गांधी, फुले और अंबडेकर को अपशब्द पर लगे एससी-एसटी एक्ट के बाद भी नहीं हो रही है भिड़े की गिरफ्तारी

मनोहर कुलकर्णी उर्फ़ संभाजी भिड़े के खिलाफ महाराष्ट्र पुलिस द्वारा एफआईआर दर्ज न किये जाने को लेकर 19 अगस्त को पनवेल सत्र न्यायालय ने संज्ञान लेकर संबंधित पुलिस अधिकारियों के खिलाफ प्रशासनिक जांच के आदेश दे दिए हैं। संभाजी भिड़े पर दलित आइकॉन भीमराव आंबेडकर सहित ज्योतिबा फुले के खिलाफ अपशब्द बोलने पर अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत एफआईआर दर्ज किये जाने पर हीलाहवाली की जा रही थी।

अपनी शिकायत में कतरनावारे ने आरोप लगाया है कि भिड़े ने गौतम बुद्ध, ज्योतिबा फुले, पेरियार नाइकर सहित कई अन्य समाज सुधारकों के खिलाफ अपमानजनक बयान दिया है, जिसके चलते उनके अनुयायियों की भावनाएं आहत हुईं हैं। आरोपों की पुष्टि के लिए कतरनावारे ने आठ यूट्यूब वीडियो के लिंक्स का भी हवाला दिया है।

कोर्ट ने यह आदेश याचिकाकर्ता एडवोकेट अमित कतरनावारे की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है। अपनी याचिका में अमित कतरनावारे का कहना है कि उन्होंने इस सिलसिले में 26 जुलाई को न्यू पनवेल पुलिस स्टेशन में अपनी शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें बौद्धों और मुस्लिमों के खिलाफ भिड़े की कथित आपत्तिजनक टिप्पणियों के मद्देनजर पुलिस से एफआईआर दर्ज किये जाने की मांग की थी। यह शिकायत यूट्यूब पर भिड़े के भाषणों को देखने के बाद कतरनावारे ने अपनी शिकायत दर्ज कराई थी।

शिकायत दर्ज करने के दो दिन बाद 28 जुलाई को न्यू पनवेल पुलिस ने उन्हें सूचित किया कि उक्त भाषण के आधार पर भिड़े के खिलाफ एससी-एसटी एक्ट के तहत मामला दर्ज नहीं किया जा सकता है। इस पर कतरनावारे ने अपनी शिकायत कोंकण मंडल के पुलिस अधीक्षक, नागरिक अधिकार संरक्षण के समक्ष रखी, जिन्होंने मामले को न्यू पनवेल के वरिष्ठ पुलिस इंस्पेक्टर को सुपर्द कर दिया। लेकिन इसके बावजूद एफआईआर दर्ज नहीं हो सकी।

हार कर कतरनावारे ने 2 अगस्त को कोर्ट का रुख किया, जिसमें उन्होंने भिड़े के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के पुलिस को दिशा-निर्देश दिए जाने की मांग की। इस मामले की सुनवाई 7 अगस्त को तय हुई, लेकिन इससे एक दिन पहले 6 अगस्त को न्यू पनवेल पुलिस स्टेशन में भिड़े के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर दी गई।

जाहिर है, अदालत की फटकार से बचने में लिए न्यू पनवेल पुलिस ने एफआईआर की औपचारिकता पूरी कर दी थी। इस पर कतरनावारे ने पुलिस प्रशासन की ओर से एफआईआर दर्ज करने में देरी के लिए पनवेल सत्र अदालत में न्यू पनवेल पुलिस स्टेशन के उप-निरीक्षक बबन सांगले, गोकुलदास मेश्राम, वरिष्ठ निरीक्षक अनिल पाटिल सहित डीसीपी जोन-2 पंकज धहाने के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए एक याचिका दायर कर दी। अपनी याचिका में उनका कहना था कि एससी-एसटी एक्ट के तहत अपराध के मामलों पर तत्काल एफआईआर दर्ज करना अनिवार्य है।

19 अगस्त को अदालत ने पुलिस द्वारा प्राथमिकी दर्ज किये जाने में देरी और अपने कर्तव्य के निर्वहन में हीला-हवाली किये जाने की पड़ताल करने के लिए पुलिस आयुक्त को एससी-एसटी एक्ट की धारा 4 की उपधारा 2 के प्रावधान के तहत मामले की प्रशासनिक जांच के आदेश जारी किये हैं। इस धारा में एससी/एसटी एक्ट के तहत लोक सेवकों पर अपने कर्तव्य की जानबूझकर उपेक्षा करने का मामला दर्ज करने का प्रावधान है। इस धारा के अनुसार, प्रशासनिक जांच या संस्तुति पर लोक सेवकों पर मामला दर्ज किया जा सकता है।

