नई दिल्ली। साल 2019 का अंतिम महीना पूरे देश में मुसलमान अपनी नागरिकता को बचाने के लिए सीएए-एनआरसी के खिलाफ धरना-प्रदर्शन कर रहे थे। राजधानी दिल्ली में महिलाओं ने इसके लिए बड़ा कदम उठाते हुए पहले शाहीन बाग और उसके बाद उत्तरी-पूर्वी दिल्ली में आंदोलन खड़ा किया। यह आंदोलन लंबे समय तक चला। लेकिन अंत में कोविड-19 की भेंट चढ़ गया।
साल 2020 की शुरुआत के साथ ही विश्व में कोरोना की लहर बढ़ने लगी। लेकिन भारत में एक और लहर चल रही थी। वह थी, अमेरिका के तत्कालिक राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप के आने की तैयारी। इसी बीच फरवरी महीने में डोनॉल्ड ट्रंप और उनकी पत्नी मेलानिया ट्रंप भारत की यात्रा पर आएं। देश में एक तरफ एक समुदाय के लोग अपनी नागरिकता बचाने के लिए आंदोलन कर रहे थे, दूसरी तरफ पूरा शासन-प्रशासन अमेरिका के राष्ट्रपति के स्वागत में व्यस्त था।
नेताओं के भाषण ने किया चिंगारी का काम
इसी दौरान दिल्ली में विधानसभा चुनाव हुए जिसमें भाजपा के नेता अनुराग ठाकुर, अमित शाह, कपिल मिश्रा और अन्य ने खुले तौर पर शाहीन बाग को अपने भाषणों में निशाना बनाया। अनुराग ठाकुर ने चुनावी मंच से कहा कि “देश के गद्दारों को गोली मारो सालों को” वहीं दूसरी ओर गृहमंत्री अमित शाह ने अपने चुनावी भाषण में कहा कि “आप वोट ऐसे देना कि बटन यहां दबे और करंट शाहीन बाग में जाकर लगे।”
इन्हीं सारी स्थितियों के बीच उत्तरी-पूर्वी दिल्ली में दंगा भड़क गया। इस दंगे से आती वीडियो किसी का भी दिल दहलाने के लिए काफी थी। धूं-धूं कर जलते घर काली होती दीवारें और मौतों के बढ़ते आंकड़े इस बात का सबूत है कि प्रशासन इसे रोकने में असफल रहा। लगभग तीन दिन तक चले इस दंगे में मीडिया रिपोर्ट के अनुसार 53 लोगों की मौत हुई। जिसमें 40 मुसलमान और 13 हिंदू थे।
नरगिस का इंतजार नहीं हुआ खत्म
अब इस दंगे को तीन साल हो गए हैं। लोगों ने शायद फिर से एक सामान्य जीवन जीना शुरू कर दिया होगा। लेकिन कई परिवारों के लिए अभी दंगे के जख्म हरे हैं। इनमें से एक हैं खालिद सैफी की पत्नी नारगिस सैफी। जो पिछले तीन साल से अपने पति की जमानत के लिए कोर्ट के चक्कर लगा रही है।
दिल्ली दंगे के तीन साल बाद भी न्याय न मिलने पर 27 फरवरी को दिल्ली के प्रेस क्लब में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें नारगिस सैफी ने हिस्सा लिया। इसके अलावा वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह, राज्यसभा सांसद मनोज झा, कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद, पूर्व राज्यसभा सांसद केसी त्यागी, पूर्व लोकसभा सदस्य मोहम्मद आबिद और सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव शामिल हुए।
इस चर्चा में दिल्ली दंगे के बाद न्याय की आस में बैठे लोगों की स्थिति पर चर्चा की गई। आपको बता दें कि दिल्ली दंगे में नौ लोगों को गिरफ्तार किया गया था। जिसमें खालिद सैफी और उमर खालिद को दिल्ली दंगे में कड़कड़डूमा कोर्ट से दिसंबर में आरोपमुक्त कर दिया गया था। लेकिन UAPA के मामले में जमानत नहीं मिली। जिसमें उन्हें दंगे का साजिशकर्ता बताया गया है।
अब बस जमानत का इंतजार है
इस मामले में नरगिस सैफी का कहना है कि मेरे लिए यह समय बहुत ही कष्टदायक है। मेरे लिए यह एक परीक्षा की तरह है। 26 फरवरी, 2020 को खालिद को गिरफ्तार किया गया था। उसके बाद से मैं अपने घर पर टिकी नहीं। एक सामान्य महिला के लिए इतनी बड़ी लड़ाई लड़ना आसान नहीं है।
