Friday, April 26, 2024

दिल्ली में शाहीन बाग भी भाजपा की हार का कारण बनेगा

नागरिकता संशोधन कानून और प्रस्तावित एनआरसी यानी राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर जैसे मोदी सरकार के विभाजनकारी फैसलों के खिलाफ जो काम देश की संसद और विपक्षी दल नहीं कर पाए, वह काम दिल्ली के शाहीन बाग में धरने पर बैठी महिलाओं ने कर दिखाया है। पिछले 55 दिनों से शाहीन बाग देश भर की नागरिक चेतना का केंद्र बना हुआ है और उससे प्रेरणा लेकर देश के कई शहरों में शाहीन बाग जैसे आंदोलन शुरू हो गए हैं। दिल्ली विधानसभा के चुनाव में भी शाहीन बाग एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है। केंद्र सरकार की ओर से इस आंदोलन को खत्म कराने के लिए की गई तमाम कोशिशें नाकाम हो जाने के बाद आंदोलन को तरह-तरह से बदनाम करने, सांप्रदायिक रंग देने और यहां तक कि उसे पाकिस्तान प्रेरित बताने की कोशिशें भी की गईं जो अभी जारी हैं, जिसमें मीडिया का एक बड़ा हिस्सा भी सरकार और सत्तारूढ़ भाजपा का साथ दे रहा है। 

दिल्ली में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी ने भरसक कोशिश की है कि चुनाव शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी और दिल्ली के विकास के मुद्दे पर हो लेकिन मुद्दाविहीन भाजपा ने शाहीन बाग को भी एक बड़ा मुद्दा बना दिया है। उसके शीर्ष नेतृत्व की सारी उम्मीदें शाहीन बाग पर टिकी हैं। इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपनी चुनावी रैलियों और दूसरे मंचों से दिए गए भाषणों में शाहीन बाग को निशाने पर रखा और गृह मंत्री अमित शाह के तो सारे ही भाषण और बयान शाहीन बाग पर ही केंद्रित रहे। चुनाव प्रचार में शामिल अन्य केंद्रीय मंत्रियों, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और भाजपा के अन्य नेताओं ने भी चुनाव प्रचार खत्म होने तक शाहीन बाग को लेकर लगातार नफरत फैलाने वाले भड़काऊ भाषण दिए।

दिल्ली की सत्ता का स्वाद आम आदमी पार्टी से पहले भाजपा और कांग्रेस जैसी बड़ी पार्टियां भी सत्ता का स्वाद चख चुकी हैं। इन दोनों दलों से अलग महज कुछ ही सालों में अपनी पहचान बना चुकी आम आदमी पार्टी के नेता और मुख्यमंत्री के रूप में अरविंद केजरीवाल अपने पांच साल के कार्यों के आधार पर जनता के बीच पहुंचे हैं। केजरीवाल पूरे चुनाव अभियान के दौरान शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली-पानी और विकास के मुद्दे को लेकर काफी संवेदनशील बने रहे। इसी का नतीजा है कि भाजपा तो इन मुद्दों पर बात ही नहीं की। अलबत्ता कांग्रेस ने जरूर इन मुद्दों पर आम आदमी पार्टी के दावों को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया हुआ बताया। 

दिल्ली की सत्ता से बेदखल हुए भाजपा को 22 साल गुजर हो गए हैं। 1993 के बाद भाजपा चुनाव नहीं जीती है और पिछले चुनाव में तो मोदी लहर के बावजूद उसे शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा था। इस बार वह सत्ता पर काबिज होने के लिए हर तरह की कोशिश कर रही है। इस सिलसिले में मोदी और शाह ने खुद को दांव पर लगा रखा है। हर चुनाव की तरह इस चुनाव में भी ‘पाकिस्तान’ भाजपा का प्रिय मुद्दा बना रहा। एक ओर वह शाहीन बाग आंदोलन को सांप्रदायिक करार देने की कोशिश कर उसके पीछे पाकिस्तान का हाथ बताती रही है, वहीं दूसरी ओर उसने केजरीवाल को भी पाकिस्तान का एजेंट बताने से गुरेज नहीं किया। केंद्र सरकार के एक मंत्री ने तो केजरीवाल को आतंकवादी तक करार दे दिया, तो एक मंत्री ने शाहीन बाग को निशाने पर रखते हुए आंदोलनकारियों को देश का गद्दार बताते हुए उन्हें गोली मारने जैसे नारे भी अपने भाषण में लगवाए। इस सबके बावजूद उसकी कोशिशें बहुत ज्यादा सिरे चढ़ती नहीं दिख रही हैं। 

