Sunday, April 28, 2024

ग्राउंड रिपोर्ट: चुटका गांव के आदिवासियों को पहले बरगी बांध और अब परमाणु परियोजना से उजड़ने का खतरा

मण्डला। मध्यप्रदेश के जबलपुर संभाग का मण्डला आदिवासी बाहुल्य जिला है, जो पांचवीं अनुसूची क्षेत्र में आता है। जिले की बहुत बड़ी आबादी कृषि पर निर्भर है। लेकिन यहां के आदिवासी समुदाय को जीवनयापन के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ता है।

मण्डला में लगभग 40 साल पहले नर्मदा नदी पर जल आपूर्ति के लिए बरगी बांध परियोजना लायी गयी थी। इस बांध के चलते कई गांव विस्थापित हुए थे, जिनमें आदिवासी गांव चुटका भी शामिल था। चुटका गांव से विस्थापित होने के सालों बाद आज भी गांव के लोग पूरी तरह आबाद नहीं हो पाए थे कि अब यहां ‘न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड’ द्वारा प्रस्तावित चुटका गांव में चुटका परमाणु परियोजना 2×700 मेगावाट क्षमता की आधारशिला रखने के बाद उनके सिर पर एक बार फिर विस्थापन का खतरा मंडराने लगा है।

बरगी बांध के विस्थापन का दर्द झेलने वाले चुटका सहित अन्य गांव के लोग ‘चुटका परमाणु परियोजना’ के कारण विस्थापन के खतरे को भांपते हुए परियोजना का विरोध करते आ रहे हैं। चुटका परियोजना का यह विरोध सालों से मीडिया की सुर्खियों में रहा है।

‘चुटका परमाणु परियोजना’ में तकरीबन 497 हेक्टेयर के इर्द-गिर्द जमीन अधिग्रहण की दरकार है। जिसमें चुटका जैसे अन्य गांव के सैकड़ों लोगों के विस्थापित होने का संकट है। ऐसे में मण्डला जिले में चुटका परियोजना का विरोध बढ़ता जा रहा है। वहीं, जिले की पर्यावरणीय स्थिति और सार्वजनिक जनजीवन को लेकर भी लोग चिंतित हैं।

जब हमने ‘चुटका परियोजना’ के प्रति लोगों के विचार जानने के लिए मण्डला जिले के चुटका क्षेत्र का भ्रमण किया तब तरह-तरह की समस्याओं से हमारा परिचय हुआ।

शारदा यादव, मांग-पत्र को देखते हुए

सबसे पहले हमारी मुलाकात गहबर सिंह बरकड़े सहित कुछ अन्य लोगों से हुई। गहबर सिंह बरकड़े हमें बताते हैं कि, “हम बरगी बांध विस्थापित हैं। इस बांध में हमारी कमर टूट गई थी। हमारी कुछ जमीन बरगी बांध में डूब गई थी। बाकी अब चुटका परियोजना में जा रही है। बरगी और चुटका परियोजना में मुआवजा मिलना एक महत्वपूर्ण बिन्दु है। लेकिन, हमारे लिए प्राथमिक बिंदु स्वतंत्रता जैसा संवैधानिक मूल्य है। यहां हम जंगल के लकड़ी, फल-फूल जैसे अन्य संसाधनों पर आश्रित हैं, जिनका कोई मुआवजा नहीं मिला। चुटका परियोजना से जंगल जैसे बहुमूल्य संसाधन नष्ट हो जाएंगे, जिससे निश्चित तौर पर हमारे गरिमापूर्ण जीवन जीने की स्वतंत्रता प्रभावित होगी।”

मुख्यमंत्री को भेजा गया पत्र

आदिवासी गुड्डा लाल बरकड़े बताते हैं कि, “हम भूमिहीन हैं। हमारे घर तक का पट्टा नहीं है। जैसे-तैसे मजदूरी और जंगल के संसाधनों पर निर्भर हैं। लेकिन, चुटका परमाणु परियोजना स्थापित हुयी तो हम पलायन के लिए विवश हो जाएंगे।”

देव नेताम अपनी बात रखते हुए कहते हैं, हम कई सालों से वन भूमि पर काबिज हैं। लेकिन, प्रशासन हमें पट्टे का हकदार नहीं समझता। ऐसे में क्या हमारे संवैधानिक मूल्य न्याय का पालन‌ हुआ? जब बरगी बांध बना तो हमारे बच्चों को जमीन और नौकरी का आश्वासन दिया था। मगर, हुआ ये कि बरगी बांध बनने से हम अपनी जमीन से हाथ धो बैठे। अब चुटका में भी यही हालत है।

अमर सिंह कुंजाम अपना दर्द ऐसे बयां करते हैं, 2009 से हमारे आस-पास के क्षेत्र में शिक्षा जैसे अन्य विकास कार्यों पर रोक लगी है। जिससे सीधे बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो‌ रहा है। चुटका परियोजना में विस्थापन‌ के कारण हमें एक-एक कमरे बना कर दिये गये। ये कमरे इतने छोटे हैं कि बच्चे कमरे में सो जाएं तो हमें बाहर सोना‌‌ पड़ेगा। और हम पति-पत्नी कमरे में सो जाएं, तो बच्चों को बाहर सुलाना‌ पड़ेगा। ऐसे में कोई रिश्तेदार आ जाए तो क्या करेंगे?