इस घटना से पहले मैं कभी अपने घर से बाहर नहीं निकली। जहां जाती थी अपने शौहर के साथ ही जाती थी। यहां तक की सीएए प्रोटेस्ट में शामिल होने के लिए भी मैं उनके साथ जाती थी। शायद उसकी ही मुझे सजा मिली है। अब मुझे तीन बच्चों के साथ-साथ खालिद के लिए न्याय की लड़ाई भी लड़नी है।
नरगिस कहती हैं कि जब दिल्ली दंगे के मामले में खालिद को बरी कर दिया है तो UAPA मामला सिर्फ जबरदस्ती का लगाया गया है ताकि किसी तरह उन्हें जेल के अंदर रखा जाए। स्थिति ऐसी बना दी गई है कि लोग हमारे खिलाफ है। जबकि खालिद तो लोगों की मदद करते थे।
जब हमने पूछा कि क्या खालिद जेल में उनके साथ हो रहे व्यवहार के बारे में चर्चा करते हैं? इसका जवाब देते हुए नरगिस कहती हैं कि जेल में ऐसी स्थिति बना दी गई है कि जब भी वह बाहर आते हैं तो बाकी कैदी उन्हें देशद्रोही कह कर संबोधित करते हैं। इससे बड़ा दुख और क्या हो सकता है या प्रताड़ना क्या हो सकती है कि आपको अपने देशवासी ही देशद्रोही कह रहे हैं?
वह कहती हैं कि मुझे अभी भी न्यायालय पर भरोसा है कि हमें न्याय मिलेगा। मैं और मेरे बच्चे हर साल हर त्योहार पर बस एक ही चीज का इंतजार करते हैं वह है खालिद की जमानत। इस बार फिर अप्रैल में ईद आने वाली है। मुझे और मेरे बच्चों को बस एक ही उम्मीद है जैसे बाकी लोगों को जमानत मिली है, खालिद को भी मिल जाए तो हम सब ईद एक साथ मना पाए।
सिटिजंस कमेटी की रिपोर्ट से हुआ साजिश का खुलासा
सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने दिल्ली दंगे पर बनी कमेटी की रिपोर्ट का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि कमेटी में कई प्रतिष्ठित लोग शामिल थे। “अनसर्टेन जस्टिस: ए सिटिजंस कमेटी रिपोर्ट ऑन द नॉर्थ ईस्ट देल्ही वॉयलेंस 2020” (uncertain Justice: A Citizens committee Report on the North East Delhi Violence 2020) नाम की 171 पन्नों की इस रिपोर्ट में मीडिया, पुलिस और राजनीति की भूमिका पर सवाल उठाए हैं।
उन्होंने कहा कि इस रिपोर्ट में पाया गया है कि लोगों को साजिश के तहत गिरफ्तार किया गया है। जिसमें स्थिति एकदम साफ हो जाती है कि मुस्लिम समुदाय के लोगों को साजिश के तहत टारगेट किया रहा है। ताकि डर का माहौल पैदा किया जाए।
मुस्लिम पीड़ितों का नाम लेने से घबराते हैं विपक्षी दल
वहीं दूसरी ओर इस मामले में राज्यसभा सांसद मनोज झा ने कहा कि आज हम ऐसी स्थिति में पहुंच गए है कि जुनैद और नासिर नाम के दो युवकों को जिंदा जला दिया जाता है और नेता उनको मुस्लिम कहने से कतराते रह गए। हम मुस्लिमों पर हो रहे अत्याचार को अल्पसंख्यकों और विशेष समुदाय के शब्दों तक सीमित कर दे रहे हैं। विपक्ष के नेता भी इन विषयों पर खुलकर बात नहीं कर रहे हैं।
अगर ऐसी ही स्थिति रही तो हम अपनी आने वाली पीढ़ी को क्या देंगे। अगर राजनीतिक पार्टियां भी भाजपा की तरह ही काम करेंगी और जनता के साथ खड़ी नहीं होगी तो भाजपा को हराना क्यों है। हां यह माना जा सकता है कि इस वक्त देश में फासीवाद का दौर चल रहा है। लेकिन हमें ऐसे में स्थिरता के साथ खड़े होकर सामना करना है।
सत्ता आती है और चली जाती है। आजाद भारत में पहले भी राजनीतिक पार्टियों के स्वर्णिम काल का अंत हुआ है। आगे भी स्थिति एक जैसी नहीं रहेगी। इसलिए जरूरी है कि विचार जिंदा रहें ताकि किसी को साजिश के तहत न फंसाया जाए।
(जनचौक संवाददाता पूनम मसीह की रिपोर्ट।)
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