीबों, दलितों, आदिवासियों के सवालों, समाज में भाईचारा मजबूत करने आदि पर जोर देते हुए वामपंथी दलों ने प्रदेश में जातिगत सर्वे और देश में जातिगत जनगणना का सवाल भी उठाया है।

2024 की ओर बढते हुए आज पूरे देश की निगाह उत्तर प्रदेश की ओर लगी है। न सिर्फ इसलिए कि 2014 और 2019 में NDA की क्रमशः 73 और 64 सीटों के साथ इसने मोदी के राज्यारोहण में केंद्रीय भूमिका निभाई, बल्कि आज भी योगी के आक्रामक हिंदुत्व और “hard state” के मॉडल के साथ आम चुनाव के लिए भाजपा का नैरेटिव गढ़ने में UP की केंद्रीयता बरकरार है। 

इसके खिलाफ अपनी रैली द्वारा वामपंथी दल प्रदेशव्यापी राजनीतिक अभियान की शुरुआत कर रहे हैं। उम्मीद है आने वाले दिनों में विपक्ष के और बड़े एकजुट political actions देखने को मिलेंगे।

संघ-भाजपा की वैचारिकी के विरुद्ध विचारधारात्मक, आंदोलनात्मक प्रतिरोध की सबसे सुसंगत ताकत के बतौर वाम दल INDIA गठबंधन के मजबूत स्तम्भ हैं। पड़ोसी राज्य बिहार में भाजपा विरोधी महागठबंधन को- जो अंततः राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी मंच INDIA के evolution का भ्रूण साबित हुआ- बड़ी ताकत बनाने और सत्ता तक पहुंचाने में उनकी भूमिका निर्णायक रही। इस प्रक्रिया में वाम दलों ने अपना भी पुनर्जीवन किया। भाकपा माले अपने 12 विधायकों तथा जन-आंदोलनों के बल पर आज बिहार की उल्लेखनीय राजनीतिक ताकत है और INDIA गठबंधन का मजबूत स्तम्भ है।

जरूरत इस बात की है कि UP में प्रदेश-स्तर पर भी चुनाव-प्रक्रिया में वाम दलों को सक्रिय हिस्सेदारी और प्रतिनिधित्व मिले। यह विपक्ष के समूचे अभियान और राजनीतिक दावेदारी को व्यापक वैधता, नया राजनीतिक तेवर और धार देगा, साथ ही प्रदेश के कोने-कोने में मौजूद हजारों वामपंथी कार्यकर्ताओं, छात्र-युवाओं, बुद्धिजीवियों की चुनाव-अभियान में INDIA के पक्ष में सक्रिय भूमिका को सुनिश्चित करेगा।

अपने संघर्षों की गौरवशाली विरासत के आईने में स्वयं वाम दलों को भी गहरा आत्मनिरीक्षण करना होगा, तमाम लोकतान्त्रिक आकांक्षाओं और धाराओं से अपने को जोड़ना होगा और बिहार की तरह UP  में भी प्रभावी राजनीतिक ताकत के रूप में उभरने का रास्ता तलाशना होगा।

(लाल बहादुर सिंह, इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं।)

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