जमीनी स्तर पर बदलता माहौल: क्या विपक्ष मोदी-भाजपा द्वारा गढ़े जा रहे नैरेटिव की काट कर पायेगा?

21 अगस्त को देश के एक प्रमुख अखबार ने पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक की 8 कॉलम की झूठी खबर प्रकाशित कर दी, जिसका स्वयं सेना को बाद में खंडन करना पड़ा।

क्या यह देश का मूड भांपने के लिए सत्ता प्रतिष्ठान के इशारे पर किया गया प्रयोग था? कभी संघ के एक शीर्ष नेता ने कहा था कि हम समय-समय पर समाज का मूड समझने के लिए Titration करते हैं।

इस पूरे प्रकरण में यह तो गम्भीर चिंता का विषय है ही कि मीडिया का इस्तेमाल किस खतरनाक स्तर पर एकदम झूठी अफवाहबाजी, उत्तेजना और उन्माद फैलाने के लिए किया जा सकता है और उसके हमारे समाज में शांति और सौहार्द के लिए कितने भयावह implications हो सकते हैं। राम मंदिर आंदोलन के दौर में इन अखबारों की आपराधिक भूमिका को लोग अभी भूले नहीं हैं।

पर शायद उससे अधिक अर्थपूर्ण और सुकूनदेह यह देखना रहा कि इतनी विस्फोटक “खबर” पर भी देश में 2019 की सर्जिकल स्ट्राइक जैसा कोई उन्मादपूर्ण माहौल बनना तो दूर, कहीं कोई चूं भी नहीं हुई। इसका कारण केवल यह नहीं है कि सेना ने बाद में इसका खंडन कर दिया, बल्कि यह बदले हुए समय और जनता के बदलते मूड का भी प्रतिबिम्ब है। यह सरकार की नीयत को लेकर बढ़ते अविश्वास का भी सूचक है, जीवन के संकटों से घिरी बदहाल जनता के अंदर अब ऐसी कार्रवाइयों की “खबर” कोई उत्तेजना/उन्माद पैदा नहीं कर पा रही है।

ठीक इसी तरह नूंह हिंसा के माध्यम से हरियाणा और दिल्ली NCR को दंगे की आग में झोंकने की साजिश को जिस तरह जनता ने खारिज कर दिया है, वह भी इसी ओर इशारा कर रही है।

दरअसल, जनता के जमीनी मूड को लेकर तमाम सर्वेक्षणों से जो संकेत मिल रहे हैं, उनसे यह साफ है कि मोदी और भाजपा के लिए हर बीतते दिन के साथ 2024 की लड़ाई लगातार कठिन होती जा रही है और चुनाव अगर relatively सामान्य ढंग से सम्पन्न हो पाते हैं तो अंततः इसका अंजाम सत्ता से उनकी बेदखली में हो सकता है।

ETG Research-Times Now के ताजा सर्वे के अनुसार NDA के 42.60% वोट के बरख़िलाफ़ विपक्षी गठबंधन INDIA का मत 40.20% तक पहुंच चुका है, इसमें भाजपा-विरोधी BRS का 1.15% मत अभी शामिल नहीं है। CSDS के दो माह पूर्व के सर्वे के अनुसार भाजपा के 39% की तुलना में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस का मत प्रतिशत 2019 के 19% से बढ़कर अब 29% तक पहुंच चुका है और उसके नेता राहुल गांधी की approval रेटिंग लगातार बढ़ रही है।

आने वाले दिनों में लोक कल्याण के वैकल्पिक विजन व कार्यक्रम के साथ साझा राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू होने तथा को-ऑर्डिनेशन टीम सहित ठोस राजनीतिक-सांगठनिक शक्ल उभरने के साथ विपक्षी गठबंधन के और मजबूत होने के ही आसार हैं।

2019 के चुनाव में धांधली के सम्बंध में अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर सब्यसाची दास के शोधपत्र “दुनिया के सबसे बड़े लोकतन्त्र में गिरावट” के लिए हाल ही में उनके खिलाफ जितनी तत्परता के साथ कार्रवाई हुई है, वह इससे बनते नैरेटिव को दबाने के सत्ता प्रतिष्ठान के desperation का सुबूत है। उन्हें विश्वविद्यालय से तो बाहर होना ही पड़ा है, पूछताछ के लिए सेंट्रल एजेंसियां भी पहुंच चुकी हैं।

सत्ता प्रतिष्ठान की बौखलाहट का कारण स्पष्ट है, दरअसल प्रोफेसर दास के पेपर से यह सन्देश गया है कि 2019 की प्रचण्ड जीत महज “मोदी मैजिक” तथा पुलवामा-बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक से बने “राष्ट्रवादी” माहौल का नतीजा नहीं थी, बल्कि उसमें मतदाता सूची की तैयारी से लेकर काउंटिंग तक विभिन्न स्तरों पर सुनियोजित हेराफेरी (malpractice) की भी भूमिका थी और तब जाकर भाजपा 37% वोट हासिल कर पाई थी। इसी वोट से वह विपक्ष के बिखराव और first-past the post system का फायदा उठाकर 303 सीट का “प्रचण्ड बहुमत” पाने में कामयाब हो गयी थी।

जाहिर है प्रोफेसर दास के paper ने 2019 जैसे असामान्य चुनाव की जीत में भी धांधली की भूमिका को उजागर करके मोदी मैजिक और चरम राष्ट्रवादी (असल में अंधराष्ट्रवादी-साम्प्रदायिक) भावनाओं के दोहन की राजनीतिक सीमाओं को भी उजागर कर दिया है।

