मणिपुर पहुंचे राहुल गांधी: हिंसा प्रभावित परिवारों से मिलने के लिए राहत शिविरों का दौरा

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नई दिल्ली। कांग्रेस नेता राहुल गांधी मणिपुर पहुंच गए हैं। अपनी दो दिवसीय यात्रा के तहत वह वहां उन राहत शिविरों का दौरा करेंगे जहां पर हिंसा के बाद हजारों लोग अपना घर-बार छोड़कर रहने पर मजबूर हैं। मणिपुर में 3 मई को शुरू हुई हिंसा पर अभी तक सरकार अंकुश लगाने में नाकाम रही है। जबकि सेना, सुरक्षा बल और पुलिस की कई टुकड़ियां वहां पर तैनात की गई हैं। गृहमंत्री अमित शाह की यात्रा के बाद भी राज्य में हिंसा की घटनाओं में कमी नहीं आई है। आरोप लग रहे हैं कि मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह की सरकार मैतेई हिंसक समूहों के साथ मिली हुई है। कांग्रेस समेत राज्य के कई राजनीतिक दलों ने सर्वदलीय बैठक में कहा कि एन बीरेन सिंह के रहते राज्य में हिंसा को रोका नहीं जा सकता है।

मणिपुर पहुंचने पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने फोसबुक पोस्ट लिखा, “आज मणिपुर में उतरा, जहां मैं राहत शिविरों का दौरा करूंगा और हिंसा से प्रभावित लोगों के परिवारों से मिलूंगा जिसने राज्य को घेर लिया है। मैं भी सिविल सोसाइटी के सदस्यों के साथ बैठक करूंगा। शांति की पुनर्स्थापना सर्वोच्च प्राथमिकता है। मणिपुर को उपचार की जरूरत है, और केवल हम मिलकर सामंजस्य ला सकते हैं।”

कांग्रेस नेता राहुल गांधी आज सुबह मणिपुर के लिए रवाना हुए थे। राहुल गांधी मणिपुर पहुंचने के बाद राहत शिविरों के दौरे पर निकल गए थे। लेकिन बीच रास्ते में पुलिस ने उन्हें रोक दिया। कांग्रेस ने ट्वीट किया कि “राहुल गांधी जी मणिपुर हिंसा के पीड़ितों से मिलने जा रहे थे। BJP सरकार ने पुलिस लगाकर उन्हें रास्ते में रोक दिया। राहुल जी शांति का संदेश लेकर मणिपुर गए हैं। सत्ता में बैठे लोगों को शांति, प्रेम, भाईचारे से सख्त नफरत है। लेकिन उन्हें याद रखना चाहिए… ये देश गांधी के रास्ते पर चलेगा, ये देश प्यार के रास्ते पर चलेगा।

आधिकारिक कार्यक्रम के अनुसार वह सुबह 11:45 बजे ग्रीनवुड अकादमी, तुईबोंग और चुराचांदपुर सरकारी कॉलेज का दौरा करेंगे और दोपहर 1:30 बजे एक कार्यक्रम के लिए सामुदायिक हॉल, कोन्जेंगबाम और मोइरांग कॉलेज जाएंगे।

राज्य में हिंसा की घटनाओं के बीच राहुल गांधी की यह पहली यात्रा है। लगभग दो महीने पहले जातीय झड़पें शुरू हुई थीं, जिसमें 100 से अधिक लोगों की जान चली गई थी और हजारों लोग विस्थापित हुए थे। कांग्रेस ने गुरुवार को एक ट्वीट में लिखा, “राहुल प्यार का पैगाम लेकर मणिपुर जा रहे हैं।”

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अभी तक मणिपुर हिंसा पर मौन हैं। पीएम मणिपुर जाने से भी कतरा रहे हैं। कुछ दिन पहले मणिपुर के राजनीतिक दलों का एक प्रतिनिधिमंडल दिल्ली आया था। लेकिन उस प्रतिनिधिमंडल से भी मिलने का वक्त उनके पास नहीं था। प्रतिनिधिमंडल से बात किए बिना वह अमेरिका रवाना हो गए थे।

राहुल गांधी ने केंद्रीय गृह मंत्रालय से कोई अनुमति नहीं मांगी है क्योंकि राज्य में यात्रा पर कोई प्रतिबंध नहीं है। पिछले हफ्ते केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में कांग्रेस ने मांग की थी कि एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल मणिपुर भेजा जाए।

