Sunday, April 28, 2024

धारावी को वर्ल्ड स्मार्ट बनाने की अडानी समूह की मुहिम का विरोध क्यों हो रहा है? 

मुंबई के माहिम, सायन, बांद्रा और कुर्ला के बीच में एक बेहद छोटे स्थान पर मौजूद धारावी की स्लम बस्ती देश ही नहीं सारी दुनिया में मशहूर है। 2.8 वर्ग किमी के भीतर 12 लाख लोगों को अपने में समेटे इस इलाके को शहर के भीतर एक शहर भी कहा जाता है। 

दुनिया की सबसे सघन बस्ती और संकरी गलियों वाले इस धारावी से करीब 1 बिलियन डॉलर का बिजनेस भारत को मिलता है। पिछले कई दशकों से धारावी के रिडेवलपमेंट को लेकर मुंबई और महाराष्ट्र की विभिन्न सरकारों ने गंभीरता से विचार करना शुरू किया था, लेकिन हर बार इसे अमल में लाने में कोई न कोई अड़चन आती गई।

धारावी रिडेवलपमेंट परियोजना की शुरुआत और अब तक का सफर 

90 के दशक से ही इस बारे में राज्य सरकार की ओर से विचार-विमर्श शुरू हो गया था। 2004 में महाराष्ट्र सरकार ने धारावी को एक एकीकृत योजनाबद्ध टाउनशिप के रूप में रिडेवेलप करने का फैसला लिया। इसके लिए सरकार की ओर से संकल्प जारी कर पुनर्विकास की कार्ययोजना को मंजूरी दी गई। इसमें भूमि को एक महत्वपूर्ण संसाधन के रूप में उपयोग कर इसके विकास की लागत को क्रॉस-सब्सिडी के तहत डालते हुए, इसके लिए डेवलपर्स को नियुक्त करके धारावी को विकसित करने का निर्णय लिया गया।

लेकिन 2011 में सरकार ने सभी निविदाएं रद्द कर दी और एक मास्टर प्लान तैयार किया। 2018 में भाजपा-शिवसेना सरकार ने धारावी के लिए एक स्पेशल परपज व्हीकल का गठन किया और इसे पुनर्विकास परियोजना के लिए अधिसूचित किया। बाद में इस काम के लिए ग्लोबल टेंडर (वैश्विक निविदा) आमंत्रित की गईं।

नवंबर 2018 में, फड़नवीस के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने झुग्गी बस्ती के पुनर्विकास के लिए एक नए मॉडल को मंजूरी दी। जनवरी 2019 में दुबई की एक इंफ्रास्ट्रक्चर फर्म सेकलिंक टेक्नोलॉजीज कॉर्पोरेशन ने अडानी समूह के बरक्श यह टेंडर हासिल करने में बाजी मार ली थी, लेकिन रिडेवलपमेंट प्रोजेक्ट में रेलवे की भूमि को शामिल करने के निर्णय के बाद इस टेंडर को भी सरकार द्वारा रद्दी की टोकरी में डाल दिया गया। इसके पीछे फड़नवीस के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार का कहना था कि चूंकि इस टेंडर में धारावी के साथ रेलवे की जमीन को शामिल नहीं किया गया था, जिसे 800 करोड़ रुपये देकर अधिग्रहित किया गया है, इसलिए इसे भी इसमें जोड़ा जाना चाहिए।

बाद में अक्टूबर 2020 में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार ने इस निविदा को रद्द कर, नए टेंडर जारी करने की घोषणा की। लेकिन 2022 की शुरुआत से ही महाराष्ट्र में एक नया सियासी घमासान शुरू हो चुका था, और जुलाई 2022 तक महाराष्ट्र राज्य एक बार फिर से भाजपा की झोली में जा चुका था। एकनाथ शिंदे सरकार ने अक्टूबर 2022 में टेंडर के लिए बोली मंगाई और नवंबर 2022 के अंत तक यह टेंडर खोला गया, और इस बार अडानी समूह इस परियोजना के लिए सबसे मुफीद नाम उभरकर आया। गौतम अडानी के नेतृत्व वाले अडानी समूह ने इस परियोजना के लिए 5,069 करोड़ रुपये की बोली लगाई थी, जबकि डीएलएफ समूह की ओर से मात्र 2,025 करोड़ रुपये की बोली लगाई, जबकि तीसरे नमन ग्रुप की निविदा को तकनीकी आधार पर खारिज कर दिया गया था। 

