नई दिल्ली। वजीरपुर में पिछले कई दिनों से मजदूर अपने परिवारों के साथ टूटे हुए घरों के सामने पेड़ों के नीचे रहने को मजबूर हैं। 19 मई को लगाए गए सरकारी नोटिस में लिखा था कि दया बस्ती की ओर से आने वाली रेलों की रेलवे सिग्नल लाइट में झुग्गियों के विस्तार के कारण बाधा उत्पन्न हो रही है। इस नोटिस के आधार पर तोड़फोड़ की गई।
हालांकि, नोटिस में यह स्पष्ट नहीं किया गया था कि कितने घर तोड़े जाएंगे। जिन लोगों के घर 6 मीटर से बाहर थे, उन्होंने बुलडोजर आने से पहले ही अपने घर स्वयं तोड़ दिए थे। फिर भी, नोटिस में तोड़फोड़ की सटीक सीमा नहीं बताई गई थी। इसके बावजूद, लगभग 6 किलोमीटर लंबी और 30 फीट चौड़ी पट्टी में घरों को ध्वस्त कर दिया गया, जिससे करीब 2000 घर प्रभावित हुए। कई लोग अपने गांव गए हुए थे और उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी कि उनके घर भी तोड़े जाएंगे। 6 मीटर से लेकर 4 किलोमीटर तक के बीच के घरों को पूरी तरह जमींदोज कर दिया गया।
रेलवे लाइन के किनारे लगभग एक हजार लोग इस तोड़फोड़ से प्रभावित हुए हैं। प्रभावित लोग बताते हैं कि जब वे आजादपुर में किराए का मकान ढूंढने जाते हैं, तो उन्हें 5,000 रुपये किराया बताया जाता है। वजीरपुर के मजदूर स्थानीय फैक्ट्रियों में काम करते हैं, जहां उन्हें 9,000 से 12,000 रुपये मासिक वेतन मिलता है। ऐसे में, 5,000 रुपये किराया देना उनके लिए असंभव है, क्योंकि इससे उनके परिवार का गुजारा मुश्किल हो जाएगा।
जब लोगों ने आश्रय स्थल (रैन बसेरा) में रहने के बारे में पूछा, तो पता चला कि वजीरपुर में केवल एक रैन बसेरा है, जो पहले से ही भरा हुआ है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि वे अपने सारे सामान के साथ अब कहां जाएंगे? उनके बच्चे पास के स्कूलों में पढ़ते हैं, और वे कहीं और जाने को तैयार नहीं हैं, क्योंकि उनके कार्यस्थल (फैक्ट्रियां) और बच्चों के स्कूल यहीं हैं।
प्रभावित परिवार रेलवे लाइन के किनारे खुले में अपने सामान के साथ बैठे हैं। शकीना, जो वजीरपुर की एक फैक्ट्री में काम करती हैं, रेलवे लाइन के किनारे अपने सामान-गैस चूल्हा, फ्रिज, कूलर, बर्तन, कपड़े आदि-के साथ बैठी हैं। वे तीन दिन से काम पर नहीं गईं, क्योंकि उनका सामान खुले में पड़ा है। उनका कहना है कि अगर वे काम पर जाएंगी, तो सामान चोरी होने का डर है। किराए पर कमरा लेने के लिए उनके पास पैसे नहीं हैं। उनके बच्चे को आंखों में संक्रमण (आई फ्लू) हो गया है। वे कहती हैं कि अगर वे कहीं और किराए पर कमरा ले भी लें, तो बच्चों की पढ़ाई छूटने का डर है, क्योंकि उनके स्कूल वजीरपुर में हैं।
निशा, जो वजीरपुर में ही पैदा हुईं, बताती हैं कि उनका मकान भी टूट गया है। वे कहती हैं, “हमारा बचपन यहीं बीता है। हमारी मां ने एक-एक ईंट जोड़कर यह कमरा बनाया था। हमने भी बचपन में ईंटें उठाकर इसमें मदद की थी। हमारी मेहनत और बचपन इस मकान से जुड़ा है। आज इसे टूटा देखकर दिल रो रहा है। इस जगह से एक खास भावनात्मक लगाव है।”
