Saturday, April 20, 2024

बग्गा केस: ऐसी भी क्या जल्दी थी मी लॉर्ड?

उत्तर प्रदेश के एक न्यायायिक अधिकारी के मामले में उच्चतम न्यायालय के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने बीते शुक्रवार को कहा था कि न्यायिक आदेश पारित करने की आड़ में किसी पक्ष को अनुचित फेवर देना सबसे खराब तरह की न्यायिक बेईमानी और कदाचार है। लेकिन आधी रात को विशेष सुनवाई करके पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के जस्टिस अनूप चितकारा की एकल पीठ ने भाजपा नेता तजिंदर पाल सिंह बग्गा की गिरफ्तारी पर 10 मई तक रोक लगा दी है। हालाँकि न्यायिक और विधिक क्षेत्रों में इसे चुन-चुन कर न्याय देने की संज्ञा से नवाजा जा रहा है ।

एकल पीठ ने अपने आदेश में पंजाब के एडवोकेट जनरल की इस आपत्ति को भी दर्ज़ किया है जिसमें सवाल उठाया गया कि आधी रात को इस मामले की सुनवाई क्यों हो रही है? क्योंकि यह मामला अर्जेंसी का नहीं है एडवोकेट जनरल अनमोल रतन सिंह ने कहा कि मुख्य याचिका 6 अप्रैल, 2022 को दाखिल हुई थी और किसी ने भी याचिकाकर्ता को रोका नहीं कि वह धारा 438 सीआरपीसी के तहत एंटीसिपेटरी बेल ना मांगे। यह वैधानिक स्थिति है। एडवोकेट जनरल ने कहा कि गिरफ्तारी याचिका गिरफ्तारी वारंट पर रोक लगाने के लिए और मामले की सुनवाई आधी रात को करने के लिए याचिकाकर्ता न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग कर रहा है और इसे इसकी अनुमति नहीं दी जानी चाहिए ।

एकलपीठ ने आदेश में कहा है कि तेजिंदर सिंह बग्गा की वकील रणदीप सिंह राय ने दलील दी है कि आधी रात को उन्होंने इसलिए कोर्ट को तकलीफ दी, क्योंकि उन्हें डर है कि आज ही रात को गिरफ्तारी के वारंट को लागू कर दिया जाएगा। इस पर पंजाब के एडवोकेट जनरल ने कहा कि उन्हें इस बात का निर्देश दिया गया है कि सरकार द्वारा की गिरफ्तारी वारंट को 10 मई 2022 को 11:00 बजे तक लागू नहीं किया जाएगा

दरअसल बग्गा ने शनिवार को पहले मोहाली कोर्ट द्वारा अपने खिलाफ जारी वारंट को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। जस्टिस अनूप चितकारा की बेंच ने पंजाब पुलिस को निर्देश दिया कि वह सुनवाई की अगली तारीख तक बग्गा के खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई न करे। हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष मामले का उल्लेख किए जाने के बाद याचिका की तत्काल सुनवाई के लिए एक आदेश जारी किया गया और सुनवाई जस्टिस अनूप चितकारा के आवास पर हुई। देर रात सुनवाई के बाद अदालत ने भाजपा नेता तेजिंदर बग्गा की गिरफ़्तारी पर 10 मई तक रोक लगाई।

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के जस्टिस अनूप चितकारा ने आधी रात से ठीक पहले अत्यावश्यक आधार पर बग्गा की याचिका पर अपने आवास पर सुनवाई की थी।

एक अप्रैल को दर्ज एफआईआर में 30 मार्च की बग्गा की टिप्पणी का उल्लेख है, जो उन्होंने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के आवास के बाहर भाजपा युवा मोर्चे के विरोध प्रदर्शन के दौरान की थी। तेजिंदर पाल सिंह बग्गा के खिलाफ भारतीय दंड सहिंता की धारा 153-ए, 505 और 506 के तहत मामला दर्ज किया गया था। बग्गा को पंजाब पुलिस ने बीते छह मई को राष्ट्रीय राजधानी के जनकपुरी स्थित उनके आवास से गिरफ्तार किया था। गिरफ्तारी के बाद पुलिस उन्हें अपने राज्य पंजाब ले जाना चाहती थी, लेकिन वह इसमें सफल नहीं हो सकी। बीच रास्ते यानी हरियाणा के कुरुक्षेत्र में उन्हें हरियाणा पुलिस ने रोक लिया था। पंजाब पुलिस ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में इसके खिलाफ अपील की थी, लेकिन उन्हें बग्गा को वापस हिरासत में लेने का मौका नहीं मिल सका। पूरे दिन चले इस नाटकीय घटनाक्रम के बाद दिल्ली पुलिस बग्गा को वापस राष्ट्रीय राजधानी लेकर आ गई है। बग्गा छह मई को देर रात जनकपुरी स्थित अपने घर पहुंच गए थे।