धारावी की जमीन अपने नाम करने की मारामारी में देशी-विदेशी समूह शामिल 

लेकिन सबसे हैरानी की बात यह है कि इस बार की बोली में पिछली बार की तुलना में कई हजार करोड़ रुपये की कम बोली लगाई गई थी, लेकिन शिंदे-फड़नवीस सरकार के लिए इस बार सब चंगा था। बताते चलें कि जनवरी 2019 में संयुक्त अरब अमीरात की सेकलिंक टेक्नोलॉजीज कॉर्पोरेशन ने धारावी के लिए 7,200 करोड़ रुपये की बोली लगाकर यह ठेका हासिल किया था, जबकि अडानी समूह की ओर से उस वर्ष मात्र 4,539 करोड़ रुपये की ही बोली लगाई गई थी। 

इस बार अडानी समूह ने 5,069 करोड़ रुपये में धारावी रिडेवलपमेंट प्रोजेक्ट को हासिल कर लिया, जबकि इसमें राज्य सरकार द्वारा रेलवे को चुकता किये गये 800 करोड़ रुपये को भी शामिल किया गया है। इसके बावजूद सेकलिंक टेक्नोलॉजीज कॉर्पोरेशन की 2019 की बोली 2,000 करोड़ रुपये अधिक बैठती है। लेकिन इस बारे में भाजपा सरकार से सवाल तो क्या ही किया जाये, लेकिन मीडिया समूह और विपक्षी दल तक पूरी तरह से खामोश क्यों हैं, यह वे ही बता सकते हैं। शिंदे सरकार के द्वारा टेंडर अवार्ड के बावजूद देरी की एक वजह यह भी रही है कि सेकलिंक टेक्नोलॉजीज कॉर्पोरेशन ने मुंबई उच्च न्यायालय में धारावी की नई निविदा को चुनौती देते हुए 10,000 करोड़ रुपये हर्जाने की मांग की थी।   

इस प्रकार सिर्फ दो लोग ही इस बोली प्रक्रिया में शामिल थे। इसके पहले जब ग्लोबल टेंडर जारी किया गया था तो उसमें हिस्सा लेने वाली रियलिटी कंपनियों की संख्या एक दर्जन से उपर थी। मुंबई के हीरानंदानी समूह, लोढ़ा ग्रुप सहित राहेजा समूह के पास रियलिटी सेक्टर में कई दशकों का समृद्ध अनुभव रहा है। बहरहाल इसके कुछ महीने बाद ही हिंडनबर्ग विवाद के कारण लंबे समय तक सरकार की ओर से इस पर कोई कदम नहीं उठाया गया, लेकिन हाल के दिनों में फिर से इस परियोजना में तेजी देखने को मिल रही है।  

घोषित दावे बनाम कड़वी सच्चाई  

धारावी रिडेवलपमेंट प्रोजेक्ट के सीईओ वीआर श्रीनिवास के अनुसार, अडानी समूह द्वारा पुनर्विकास का लक्ष्य धारावी की असंगठित अर्थव्यवस्था को औपचारिक बनाने एवं मुंबई को स्लम-मुक्त बनाने की दिशा में पहला कदम है, जो शहर के चेहरे को बदलकर रख देगा।” जहां तक यहां के रहवासियों का प्रश्न है, हमारा लक्ष्य “योग्य झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों के लिए पानी और बिजली की आपूर्ति, सीवेज निपटान, पाइप गैस जैसी सेवाओं के साथ मुफ्त घर बनाने का” है। 

21 जुलाई 2023 के बिजनेस स्टैण्डर्ड की खबर के अनुसार महाराष्ट्र सरकार ने धारावी रिडेवलपमेंट प्रोजेक्ट के लिए नया टेंडर जारी करने के लिए हरी झंडी दिखाई दी थी। यह वह जमीन है जिसे आज के दिन मुंबई के दिल के रूप में जाना जाता है, जो देश के सबसे संपन्न व्यावसायिक इलाके बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स के बिल्कुल पास का इलाका है। जाहिर सी बात है कि बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स में देश के सभी नामचीन कॉर्पोरेट दिग्गजों के कार्यालय होने की वजह से उनकी निगाह में हर बार सामने बसे धारावी पर नजर पड़ती ही रहती है, जिसे वे शुद्ध रुप से प्राइम लैंड की बर्बादी के रूप में देखते हैं।

मुंबई में जमीन से बहुमूल्य कुछ नहीं   

मुंबई देश की वित्तीय राजधानी भी है, और शहर के मध्यवर्गीय आबादी को मुंबई के उपनगरीय इलाकों से आना पड़ता है। लेकिन शहर के बीचो-बीच आबाद धारावी नामक देश की सबसे बड़ी झुग्गी बस्ती को वे शहर का नासूर समझते हैं। सरकार के लिए भी पास में ही सहार अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट से लाखों की संख्या में आने वाले विदेशी पर्यटकों एवं राजनयिकों के सामने धारावी की बदरंग तस्वीर एक पैबंद ही अधिक नजर आती है, तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। 

