यौन उत्पीड़न की शिकार यूपी की महिला जज ने चीफ जस्टिस से मांगी जीवन खत्म करने की इजाजत

नई दिल्ली। यूपी में एक महिला जज के यौन उत्पीड़न और कहीं सुनवाई न होने पर अपने जीवन को खत्म करने के लिए सीजेआई को पत्र लिखने का मामला सामने आया है। यौन उत्पीड़न की घटना छह महीने पुरानी है। सीजेआई को लिखे पत्र में महिला जज ने कहा है कि उसे मामले की निष्पक्ष जांच की कोई उम्मीद नहीं दिख रही है।

अपने दो पेज के पत्र में उसने लिखा है कि “मैंने न्यायिक सेवा को पूरे उत्साह और विश्वास के साथ इसलिए ज्वाइन किया था कि मैं आम लोगों को न्याय उपलब्ध कराऊंगी। लेकिन मैं क्या जानती थी कि बहुत जल्द ही न्याय के लिए मुझे ही दरवाजे-दरवाजे भीख मांगनी पड़ेगी। सेवा के अपने संक्षिप्त काल में मैं विशिष्ट हूं जिसे एक खुली अदालत में अपमानित किया गया।” 

मेरा यौन उत्पीड़न किया गया। मेरे साथ एक कूड़ेदान की तरह व्यवहार किया गया। मैं खुद को एक गैरज़रूरी कीड़े के तौर पर महसूस करती थी। और उम्मीद करती थी कि दूसरों को न्याय दूंगी। महिला जज का यह पत्र सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है।

अपने सीनियर द्वारा रात में मिलने का दबाव डाले जाने के मसले पर उन्होंने कहा कि मैं यह आशा नहीं करती थी कि मेरी शिकायत और बयान को मूलभूत सत्य के तौर पर लिया जाएगा। जिस चीज की मैं आशा करती थी वह निष्पक्ष जांच थी। उन्होंने आत्महत्या करने की कोशिश का भी दावा किया। लेकिन प्रयास सफल नहीं रहा।

सीजेआई को लिखे पत्र में उन्होंने कहा कि मेरी अब और जीने की इच्छा नहीं है। पिछले एक से डेढ़ सालों में मैं अब एक चलती-फिरती जिंदा लाश बन गयी हूं। अब इस आत्मा विहीन और जीवन रहित शरीर को इधर-उधर घुमाने का कोई फायदा नहीं है। मेरे जीवन में अब कोई उद्देश्य नहीं बचा है। कृपया सम्मानजनक तरीके से मुझे मेरा जीवन खत्म करने की इजाजत दें। कृपया मुझे अपना जीवन खारिज करने दें।

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के निर्देश पर सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट से महिला जज की शिकायत का स्टैटस मांगा है। सूत्रों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री ने बृहस्पतिवार शाम को पूरा विवरण मांगा है और शुक्रवार यानि आज उसे रिपोर्ट हासिल करने की उम्मीद है।

13 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने शिकायतकर्ता जज की शिकायत की सुनवाई करने से मना कर दिया था। उसके पीछे उसका तर्क था कि संबंधित आंतरिक शिकायत समिति ने मामले का संज्ञान ले लिया है और इस मामले पर एक प्रस्ताव भी पारित किया गया है जिसे हाईकोर्ट के जज के पास अनुमोदन के लिए भेज दिया गया है। बांदा जिले की इस जज ने फिर अपना जीवन खत्म करने के लिए सीजेआई को पत्र लिखा।

उन्होंने कहा कि भारत में कामकाजी महिलाओं को व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई का प्रयास नहीं करना चाहिए। अगर कोई महिला व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई लड़ने के बारे में सोचती है तो मैं आपको बता देना चाहती हूं। मैं नहीं लड़ सकती। और मैं एक जज हूं। यहां तक कि मैं अपने लिए एक निष्पक्ष जांच भी नहीं करवा सकती। मैं सभी महिलाओं को एक खिलौना या फिर निर्जीव चीज की तरह रहने के लिए सलाह दूंगी।

इंडियन एक्सप्रेस ने महिला जज और उनके सीनियर जज से संपर्क करने की बहुत कोशिश की लेकिन कोई संपर्क नहीं हो सका।

(ज्यादातर इनपुट इंडियन एक्सप्रेस से लिए गए हैं।)

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