कांग्रेस ने केंद्र और पूर्वोत्तर राज्य दोनों ही भाजपा सरकारों पर इस बात को लेकर निशाना साधा है कि वे इस संकट से कैसे निपट रही हैं। पार्टी पहले ही मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को हटाने की मांग कर चुकी है, उनका तर्क है कि “उनके नेतृत्व में शांति बहाल नहीं की जा सकती।”

राहुल गांधी के दौरे पर प्रतिक्रिया देते हुए उद्धव ठाकरे गुट के सांसद संजय राउत ने कहा, “यह अच्छी बात है कि राहुल गांधी मणिपुर जा रहे हैं। यूनियन के एचएम वहां गये लेकिन कुछ नहीं हुआ। पीएम ने अब तक मणिपुर के बारे में एक शब्द भी नहीं कहा है। मणिपुर में स्थिति बिगड़ रही है क्योंकि चीन इसमें शामिल है।”

इस बीच, कांग्रेस के पूर्वोत्तर प्रभारी अजॉय कुमार ने कहा कि “राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी हमेशा मणिपुर मुद्दे को उठाते रहे हैं। राहुल गांधी का मानना है कि देश को मणिपुर की स्थिति जानने की जरूरत है। राज्य में इस वक्त कानून व्यवस्था पूरी तरह फेल है। डबल इंजन सरकार ट्रिपल प्रॉब्लम सरकार बन गई है। राहुल गांधी राज्य के लोगों से मिलेंगे और मुझे लगता है कि सरकार को सबक सीखना चाहिए।”

12,000 से अधिक मणिपुरी विस्थापितों से मिज़ोरम में बढ़ा दबाव

मणिपुर में हिंसा के बाद बहुत सारे लोग ने राज्य की सीमा पार कर मिजोरम में शरण लिया है। मिजोरम सरकार के एक आंकड़े के अनुसार करीब 12, 000 लोगों को समायोजित करने के बाद अब सरकार दबाव महसूस कर रही है। क्योंकि ऐसे परिवारों के भोजन, स्वास्थ्य के साथ ही बच्चों को स्कूलों में दाखिला भी कराना पड़ रहा है। मिजोरम सरकार ने अब विस्थापित लोगों के लिए केंद्र सरकार से धन मुहैया कराने की मांग की है।

मिजोरम के गृह आयुक्त एच लालेंगमाविया ने कहा कि “अब तक, हमें एक पैसा भी नहीं मिला है। हम चर्च और स्वैच्छिक संगठनों और निजी व्यक्तियों के योगदान से अब तक राहत प्रदान करने में सक्षम रहे हैं। लेकिन यदि केंद्र सरकार जल्द ही सहायता नहीं देती है तो दो सप्ताह के बाद हमारे पास संसाधनों की कमी हो जाएगी… बहुत सारे छात्रों को मिजोरम के स्कूलों में प्रवेश दिया गया है, स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं, भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है। हम अपने सीमित बजट के बावजूद उन्हें हर सुविधा देने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।”

मिजोरम के मुख्यमंत्री ज़ोरमथांगा ने मई में प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर जातीय हिंसा से विस्थापित लोगों के लिए कम से कम 10 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता की मांग की थी। राज्य के कैबिनेट मंत्री रॉबर्ट रॉयटे के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने धन के लिए दबाव बनाने के लिए इस महीने की शुरुआत में दिल्ली का दौरा भी किया था।

3 मई को हिंसा भड़कने के बाद से, लगभग 37,000 लोग मणिपुर के राहत शिविरों में चले गए हैं, और हजारों लोग अन्य राज्यों में भाग गए हैं। लेकिन मणिपुर के साथ 95 किमी लंबी सीमा साझा करने वाले मिजोरम ने इस संघर्ष की लहरों को सबसे ज्यादा महसूस किया है। कुकी-ज़ोमिस, जो मणिपुर में मैतेई समुदाय के साथ संघर्ष में हैं, मिज़ोरम के मिज़ोस के साथ एक गहरा जातीय संबंध है, जिससे विस्थापित लोगों में से कई लोग वहां आश्रय लेने के लिए सहज महसूस करते हैं।