परियोजना के विरोध में बैठे आदिवासी

वहीं मवेशियों के लिए तो कोई निवास नहीं बनाया गया। गौरतलब है कि, कुंजाम जैसे लोगों के साथ चुटका परियोजना में नुकसान का आकलन करते हुए सिर्फ आर्थिक हानि का ध्यान रखा गया। लेकिन वनों से मिलने वाली सुविधाओं का आकलन नहीं किया गया।

सुमरत बरकड़े कहते हैं कि “हमको चुटका परियोजना से क्या लाभ है? हम चुटका परियोजना तब तक नहीं स्वीकार सकते, जब तक कि, हमारी ग्राम सभा की 26 सूत्रीय मांगें नहीं मानी जाती। हमने प्रशासन से लेकर नेताओं तक को चुटका परियोजना पुनर्विचार संबंधित‌ ज्ञापन‌ दिए, मगर सबके कान शांत हो जाते हैं।”

नाड़ा सिंह‌ मराबी अपने शब्दों को ऐसे पेश करते हैं, कि “चुटका परियोजना में हमारे कुल देवी-देवताओं के पूजा स्थल भी विलुप्त हो‌ जाएंगे। उनके संरक्षण की व्यवस्था पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा”।

इसके बाद बुद्धुलाल सहित कुछ अन्य लोग बोलते हैं कि, चुटका परियोजना में यदि हमारी 26 सूत्री मांगें नहीं मानी गयीं, तो‌ हम परियोजना का काम नहीं होने देंगे।

चुटका परियोजना को लेकर चुटका संघर्ष समिति के अध्यक्ष दादूलाल कुड़ापे बताते हैं कि “हम चुटका परियोजना पर मांगों और पुनर्विचार को लेकर सालों से कई ज्ञापन व आपत्तियां प्रशासन और राजनेताओं को देते आए हैं। लेकिन, यह आपत्तियां और ज्ञापन कागज बन‌ कर‌‌ रह गये हैं, इनका कोई जवाब नहीं आया।”

चुटका संघर्ष समिति के अध्यक्ष दादुलाल कुड़ापे

चुटका परियोजना से प्रभावित लोगों ने प्रशासन और नेताओं को सौंपीं कई आपत्तियां व ज्ञापन पत्र भी हमें दिखाए। गांव वासियों ने चुटका परियोजना से संबंधित अपनी मांगों का उल्लेख करते हुए जिला कलेक्टर मंडला को भी पत्र लिखा था। इस पत्र में ग्राम सभा में पारित प्रस्ताव में 26 बिंदुओं की मांग पूरा न होने की शिकायत की गई थी।

पत्र में जमीन अधिग्रहण का मुआवजा 60 लाख रुपये प्रति एकड़ विस्थापितों के खातों में जबरदस्ती डालने, कृषकों को भूमि और‌ पेड़-पौधों का कम मुआवजा देने, विस्थापित लोगों की गौशालाओं का मुआवजा न देने, चुटका विस्थापितों के लिए वन भूमि खोलने, वन ग्राम बसाने जैसी मांगें इस पत्र में दर्ज‌ हैं।

चुटका परियोजना को लेकर लोगों ने एक अन्य आपत्ति क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रक‌ बोर्ड को‌ भी सौंपी। इस आपत्ति में उल्लिखित है कि, इस परियोजना से चुटका, टाटीघाट और कुंडा सहित आसपास के 54 गांव प्रभावित होंगे। ऐसे में क्षेत्र के ग्रामीण आदिवासियों के नैसर्गिक अधिकारों सहित पर्यावरण और‌ जैव-विविधता पर‌ हानिकारक प्रभाव पड़ेगा।

