जी-20 में यूक्रेन मुद्दे पर रुस सख्त, रूसी राजदूत ने कहा- सम्मेलन का एजेंडा हाईजैक करने की फिराक में हैं कुछ देश

नई दिल्ली। भारत में 8-10 सितंबर को जी-20 शिखर सम्मेलन का आयोजन होने जा रहा है। सम्मेलन में रुस यूक्रेन से जुड़े किसी भी मुद्दे पर बात नहीं करना चाहता है। रुस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पहले ही सम्मेलन में शिरकत करने से इनकार कर चुके हैं। उनकी जगह पर रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव रूस का प्रतिनिधित्व करेंगे। ऐसे में सम्मेलन से एक सप्ताह पहले, 1 सितंबर को रूस के राजदूत डेनिस अलीपोव ने दृढ़ता से कहा कि जी-20 की परंपरा को ध्यान में रखते हुए सम्मेलन में राजनीतिक मुद्दों को नहीं उठाया जाना चाहिए।

उन्होंने आगे कहा कि जब जी-20 देश नई दिल्ली में मिलेंगे तब बाली घोषणा 2022 की भाषा जिसमें यूक्रेन का उल्लेख था, उसे बदलना होगा। अलीपोव ने ये भी कहा कि “दुर्भाग्य से, जी-20 में भारतीय अध्यक्षता ने कुछ देशों से बहुत मजबूत दबाव का अनुभव किया है, रूस की राय में उन देशों ने जी-20 के एजेंडे को हाईजैक कर लिया है और यूक्रेनी संकट को शीर्ष मुद्दों में से एक बना दिया है। जी-20 को आर्थिक मुद्दों और वित्त पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। पिछले साल समूह के कुछ सदस्यों की ओर से जी-20 सम्मेलन में राजनीतिक मुद्दों पर चर्चा करने का निर्णय लिया गया था जो हमें स्वीकार नहीं है।“

विदेशी संवाददाता क्लब (एफसीसी) में मीडिया से बातचीत के दौरान राजदूत अलीपोव ने कहा कि अगर किसी बात पर आम सहमति नहीं है तो बिना सहमति वाली बातों को यह ध्यान में रखते हुए हटा दिया जाना चाहिए कि जी-20 में राजनीतिक मुद्दों पर कभी चर्चा नहीं हुई है। रूसी राजदूत ने कहा कि भले ही जी-20 के अधिकांश सदस्य किसी बात का समर्थन करते हों और रूस जैसे कुछ सदस्य उससे अलग खड़े हों तो ऐसी बातें जी-20 के एजेंडे में नहीं होनी चाहिए।

2022 के बाली घोषणापत्र का जिक्र करते हुए उन्होंने रूस की अस्वीकृति जताई और बाली पैराग्राफ को बदलने की बात कही। दूत ने इस बात पर प्रकाश डाला कि रूस “न्यायसंगत और समान” अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था का समर्थन करता है जैसा कि ब्रिक्स और एससीओ समूहों के हालिया विस्तार में दिखाई पड़ता है। उन्होंने कहा कि “भारत का दबदबा बहुत तेज़ी से बढ़ा है और अब पीछे हटने का कोई रास्ता नहीं है। इसे वैश्विक राजनीति, संयुक्त राष्ट्र के संबंध में अपनी वैध आवाज व्यक्त करनी होगी। रूस ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में (भारत की) पूर्ण सदस्यता का लगातार समर्थन किया है। ऐसे सभी हालिया घटनाक्रम (ब्रिक्स और एससीओ में) जी-20 में ग्लोबल साउथ की आवाज को मजबूत करते हैं।”

अलीपोव ने जी-20 शिखर सम्मेलन के लिए समर्थन जताते हुए कहा कि रूस को उम्मीद है कि शिखर सम्मेलन सफल होगा और साथ ही यह भी कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने यूक्रेन युद्ध के समाधान के लिए कोई शांति प्रस्ताव नहीं रखा है। उन्होंने राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की के 10-सूत्रीय फॉर्मूले को “अल्टीमेटम के एक सेट के अलावा और कुछ नहीं” कहकर खारिज कर दिया, जिसका रूस समर्थन नहीं करेगा।

उन्होंने बार-बार यूक्रेन मुद्दे की ओर इशारा किया और कहा कि “जी-20 की सफलता काफी हद तक उन लोगों की सद्भावना पर निर्भर करती है जो एजेंडे में कुछ ‘गैर-सर्वसम्मति’ मुद्दों पर जोर देते हैं। राजदूत अलीपोव ने कहा कि हमने जी-20 में भारत की ओर से सामने रखे गए एजेंडे की प्राथमिकताओं का दृढ़ता से समर्थन किया है और हमें उम्मीद है कि नतीजे भारत की ओर से सामने रखे गए एजेंडे को प्रतिबिंबित करेंगे।

अलीपोव ने नई दिल्ली और बीजिंग दोनों के साथ मास्को के संबंधों का बचाव किया और उन्हें “स्वस्थ” बताया और तर्क दिया कि उनका देश भारत और चीन के बीच शत्रुता की स्थिति में भी भारत के साथ संबंधों को नहीं छोड़ेगा। उन्होंने कहा कि “भारत और चीन के बीच किसी भी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाक्रम के मामले में हम अपने संबंधों का त्याग कभी नहीं करेंगे।”

उन्होंने कहा कि “रूस को भारत की ओर से की गई कोई बात पसंद नहीं आ सकती है या भारत रूस के अंदर होने वाली घटनाओं से खुश नहीं हो सकता है, लेकिन भारत-रूस संबंध कभी भी किसी भी भू-राजनीतिक परिवर्तन से प्रभावित नहीं हुए हैं।”

(‘द हिन्दू’ में प्रकाशित खबर पर आधारित।)

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