नई दिल्ली। मोदी सरकार के तीन नये कृषि विधेयकों पर आज किसान संगठनों के नेताओं और सरकार के बीच पांचवीं बैठक होने जा रही है। जब से इन कृषि कानूनों के विरोध में किसानों ने राजधानी दिल्ली को सीमा के बाहर से घेरा है तब से यह तीसरे दौर की वार्ता होने जा रही है। इससे पहले 1 और 3 दिसंबर को दो दौर की वार्ता बिना किसी नतीजे के खत्म हुई थी। इस बीच सरकार की तमाम बातों, वादों और प्रस्तावों को ख़ारिज करते हुए किसान इन कानूनों को वापस लेने की अपनी मांग पर अड़े हैं।
जबकि दिन में पूरे देश में अडानी-अंबानी और मोदी के पुतले जलाए जाएंगे। किसानों का कहना है कि यह लड़ाई अब किसान बनाम कारपोरेट हो गयी है। और मोदी किसानों के हितों की कब्र पर कारपोरेट की फसल लहलहाना चाह रहे हैं। जो कभी नहीं होने दिया जाएगा। किसानों का कहना है कि अब सरकार की भूमिका महज बिचौलिए की हो गयी है। ऐसे में सरकारी तोते की जान कारपोरेट के पिजरे में है। लिहाजा पूरा निशाना अब कारपोरेट पर साधना होगा। उसी रणनीति के तहत किसानों ने आज मोदी के साथ ही अडानी और अंबानी का देश के पैमाने पर पुतला फूंकने का फैसला किया है।
उधर, सरकार भी अब तक झुकती नहीं दिख रही है, वह केवल मज़बूरी में किसानों से वार्ता कर रही है। इस बीच, जब पूरे देश और कनाडा और अमेरिका में भी भारत के आंदोलनरत किसानों के पक्ष में समर्थन और प्रदर्शन हो रहे हैं। वरिष्ठ अधिवक्ता और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के प्रेसिडेंट दुष्यंत दवे ने किसानों का समर्थन करते हुए कहा है कि वे किसानों के साथ हैं और यदि किसान चाहें तो वे हाईकोर्ट और सुप्रीमकोर्ट में उनके लिए कोई भी केस लड़ने को तैयार हैं।
एडवोकेट दवे के इस प्रस्ताव पर आभार प्रकट करते हुए वरिष्ठ वकील और दिल्ली हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष एचएस फुल्का ने कहा कि, “हम आभारी हैं कि एडवोकेट दवे ने हमने क़ानूनी लड़ाई में मदद की पेशकश की है। सरकार को सोचना चाहिए कि जब देश के वरिष्ठ वकील इन कानूनों को सही नहीं कह रहे हैं तो उसको इस पर विचार करना चाहिए।”
बता दें कि, 3 दिसंबर की वार्ता के दौरान किसानों ने सरकार का खाना तो ठुकरा दिया था और संसद का विशेष सत्र बुलाकर इन कानूनों को वापस लेने की मांग की थी।
अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव हन्नान मोल्लाह ने शुक्रवार को साफ़ शब्दों में कह दिया कि, “इसे सिर्फ पंजाब का आंदोलन बोलना सरकार की साजिश है मगर आज किसानों ने दिखाया कि ये आंदोलन पूरे भारत में हो रहा है और आगे भी होगा। हमने फैसला लिया है कि अगर सरकार कल कोई संशोधन रखेगी तो हम संशोधन स्वीकार नहीं करेंगे।“
भारतीय किसान यूनियन के जनरल सेक्रेटरी एच एस लखोवाल ने कहा, “5 दिसंबर को मोदी सरकार और कॉर्पोरेट घरानों के पुतले पूरे देश में फूंके जाएंगे। 7 तारीख को सभी वीर अपने मेडलों को वापस करेंगे। 8 तारीख को हमने भारत बंद का आह्वान किया है व एक दिन के लिए सभी टोल प्लाज़ा फ्री कर दिए जाएंगे।“
वहीं दूसरी ओर, राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव ने किसानों के समर्थन में अपील करते हुए कहा है कि, बिहार के किसानों और बिहार के संगठनों से अपील करते हैं कि एकजुट होकर सड़कों पर आएं और इस आंदोलन को मज़बूत करें। तेजस्वी यादव ने शुक्रवार को कहा-“कल (5 दिसंबर को) हमारी पार्टी के लोगों ने पटना के गांधी मैदान में 10 बजे से धरना प्रदर्शन करने का फैसला लिया है। उन्होंने कहा कि, एग्रीकल्चर सेक्टर को भी प्राइवेट हाथों में सौंपा जा रहा है। हम सब लोगों ने नोटबंदी और GST को भी देखा है, ये सरकार हमेशा आकर कहती है कि फायदे के लिए है लेकिन जब चार-पांच सालों के बाद फायदा पूछा जाता है तो कहने की स्थिति में नहीं होती और मुद्दे से भटकाती है”।