यही वजह है कि धारावी और इसके 12 लाख लोगों के उद्धार के लिए कई बार योजना बनी, लेकिन विशुद्ध प्राइवेट इक्विटी की पहल को शुरू करने का कोई ठोस जरिया नहीं निकल सका। लेकिन इस बार प्राइवेट:राज्य सरकार 80:20 के फार्मूले के साथ ग्लोबल टेंडर जारी किया गया, जिसमें मात्र 3 बोलियां आईं। अडानी, डीएलएफ और 2.8 वर्ग किमी में फैले इस इलाके में असंगठित चमड़ा उद्योग और मिट्टी के बर्तन बनाने का काम बड़े पैमाने पर किया जा रहा है, जिसमें करीब 1 लाख से अधिक लोग काम कर रहे हैं। वर्ष 2004 में महाराष्ट्र राज्य सरकार ने धारावी को एक बहुमंजिला इमारतों वाले बेहतर शहरी इन्फ्रास्ट्रक्चर संपन्न इलाके के रूप में विकसित करने की योजना तैयार की थी। इस परियोजना में 68,000 परिवारों को उनके व्यवसायों के साथ व्यवस्थित रूप से बसाने की योजना तैयार की गई थी। 

इसमें हर परिवार को मुफ्त 300 वर्ग फीट का आवास मुहैया कराये जाने की बात कही गई है, बशर्ते इन लोगों के पास अपनी झुग्गियों का 1 जनवरी 2000 से पहले का प्रमाण मौजूद हो। इसके साथ ही 2000 और 2011 के बीच बसने वाले लोगों को कीमत अदाकर बसाने की योजना बनाई गई। लेकिन विभिन्न कारणों से यह परियोजना अभी तक परवान नहीं चढ़ सकी। 

लेकिन क्या धारावी के अधिकांश लोग इस रिडेवलपमेंट प्रोजेक्ट से खुश हैं? यह सवाल उनसे किसी ने पूछा ही नहीं है। धारावी में पारंपरिक मिट्टी के बर्तन बनाने से लेकर चमड़ा एवं कपड़ा उद्योग के अलावा प्लास्टिक रीसाइक्लिंग का बड़ा उद्योग है। इसमें मुंबई सहित देश के अन्य हिस्सों से रीसाइक्लिंग योग्य कचरे का प्रसंस्करण किया जाता है। धारावी में सिर्फ इसी एक काम से करीब 250,000 लोगों को रोजगार मिला हुआ है। रीसाइक्लिंग एक प्रमुख उद्योग होने के कारण इस क्षेत्र में भारी प्रदूषण का भी एक बड़ा स्रोत बना हुआ है। इसके अलावा धारावी में करीब 5,000 व्यवसाय चल रहे हैं, और 15,000 छोटी फैक्ट्री तो एकल कमरे में चलती हैं। वेस्टर्न और सेंट्रल रेलवे से चलने वाली दो प्रमुख उपनगरीय रेल सेवाएं धारावी (सायन-माहिम) के पास से होकर गुजरती हैं, जिससे यह क्षेत्र के लोगों के लिए काम पर आने-जाने के लिए एक महत्वपूर्ण आवागमन स्टेशन बन जाता है।

इतना ही नहीं धारावी दुनिया भर में माल का निर्यात भी करता है। इनमें चमड़े के विभिन्न उत्पाद, आभूषण, विभिन्न सहायक उपकरण एवं वस्त्र शामिल हैं। धारावी का सामान संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोप और मध्य पूर्व के स्टोर्स में बिकता है और वहां के व्यापारी तक धारावी में आकर व्यापारिक सौदे करते देखे जा सकते हैं। इसका कारोबार प्रति वर्ष 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक होने का अनुमान है। 

लेकिन धारावी के बारे में यह भी सच है कि इसकी अधिकांश आबादी के लिए आवास और व्यवसाय दोनों का प्रबंध धारावी खुद करता है। यही वह प्रमुख वजह है जो धारावी को विशिष्ट बनाती है। यही कारण है कि अब जबकि रिडेवलपमेंट प्रोजेक्ट के काम को अडानी समूह और राज्य सरकार की ओर से अमली जामा पहनाया जा रहा है तो धारावी में इसके खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध शुरू हो गया है।

