पीएम मोदी के चुनावी क्षेत्र में घास की रोटी खा रहे हैं लोग

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वाराणसी। कुछ गज जमीन, जर्जर मकान, सुतही-घोंघा और चूहा पकड़कर जीवन की नैया खेते-खेते थक हार चुके मुसहर समुदाय को अब कोरोना डस रहा है। बनारस की कोइरीपुर मुसहर बस्ती में लाक डॉउन के चलते यह बीमारी कहर बरपा रही है। पिछले तीन दिनों से इस बस्ती में चूल्हे नहीं जले।

पेट की आग बुझाने के लिए लोग घास खा रहे हैं। मुसहर बस्ती के लोगों के पास सैनेटाइजर और मास्क की कौन कहे, हाथ धोने के लिए साबुन तक नसीब नहीं है।

कमोबेश यही हाल पिंडरा की तीनों मुसहर बस्तियों का है। औरांव, पुआरीकला, आयर, बेलवा की मुसहर बस्तियों में लोगों को भीषण आर्थिक तंगी झेलनी पड़ रही है। राशन न होने के कारण लोगों के घरों में चूल्हे नहीं जल पा रहे हैं।

कोइरीपुर मुसहर बस्ती बड़ा गांव ब्लॉक से सटी हुई है। यह बस्ती कुड़ी मोड़ पर बसी है। यहां मुसहर समुदाय के करीब सत्रह परिवार हैं। इनमें पांच परिवार ईंट भट्ठों पर काम करने के लिए गांव से पलायन कर गए हैं।

जो लोग बचे हैं वो घास खाकर जिंदा हैं। दिन भर वो गेहूं के खेतों से अंकरी घास निकाल रहे हैं। गेहूं के मामा को उखाड़कर वे अपनी भेड़-बकरियों को जिला रहे हैं।

कोइरीपुर मुसहर बस्ती के युवक नंदा, बबलू, गुड्डू ने अपने छप्परों के अंदर रखे खाली बर्तनों को दिखाया। साथ ही वो घास भी जिससे उनकी आजीविका चल रही है।

जनता कर्फ्यू के दिन भी इस बस्ती के लोगों को फांकाकसी करनी पड़ी। चंद्रावती, पूजा, सोनू, चंपा, अनीता, भोनू, चमेला, मंगरु, कल्लू, दशरथी, राहुल ने भी इस बात को तस्दीक किया।

बताया कि उस दिन तो घास भी नसीब नहीं हो पाई। बच्चे दिन भर भूख से बिलबिलाते रहे। बगल के गांव में एक व्यक्ति के यहां तेरही हुई थी। कुछ सूखी पूड़ियां बची थीं।

वही पूड़ियां लेकर आए, कुछ घंटों के लिए पेट की आग शांत हुई। इन्हीं पूड़ियों ने इनकी जान बचाई। तीन दिन पहले वही आखिरी निवाला भी पेट में गया था।

इसके बाद से मुसहर बस्ती के लोग घास खाकर जिंदा हैं। सोमारू मुसहर ने बताया कि बस्ती के बच्चे उन खेतों में आलू ढूंढ रहे हैं जिनसे फसल निकाली जा चुकी है।

  (जन संदेश टाइम्स और नेटिजन न्यूज़ से साभार)

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