2024 के लिए इसका निहितार्थ स्पष्ट है।

2019 के विपरीत इस बार बड़ी एकजुटता कायम करने में सफल विपक्ष को 1977 की तरह अभी से चुनावी धांधली को सक्रिय जनसमर्थन के बल पर रोकने के लिए जूझना होगा, जैसा 1977 में हुआ था। अगर ऐसा हुआ तो बाजी पलट सकती है।

जाहिर है, इस विकासमान सच्चाई को सबसे बेहतर खुद मोदी जी समझ रहे हैं। इसीलिये इसकी काट के लिए सारी मर्यादा भूलकर वे मैदान में उतर पड़े हैं।

हाल के मोदी जी के तीन लंबे भाषण- विदेश यात्रा से लौटकर मध्य प्रदेश के कार्यकर्ताओं से संवाद, अविश्वास प्रस्ताव का जवाब और 15 अगस्त को लाल किले से सम्बोधन- गवाह हैं कि वे ध्रुवीकरण के एजेंडा को चरम पर ले जाने में जी-जान से जुट गए हैं।

संघ के तीनों चर्चित रणनीतिक मुद्दों- राम मंदिर, धारा 370 और UCC- के नाम पर एक साथ वोट मांगा जा रहा है। राम-मंदिर का उद्घाटन चुनाव पूर्व करने की तैयारी है। कश्मीर में 370 खत्म करने के कारनामे को बार बार याद दिलाया जा रहा है। मोदी जी ने मध्य प्रदेश के कार्यकर्ताओं से संवाद करते हुए पिछले दिनों जोरशोर से UCC को भी उछाल दिया, हालांकि आदिवासियों तथा पूर्वोत्तर और पंजाब की तीखी प्रतिक्रिया के बाद लगता है उसे फिलहाल ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है।

सर्जिकल स्ट्राइक, “आतंकवाद के खात्मे”, ट्रिपल तलाक कानून जैसे कारनामों की याद दिलाई जा रही है। मोदी जी जिस तिकड़ी को 2024 के चुनाव के लिए अपना मुख्य राजनीतिक निशाना बना रहे हैं, उसमें भ्रष्टाचार, वंशवाद के साथ तुष्टीकरण का विभाजनकारी एजेंडा भी प्रमुख है।

विभाजन की विभीषिका याद दिलाने के नाम पर मुसलमानों के खिलाफ साम्प्रदायिक नफरत को धार दी जा रही है। विडंबना है कि जिस RSS की बुनियाद ही सावरकर के द्विराष्ट्रवाद के विभाजनकारी सिद्धांत पर टिकी है और जिसने उस दौर में साम्प्रदायिक हिंसा में बढ़चढ़ कर भाग लिया, वह आज अपने को राष्ट्रीय एकता का अलम्बरदार बता रही है। सिर्फ़ राजनीति की रोटी सेंकने के लिए 75 साल पुरानी भयानक त्रासदी की याद को उभारकर, मनगढ़ंत नैरेटिव द्वारा मुसलमानों को villain के बतौर पेश कर उनके खिलाफ नफरत भड़काई जा रहा है, और समाज को बांटने की साजिश की जा रही है।

सवाल है कि आप विभाजन की विभीषिका किसलिए याद दिलाना चाहते हैं? आपका प्रस्थान-बिंदु क्या है, आप इससे हासिल क्या करना चाहते हैं? गौरतलब है कि विभाजन की त्रासदी को ईमानदारी से याद करने वाले लोहिया या विनोद मिश्र जैसे राजनेता भारत- पाक-बांग्लादेश के महासंघ के माध्यम से पूरे उपमहाद्वीप की जनता की एकता का स्वप्न देखते थे। आरएसएस का उद्देश्य इसका ठीक उल्टा है। वह साम्प्रदायिक विभाजन को तीखा करने और भारत में मुसलमानों को दोयम दर्जे का शहरी बनाने के अपने political project को justify करने और उसे आगे बढ़ाने के लिए विभाजन की याद दिला रही है।

इस दृष्टि से मोदी के हाल के भाषणों में सबसे खतरनाक वह अंश है जिसमें वे 1,000 साल की गुलामी की याद दिलाते हुए अगले 1,000 साल के हिन्दू राष्ट्र का नैरेटिव गढ़ते हैं। वे समझाना चाहते हैं कि 1,000 साल पहले एक राजा की हार की इतिहास की छोटी सी लगने वाली घटना ने जैसे 1,000 साल की गुलामी (मुस्लिम शासन) की नींव रखी थी, वैसे ही उन्हें अगर 3rd term मिल गया तो यह छोटी सी लगने वाली घटना अगले 1,000 साल के हिन्दूराज की नींव रख सकती है।

बेशक वे हिन्दू राज का यह सपना भारत को अपने तीसरे कार्यकाल में तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, 1947 तक महान विकसित राष्ट्र और विश्वगुरु बनने के झूठे आश्वासन की चाशनी में लपेट कर पेश कर रहे हैं।

क्या विपक्ष एक खुशहाल, न्यायपूर्ण, लोकतान्त्रिक, विकसित भारत का वैकल्पिक स्वप्न और राष्ट्रीय पुनर्निर्माण का ठोस रोडमैप पेशकर मोदी-भाजपा के झूठे और विध्वंसकारी नैरेटिव की कारगर काट कर पायेगा?

(लाल बहादुर सिंह, इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे हैं।)

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