लेह स्वास्थ्य केंद्रों के नाम से हटाया जाएगा ‘मंदिर’ शब्द, लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद ने की सिफारिश

नई दिल्ली। लेह में भाजपा के नेतृत्व वाली लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद ने इलाके में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा चलाये जा रहे स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों के नाम हिंदी से बदलकर स्थानीय भाषा में करने और उसमें से मंदिर शब्द को हटाने की सिफारिश की है। ऐसा स्थानीय बौद्धों और मुसलमानों के आक्रोश को देखते हुए किया जा रहा है।

LAHDC, लेह, जो कि लद्दाख के लेह जिले में एक निर्वाचित निकाय है, ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि “स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र” जिन्हें आयुष्मान आरोग्य मंदिर कहा जाता है को लेह में “त्से-रिंग नादमेड त्सोनास” के रूप में दोबारा ब्रांडेड किया जाना है।

LAHDC, लेह के मुख्य कार्यकारी पार्षद ताशी ग्यालसन ने लेह में बोली जाने वाली भोटी भाषा में नाम रखने की वकालत की और रीब्रांडिंग प्रक्रिया की देखरेख के लिए कला और संस्कृति विभाग के कार्यकारी पार्षद स्टैनज़िन चोस्फेल की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया है। ग्यालसन ने कहा कि वे औपचारिक मंजूरी के लिए लद्दाख प्रशासन से संपर्क करेंगे।

एक आधिकारिक बयान में कहा गया है कि मुख्य कार्यकारी पार्षद की अध्यक्षता में रविवार को एक बैठक की गई जिसमें लद्दाख के बीजेपी सांसद जामयांग त्सेरिंग नामग्याल भी मौजूद थे।

इन केंद्रों का नाम आयुष्मान आरोग्य मंदिर रखे जाने पर विरोध प्रदर्शन किया गया था जिसमें विपक्षी कांग्रेस नेता त्सेरिंग नामगेल भी शामिल थे। नामगेल ने कहा कि पहले दो शब्दों का त्से-रिंग और नादमेड (अर्थात् भोटी में लंबा जीवन और कल्याण) में अनुवाद किया गया है। जबकि मंदिर का स्थान सोनास ने ले लिया है, जिसका अर्थ है केंद्र।

उन्होंने द टेलीग्राफ को बताया कि “वे शब्दों का शाब्दिक अनुवाद करने के बजाय एक सरल भाषा चुन सकते थे। लेकिन फिर भी ऐसे केंद्रों को मंदिर कहने की हमारी मुख्य चिंता का समाधान कर दिया गया है।“

उन्होंने कहा कि “यह नाम यहां सभी समुदायों के लोगों के साथ अच्छा नहीं रहा है। भाजपा शुरू में खुलकर सामने नहीं आई क्योंकि वह सत्ता में थी। लेकिन जाहिर है, उन्हें झुकना पड़ा।”

पिछले साल नवंबर में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने आयुष्मान भारत स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों का नाम बदलकर आयुष्मान आरोग्य मंदिर करने का फैसला किया था।

24 जनवरी को लद्दाख बौद्ध एसोसिएशन और कारगिल के प्रमुख मुस्लिम संगठनों ने संयुक्त रूप से इस फैसले का विरोध किया। ग्यालसन को संबोधित एक पत्र में, एलबीए के कार्यवाहक अध्यक्ष चेरिंग दोरजे ने केंद्रीय मंत्रालय के फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण और “लद्दाखी लोगों की भावनाओं के साथ खेलने” के समान बताया। दोरजे ने कहा, “भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और सरकारी विभागों में धार्मिक नामों और प्रतीकों का इस्तेमाल असंवैधानिक और अस्वीकार्य है।”

(‘द टेलिग्राफ’ में प्रकाशित खबर पर आधारित।)

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