रांची में क्रूर मज़ाक़ की भी इंतहा! पार्षद ने बांटा- पांच सदस्यों वाले परिवारों को 1.50 किलो चावल और 250 ग्राम दाल

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रांची। भले ही कोरोना कहर के कारण आज पूरा देश लॉकडाउन का दंश झेल रहा है, लेकिन झारखंड अपने अलग राज्य गठन के 20 वर्षों के बाद अपनी ही समस्याओं के लॉकडाउन से ग्रस्त है। झारखंड अलग राज्य की अवधारणा में रोजगार के विकास के साथ-साथ आदिवासी समाज का विकास निहित था, ताकि परिवार का पेट पालने के लिए लोगों को सूबे से पलायन न करना पड़े।

आदिवासी समाज स्वावलंबी बने, सभी को भोजन उपलब्ध हो सके और कोई भूखा न रहे। लेकिन राज्य के गठन के 20 साल बाद भी लोगों का वह सपना तो पूरा नहीं ही हुआ ऊपर से तमाम नई क़िस्म की विसंगतियों ने उसे ज़रूर घेर लिया। और यह आए दिन खबरों की सुखिर्यों के रूप में सामने आती रहती हैं। 

विगत कई महीनों से कोरोना की वैश्विक महामारी से प्रभावित पूरा देश लॉकडाउन में है और देश के सभी राज्यों की प्राथमिकताओं में गरीबों, मजदूरों, असहाय लोगों को अनाज उपलब्ध कराना है, ताकि कोई भूखा न रहे।

झारखंड भी इससे अछूता नहीं है बावजूद इसके राज्य में प्रशासनिक लापरवाही के कारण सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों की बदहाली की परेशान करने वाली खबरें तो आ ही रही हैं। लेकिन जब ऐसी खबर सरकार की नाक के नीचे से बाहर आए तो बात चिंता की हो जाती है।

यहां उल्लेख करना जरूरी होगा कि एक तरफ झारखंड सरकार दावा कर रही है कि बिना राशन कार्ड वालों को 10 किलो चावल दिए जा रहे हैं। लेकिन इस दावे की पोल कहीं और नहीं बल्कि सचिवालय से दो किमी दूर ही खुल जा रही है। यहाँ बसे आदिवासी टोले तक यह राशन अभी भी नहीं पहुंच पाया है।

बताते चलें कि राजधानी रांची में स्थित सचिवालय (नेपाल हाउस) की नाक के नीचे बसा आदिवासी टोला बीते 20 साल से सड़क और सुविधाओं से महरूम है। शहरी ज़िंदगी इसके लिए अभी भी दूसरी दुनिया की चीज बनी हुई है। इसी टोले की एक खबर को फोटो सहित रांची के मो. असग़र खान ने सोशल मीडिया पर डाला जो काफी परेशान करने वाली है।

खबर के मुताबिक बीते 20 साल से सड़क और सुविधाओं से महरूम झारखंड की राजधानी रांची के नदी दीप टोला के लोग अब लॉकडाउन की मार झेल रहे हैं। 

20 घरों वाले इस टोले में कई परिवारों के पास राशन कार्ड तक नहीं है। इन्हीं में से एक पूनम कच्छप हैं, जिनके परिवार में पांच सदस्य हैं। वह बताती हैं कि 20 दिन पहले पार्षद पुष्पा तिर्की ने उन्हें राशन के लिए बुलाया था, मगर उन्होंने 1.5 किलो चावल और एक पाव दाल ही दिया। गरीबी का इससे बड़ा मजाक कोई दूसरा नहीं हो सकता है।

मनीषा कच्छप, सवित्री कच्छप और सीमा कच्छप का भी यही कहना है। इनके परिवार में भी क्रमशः तीन, दो और तीन सदस्य हैं। उनका कहना है कि वे खाना एक टाइम ही बनाती हैं। कभी चावल उन्हें दूसरों के यहां से उधार भी लेना पड़ता है। जबकि रौशनी लिंडा को तो यह डेढ़ किलो चावल और एक पाव दाल भी नसीब नहीं हुआ है। वह कहती हैं, “जिस दिन चवाल, दाल दिया जा रहा था, उस दिन हम दूसरे काम में लगे हुए थे, इसलिए नहीं जा पाए। जब दूसरे दिन गए तो पार्षद ने कहा कि जब आएगा, तब देंगे।”

यह हाल तब है, जब झारखंड सरकार का दावा है कि जिन लोगों के पास राशन कार्ड नहीं हैं। उन्हें दस किलो चावल दिया जा रहा है।

नदी दीप टोला रांची नगर निगम के 50 नंबर वार्ड में आता है। यहां की पार्षद पुष्पा तिर्की कहती हैं कि जिनका राशन कार्ड नहीं था, उन्हें एक संस्था के माध्यम से डेढ़ किलो चावल और पाव दाल दी गई थी, लेकिन सरकार की ओर से दिए जा रहे 10 किलो चावल के लिए उनको दोबारा बुलाया था, लेकिन अब तक वे लोग नहीं आए हैं। जबकि नदी दीप टोला के लोग पार्षद पुष्पा तिर्की के दोबारा बुलाने वाली बात से इनकार करते हैं।

नदी दीप टोला के लोगों की समस्या मात्र लॉकडाउन से उपजी परेशानी ही नहीं है। टोले में लोगों की मुख्य समस्या सड़क और पुलिया है। यहां के रहने वाले मंगा लिंडा कहते हैं कि पार्षद, विधायक से बोल-बोल कर थक गए, लेकिन एक छोटी सी पुलिया तक नहीं बन पाई है।

टोले वाले जिस पुलिया के बनाने की मांग कर रहे हैं, दरअसल वही उन्हें शहर से जोड़ती है। बांस, बल्ली से बनी इस लकड़ी की पुलिया चारों तरफ से टूटी हुई है। इसी के सहारे टोले के लोगों की जरूरत पूरी होती है। मंगा लिंडा कहते हैं कि पुलिया चारों तरफ से टूटी हुई है। नीचे दलदल और कीचड़ है। पुलिया से रोजाना नदी दीप समेत छोटा घागरा, हुंडरू बस्ती समेत 250-300 लोग आवाजाही करते हैं।

टोले वाले कहते हैं कि लॉकडाउन के बाद से जगह-जगह खिचड़ी बांटी जा रही है और अन्य तरह की सहायता पहुंचाई जा रही है, लेकिन इस टूटी पुलिया की वजह से उनके यहां बांटने वाला कोई नहीं आ रहा है।

(राँची से वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट।)

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