रविवार को वैसे कोई बड़ी राजनीतिक घटना देश में नहीं होती लेकिन इस रविवार को बिहार से जो खबर आई उससे दिल्ली की राजनीति में सनसनी फ़ैल गई। यह कोई मामूली घटना नहीं थी। जदयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता केसी त्यागी ने राष्ट्रीय प्रवक्ता पद से इस्तीफा दे दिया और झट से जदयू ने उसे स्वीकार भी कर लिया और लगे हाथ राजीव रंजन प्रसाद को केसी त्यागी की जगह बैठा भी दिया। यह सब इतनी जल्दबाजी में हुआ, मानो पहले से यह सब तैयारी कर ली गई थी।
केसी त्यागी समाजवादी विचारधारा के अव्वल नेताओं में शुमार रहे हैं। मौजूदा राजनीति में अब बहुत कम लोग ही बचे हैं जो समाज और देश के बारे में सत्ता सरकार से भिन्न राय रखते हैं और समाज के अंतिम आदमी की बात करते हैं। देश की राजनीति में समाजवाद को ज़िंदा रखने वालों में जितने भी नेताओं की आप चर्चा कर लें लेकिन ऐसे नेताओं की अंतिम कड़ी में आप केसी त्यागी के नाम को भुला नहीं सकते। त्यागी सबके रहे हैं। वे कभी कांग्रेस से भी सहमत रहे तो कभी बीजेपी से भी सहमत रहे।
कभी वे कांग्रेस विरोधी भी रहे तो कभी वे बीजेपी के खिलाफ भी रहे। लेकिन समाजवादी राजनीति को कभी नहीं छोड़ा। लेकिन सबसे बड़ी बात तो यह है कि त्यागी चाहे जिसके साथ रहें या नहीं रहे, वे नीतीश कुमार के साथ तो खूब रहे। दिल्ली में रहकर नीतीश कुमार के आंख, कान बने रहे और सबसे बड़ी बात कि नीतीश कुमार केंद्र सरकार से लेकर इंडिया वालों को अगर कोई सन्देश देना चाहते थे तो उसे त्यागी जी अपने बयानों से पूरा करते रहे। त्यागी जी और नीतीश कुमार के इस बॉन्डिंग को बिहार के लोग भी जानते हैं और दिल्ली के राजनीतिक गलियारे के लोग भी जानते हैं।
केसी त्यागी यूपी से आते हैं। गाजियाबाद से कई बार चुनाव भी लड़ चुके हैं लेकिन उनकी राजनीतिक सोच और समझ बिहार के लिए कुछ ज्यादा ही रही है। बिहार ने कई बड़े नेताओं को अपने यहां पनाह दिया था और उनकी राजनीति को आगे बढ़ाया था। नीतीश कुमार कभी जॉर्ज फर्नांडिस को भी बिहार में आगे बढ़ाते रहे और बिहार का बच्चा-बच्चा जॉर्ज की राजनीति का कायल रहा। त्यागी की राजनीति को आप उसी नजरिये से देख सकते हैं।
सबसे बड़ी बात तो यह है कि केसी त्यागी जदयू से अलग नहीं हुए हैं। वे केवल प्रवक्ता के पद से बाहर निकले हैं। वे आज भी जदयू में हैं और शायद आगे भी नीतीश के साथ ही रहेंगे। लेकिन मजे की बात है कि अचानक त्यागी ने इस्तीफा का रास्ता क्यों अपनाया? राजनीतिक हलकों में कई तरह की बातें की जा रही हैं। उन बातों में कुछ सच्चाई भी है तो कुछ अनुमान भर है।
राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि बीजेपी के दबाव में केसी त्यागी को इस्तीफा देना पड़ा। ऐसा हो भी सकता है। त्यागी ने पिछले दिनों बिहार के चर्चित अखबार में एक लेख लिखा था जिसमें राहुल गांधी की मौजूदा राजनीति को ठीक माना था और उनकी जातीय आरक्षण से लेकर जातीय सर्वे को समय की मांग बताया था। कहने वाले कह रहे हैं कि बीजेपी के शीर्ष नेताओं को त्यागी का यह बयान पच नहीं पाया। सूत्रों की बात की जाए तो मोदी और शाह की तरफ से नीतीश पर यह दवाब डाला गया कि वे त्यागी के बयान से क्षुब्ध हैं और आगे गठबंधन चलने में परेशानी हो सकती है।
