पीएम मोदी बलात्कारियों के संरक्षक हो गए हैं। कोई भी बलात्कार कर के आये या फिर लड़कियों और महिलाओं को छेड़कर आए उनकी सरकार में उसकी सुरक्षा की गारंटी है। अगर वह बाबा है तो 100 फीसदी। पार्टी का सदस्य है तो 100 फीसदी। और समर्थक है तो नेताओं के संपर्कों और पार्टी के प्रति उसकी वफादारी के आधार पर यह तय होगा। ऐसे लोगों की लंबी लिस्ट है नाम गिनाने लगेंगे तो पूरा पन्ना भर जाएगा और आप पढ़ते-पढ़ते थक जाएंगे। सेंगर से लेकर साक्षी और स्वामी चिन्मयानंद से लेकर बृजभूषण तक लंबी फेहरिस्त है। वैसे तो जनाब ने बेटी बचाओ.. का नारा दिया था लेकिन अब माता-पिताओं के लिए ये नौबत आ गयी है कि उन्हें इनके नेताओं से ही अपनी बेटियां बचानी पड़ रही हैं।
अब कल का ही ले लीजिए। महिलाओं से जुड़ी तीन घटनाएं सामने आयीं। जिसमें सत्ता और पूरी व्यवस्था आरोपियों के पक्ष में खड़ी होती दिखी। तीनों में महिलाओं का उत्पीड़न या बलात्कार करने वाले जीते। एक ऐसे मौके पर जब पूरा देश मणिपुर की घटना से आक्रोशित था और उसे किसी भी कीमत पर मणिपुर की महिलाओं के लिए न्याय और सरकार की तरफ से ठोस कार्रवाई की उम्मीद थी तब हरियाणा की जेल में बंद बलात्कार के दोषी बाबा राम रहीम को एक बार फिर पैरोल पर छोड़ दिया गया। हर तीसरे महीने वह जेल से बाहर पैरोल पर होता है। मानो जेल न हुई पर्यटन स्थल हो गया। जहां वह सिर्फ घूमने के लिए जाता है बाकी समय जेल से बाहर होता है। और यह सब कुछ सूबे के बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व की सहमति के बगैर संभव नहीं है। यह है हरियाणा और देश की बेटियों के लिए बीजेपी का संदेश।
दूसरी घटना दिल्ली के भीतर घटती है। महीनों महीना पहलवान बेटियों ने आंदोलन किया और जब पूरे देश को उसमें शामिल किया तब जाकर आरोपी सांसद बृजभूषण शरण के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो पायी और अब जब चार्जशीट दायर होने के बाद वह अदालत में पेश हुए हैं तो उन्हें खड़े-खड़े जमानत मिल गयी। इसके पहले अपने सांसद को जेल न जाना पड़े उसके लिए पीएम मोदी ने क्या कुछ किया उसको पूरे देश ने देखा। जिसका नतीजा यह रहा कि बाहर घूम-घूम कर बृजभूषण महिला पहलवानों को न सिर्फ चिढ़ा रहे हैं बल्कि मीडिया के कैमरों के सामने विक्ट्री का साइन कर अट्टहास कर रहे हैं। क्या यह सब कुछ बगैर पीएम और गृहमंत्री की मर्जी के संभव है?
अनायास नहीं जब बेल की अर्जी बृजभूषण के वकील ने जज के सामने पेश की तो बजाय उसका सीधे विरोध करने के दिल्ली पुलिस, जो सीधे गृहमंत्रालय के तहत आती है, कहती है कि वह न विरोध करती है और न समर्थन सब कुछ जज के ऊपर छोड़ देती है। अब अगर इसी तरह से पुलिस किसी आरोपी-अपराधी के खिलाफ मुकदमा लड़ेगी तो उसका नतीजा क्या होगा उसे आसानी से समझा जा सकता है।
और तीसरा मामला जिस पर पूरा देश आलोड़ित था। मामला कितना गंभीर था इसका अंदाजा सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप और उसकी भाषा से समझा जा सकता है। जिसमें सीजेआई ने कहा कि अगर सरकार कार्रवाई नहीं करती है तो वह करने के लिए बाध्य होंगे। जनता से लेकर न्यायपालिका के इन दबावों के बाद आखिर क्या हुआ?