सोमवार शाम तक, मिजोरम में मणिपुर से विस्थापित लोगों की कुल संख्या 12,162 थी, जिनमें से 2,937 35 राहत शिविरों में रह रहे थे, और बाकी परिवार या दोस्तों के साथ थे। अब लगभग दो महीने से, मिजोरम में राज्य सरकार और नागरिक समाज दोनों इन “आंतरिक रूप से विस्थापित” लोगों का सहयोग करने के लिए एक साथ आ रहे हैं। राज्य सरकार ने राहत और मानवीय सहायता की निगरानी के लिए गृह मंत्री लालचमलियाना के नेतृत्व में मिजोरम में मणिपुर के आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्तियों पर 19 सदस्यीय कार्यकारी समिति का भी गठन किया।

राज्य के शिक्षा निदेशक लालसांगलियाना के अनुसार, “आंतरिक रूप से विस्थापित परिवारों” के 1,500 से अधिक बच्चों को अब तक मिजोरम के स्कूलों में प्रवेश दिया गया है।

उन्होंने कहा कि “यह निजी और सरकारी दोनों स्कूलों में प्राथमिक कक्षाओं से लेकर कक्षा 12 तक है। यह संख्या बढ़ेगी क्योंकि मिजोरम में लोगों का आना जारी है। उनके पास दस्तावेज़ नहीं थे लेकिन फिर भी हमने परिस्थितियों को देखते हुए उन्हें प्रवेश दिया और वे चल रही कक्षाओं में शामिल हो गए। हम नहीं जानते कि यह अल्पावधि के लिए है या दीर्घावधि के लिए, लेकिन हम जितना संभव हो सके प्रवेश की सुविधा दे रहे हैं।”

यह आमद ऐसे समय में हुई है जब राज्य इस साल के अंत में विधान सभा चुनावों की तैयारी कर रहा है। मिजोरम में लगभग 35,000 चिन शरणार्थी भी हैं – जो कुकी-ज़ोमिस के समान जनजातीय जातीयता के हैं – म्यांमार में गृह युद्ध के कारण पलायन पर मजबूर हुए हैं, जिन्हें राज्य ने ऐसा न करने के केंद्र सरकार के निर्देशों के बावजूद ले लिया है। सिर्फ सरकार ही नहीं, राज्य का नागरिक समाज, जो राहत और सहायता में केंद्रीय भूमिका निभा रहा है, भी अब दबाव महसूस करने लगा है।

नागरिक समाज संगठनों और जिला प्रशासन के सहयोग से ग्राम परिषदों द्वारा राहत शिविर स्थापित किए गए हैं। कोलासिब जिले में, मंगलवार रात तक 4,415 ऐसे विस्थापित लोगों को बांस से बने अस्थायी घरों में आश्रय दिया गया है। जानकारी के मुताबिक मिजोरम में “हर घंटे हमारे जिले में शरणार्थी आ रहे हैं।” समाजसेवी संगठन लोगों से कपड़े, चावल और पैसे इकट्ठा कर रहे हैं। और इसे शरणार्थियों के बीच समान रूप से वितरित करते हैं।

विस्थापितों में से लगभग 1,480 लोग जिले के राहत शिविरों में रह रहे हैं। 300 से अधिक लोगों वाला सबसे बड़ा शिविर जिला प्रशासन द्वारा थिंगडॉल में स्थापित किया गया है। अन्य 13 ग्राम परिषदों और वाईएमए द्वारा चलाए जा रहे हैं। सद्भावना और दान पर चलने वाले इन शिविरों का कामकाज अनिश्चित है।

आइजोल जिले में भी 4,000 से अधिक विस्थापित लोग हैं और वाईएमए शहर में 12 राहत शिविर चला रहा है। जब तक स्थिति सामान्य नहीं हो जाती मणिपुर के नागरिक वापस जाने को तैयार नहीं हैं। उन्हें वापस लाने में मदद करना मणिपुर सरकार की ज़िम्मेदारी है, लेकिन अभी तक सरकार ने मिजोरम सरकार से कोई संपर्क नहीं किया है।

(प्रदीप सिंह जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।)

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प्रदीप सिंह https://www.janchowk.com

दो दशक से पत्रकारिता में सक्रिय और जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।

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