चुटका गांव में हरियाली

आपत्ति में बताया गया कि, परियोजना में पुनर्वास नीति 2002, संविधान की पांचवीं अनुसूची का ध्यान रखा जाना चाहिए। परियोजना में 7 करोड़, 25 लाख, 76 हजार घन मीटर पानी प्रति वर्ष नर्मदा की जलधारा से लिया जायेगा, जो नदी में वापस नहीं होगा। इससे नर्मदा किनारे के सैकड़ों गांव जल की कमी से प्रभावित होंगे। अत: परियोजना रद्द की जाये। चुटका परमाणु संयंत्र को ठंडा करके जो पानी नर्मदा में जायेगा, उससे जलीय जीव और मानव बीमारियों का खतरा रहेगा।

आदिवासियों ने राज्यपाल के नाम भी अनुविभागीय अधिकारी सिवनी को ज्ञापन सौंपा है। इस ज्ञापन में चुटका परियोजना को निरस्त करने की मांग के अलावा जल, जंगल और जमीन से आदिवासियों को उजाड़ने से स्थानीय आदिवासी समुदाय पलायन और भुखमरी के शिकार होंगे।

चुटका परमाणु विरोधी संघर्ष समिति ने मुख्यमंत्री को चुटका परियोजना के लिए ग्राम सभा की अवहेलना कर जबरन बेदखली की शिकायत पत्र लिखा। इस पत्र में लिखा गया कि, मण्डला और सिवनी के विभिन्न गांव ने चुटका परियोजना के विरोध में प्रस्ताव पारित किया है। उपरोक्त ग्राम सभाओं ने परियोजना को लोकहित के विरुद्ध निरूपित करते हुए भूमि अधिग्रहण का विरोध किया है। इस पत्र में (चुटका परियोजना के संबंध में) ग्रामवासियों द्वारा हजारों आपत्तियां दर्ज कराने का भी जिक्र है।

अपने खेत में आदिवासी महिला

‘चुटका परमाणु विरोधी संघर्ष समिति’ द्वारा राज्यपाल के नाम 2017 में लिखे एक पत्र में यह भी बताया गया कि, संविधान के भाग 10 के अनुसार, अनुसूचित क्षेत्रों का प्रशासन स्थानीय जनजातीय समाज की सहमति द्वारा संचालित किया जाना चाहिए। ऐसे में जनजातीय समाज की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए, चुटका परमाणु परियोजना तथा उससे विस्थापित परिवारों के लिए ग्राम गोंझी, मण्डला में निर्माण किए गए पुनर्वास को रद्द किया जाए।

बरगी बांध‌ विस्थापन संघ के सदस्य और सामाजिक कार्यकर्ता राजकुमार सिन्हा बताते हैं कि “चुटका परियोजना जहां प्रस्तावित हुयी है वहां के कई गांव पहले ही बरगी बांध में विस्थापन का शिकार हो चुके हैं। ऐसे में, इस परियोजना का ‘चुटका परमाणु विरोधी संघर्ष समिति’ कई साल से विरोध कर रही है।”

“वहीं, भारत सरकार को अलग-अलग समय पर चुटका परियोजना से संबंधित ग्राम सभाओं की आपत्तियां, प्रस्ताव भेजा गया, लेकिन सरकार की ओर से जवाब नहीं आया।”

देश की परमाणु परियोजनाओं के अध्ययन से पता चलता है कि, जहां-जहां ये परियोजनाएं स्थापित की जाती है वहां का सार्वजनिक जनजीवन और लोगों का स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित होता है।

चुटका परियोजना पर क्षेत्रीय विधायक डॉ अशोक मर्सकोले कहते हैं कि, “मण्डला जिले की कई परियोजनाओं में से एक चुटका परियोजना है। यह परियोजना जब से प्रस्तावित हुई है। तब से लोग इसका विरोध कर रहे हैं।”

“यहां की पर्यावरणीय स्थिति और जनजीवन के लिहाज से यह परियोजना ठीक नहीं है। हमने अपने स्तर पर परियोजना के विषय में, प्रशासन और नेताओं से पत्र व्यवहार किया है लेकिन, अभी चुटका परियोजना का कोई रास्ता नहीं निकला है।”

चुटका परियोजना जैसी अन्य परियोजनाओं को लेकर ध्यान में रखा जाए कि, ऐसी परियोजनाओं में विस्थापित लोगों को पुनर्वास नीति 2002 के तहत, बिजली, सड़क, पानी, स्वास्थ्य जैसी विभिन्न नागरिक सुविधाएं, आवास सुविधा, विस्थापित परिवार के एक सदस्य को नौकरी, बेटियों को‌ जमीन पट्टा दिये जाने सहित अन्य मूलभूत सुविधाएं दिये जाने का जिक्र है। पुनर्वास नीति यह भी कहती है कि, विस्थापित लोगों को‌ वे सारी सुविधाएं मिलनी चाहिए, जिससे उन्हें यह अहसास न हो‌ कि वे‌‌‌ विस्थापित हुए हैं।

(सतीश भारतीय स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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