Sunday, April 28, 2024

मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि के पास बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक, एक हफ्ते बाद सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि के पीछे के हिस्से में रेलवे अधिकारियों द्वारा किए जा रहे विध्वंस अभियान के संबंध में यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया। जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस एसवीएन भट्टी की पीठ ने सीनियर एडवोकेट प्रशांतो चंद्र सेन के तर्क के बाद निवासियों को अंतरिम राहत देते हुए यह आदेश पारित किया कि यदि विध्वंस अभियान जारी रहा तो याचिका निरर्थक हो सकती है। अब इस मामले की सुनवाई एक हफ्ते बाद होगी।

सीनियर एडवोकेट ने पीठ से कहा कि जब हमने इस अदालत से संपर्क किया तो उत्तर प्रदेश की सभी अदालतें बंद थीं। इसका फायदा उठाते हुए अधिकारियों ने 100 से अधिक घरों पर बुलडोज़र चला दिया। क्षेत्र में लगभग 200 घर हैं। केवल 70-80 घर बचे हैं। सारी बात निष्फल हो जाएगी।

पीठ ने इस संक्षिप्त दलील को सुनने के बाद कहा कि नोटिस जारी किया जा रहा है। केंद्र के एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड की तामील लागू की जाएगी। दस दिनों की अवधि के लिए विषय परिसर के संबंध में यथास्थिति रहने दें। इसके बाद लिस्ट करें। सीनियर एडवोकेट के कहने पर पीठ ने याचिकाकर्ता को अतिरिक्त हलफनामा दाखिल करने की भी अनुमति दी।

याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व सीनियर एडवोकेट प्रशांतो चंद्र सेन ने किया, जिनकी सहायता एडवोकेट कौशिक चौधरी, राधा तारकर और आरोन शॉ ने की। पीठ ने संकेत दिया कि अंततः वह पक्षकारों को सिविल कोर्ट में स्थानांतरित कर सकती है, जहां संपत्तियों के संबंध में मुकदमे लंबित हैं।

दरअसल 9 अगस्त को सरकार ने उत्तर प्रदेश के मथुरा में विध्वंस अभियान शुरू किया, जिसमें कथित तौर पर नई बस्ती- कृष्ण जन्मभूमि के पीछे के हिस्से में रेलवे ट्रैक के किनारे एक बस्ती- में 135 घरों को तोड़ दिया गया। इन घरों को सरकारी भूमि पर अवैध अतिक्रमण के रूप में चिह्नित किया गया और जिला प्रशासन और पुलिस के साथ रेलवे की एक टीम ने कार्रवाई की।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रेलवे अधिकारियों ने वंदे भारत जैसी ट्रेनों के संचालन को सुविधाजनक बनाने के लिए मथुरा से वृंदावन तक 21 किलोमीटर की दूरी को नैरो से ब्रॉड गेज में बदलने की योजना का हवाला देकर इस कदम का बचाव करने की मांग की है। लेकिन, निवासियों ने नाराजगी जताई है। बस्ती के निवासियों को तीन दिन की राहत अवधि के दौरान अपने सामान के साथ बाहर जाने की अनुमति दी गई, उनमें से कुछ ने विध्वंस अभियान पर रोक लगाने के लिए स्थानीय अदालत से संपर्क किया। हालांकि उत्तर प्रदेश में एक वकील की गोली मारकर हत्या के बाद वकीलों द्वारा की गई हड़ताल के कारण मामले का अंतिम निर्णय नहीं हो सका।

इन परिस्थितियों में स्थानीय निवासी याकूब शाह ने अनुच्छेद 32 के तहत एक रिट याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने तत्काल सुनवाई की मांग की। शाह ने आरोप लगाया है कि विध्वंस ऐसे क्षेत्र में किया गया जहां मुख्य रूप से मुस्लिम आबादी है, जबकि जून में जारी बेदखली नोटिस के खिलाफ चुनौती मथुरा की स्थानीय अदालत में लंबित थी। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने सोमवार को सीनियर एडवोकेट प्रशांतो चंद्र सेन द्वारा तत्काल सुनवाई की मांग के बाद याचिका को बुधवार, 16 अगस्त को सूचीबद्ध करने पर सहमति व्यक्त की थी।

मथुरा में नई बस्ती कृष्ण जन्मभूमि के पास एक रेलवे ट्रैक के किनारे स्थित है। जिस ज़मीन पर निकटवर्ती शाही ईदगाह मस्जिद बनी है, जिसके स्वामित्व को लेकर सुप्रीम कोर्ट सहित देश की विभिन्न अदालतों में कई मुकदमे और याचिकाएं लंबित हैं। हिंदू पक्षकारों का दावा है कि इस मस्जिद का निर्माण मुगल बादशाह औरंगजेब ने हिंदू मंदिरों को तोड़कर कराया था। मस्जिद को हटाने की मांग करने वाली उनकी याचिकाओं ने क्षेत्र में सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा दिया है। हाल ही में श्री कृष्ण जन्मभूमि मुक्ति निर्माण ट्रस्ट ने शाही ईदगाह मस्जिद के परिसर के वैज्ञानिक सर्वेक्षण के लिए प्रार्थना करते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है।

याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि जिस जमीन से रेलवे अतिक्रमण हटा रहा था, वहां पर 100 साल से भी अधिक समय से लोग रह रहे हैं। इस आधार पर कार्रवाई रोकने की मांग की गई थी। याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया गया कि रेलवे ने काफी सारा अतिक्रमण पहले ही हटा दिया है। अब सिर्फ 70-80 मकान बचे हैं, उन्हें तोड़ने पर रोक लगाई जाए। शीर्ष अदालत ने कार्रवाई पर तुरंत प्रभाव से रोक लगा दी और रेलवे को जवाब देने को कहा। हालांकि, सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में रेलवे की तरफ से कोई मौजूद नहीं था।

मथुरा वृंदावन रेलवे लाइन के किनारे रेलवे की जमीन पर कथित तौर पर कब्जा करके रह रहे लोगों से रेलवे ने जमीन खाली करने के लिए कहा था। याचिकाकर्ता की ओर से शीर्ष अदालत में पेश वरिष्ठ वकील प्रशांतो सेन ने कोर्ट में कहा कि इस कार्रवाई में 200 घर गिराए जाने हैं और इससे 3000 लोग प्रभावित होंगे। उनके पास रहने के लिए कोई दूसरी जगह नहीं है और वे यहां 100 वर्षों से अधिक समय से रह रहे हैं। यह मामला इलाहाबाद हाई कोर्ट में चल रहा था, लेकिन सोमवार को हड़ताल के चलते सुनवाई नहीं हो सकती थी, ऐसे में याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे।

(जे.पी.सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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