नाटकीय ढंग से हुई गिरफ्तारी और फिर रिहाई के एक दिन बाद शनिवार को बग्गा पर फिर से गिरफ्तारी का खतरा मंडराने लगा था, क्योंकि मोहाली की एक स्थानीय अदालत (एसएएस नगर) ने भाजपा नेता तजिंदर पाल सिंह बग्गा के खिलाफ गैर जमानती गिरफ्तारी वारंट जारी किया है। अदालत ने पंजाब पुलिस की हिरासत से बग्गा की रिहाई को भी ‘अवैध’ करार दिया है। न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी, मोहाली, रावतेश इंद्रजीत सिंह पंजाब राज्य द्वारा दायर एक आवेदन पर सुनवाई कर रहे थे, जिसमें बग्गा के खिलाफ आईपीसी की धारा 153-ए, 505, 505 (2) और धारा 506 के तहत दर्ज एक मामले के संबंध में गिरफ्तारी वारंट जारी करने की प्रार्थना की गई थी।

मोहाली कोर्ट ने बग्गा के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी करते हुए टिप्पणी की थी कि ‘बग्गा को गैरकानूनी तरीके से छोड़ा गया है। दिल्ली पुलिस और हरियाणा पुलिस का एक्शन गैर कानूनी था। आरोपी (बग्गा) को जबरन पंजाब पुलिस से गैरकानूनी तरीके से छुड़ाया गया। पंजाब पुलिस के डीएसपी दिल्ली पुलिस को जनकपुरी थाने में गिरफ्तारी की सूचना देने गए, लेकिन दिल्ली पुलिस ने कोई डायरी एंट्री नहीं की। आरोपी को पर्याप्त मौके दिए गए कि वह जांच में शामिल हो लेकिन वह फिर भी जांच में शामिल नहीं हुआ। इसलिए गैर जमानती वारंट जारी करना जरूरी है”।

बग्गा का विवादों से पुराना नाता रहा है। साल 2011 में लेखक अरुन्धति राय की किताब ‘ब्रोकेन डेमोक्रेसी’ के लॉन्च कार्यक्रम में पहुंचकर हंगामा करने वाले बग्गा ही थे। इसके ठीक एक महीने बाद उनके ऊपर सुप्रीम कोर्ट परिसर में वकील प्रशांत भूषण के चैम्बर में घुसकर उनके साथ मारपीट हुई थी, इसमें भी बग्गा शामिल थे। इसके बाद साल 2014 में दिल्ली के तिलक मार्ग थाने में उनके खिलाफ हमलावर होने के केस दर्ज किए गए। फिर साल 2018 में धार्मिक द्वेष फैलाने के मामले में भी बग्गा पर दिल्ली में केस दर्ज हुआ। इसके बाद साल 2019 में लोक सभा चुनावों के दौरान बग्गा पर अमित शाह के रोड शो के दौरान हिंसा करने का आरोप लगा। कोलकाता पुलिस ने उन्हें हिरासत में भी लिया था। इसके बाद भी और पहले भी ऐसे कई मामले हैं ,जहां बग्गा के बयानों से हिंसा भड़काने की बात कही जाती है। आए दिन उनके ट्वीटस सुर्खियों की वजह बनते हैं।

दस साल पुराने मामलों की फाइलें समेत जम्‍मू कश्‍मीर से अनुच्‍छेद 370, निकाह हलाला, सबरीमाला व कई अन्‍य मामले तो सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का बाट जोह रहीं हैं। हालांकि उच्चतम न्यायालय जरूरत पड़ने पर रात-दिन नहीं देखता और न ही अवकाश का दिन देखता है। तात्‍कालिक मामलों पर सुनवाई के लिए कोर्ट हमेशा तत्‍पर और अपने कर्तव्‍यों को लेकर जागृत रहती है। 2005-06 में निठारी कांड, 1992 में अयोध्‍या विवाद, 2018 में कर्नाटक सरकार मामला, 1993 में याकूब मेमन फांसी मामले में शीर्ष कोर्ट ने आधी रात को सुनवाई की। हाल में ही निर्भया मामले में कोर्ट में रात को ढाई बजे सुनवाई की गई थी। इसके पहले भी चार ऐसे मामले हुए जिसमें देश के सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने आधी रात को सुनवाई की। अब पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट का नाम भी इसमें जुड़ गया है।