फिर भी किसी भी कीमत पर चुनाव जीतने की भाजपा की हवस ने ऐसे नफरती और जहरीले बयानों से देश के समूचे राजनीतिक माहौल को और ज्यादा दूषित किया है और धार्मिक समुदायों के बीच सद्भाव को नष्ट कर गृहयुद्ध की जमीन तैयार करने की कोशिश की है। भाजपा के तमाम नेता, केंद्रीय मंत्री और सांसद बेखौफ होकर ऐसी बयानबाजी इसलिए कर सके, क्योंकि उन्हें किसी प्रकार की सजा का डर नहीं है। चुनाव आयोग ने सिर्फ दिखावटी कार्रवाई की है और पुलिस तो पूरी तरह सरकार के इशारों पर नाच रही है। 

कहने को तो यह महज दिल्ली जैसे एक छोटे से राज्य का विधानसभा चुनाव है, लेकिन भाजपा ने शाहीन बाग के बहाने इसका महत्व एक विधानसभा के चुनाव से भी ज्यादा बढ़ा दिया है। छोटी सी विधानसभा के चुनाव नतीजे पूरे देश के लिए एक बड़ा संदेश देने वाले होंगे। इस चुनाव के जरिए अब यह परीक्षा होगी कि क्या लोग इस मध्ययुगीन और खून की प्यासी विचारधारा के साथ जाने को तैयार हैं, जो भारत को एक धर्म आधारित शासन के अंधकार भरे दौर में वापस खींचने जा रही है, या वे इस विचारधारा को ठुकराएंगे? 

दिल्ली में 15 साल तक शासन कर चुकी कांग्रेस पिछले चुनाव की तरह इस चुनाव में भी मुकाबले से बाहर दिख रही है। दिल्ली के लोगों के सामने भाजपा की विभाजनकारी विचारधारा के खिलाफ विकल्प के रूप में आम आदमी पार्टी ही है, जो भले दूसरी अन्य पार्टियों की तरह व्यक्तिवाद जैसी बीमारी से मुक्त न हो, मगर वह अपने पांच साल के काम के आधार पर भाजपा को एक बड़ी चुनौती बनकर कड़ी टक्कर तो दे ही रही है। हालांकि उसने पूरे चुनाव अभियान के दौरान भाजपा के सांप्रदायिकता के मुद्दे से सीधे टकराने से बचने की कोशिश की है और शाहीन बाग आंदोलन का मुखर होकर समर्थन करने से परहेज किया है, यह सोचकर कि ऐसा करने से वह कुछ वोट खो सकती है।

बेशक, आम आदमी पार्टी ने नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के खिलाफ स्पष्ट रूप से अपना रुख जाहिर किया है, लेकिन शाहीन बाग आंदोलन का मुखर होकर समर्थन किए जाने को लेकर उसका यह डर निरर्थक है कि ऐसा करने से उसे चुनाव में नुकसान हो सकता है। क्योंकि भाजपा अपनी तमाम कोशिशों और घटिया हथकंडों के बावजूद शाहीन बाग आंदोलन को मनचाहा सांप्रदायिक रूप देने में नाकाम रही है। नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के खिलाफ शाहीन बाग के अलावा भी दिल्ली में बड़े पैमाने पर चल रहे विरोध प्रदर्शन के रूप में अन्य छोटे धरने और प्रदर्शन बता रहे हैं कि छात्रों, नौजवानों और समाज के अन्य तबकों का भी काफी बड़ा हिस्सा भाजपा की राजनीति से काफी नाराज़ है। बड़े पैमाने पर लोग धार्मिक टकराव, दंगे, हिंसा और भय का माहौल नहीं चाहते हैं। यह स्थिति दिल्ली में भाजपा के हारने का भी एक संकेत है। अलबत्ता वह पिछले विधानसभा चुनाव के नतीजों के मुकाबले अपनी स्थिति में थोड़ा सुधार जरूर कर सकती है और पिछली बार मिली तीन सीटों से कुछ ज्यादा सीटें हासिल कर सकती है। 

शाहीन बाग मुद्दे के अलावा भाजपा ने कांग्रेस के प्रदर्शन से भी अपनी उम्मीदें जोड़ रखी हैं। कांग्रेस की उम्मीदें इस चुनाव में अपने पुराने दलित-मुस्लिम जनाधार पर टिकी हैं। भाजपा को लगता है कि मुस्लिम और दलित वोटों का आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच विभाजन होगा, जिसका लाभ उसे मिलेगा। लेकिन इसे उसकी भोली उम्मीद ही कहा जा सकता है। 

कुल मिलाकर इस चुनाव में शाहीन बाग के बहाने भाजपा ने अपना नकाब पूरी तरह उतार दिया है और उसका असली चेहरा जनता के सामने आ गया है। दिल्ली का नतीजा चाहे जो हो, वह उससे उसका यह अभियान और तेज होगा नए-नए षड्यंत्रों को जन्म देगा। इसके बावजूद भाजपा की हार, भारत के बहुमत की और उन सभी लोगों की एक बड़ी जीत होगी, जो इस देश से प्यार करते हैं, देश की आजादी के नायकों का, देश के निर्माताओं का सम्मान करते हैं और देश के संविधान में आस्था रखते हैं।

(अनिल जैन वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल दिल्ली में रहते हैं।)

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