अपने आदेश में अदालत ने कहा है कि इस मामले की जांच किसी ऐसे अधिकारी द्वारा की जानी चाहिए जो पुलिस उपायुक्त के स्तर से नीचे का न हो। उक्त जांच की रिपोर्ट चार महीने के भीतर अदालत के समक्ष पेश करनी होगी।

इस विषय पर पुलिस का कहना है कि उसकी ओर से भिड़े के खिलाफ आईपीसी की धारा 153-ए (धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा इत्यादि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना), 153-बी (राष्ट्रीय एकता के लिए हानिकारक आरोप एवं दावे करने) और 295-ए (जान बूझकर और दुर्भावनापूर्ण कृत्य करना जिसका मकसद किसी वर्ग के धर्म अथवा धार्मिक विश्वासों का अपमान कर उनकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना) और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 3(1)(वी), 3(1)(आर), 3(1)(यू), और 3(2) के तहत एफआईआर दर्ज की जा चुकी है।

ज्ञातव्य हो कि हिंदुत्व के इस फायरब्रांड नेता के खिलाफ हाल के दिनों यह तीसरी एफआईआर दर्ज की गई है, जिसमें भिड़े पर आरोप है कि उन्होंने देश के राष्ट्रीय नायकों के खिलाफ अपमानजनक भाषण दिए हैं, और समाज को विभाजित करने का प्रयास किया है। एक माह पूर्व भी संभाजी भिड़े ने 15 अगस्त, तिरंगे और महात्मा गांधी पर अपमानजनक टिप्पणी की थी।

ऐसे में सवाल है कि ये संभाजी भिड़े कौन है? और न्यू पनवेल पुलिस और वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने शिकायतकर्ता की शिकायत पर एफआईआर दर्ज करना क्यों उचित नहीं समझा? महाराष्ट्र की पुलिस किस दबाव के तहत आज भी संभाजी भिड़े पर कार्रवाई नहीं कर रही है?

कौन है संभाजी भिड़े?

अपने अनुयायियों के लिए संभाजी भिड़े या ‘संभाजीराव भिड़े गुरुजी’ का असली नाम मनोहर कुलकर्णी बताया जाता है। महाराष्ट्र की राजनीति के जानकार और लेखक धवल कुलकर्णी के अनुसार भिड़े को कट्टर हिंदुत्व के प्रचारक के रूप में जाना जाता है। उन्हें महात्मा गांधी और महात्मा जोतिबा फुले जैसे समाज सुधारकों के खिलाफ अपने बयानों के लिए लोग जानते हैं। भिड़े के भाषणों में अक्सर अल्पसंख्यकों के खिलाफ आक्षेप और अनर्गल भयोत्पादन, तथ्यात्मक अशुद्धियां और यहां तक कि अपशब्दों की भरमार होती है।

धवल कुलकर्णी सूत्रों के आधार पर बताते हैं कि भिड़े का जन्म 1940 में धाराशिव (उस्मानाबाद) जिले में एक जमींदार चितपावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था। कुछ लोगों का दावा है कि उनके जन्म का नाम मनोहर था, जिसे बदलकर उन्होंने संभाजी कर दिया। यह भी दावा किया जाता है कि उन्होंने अपना नाम मनोहर कुलकर्णी या मनोहर भिड़े से बदलकर संभाजी भिड़े किया होगा।

हालांकि, सूत्रों का यह भी कहना है कि भिड़े आरएसएस के वरिष्ठ पदाधिकारी वसंतराव (बाबा) भिड़े से सम्बद्ध थे, जिन्होंने महाराष्ट्र में संघ के संगठनात्मक विस्तार को नेतृत्व दिया था।

ऐसा कहा जाता है कि भिड़े सतारा में रहे, जहां उनका परिवार रहता है, और साथ ही पुणे में भी जहां उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी की। कुछ समय तक वे पुणे के एक कॉलेज में शिक्षक के रूप में कार्यरत थे, जिसके चलते उन्हें ‘गुरुजी’ उपनाम मिला। बाद में जाकर वे आरएसएस प्रचारक बन गए। विभिन्न रिपोर्टों के मुताबिक उस्मानाबाद में आरएसएस कार्यकर्ता के रूप में भिड़े हमेशा खाकी हाफ पैंट और काली टोपी पहने रहते थे, जिसके कारण वे सबसे अलग नजर आते थे।