लोगों को इस बात की उम्मीद थी कि कम से कम मुख्यमंत्री का हटाया जाना तो लगभग तय है। लेकिन यह क्या वह मुख्यमंत्री न केवल अपनी कुर्सी पर सही सलामत है बल्कि उसने पूरी बेशर्मी के साथ ऊल-जुलूल बयान दिए। उसका कहना था कि ऐसी तो ढेर सारी घटनाएं हुई हैं, जो सामने नहीं आ पायीं। यानि इस एक घटना से आपको उद्वेलित नहीं होना चाहिए। और बड़ा कलेजा बनाइये और उससे बड़ी घटनाओं के लिए तैयार रहिए। और रोकने की जगह जनाब पैर तोड़कर बैठे रहेंगे या फिर अपराधियों के साथ खड़े रहेंगे इसकी उन्हें खुली छूट मिलनी चाहिए। लेकिन इस बेशर्मी भरे बयान का भी पीएम मोदी ने संज्ञान नहीं लिया। या फिर यह सब कुछ उनके इशारे पर हो रहा था। जैसी कि इस मामले में देश को पीएम और उनकी सरकार से उम्मीद थी वह रत्ती भर भी उस पर खरे नहीं उतरे। और कार्रवाई के नाम पर एफआईआर में दर्ज एक हजार अज्ञात आरोपियों में से एक की गिरफ्तारी की गयी है। यही है दिन भर चले राष्ट्रीय कवायद का हासिल।
दो महीना बाद उन्होंने चुप्पी ज़रूरी तोड़ी लेकिन उसमें उन महिलाओं के प्रति संवेदना कम उनकी राजनीतिक कुटिलता ज्यादा दिखी। एक ऐसे समय जब पूरे देश की आंखें पनीली थीं। और हर कोई न्याय की उम्मीद में सत्ता के शीर्ष की तरफ देख रहा था। तब उस समय देश के नेतृत्व की आखिर क्या जिम्मेदारी बनती है? अमूमन तो जब संसद चल रही है तो उसकी पहली जिम्मेदारी बनती है कि वह अपना कोई बयान बाहर देने की जगह संसद के भीतर दे। लेकिन पीएम ने सदन को इसके लिए नहीं चुना। वह संसद के बाहर मीडिया से रूबरू हुए और वहां उन्होंने मणिपुर की घटना पर अपना रोष ज़रूर जाहिर किया लेकिन इस रोष और पीड़ा के मुताबिक उनके चेहरे पर कोई भाव नहीं था। और पूरे वक्तव्य को मणिपुर पर केंद्रित करने की जगह उन्होंने उसमें राजस्थान और छत्तीसगढ़ को भी लपेट लिया।
अब कोई पूछ सकता है कि भला राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी क्या निर्वस्त्र कर महिलाओं को परेड कराने की इस तरह की कोई घटना घटी है। इस बात में कोई शक नहीं कि इन सूबों में भी महिलाओं के साथ उत्पीड़न की घटनाएं घट रही हैं। लेकिन इसको जाहिर करने का क्या यही मौका था? एक ऐसा दृश्य देश के मानस पटल पर सामने आया है जिसे देखने वाले कम से कम अपने जीते-जी नहीं भुला पाएंगे। उसी रोष और उम्मीद भरे भाव से वो सरकार की तरफ देख रहे थे। तब ऐसे मौके पर आप अपनी पूरी बात मणिपुर पर केंद्रित करने और उसके जरिये पीड़ितों की चोट पर मलहम लगाने की जगह अपनी कुटिल राजनीति का नमूना पेश कर रहे हैं।
राजस्थान और छत्तीसगढ़ को शामिल कर आप ने उस पूरी घटना को डायलूट कर दिया। आप ने इस तरह पेश किया मानो वह कोई सामान्य घटना हो और दूसरे सूबों में नियमित तौर पर घट रही हो। आप कोई कार्रवाई करें न करें लेकिन इस घटना के प्रति आपके इस कैजुअल रवैये ने भावनाओं को शांत करने की जगह और चोटिल कर दिया है। रवीश ने ठीक ही कहा था कि अगर यही बोलना था तो मुंह खोलने की क्या जरूरत थी प्रधानमंत्री जी।
बाद में संसद के दोनों सदनों में विपक्ष आप से बयान की मांग करता रहा लेकिन आपने उसको बिल्कुल अनसुना कर दिया। उसने मणिपुर के मसले पर सारे कामकाज को रोक कर बहस की मांग किया तो आप के पक्ष ने उसे खारिज कर दिया। जबकि एक दिन पहले हुई सर्वदलीय बैठक की अध्यक्षता करने वाले राजनाथ सिंह ने विपक्ष को इसका भरोसा दिलाया था। और जब यह घटना घट गयी तो उसके बाद विपक्ष का यह पक्ष और मजबूत हो जाता है। लेकिन सत्ता है कि उसे कुछ सूझ ही नहीं रहा है। और वह अपने अहंकार में चूर है।
(महेंद्र मिश्र जनचौक के संस्थापक संपादक हैं।)
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