धारावी के लोगों का डर अब सच होने लगा है 

इस सिलसिले में सोमवार को मुंबई कांग्रेस प्रमुख एवं धारावी से विधायक वर्षा गायकवाड़ ने विधानसभा के पटल पर एक चौंकाने वाला दावा किया। उनका दावा था कि अडानी समूह, जिसने एशिया की सबसे बड़ी मलिन बस्ती के पुनर्विकास परियोजना को हासिल किया है, ने धारावी में रहने वाले लोगों को धमकाकर अपने घर खाली करने के लिए पूर्व पुलिस अधिकारियों सहित एनकाउंटर करने में स्पेशलिस्ट पुलिसकर्मियों को इस अभियान में शामिल किया है। उनका कहना था कि कुछ निवासियों को अनधिकृत सूत्रों के माध्यम से आधी रात के समय बेदखली के नोटिस थमाए गए, और उन्हें चार दिनों के भीतर अपने घरों को खाली करने के लिए कहा गया था। वर्षा गायकवाड़ ने यह भी दावा किया है कि इसमें से तीन पुलिस के अधिकारी पूर्व में धारावी में काम कर चुके हैं।

उन्होंने अपने बयान में यह भी कहा है कि “धारावी के  निवासी आज डर के साये में जी रहे हैं। उन्हें बताया गया है कि चार दिनों में यहां से निष्कासन की प्रक्रिया शुरू हो जायेगी। लेकिन परियोजना पूरी होने तक उन्हें कोई वैकल्पिक आवास नहीं मुहैया कराया गया है। यह बाहुबल की मदद से धारावी के रहवासियों की आवाज को दबाने के अलावा और कुछ नहीं है।”

धारावी बचाओ आंदोलन के संयोजक राजू कोर्डे ने सदन में विधायक वर्षा गायकवाड़ के आरोपों की पुष्टि करते हुए अपने बयान में कहा, “वे (पूर्व पुलिस अधिकारी) धारावी क्षेत्र से अच्छी तरह से परिचित हैं, और उनके पास यहां पर मौजूद एक्टिविस्ट और असामाजिक तत्वों का रिकॉर्ड है। हमें इस बात की सूचना है कि मंगलावर को समता नगर और संजय गांधी नगर में झुग्गियां गिराई जा सकती हैं। वे रेलवे की जमीन पर बनाई गई हैं, जिसके लिए राज्य पहले ही 800 करोड़ रुपये का भुगतान कर चुका है। ऐसे में उनके पुनर्वास की जिम्मेदारी राज्य सरकार की बनती है, लेकिन एजेंसियां अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रही हैं।”

धारावी रिडेवेलपमेंट प्रोजेक्ट का काम 7 वर्ष तक चलना है। इस हिसाब से 2030 तक ये 12 लाख लोग किधर जायेंगे? इन लोगों को आवास के साथ-साथ अपने व्यवसाय से भी हाथ धोना पड़ेगा। ऐसे में वे क्या खायेंगे? एक बार को मान लिया जाये कि वे किसी तरह जिंदा रह भी लें, लेकिन उसके बाद बहुमंजिला इमारतों में उनके पारंपरिक व्यवसाय कैसे चलेंगे? वैसे भी सरकार सिर्फ 68,000 लोगों की जवाबदेही लेने की बात कह रही है, लेकिन धारावी में एक झुग्गी के साथ दो-दो माले के मकानों में किराये पर रहकर अपना गुजारा करने वाले लोगों के लिए तो न सरकार और न ही अडानी समूह ने कोई विचार किया है।

इस प्रोजेक्ट के दो हिस्से हैं, जिसके एक हिस्से में धारावी के निवासियों के लिए 300 वर्ग फीट का आवास होगा, लेकिन दूसरे हिस्से में कमर्शियल स्पेस है। इसी स्पेस से अडानी समूह 20,000 करोड़ की लागत को वसूलेगा। लेकिन 70:30 के इस अनुपात में मुंबई के दिल कहे जाने वाले धारावी की प्राइम लोकेशन की सही-सही कीमत क्या होने जा रही है, इस बारे में सभी ख़ामोशी बनाये हुए हैं। शायद सभी को मुंबई के मानचित्र से धारावी की तस्वीर को गायब करने की फ़िक्र ज्यादा सता रही है।

देश के असली वारिसों के लिए अब क्या शहर, क्या गांव और क्या जंगल! देश में उंगलियों पर गिना जा सकने वाले चंद कॉर्पोरेट घरानों को अब पूरी तरह से भरोसा हो चुका है कि देश के सभी संसाधनों पर असल में उनका ही हक है और वे ही देश को विकसित भारत का दर्जा दिला सकते हैं। यह दूसरी बात है कि इसमें वे अपने सिवा किसी और को नहीं देखते।  

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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