उन्होंने मुख्य रूप से गैर-ब्राह्मण लड़कों को संघ में शामिल करने का काम किया। मुसलमानों के प्रति नफरत पैदा करने और अपना मजबूत आधार बनाने के लिए भिड़े ने छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा और इतिहास को इस्तेमाल में लिया। भिड़े को 1980 के आसपास आरएसएस प्रचारक के रूप में सांगली में नियुक्त किया गया। ऐसा माना जाता है कि 1934 से 1965 तक महाराष्ट्र के आरएसएस प्रांत-संघचालक काशीनाथ लिमये की वजह से सांगली में आरएसएस का एक निष्ठावान आधार रहा है।

आरएसएस से भिड़े के मतभेद और दूरी के बारे में दावा किया जाता है कि सांगली छोड़ने और ठाणे में जाकर आरएसएस का काम संभालने के लिए कहने के बाद भिड़े का आरएसएस से मतभेद हो गया। इसके बाद भिड़े ने 1984-85 में एक समानांतर संगठन ‘शिव प्रतिष्ठान हिंदुस्तान’ की स्थापना की। हालांकि कुछ का कहना है कि शिव प्रतिष्ठान हिंदुस्तान के फलने-फूलने के पीछे आरएसएस पदाधिकारियों और उनके संस्थानों का हाथ रहा है। उनका दावा है कि भिड़े एक शैडो ग्रुप चलाता है।

हमेशा धोती और कुर्ता पहनने वाले भिड़े वालरस-मूंछ रखने वाले कदकाठी में छोटे लेकिन हृष्ट-पुष्ट शरीर वाले व्यक्ति थे, जो शिव प्रतिष्ठान हिंदुस्तान के संस्थापक-अध्यक्ष हैं।

हालांकि उनके लंबे समय से सहयोगी रावसाहेब देसाई जो कि कोल्हापुर के शिरोल के रहने वाले हैं, इस संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, और सांगली के इस्लामपुर के अशोकराव विरकर ‘सरसेनापति’ हैं, लेकिन जहां तक संगठनात्मक मामलों का प्रश्न आता है, उसमें भिड़े का फैसला ही अंतिम होता है। संगठन के अनुयायियों को ‘धारकरी’ या योद्धा के नाम से जाना जाता है, और कहा जाता है कि संगठन में लगभग 15,000 सक्रिय सदस्य हैं, जबकि पूरे महाराष्ट्र और गोवा और कर्नाटक जैसे राज्यों में इससे जुड़े लोगों की संख्या एक लाख से भी अधिक है।

शिव प्रतिष्ठान छत्रपति शिवाजी महाराज और छत्रपति संभाजी महाराज के आदर्शों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करता है और अपने मुस्लिम विरोधी प्रचार को अग्रगति देने के लिए 17वीं सदी के इस योद्धा-राजा के जीवन की घटनाओं को उपयोग में लाता है। शिव प्रतिष्ठान को शिवाजी और संभाजी महाराज जैसे प्रतीकों को देवता-तुल्य दर्जा देने के लिए जाना जाता है, हालांकि जो लोग इसके पीछे के मन्तव्य को समझते हैं, उनकी ओर से इस ईश्वरीकरण पर आपत्ति जताई गई है।

संगठन के मुख्यालय सांगली और उसके आस-पास के गांवों में शिव प्रतिष्ठान हिंदुस्तान की शाखाओं में किशोरों को शिवाजी महाराज की मूर्तियों के सामने आरएसएस वाली शैली में प्रणाम करते हुए देखना कोई असामान्य बात नहीं है, जिसमें छाती के पास हाथ को तिरछा रखकर अभिवादन का चलन है।

शिव प्रतिष्ठान द्वारा युवा प्रतिभाओं को अपने पक्ष में लाने के लिए मुगलों द्वारा संभाजी महाराज की क्रूर हत्या को चिह्नित करने के लिए ‘दुर्गामाता दौड़’ या नवरात्रि के दौरान आयोजित होने वाली मैराथन, गडकोट मोहिम या किलों की कठिन चढ़ाई एवं बलिदान मास जैसे आयोजनों का इस्तेमाल करता है। ऐसा माना जाता है कि भिड़े के अनुयायी बड़े पैमाने पर प्रमुख मराठा समुदाय या ओबीसी समूहों से आते हैं।

