Friday, April 26, 2024

सरकार से सीलबंद लिफाफे में रिपोर्ट लेने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार, CJI बोले- कोर्ट में पारदर्शिता जरूरी

उच्चतम न्यायालय में आज उस समय मोदी सरकार का चीरहरण हो गया जब चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जेबी पारदीवाला की पीठ ने वन रैंक वन पेंशन (ओआरओपी) के मामले में सरकार के सीलबंद लिफाफे को स्वीकार करने से मना कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के अटॉर्नी जनरल को फटकार लगाते हुए सीलबंद लिफाफे को स्थापित न्यायिक सिद्धांतों के पूरी तरह खिलाफ बताया। इसके बाद अटॉर्नी जनरल (एजी) ने नोट पढ़ा, जिसमें कहा गया कि बजट परिव्यय खर्चों को पूरा करने के लिए पर्याप्त फंड नहीं है। इससे प्रकरांतर से सरकार की वित्तीय खस्ताहाली भी सतह पर आ गयी है।

चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि वह ‘सीलबंद कवर नोट’ की प्रथा को समाप्त करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि हम कोई गोपनीय दस्तावेज या सीलबंद लिफाफे नहीं लेंगे। हम व्यक्तिगत रूप से इसके खिलाफ हैं। अदालत में पारदर्शिता होनी चाहिए। यह आदेशों को लागू करने के बारे में है। यहां गोपनीयता क्या हो सकती है?

दरअसल पीठ के समक्ष मामला जब सुनवाई के लिए उठाया गया तो भारत के अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने सीलबंद कवर नोट पेश किया। पीठ ने इस सीलबंद कवर नोट को स्वीकार करने से साफ इनकार कर दिया और कहा कि इसे दूसरे पक्ष के साथ साझा किया जाना है।

सीजेआई ने जब एजी से सीनियर एडवोकेट हुजेफा अहमदी (जो पूर्व सैनिकों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं) के साथ नोट साझा करने के लिए कहा तो एजी ने कहा कि यह गोपनीय है। इस पर सीजेआई ने आश्चर्य व्यक्त किया कि यहां गोपनीयता क्या हो सकती है, क्योंकि मामला अदालत के आदेशों के कार्यान्वयन से संबंधित है।

चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने अटॉर्नी जनरल से कहा कि ‘मैं व्यक्तिगत रूप से सीलबंद लिफाफों के खिलाफ हूं। हम उसे दिखाए बिना मामले का फैसला करते हैं। यह मूल रूप से न्यायिक प्रक्रिया के विपरीत है। अदालत में गोपनीयता नहीं हो सकती है। न्यायालय को पारदर्शी होना चाहिए’।

सीजेआई ने आगे कहा कि ‘केस डायरी में गोपनीयता समझ में आती है। अभियुक्त इसका हकदार नहीं है, या कुछ ऐसा जो सूचना के स्रोत को प्रभावित करता है या किसी के जीवन को प्रभावित करता है। लेकिन यह पेंशन के भुगतान करने का हमारा फैसला है। इसमें गोपनीयता क्या हो सकती है’?

एजी ने कहा कि कुछ ‘संवेदनशीलता’ के मुद्दे हैं। सीजेआई ने कहा कि जब आप विशेषाधिकार का दावा करते हैं तो हमें उस दावे को तय करना होगा। सीजेआई ने दोहराया कि हमें इस सील बंद कवर प्रक्रिया को समाप्त करने की आवश्यकता है, जिसका पालन सुप्रीम कोर्ट में किया जा रहा है, क्योंकि तब हाईकोर्ट भी पालन करना शुरू कर देंगे। यह मूल रूप से निष्पक्ष न्याय की बुनियादी प्रक्रिया के विपरीत है।

गौरतलब है कि सीजेआई चंद्रचूड़ ने हाल ही में अडानी-हिंडनबर्ग मामले की जांच के लिए बनाई जाने वाली विशेषज्ञ समिति के सदस्यों के नामों को केंद्र सरकार के प्रस्ताव को सीलबंद कवर में स्वीकार करने से इनकार कर दिया था।

सीजेआई ने अटॉर्नी जनरल से कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट इसका पालन करता है, तो हाईकोर्ट भी इसका पालन करेंगे। चीफ जस्टिस ने सीलबंद लिफाफे को पूरी तरह से स्थापित न्यायिक सिद्धांतों के खिलाफ’ बताया। चीफ जस्टिस ने कहा कि इसका सहारा तभी लिया जा सकता है जब यह किसी स्रोत के बारे में हो या किसी के जीवन को खतरे में डालने वाला हो।

उन्होंने कहा कि अदालत पूर्व सैनिकों को ओआरओपी बकाया भुगतान पर सरकार की कठिनाइयों को देखती है, लेकिन कार्रवाई की योजना जानने की जरूरत है।

रक्षा मंत्रालय ने हाल ही में शीर्ष अदालत में एक हलफनामा और एक अनुपालन नोट दायर किया है, जिसमें पूर्व सैनिकों को 2019-22 के लिए 28,000 करोड़ रुपये के बकाए के भुगतान की समय सारिणी दी गई है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को 28 फरवरी 2024 तक पूर्व सैनिकों को ओआरओपी बकाया का भुगतान करने की अनुमति दी है।

पीठ ने आदेश दिया कि 2019 से ओआरओपी का बकाया पारिवारिक पेंशन और वीरता पुरस्कार विजेताओं का बकाया (कुल 6 लाख व्यक्तियों) 30 मार्च तक और 70 वर्ष से अधिक पुराने पूर्व सैनिकों (लगभग 4 लाख) का बकाया 30 जून तक देय होगा। बाकी (10-11 लाख) का बकाया 31 अगस्त, 30 नवंबर और 28 फरवरी तक देय होगा।

अहमदी ने पीठ को बताया कि ये किस्तें मार्च 2019 में ही देय थीं। उन्होंने कहा कि अपने जीवन के सबसे अच्छे वर्षों में उन्होंने देश की सेवा की है और वे सरकार की अंतिम प्राथमिकता क्यों हैं।

अहमदी ने आग्रह किया कि यह कहने के बाद कि हम आपको 2019 में भुगतान करेंगे, अब वे कह रहे हैं कि वे अप्रैल 2024 में भुगतान करेंगे। यह बेहद अनुचित है। यह सर्कुलर उच्चतम स्तर से परामर्श किए बिना जारी नहीं किया जा सकता। ऐसा नहीं है कि उनके पास पैसा नहीं है।

(जे.पी.सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं)

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