वे आगे बताती हैं कि सबसे दुखद बात यह है कि बुलडोजर तब चलाया गया, जब अधिकांश लोग अपने गांव गए हुए थे। मनदीप, जिनका घर भी तोड़ा गया, उस समय अपने गांव में थे। उनका सारा सामान मलबे में दब गया। मलबा इतना ज्यादा है कि उसे हाथ से हटाना संभव नहीं है।
मनदीप बताते हैं कि पहले नोटिस के बाद उनका घर बच गया था, इसलिए वे निश्चिंत होकर गांव गए थे। लेकिन 25 जून को फिर से बुलडोजर चला दिया गया। अब 2 जुलाई को फिर से बुलडोजर आने की बात कही गई है, और पता नहीं कितने और घर तोड़े जाएंगे।
जहां झुग्गी, वहां मकान
बस्तीवासियों का कहना है कि जेलर बाग झुग्गी के कुछ लोगों को पास में ही फ्लैट बनाकर वहां शिफ्ट किया गया था। इससे उन्हें लगा था कि सरकार “जहां झुग्गी, वहां मकान” का वादा पूरा कर रही है। जेलर बाग में बने फ्लैटों में नरेला, वजीरपुर, गोविंदपुरी, ओखला आदि की झुग्गियों से आए लोगों को बसाया गया है। मोहम्मद आलम बताते हैं कि इन फ्लैटों के लिए भी अलग-अलग श्रेणियां हैं। जिन लोगों का नाम फ्लैट के लिए चुना गया, उनसे 2 लाख रुपये मांगे गए। जिनके पास यह राशि थी, उन्होंने भुगतान कर फ्लैट में प्रवेश कर लिया।
लेकिन जिनके पास 2 लाख रुपये नहीं थे, उन्हें बिना पूरा भुगतान किए मालिकाना हक नहीं मिल सका। कुछ झुग्गियां ऐसी हैं जिनके नाम फ्लैट के लिए चुने गए, लेकिन पैसे की कमी के कारण वे अपनी झुग्गियां खाली नहीं कर रहे हैं। इसलिए, उन्होंने अपनी झुग्गियों पर स्टे (स्थगन आदेश) ले लिया है। जेलर बाग में कई झुग्गियों पर स्टे का नंबर देखा गया। फ्लैट में रहने वाले लोगों को भी पानी की सुविधा नहीं है। वे 15 मंजिल तक सीढ़ियों से पानी ले जाते हैं, क्योंकि लिफ्ट में सामान ले जाने की मनाही है। फ्लैटवासियों का कहना है कि झुग्गियों में पानी की सुविधा थी, जो फ्लैटों में नहीं है।
बस्तीवासियों का गुस्सा
झुग्गियां टूटने से लोगों में गुस्सा है। उनका कहना है कि वे 40 साल से अधिक समय से यहां रह रहे हैं, और अब अचानक रेलवे लाइन और नाले की चिंता जागी है। मोहम्मद आलम, जो 1980 से यहां रह रहे हैं, कहते हैं कि उनके बच्चों के बच्चे भी यहीं हैं। उनके पास राशन कार्ड, वोटर कार्ड और आधार कार्ड जैसे सभी दस्तावेज हैं। मोहम्मद अकील, जिनका जन्म यहीं हुआ, कहते हैं कि वे यहीं की फैक्ट्रियों में काम करते हैं और अब उनके पास कहीं जाने का विकल्प नहीं है। उनका सारा सामान खुले में पड़ा है। कुछ असामाजिक तत्व सामान चुरा रहे हैं; दो दिन पहले किसी का रिक्शा चोरी हो गया। बिजली विभाग ने मीटर हटा दिए, जिससे बिजली और पानी की सुविधा बंद है।
वजीरपुर की महिलाओं ने बताया कि 25 जून को झुग्गियां तोड़ने के साथ सरकारी शौचालय भी बंद कर दिया गया था। लेकिन महिलाओं ने एकजुट होकर शौचालय खुलवाया। फिर भी, खाना बनाना और नहाना खुले आसमान तले हो रहा है। बस्तीवाले गुस्से में हैं। उनका कहना है कि चुनाव के समय नेता वोट मांगने आए, लेकिन अब कोई उनकी हालत देखने नहीं आया। विपक्षी नेता जो गरीबों के साथ खड़े होते हैं, उन्हें जेल में डाल दिया जाता है। बस्तीवासियों का कहना है कि गरीबों को सड़क पर लाकर सरकार विकास का दावा कर रही है।
(दिल्ली से डॉ. अशोक कुमारी की रिपोर्ट)