नई दिल्ली। महाराष्ट्र की तीन पैरों वाली सरकार में अंदरूनी कलह चरम पर हैं। इस कलह को मराठा आरक्षण आंदोलन ने और बढ़ा दिया है। भाजपा और एनसीपी (अजित) के बीच मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उनके दल के विधायक-मंत्री अपने को फंसा हुआ महसूस कर रहे हैं। अजित पवार इस संकट में मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं तो शिंदे अपनी कुर्सी बचाने की कोशिश में देखे जा रहे हैं। बुधवार 8 नवंबर को महाराष्ट्र कैबिनेट की बैठक में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने सत्तारूढ़ गठबंधन में विभिन्न दलों के मंत्रियों के बीच अंदरूनी कलह पर नाराजगी जताई। उन्होंने मंत्रियों को सख्त संदेश देते हुए कहा कि वे अधिक समन्वय और एकजुटता के साथ एक टीम के रूप में काम करें। शिंदे की यह हिदायत शिवसेना (एकनाथ शिंदे) और राकांपा (अजित पवार) के मंत्रियों के बीच खुले असंतोष के बाद आया है।
ठीक एक महीने पहले, शिवसेना (शिंदे), भाजपा और राकांपा (अजित) का प्रतिनिधित्व करने वाले विधायकों और सांसदों की एक संयुक्त बैठक में प्रत्येक लोकसभा और विधानसभा क्षेत्र के लिए समन्वय समितियां गठित करने का निर्णय लिया गया था, जिसमें प्रत्येक समिति में सभी का एक प्रतिनिधि होगा। माना जा रहा था कि इससे उनके जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं को एकजुट करने में मदद मिलेगी।
हालांकि, पार्टी के नेताओं और मंत्रियों के बीच मतभेद खुल कर सामने आ रहे हैं। एकनाथ शिंदे और अजित पवार बार-बार दिल्ली जा रहे हैं जिसे शांति-प्रयासों का हिस्सा माना जा रहा है।
अक्टूबर में शिंदे ने 48 घंटे के भीतर दो बार दिल्ली के लिए उड़ान भरी। पिछले शुक्रवार को अजित पवार ने गृह मंत्री अमित शाह से दिल्ली आने का समय मांगा था। इसी बीच, जब तीनों पार्टियां मराठा आरक्षण आंदोलन की आग से लड़ने में व्यस्त थीं, अजित के सहयोगी छगन भुजबल ने ओबीसी श्रेणी के भीतर मराठों को आरक्षण देने के खिलाफ अपनी ही सरकार को चेतावनी जारी कर दी।
भुजबल ने कहा, “मराठों के लिए कुनबी प्रमाण पत्र को सरकार की मंजूरी उन्हें ओबीसी कोटा के भीतर पिछले दरवाजे से प्रवेश देने की एक चाल है।” उन्होंने चेतावनी दी कि अगर इसे आगे बढ़ाया गया तो ओबीसी सड़कों पर उतर आएंगे। शिंदे सेना के मंत्री संभुराज देसाई ने पलटवार करते हुए कहा कि, ”भुजबल की भड़काऊ टिप्पणी गठबंधन सरकार के लिए हानिकारक साबित हो सकती है।”
चाहे जानबूझकर या संयोग से, भुजबल का ओबीसी दावा सीएम के संकेत दिए जाने के तुरंत बाद आया कि वह दो महीने के भीतर मराठा आरक्षण मुद्दे का समाधान खोजने के प्रति आश्वस्त हैं। बीजेपी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा कि, “चुनावों को देखते हुए, प्रत्येक पार्टी और उसके नेता/मंत्री ऐसा रुख अपनाने की कोशिश कर रहे हैं जो उनके लिए सुविधाजनक हो।”
सरकार के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि राज्य प्रशासन और राजनीतिक क्षेत्र दोनों में शिंदे की बढ़ती दावेदारी एनसीपी (अजित) को रास नहीं आ रही है। सभी पार्टियों के स्थापित मराठा नेता ओबीसी कोटा के भीतर मराठों के लिए आरक्षण के पक्ष में नहीं हैं। बल्कि वे मराठों के लिए अलग कोटा चाहते हैं। शुक्रवार को जब अजित पवार ने अमित शाह से मुलाकात की तो जिन मुद्दों पर चर्चा हुई उनमें मराठा कोटा भी शामिल था। कहा जा रहा है कि डिप्टी सीएम चाहते हैं कि केंद्र मामले में दखल दे और इस मुद्दे को जल्द से जल्द सुलझाए।
सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधन के तीन घटक दलों में से एनसीपी गुट के नेता अजित पवार सबसे ज्यादा बेचैन नजर आ रहे हैं। 40 विधायकों के साथ शिंदे सेना-भाजपा सरकार में शामिल होने के चार महीने बाद, वह कथित तौर पर सीएम शिंदे और डिप्टी सीएम देवेंद्र फड़नवीस के बीच दबा हुआ महसूस कर रहे हैं। शुरू में ऐसा नहीं था। सरकार में शामिल होने के एक महीने के भीतर, अजित ने इतने उत्साह के साथ प्रशासनिक कार्य करना शुरू कर दिया कि कई लोग उन्हें “सुपर सीएम” कहने लगे। लेकिन फिर सरकार (मतलब सीएम शिंदे) ने एक आदेश जारी किया, जिसमें सभी फाइलों को सीएमओ के माध्यम से भेजा जाना अनिवार्य कर दिया गया।
अपने गुट के विधायकों को शामिल करने के लिए कैबिनेट विस्तार की अजित की बार-बार की गई मांग को भी रोक दिया गया है। अब, जब शिंदे वास्तविक मराठा नेता के रूप में उभर रहे हैं, तो वह गठबंधन में तीसरे स्थान पर खिसके हुए महसूस कर रहे हैं।
विपक्षी कांग्रेस नेता विजय वड्डेतिवार ने कहा, ”क्या अजित पवार सरकार में खुश हैं? महा विकास अघाड़ी सरकार में उन्हें खुली छूट थी। उनकी क्षमता और गतिशीलता की सराहना की गई। लेकिन बीजेपी को अपने सहयोगियों की क्षमता को कम करने की आदत है।”
एनसीपी (अजित) के अध्यक्ष सुनील तटकरे ने मतभेदों को कम महत्व देते हुए कहा, “अजित पवार दो सप्ताह से डेंगू से पीड़ित हैं इसलिए उन्हें आराम की सलाह दी गई है।” वहीं आग में घी डालते हुए एनसीपी मंत्री धरमराव आत्राम ने शनिवार को कहा, “अजित पवार जल्द ही सीएम बनेंगे।”
शिंदे सरकार के पास संख्या बल है। लेकिन आने वाले दिनों में लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए सीटों का बंटवारा होने के बाद सत्ता संघर्ष और उग्र होने की संभावना है।
(‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित खबर पर आधारित।)