धवल कुलकर्णी के अनुसार, एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी जिन्होंने पिछले एक दशक से अधिक समय से भिड़े के राजनीतिक कैरियर पर निगाह बनाये रखी है, ने कहा कि भिड़े को आरएसएस से तत्कालीन सरसंघचालक मधुकर ‘बालासाहेब’ देवरस ने निष्कासित कर दिया था, और इस घटना ने उन्हें अपना समानांतर ग्रुप शुरू करने के लिए प्रेरित किया था। उनके अनुसार, “कहा जाता है कि उन्होंने आरएसएस को चुनौती दी थी कि वे एक ऐसे संगठन का निर्माण करेंगे, जो अनुयायियों के मामले में आरएसएस को भी पीछे छोड़ देगा।”

उक्त अधिकारी के मुताबिक, 1980 के दशक की पुलिस रिपोर्टों में भिड़े को एक धार्मिक कट्टरपंथी और पागल आदमी करार दिया गया था। वे आगे कहते हैं, “उन्हें एक सीधे-सादे एवं ईमानदार व्यक्ति के रूप में देखा जाता है और यही चीज़ लोगों को उनकी ओर आकर्षित करती है। वे पांव में चप्पल नहीं पहनते, मोबाइल फोन का इस्तेमाल नहीं करते और घूमने के लिए साइकिल का इस्तेमाल करते हैं। उनकी एकमात्र भूख अधिक से अधिक अनुयायी बनाने की है।”

पुलिस अधिकारी ने एक महत्वपूर्ण जानकारी देते हुए धवल कुलकर्णी को जानकारी दी कि भिड़े का संबंध विवादास्पद सनातन संस्था से था। सनातन संस्था के लोग सांगली जिले के उनके आश्रम में नियमित आते थे और ग्रुप से वैचारिक पोषण हासिल करते थे। यहां पर यह जानना महत्वपूर्ण है कि 2013 से महाराष्ट्र और कर्नाटक में एक के बाद अंध-श्रद्धा निर्मूलन संस्था के अगुआ नरेंद्र दाभोलकर सहित विचारक एवं तर्कवादी गोविंद पानसरे, एमएम कलबुर्गी और गौरी लंकेश की हत्या हुई, उसके संदेह के घेरे में इसी सनातन संस्था का नाम अक्सर आता है।

भिड़े के प्रति आकर्षण और श्रद्धा की मुख्य वजह उनके कठोर एवं अक्सर दंडात्मक जीवन शैली के कारण उत्पन्न होती है। शाकाहारी भिड़े का जूते-चप्पल पहनने से परहेज, और अपने एक अनुयायी के मकान के एक कमरे के घर में फर्श पर सोने को जाता है। लोगों के बीच मान्यता है कि उनके पास दो जोड़ी धोती, कुर्ता, गांधी टोपी, किताबें और समाचार पत्रों के अलावा कुछ भी नहीं है। ऐसा कहा जाता है कि भिड़े पंखे, एयर कंडीशनर और न ही फ्रिज का इस्तेमाल करते हैं। अपनी राजनीतिक गतिविधियों की शुरुआत करने के बाद उन्होंने गृह त्याग कर दिया था और अपनी पैतृक संपत्ति पर अपना दावा छोड़ दिया था।

हालांकि पिछले महीने ही जब पत्रकारों ने उनसे महात्मा गांधी पर विवादास्पद बयान पर सवाल करना शुरू किया था, तो वे सवालों का जवाब देने के बजाय अपने समर्थकों की मदद से चुपचाप कार में बैठते हुए देखे गये थे। भिड़े के बारे में यह भी मशहूर है कि वे एक पुरानी साइकिल चलाते हैं और अपने अनुयायियों के घर पर ही खाना खाते हैं। उनके एक पूर्व-सहयोगी ने दावा किया, “वह चाय नहीं पीता, चॉकलेट, बिस्कुट या बेकरी उत्पाद नहीं खाता। वह रेस्टोरेंट में खाना खाने की बजाय भूखा ही रहना पसंद करेगा”।

भिड़े के बारे में तमाम मिथक हैं जो उनकी आभा और रहस्यमय व्यक्तित्व के बारे में लोगों की उत्सुकता को बढ़ाते हैं। कुछ के अनुसार उनकी उम्र 90 वर्ष से अधिक है, जबकि कुछ अन्य सूत्र उनके जन्म को 1940 का बताते हैं, जो अधिक विश्वसनीयता लिए हुए है, जिसका अर्थ है कि वह 83 वर्ष के हैं। एक दावे के मुताबिक वे ‘परमाणु विज्ञान’ में डॉक्टरेट हैं, जबकि दूसरे का कहना है कि वे महीने में लगभग 14 दिन उपवास करते हैं।

