नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट से पी चिदंबरम की जमानत को खारिज करने वाले जज सुनील गौर को प्रिवेंशन ऑफ मनी लांडरिंग एक्ट (पीएमएलए) ट्रिब्यूनल का चेयरमैन बनाया गया है। गौरतलब है कि जस्टिस गौर ने अपने रिटायर होने से महज दो दिन पहले चिदंबरम की याचिका पर फैसला सुनाया था। जबकि इस याचिका पर सुनवाई जनवरी में पूरी कर ली गयी थी और जस्टिस गौर ने फैसले को सुरक्षित रख लिया था। लेकिन अचानक रिटायर होने से दो दिन पहले उन्होंने याचिका पर फैसला सुनाकर चिदंबरम की अग्रिम जमानत की अर्जी खारिज कर दी थी।
दिलचस्प बात यह है कि यह फैसला शाम को चार बजे के आस-पास आया था जिससे चिदंबरम के वकील राहत के लिए उस दिन सुप्रीम कोर्ट भी न जा सकें। जिस तरह से यह फैसला आया था उसी दिन से लोगों के जेहन में तमाम तरह की आशंकाएं उठने लगी थीं। अब जबकि जज गौर को रिटायरमेंट के तुरंत बाद यह रेवड़ी मिल गयी है उससे आसानी से समझा जा सकता है कि जमानत याचिका के रद्द होने के पीछे की क्या कहानी है। इससे एक बार फिर संस्थाओं और खासकर न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर सवाल उठ गया है।
इस सरकार के दौरान यह कोई इस तरह का पहला मामला नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रहे सताशिवम ने अपने कार्यकाल के दौरान मौजूदा समय के गृहमंत्री अमित शाह को एक दौर में जमानत दी थी जब वह सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले में जेल में बंद थे। और फिर रिटायर होने के बाद उन्हें केरल का राज्यपाल बना दिया गया था। उस फैसले पर भी लोगों ने बेहद एतराज जताया था।
इस नियुक्ति पर कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने अपने तरीके से चुटकी ली है।