कई मामलों में ऐसे उदाहरण देखने को मिले हैं जब कोर्ट आधी रात या अवकाश के दिन लगाई गई और मामले की पूरी सुनवाई भी हुई। दूसरे शब्‍दों में आधी रात हो या अवकाश का दिन कोर्ट लगाई जाती है और सुनवाई भी होती है। संविधान कहता है कि कानूनी महत्व के अहम सवालों को उठाने वाले मुकदमों की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की कम से कम पांच जजों की संविधान पीठ करेगी। सुप्रीम कोर्ट में इस वक्त कुल 551 मुकदमे संविधान पीठ में सुनवाई के इंतजार में लटके हैं जिसमें 52 मुख्य मामले और 499 उसके साथ जुड़े मामले हैं। जिसमें बहुत से मामले तो दसियों साल पुराने हैं।

कब-कब आधी रात बाद भी उच्चतम न्यायालय ने की सुनवाई

1) 2018: कर्नाटक में भाजपा को सरकार बनाने का न्योता दिए जाने का मामला

–  राज्यपाल के फैसले के खिलाफ कांग्रेस बुधवार रात को ही सुप्रीम कोर्ट पहुंची। अदालत ने देर रात 2:10 बजे सुनवाई शुरू की और सुबह 4:20 पर राज्यपाल के फैसले पर रोक से इनकार कर दिया।

2) 2015: याकूब मेमन की फांसी पर रोक की अपील

– 29 जुलाई 2015 को मुंबई धमाकों के दोषी याकूब मेमन को दी गई फांसी की सजा पर रोक लगाने के लिए कोर्ट आधी रात बाद बैठी। करीब 90 मिनट तक चली सुनवाई के बाद कोर्ट ने फांसी पर रोक से इनकार कर दिया। इस मामले में मौजूदा अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी भाजपा विधायकों की तरफ से पेश हुए थे।

3) 1992: अयोध्या विवाद, ढांचा गिराए जाने का केस

– 6 और 7 दिसंबर 1992 की दरमियानी रात सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद-रामजन्मभूमि ढांचा गिराए जाने के मामले में सुनवाई की।

– इस मामले की सुनवाई जस्टिस एमएन वेंकटचेलैया के आवास पर हुई थी। बेंच ने विवादित स्थल पर पहले जैसे हालात बनाए रखने के आदेश दिए थे। बता दें कि जस्टिस वेंकटचेलैया बाद में देश के चीफ जस्टिस भी बने।

4) 1985: उद्योगपति को बेल दिए जाने पर हुई सुनवाई

– 1985 में भी सुप्रीम कोर्ट ने आधी रात बाद उद्योगपति एलएम थापर को फॉरेन एक्सचेंज रेगुलेशन एक्ट (फेरा) मामले में बेल देने के लिए सुनवाई की थी। थापर को रिजर्व बैंक की शिकायत पर गिरफ्तार किया गया था। रिजर्व बैंक ने कहा था कि थापर की कुछ कंपनियां फेरा का उल्लंघन कर रही हैं। इस मामले में देर रात सुनवाई के लिए तत्कालीन चीफ जस्टिस ईएस वेंकटरामैय्या आलोचनाओं में घिर गए थे।

5-निठारी हत्याकांड (मार्च 2014)

-निठारी केस का, जिसे नोएडा सीरियल मर्डर के रूप में भी जानते हैं। मोनिंदर सिंह पंधेर और उसका नौकर सुरिंदर कोली इस मामले में मुख्य अभियुक्त हैं (ये मामला अब भी चल रहा)। 19 से अधिक बच्चों की हत्या के मामले इन दोनों पर चल रहे हैं। दोनों को मौत की सज़ा सुनाई जा चुकी है। CBI को मामला सौंपा गया। 17 बच्चों के कंकाल या अंग मिले, जिनके पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से पता चला कि उनमें से 11 लड़कियाँ थीं। एक मृतक की उम्र 18 से अधिक भी है।

2005-06 में हुए इस हत्याकांड के लिए दोनों को फाँसी की सज़ा सुनाई गई, लेकिन जब मार्च 2014 में सुरिंदर कोली की मौत की सज़ा की तारीख और समय मुक़र्रर कर दिया गया था, तब उसके वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। फाँसी के तय समय से मात्र दो घंटे पहले। और सुप्रीम कोर्ट ने फाँसी पर रोक भी लगा दी।

6. वर्ष 2014 में भारत सरकार बनाम शत्रुघ्न चौहान मामले में 16 दोषियों को मौत की सज़ा शाम 4 बजे सुनाई गई थी, लेकिन उससे एक रात पहले सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश पी सताशिवम के घर तक वकील पहुँच गए। रात के 11:30 सुनवाई हुई और फाँसी पर रोक लगी। इसी तरह अप्रैल 2014 में हत्या के दोषी मंगलाल बरेरा के लिए कोर्ट रात में खुली।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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