उनके भक्तों के बीच यह भी मशहूर है कि वे अपार शारीरिक शक्ति के मालिक हैं। 150 सूर्यनमस्कार, पुशअप और दंड-बैठक लगाते हैं। यहां तक कि उन्होंने एक अनुभवी पहलवान को मार्शल आर्ट की जटिलताओं के बारे में प्रशिक्षण तक दिया था। हालांकि, कहा जाता है कि 2022 में एक दुर्घटना में घायल होने के बाद भिड़े ने अपने दैनिक व्यायाम में कटौती कर दी है। यह भी कहा जाता है कि उनकी दृष्टि में समस्या है, फिर भी अपने पौरुष और अचूक छवि को बनाये रखने के लिए वे चश्मे का उपयोग नहीं करते हैं।

लेकिन भिड़े की मुख्य पहचान अल्पसंख्यकों के खिलाफ लगातार विष-वमन करने वाले की है। मई 2022 में उन्होंने अपने बयान में कहा था कि इस्लाम भारत का असली दुश्मन है। एक दलित कार्यकर्ता की शिकायत के आधार पर भिड़े को 1 जनवरी, 2018 को दलितों के खिलाफ भीमा कोरेगांव हिंसा में नामित किया गया था। लेकिन बाद में पुणे ग्रामीण पुलिस ने भिड़े का नाम उक्त मामले से यह बताकर हटा दिया था कि उसके खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला।

जून 2023 में भिड़े ने पुणे के पास अपने कार्यकर्ताओं की बैठक में महात्मा गांधी और समाज सुधारक महात्मा जोतिबा फुले पर तीखा हमला बोला था। भिड़े का दावा था कि उन्हें ईसाई मिशनरियों का समर्थन प्राप्त था। इस प्रकार के भड़काऊ और मिथ्या भाषणों को यदि कोई संत-महात्मा छवि रखने वाला व्यक्ति बोलता है तो उसका जनसाधारण पर गहरा असर पड़ता है। जानकार लोगों का कहना है कि भिड़े 1980 के दशक से ही इस तरह के बयान देते आ रहे हैं, लेकिन पिछले कुछ समय से उनके बयानों में निर्लज्जता बढ़ गई है।

लेकिन इस सबके बावजूद, ‘भिड़े गुरुजी’ को न सिर्फ भाजपा बल्कि राज्य की सभी प्रमुख पार्टी के नेताओं द्वारा भी संरक्षण दिया गया है। ये पार्टियां सार्वजनिक तौर पर भिड़े की निंदा करती हैं, लेकिन कई कांग्रेसी और एनसीपी नेताओं ने भिडे़ को हासिल लोकप्रिय समर्थन के मद्देनजर कई वर्षों से उनका साथ दिया है। 2016 में भिड़े को महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना सरकार द्वारा पद्म पुरस्कार के लिए अनुशंसित किया गया था।

2014 के लोकसभा चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी ने भिड़े को ‘परम आदरणीय भिड़े गुरुजी’ कहा था। उनके विरोधी आरोप लगाते हैं कि भिड़े ने अपनी ध्रुवीकरण करने वाली गतिविधियों के माध्यम से सांगली में भाजपा के लिए मजबूत जमीन तैयार की है। भिड़े पर 2008 में गणेशोत्सव के दौरान सांगली-मिराज क्षेत्र में सांप्रदायिक दंगे भड़काने का भी आरोप लगा था। इस मामले में एनसीपी नेता और तत्कालीन मेयर मैनुद्दीन बागवान को भी गिरफ्तार किया गया था।

उनके संगठन द्वारा ‘जोधा अकबर’ फिल्म का विरोध करने के नाम पर सिनेमाघरों में तोड़फोड़ की गई। 2018 में महाराष्ट्र सरकार ने ‘जोधा अकबर’ केस में भिड़े के खिलाफ दंगे के तीन मामले हटा दिए। सांगली जो कभी कांग्रेस का मजबूत गढ़ हुआ करता था, भिड़े की कारगुजारियों का ही कमाल है कि भाजपा ने 2014 में पहली बार सांगली लोकसभा सीट अपने नाम की और 2019 में भी इस सिलसिले को बरकरार रखा।