किसान नेता राकेश टिकैत ने शुक्रवार को कहा कि, 8 तारीख को पूरा भारत बंद रहेगा। इस बार 26 जनवरी की परेड में किसानों के पूरे सिस्टम को शामिल किया जाए। ट्रैक्टर हमेशा उबड़-खाबड़ ज़मीन पर ही चला है उसे भी राजपथ की मखमली सड़क पर चलने का मौका मिलना चाहिए।
बता दें कि, इस बीच कई राज्यों से किसान इस आंदोलन के समर्थन में लगातर दिल्ली पहुंच रहे, वहीं छात्र और तमाम मजदूर संगठन अलग-अलग राज्यों में किसानों के समर्थन में धरने दे रहे हैं, गीत गा रहे हैं, पोस्टर बना रहे हैं।
विदेशों में भारतीय किसान आंदोलन को समर्थन
भारत में जारी किसान आंदोलन के समर्थन में ब्रिटेन के 36 सांसद कूद पड़े हैं। वहां की लेबर पार्टी के सांसद तनमनजीत सिंह धेसी के नेतृत्व में 36 ब्रिटिश सांसदों ने राष्ट्रमंडल सचिव डोमिनिक राब को चिट्ठी लिखी है। इस चिट्ठी में सांसदों ने किसान कानून के विरोध में भारत पर दबाव बनाने की मांग की गई है। सांसदों के गुट ने डोमिनिक रॉब से कहा है कि वे पंजाब के सिख किसानों के समर्थन में विदेश और राष्ट्रमंडल कार्यालयों के जरिए भारत सरकार से बातचीत करें।
तनमनजीत सिंह ने कहा कि पिछले महीने कई सांसदों ने आपको और लंदन में भारतीय उच्चायोग को किसानों और जो खेती पर निर्भर हैं उनके शोषण को लेकर तीन नए भारतीय कानूनों के प्रभावों के बारे में लिखा था। भारत सरकार द्वारा कोरोना वायरस के बावजूद लाए गए तीन नए कृषि कानूनों में किसानों को शोषण से बचाने और उनकी उपज का उचित मूल्य सुनिश्चित करने में विफल रहने पर देश भर में व्यापक किसान विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं।
कनाडा के प्रधानमंत्री ने किया भारतीय किसान आंदोलन का समर्थन
इससे पहले कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भारत के किसान आन्दोलन को समर्थन किया था और भारत के आपत्ति के बाद भी वे अपनी बात पर कायम हैं।
ट्रूडो ने एक बार फिर अपनी बात दोहराते हुए कहा है कि वे किसानों का समर्थन करते हैं। उन्होंने भारत में आंदोलन कर रहे किसानों का साथ देते हुए कहा कि शांतिपूर्ण विरोध के अधिकारों की रक्षा के लिए कनाडा हमेशा साथ रहेगा, फिर चाहे वो किसी भी देश में क्यों ना हो।
इसके अलावा अमेरिका और ब्रिटेन में कई जगहों पर भारतीय किसानों के समर्थन में प्रदर्शन करने की खबर है।
दिल्ली की घेराबंदी हटाने के लिए सुप्रीमकोर्ट में याचिका
इससे पहले शुक्रवार को दिल्ली-एनसीआर के बॉर्डर से किसानों को हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है। याचिका में कहा गया है कि इससे कोरोना फैलने का खतरा है तो जरूरी सेवाओं में बाधा हो रही है।
याचिका में कहा गया है, ”यह ध्यान में रखना आवश्यक है कि कोरोना महामारी के सामुदायिक प्रसार को रोकने के लिए सभा को हटाना जरूरी है।” याचिका में आगे कहा गया है कि इस प्रदर्शन की वजह से इमरजेंसी और मेडिकल सर्विसेज के लिए भी रोड बंद हैं, जो कि दिल्ली में बेहद जरूरी है, क्योंकि दिल्ली में कोरोना संक्रमण के केस तेजी से बढ़ रहे हैं और बहुत से लोगों को दूसरे राज्यों से दिल्ली में इलाज के लिए आना पड़ता है।
‘लाइव लॉ’ के मुताबिक, यह याचिका किसी ऋषभ शर्मा नामक एक विधि छात्र द्वारा अधिवक्ता ओम प्रकाश परिहार के जरिये दायर की गयी है।
(पत्रकार नित्यानंद गायेन की रिपोर्ट।)