इसके साथ ही त्यागी कुछ दिनों पहले इजरायल -हमास के बीच जारी युद्ध पर अपनी प्रतिक्रिया दी थी और कहा था कि भारत सरकार को इजरायल को मदद नहीं करनी चाहिए। यह बात भी बीजेपी को चुभ गयी थी। जानकार तो यह भी कह रहे हैं कि जब त्यागी नीतीश की सोच को ही दिल्ली में बढ़ाते रहे तब यह कैसे माना जाये कि त्यागी के बयान नीतीश के नहीं हैं? क्या कोई भी नेता पार्टी लाइन से आगे जाकर कोई बात करता है? और करता भी है तो पार्टी वाले तुरंत उसका खंडन करते हैं और कहते हैं कि यह पार्टी की लाइन नहीं है। इस बयान से पार्टी का कोई लेना देना नहीं है।
एक बात और। तो क्या मान लिया जाए कि अगर त्यागी के बयानों से बीजेपी नाराज है तो इसका मतलब है कि नीतीश कुमार बीजेपी की नाराजगी की वजह से त्यागी को पद से हटा दिए हैं? इस बात में सच्चाई न के बराबर है। वैसे नीतीश की राजनीति पर ध्यान दें तो पता चलेगा कि वे अपनी राजनीति के खिलाफ किसी की भी बलि ले सकते हैं। किसी भी नेता को आगे बढ़ाना और फिर उसे फर्श पर ला देना उनका शगल रहा है। कई बड़े नेताओं को नीतीश ने पार्टी से बाहर किया है।
आरसीपी सिंह, पवन वर्मा, प्रशांत किशोर के साथ क्या हुआ और क्यों हुआ यह पूरा देश जानता है। अब बिहार में भूमिहार समाज को लेकर जो बवाल मचा हुआ है और उसके केंद्र में मंत्री अशोक चौधरी फंसे हुए हैं, आने वाले समय में उनके साथ क्या होगा यह भी देखने की बात होगी। लेकिन ये तमाम बातें सिक्के का एक पहलू हैं।
सिक्के का दूसरा पहलू बेहद खतरनाक भी हो सकता है। क्या बीजेपी त्यागी के हटने से खुश है? त्यागी के इस्तीफे के बाद बीजेपी के किसी बड़े नेता ने कोई बयान नहीं दिया है। बीजेपी अब पहले से ज्यादा सतर्क हो गई है। अब बीजेपी जदयू की राजनीति और नीतीश के पैंतरे को गंभीरता से देख रही है। बीजेपी को लग रहा है कि अब नीतीश कोई बड़ा निर्णय ले सकते हैं। संभव है कि वह एनडीए से बाहर निकल सकते हैं। नीतीश कुमार आगे क्या कुछ करते हैं इसको लेकर इंडिया के लोग भी सतर्क हैं।
याद रखिये अभी चार राज्यों में चुनाव होने हैं। हरियाणा और जम्मू कश्मीर में चुनाव की घोषणा हो चुकी है। इसी महीने के अंत में यहां चुनाव होने हैं। इसके बाद महाराष्ट्र और झारखंड में भी चुनाव होने हैं। हो सकता है कि इसी साल बिहार और दिल्ली का चुनाव भी हो जाए। नीतीश कुमार ऐसा चाहते भी हैं। हो सकता है कि त्यागी को नीतीश ने कोई बड़े मिशन पर लगा दिया हो। यह भी हो सकता है कि इंडिया के साथ मेल-जोल करने के लिए त्यागी की भूमिका अब बढ़ गई हो। कुछ भी हो सकता है। याद रखिये त्यागी का इस्तीफा कोई साधारण इस्तीफा नहीं है। इसके पीछे कोई बड़ा राज छुपा हुआ है और इस राज को बीजेपी भी समझ रही है। बीजेपी जानती है कि चार राज्यों के चुनावों के बाद केंद्र की राजनीति बदल सकती है। महाराष्ट्र और हरियाणा में अगर सत्ता परिवर्तन हो गया तो नीतीश एक क्षण भी बीजेपी के साथ नहीं रह सकते। और फिर इसके बाद केसी त्यागी की भूमिका बड़ी हो सकती है।
(अखिलेश अखिल वरिष्ठ पत्रकार हैं।)