एक महीने से सत्याग्रह कर रहे प्रोफेसर ने कहा-बसंत पंचमी को त्याग दूंगा यह शरीर…

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प्रोफेसर राजेश सिंह जी, कुलपति दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर के विरुद्ध शपथ पत्र और साक्ष्यों के साथ की गई शिकायत पर भी अब तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है।

कुलाधिपति सचिवालय के संरक्षण में वे लगातार खुलेआम नियम-कानूनों का उल्लंघन कर रहे हैं, शिक्षकों व विद्यार्थियों का दमन एवं उत्पीड़न कर रहे हैं और अब गोरखपुर और संबद्ध महाविद्यालयों के विद्यार्थियों,  शिक्षकों और कर्मचारियों की जान खतरे में डाल चुके हैं।

जब कोरोना संकट को देखते हुए कई विश्वविद्यालयों की परीक्षाएं स्थगित हो गई हैं (शैक्षणिक संस्थानों को पूर्णतया बंद रखने के अर्थ में यह आता है।) ऐसे में, भी प्रोफेसर राजेश सिंह जी परीक्षा कराने पर अड़े हुए हैं।

क्या कोरोना पढ़ाई और परीक्षा  के बीच कोई भेदभाव करेगा?

पढ़ाई के लिए आने वालों को हो जाएगा और परीक्षा के लिए आने वालों को नहीं होगा?

इस बार बिना लक्षण वाले मरीजों की संख्या ज्यादा बताई जा रही है। ऐसे में, आने वाले विद्यार्थियों, शिक्षकों और कर्मचारियों में कौन संक्रमित है, कौन नहीं, इसका पता कैसे चलेगा?

बिना लक्षण वाले लोगों से संक्रमण दूसरों में नहीं फैलेगा, यह कैसे कहा जा सकता है?

प्रोफेसर राजेश सिंह जी की ऐसी ही जिद के कारण हमारे विश्वविद्यालय के दो शिक्षकों और कई कर्मचारियों का देहांत हुआ था, कोरोना की पिछली लहर में।

लोकतंत्र में जब किसी महत्वपूर्ण पद पर बैठा हुआ कोई व्यक्ति सारी व्यवस्था को चुनौती देता हुआ नियम-कानूनों का खुला उल्लंघन कर रहा हो और व्यवस्था लाचार हो गई हो उसके सामने, तो शिक्षक का धर्म होता है, व्यवस्था को ठीक करना।

हम व्यवस्था को ठीक से काम करने के लिए, अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करने के लिए प्रेरित करना चाहते हैं।

मैंने प्रोफेसर राजेश सिंह जी के विरुद्ध शपथ पत्र और साक्ष्यों के साथ शिकायतें की हैं अगर मेरी शिकायतें गलत हों, तो मुझको सजा मिलनी चाहिए और अगर मेरी शिकायतें सही हों, तो प्रोफेसर राजेश सिंह जी को सजा मिलनी चाहिए।

प्रोफेसर राजेश सिंह जी के कुलपति के पद पर रहते हुए उनके विरुद्ध कोई निष्पक्ष जांच संभव नहीं है, इसलिए उनको उनके पद से हटाया जाना चाहिए और मेरी शिकायतों की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए।

मेरे सत्याग्रह करते एक माह का समय बीत चुका है। प्रोफेसर राजेश सिंह जी के विरुद्ध अब तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है।

कुलाधिपति सचिवालय शासनादेश का उल्लंघन करते हुए उनको संरक्षण दे रहा है।

विश्वविद्यालय को बचाने की कामना लिए हुए लोग निराशा की ओर बढ़ रहे हैं। मेरे सभी शिक्षक मित्र, शिष्य और शुभेच्छु कुलपति जी के आतंककारी, असंवेदनशील, गैरकानूनी, विश्वविद्यालयविरोधी निर्णयों और कुलपति के विरुद्ध अब तक किसी कार्यवाही के न होने से गहरे तनाव में हैं। ऐसे में, मेरे पास ‘करो या मरो’ का ही रास्ता बचता है।

अगर बसंत पंचमी (5 फरवरी, 2022) के पूर्व प्रोफेसर राजेश सिंह जी को उनके पद से नहीं हटाया जाता है,

तो मैं बसंत पंचमी (5 फरवरी, 2022) के दिन अपराहन 2:30 पर अपने विश्वविद्यालय के प्रशासनिक भवन परिसर में अवस्थित दीनदयाल उपाध्याय जी की प्रतिमा के समक्ष यौगिक प्रक्रिया द्वारा अपना शरीर त्याग दूंगा।

मेरे सत्याग्रह का यह चरण तब तक के लिए स्थगित रहेगा।

मैं विश्वविद्यालय को बचाने की कामना करने वाले सभी जन से, विशेषकर युवा मित्रों और अपने प्रिय शिष्यों से धैर्य और शांति बनाए रखने की अपील करता हूं।

व्यक्ति, समूह, संगठन और संस्था के रूप में आप द्वारा मिले समर्थन, सहयोग और सुझावों के लिए मैं आभारी हूं।

(प्रोफेसर कमलेश गुप्त, हिन्दी विभाग, दी द उ गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर।)

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