भिड़े के विरोधियों का कहना है कि भिड़े के भाषणों में ‘व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी’ पर मौजूद सामग्री की भरमार होती है, और वे किसी भी सूरत में विपरीत दृष्टिकोण को न सुनते हैं और न ही स्वीकार करते हैं। जैसा कि पूर्व-उल्लखित पुलिस अधिकारी ने अपनी बातचीत में एक संस्कृत श्लोक का हवाला देते हुए कहा था, ‘कोई बुद्धिमान या मूर्ख को भी सच दिखा सकता है, लेकिन उन्हें नहीं जो खुद के बुद्धिमान होने का दिखावा या दावा करते हैं।”

कुल मिलाकर देखें तो संभाजी भिड़े, जिनके प्रशंसक और विरोधियों की संख्या महाराष्ट्र में काफी है, लेकिन सत्ता-प्रतिष्ठान और कुलीन वर्ग की छत्र-छाया में प्रछन्न रूप से हिंदुत्ववादी एजेंडे को अपनी तरह से पिछड़ों और मराठों के बीच में पैठ बनाने में वे काफी हद तक सफल रहे हैं।

प्रधानमंत्री पद ग्रहण के बाद हालांकि नरेंद्र मोदी ने व्यक्तिगत रूप से भिड़े से मुलाक़ात नहीं की है, लेकिन भीमा-कोरेगांव दंगे के मुख्य वास्तुकार को साफ़-साफ बचा लेने और हाल ही में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, तिरंगे और अब ज्योतिबा फुले को लेकर अपमानजनक टिप्पणी के बावजूद यदि महाराष्ट्र पुलिस कोई कठोर कदम नहीं उठा रही है, तो साफ़ हो जाता है कि वह ऐसा किसके इशारे पर कर रही है।

यहां तक कि महाराष्ट्र में कांग्रेस विधायक दल के नेता बालासाहेब थोराट और पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण समेत कई नेताओं ने भिड़े के बयान पर तीखा हमला बोला था। इसके जवाब में पृथ्वीराज चव्हाण को जान से मारने की धमकी तक मिली थी। यह सब महाराष्ट्र में भगवा हिंदुत्व के नए आक्रामक तेवर की कहानी बयां करता है, जिसके पीछे ‘सकल हिंदू समाज’ नामक संगठन द्वारा पिछले वर्ष के अंत से अभी तक की गईं 50 से अधिक सभाएं, रैलियां हैं, जिनमें लव जिहाद के नाम पर मुस्लिम अल्पसंख्यकों को निशाने पर लिया गया। इसके पीछे भी संभाजी भिड़े का हाथ बताया जाता है।

हालांकि महात्मा गांधी पर अभद्र टिप्पणी पर भाजपा नेता एवं उप-मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस को बयान देने के लिए मजबूर होना पड़ा था, जब उन्होंने कहा, “भिड़े गुरूजी ने जो कुछ महात्मा गांधी जी के बारे में कहा, वह निंदनीय है। महात्मा गांधी देश के राष्ट्रपिता हैं, और करोड़ों लोग उन्हें महानायक के रूप में देखते हैं। इस बयान से लोगों को पीड़ा पहुंची है और लोग इस तरह के बयान को बर्दाश्त नहीं करेंगे।”

देवेंद्र फडनवीस का भिड़े गुरूजी कहकर संबोधित करना ही जाहिर करता है कि आलोचना करते हुए अपनी मजबूरी को प्रदर्शित करना कितना जरूरी था। सार्वजनिक बयान के बाद वास्तविक धरातल पर देखें तो ‘सकल हिंदू समाज’ की रैलियां और प्रदर्शन ही हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण के माध्यम से चुनाव की वैतरणी पार लगा सकती है। ऐसे में कोर्ट की फटकार और दबाव के बावजूद संभाजी भिड़े को आरोपी बनाने और गिरफ्तारी का जोखिम क्या शिंदे-फडनवीस-मोदी-आरएसएस के वश की बात है, ऐसी कल्पना भी संभव नहीं है।

लेकिन अच्छी बात यह है कि समाज के जागरूक नागरिक, अधिवक्ता और सोशल मीडिया के माध्यम से महाराष्ट्र के तमाम लोग भिड़े की भूमिका पर लगातार सवाल कर रहे हैं, जिसके चलते ही महाराष्ट्र में एक के बाद एक कोशिशों और करीब-करीब सभी विपक्षी पार्टियों में बड़ी सेंधमारी के बावजूद सांप्रदायिक राजनीति का कड़ाहा स्थायी रूप से सिरे नहीं चढ़ पा रहा है।

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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