राजस्थान के किसानों के दिल्ली कूच को पुलिस ने रोका, विरोध में उपवास पर बैठे रामपाल जाट

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चने की सरकारी खरीद की सीमा बढ़ाए जाने की मांग को लेकर राजस्थान में किसानों का आंदोलन तेज हो गया है। जयपुर से 30 किलोमीटर दूर अजमेर राजमार्ग पर पड़ने वाले महला में पड़ाव डाले बैठे किसानों ने बुधवार की सुबह दिल्ली के लिए अपनी कूच शुरू किया तो पुलिस प्रशासन ने उन्हें आगे बढ़ने से रोक दिया। जिसके बाद पुलिस के साथ किसानों की तीखी झड़प भी हुई। ऐसे में नाराज किसान महापंचायत के अध्यक्ष रामपाल जाट उपवास पर बैठ गए।

उपवास पर बैठे रामपाल जाट का आरोप है कि पुलिस का रवैया किसानों को लेकर ठीक नहीं है। किसान दिल्ली में कोई विरोध-प्रदर्शन करने नहीं जा रहे, बल्कि अपनी मांगों को लेकर ज्ञापन देने जा रहे हैं। वो भी शांतिपूर्वक। ऐसे में पुलिस द्वारा बार-बार किसानों को रोका जाना सही नहीं है। वहीं जाट ने यह भी कहा कि प्रदेश सरकार ने भी पंजीकृत किसानों से खरीद को लेकर कोई निर्णय नहीं लिया, जिसका भी किसानों को बेसब्री से इंतजार है। 

मालूम हो कि बीते रविवार को किसान महापंचायत के बैनर तले दूदू से किसानों ने दिल्ली के लिए कूच शुरू किया था, लेकिन महला के पास पुलिस और स्थानीय प्रशासन ने किसानों को रोक दिया और तब से किसान महला में ही अपना पड़ाव डाल कर बैठे हैं। इस बीच प्रदेश सहकारिता विभाग के आला अधिकारियों से भी किसानों की वार्ता हुई, लेकिन जो मांग प्रदेश सरकार के समक्ष रखी गई, उस पर भी अब तक कोई निर्णय नहीं हुआ है।

3 दिन से उपवास पर बैठे किसान महा पंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने कहा कि एक तरफ केंद्र सरकार आत्मनिर्भर भारत की बात करती है वहीं दूसरी ओर विदेशों से दाल का आयात कर किसानों को उनकी उपजों के दाम से वंचित कर उन्हें घाटे की ओर धकेल रही है। यह स्थिति तो तब है जब सरकार ने 2016-17 के बजट में किसानों की आय 2022 तक दोगुनी करने का संकल्प व्यक्त किया था।

जाट ने कहा कि यह कैसी विडम्बना है कि भारत सरकार विदेशों से दलहन एवं चना का आयात बहुतायत में कर रही है लेकिन देश के किसानों का चना नहीं खरीद रही है। सरकार किसानों को कोरोना काल में भटकने को छोड़ रही है। पिछले 11 वर्षों में सरकार ने विदेशों से 1,55,000 करोड़ रुपये से 446.1 लाख टन दालों को विदेशों से मंगाने के लिए खर्च किये हैं। इसी प्रकार इन्हीं 11 वर्षों में विदेशों से 28.7 लाख टन चना भी मंगाया गया है। इससे देश में चने सहित अन्य दलहनों के भाव गिरे हैं, फिर सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद बंद कर किसानों को घाटे की ओर धकेल रही है।

आश्चर्य यह है कि सरकार के आकलन के अनुसार देश में दालों का उपभोग लगभग 23 मिलियन टन है I वर्ष 2016-17, 2017-18, 2018-19 में तो दलहनों का उत्पादन 23 मिलियन टन से अधिक हुआ, तब भी सरकार ने तीन वर्षों में दालों के आयात की अनुमति प्रदान की है I चने की दाल के विकल्प के रूप में विदेशों से पीली दाल का तीन वर्षों 2016-17, 2017-18, 2018-19 में 69 लाख टन का आयात किया है।

अपने ट्रैक्टरों के साथ उपवास स्थल पर बैठे कानाराम, भंवरलाल यादव , नारायण स्याक, राम सहाय, जगदीश प्रजापति, अमराराम बंजारा आदि किसानों ने भी बताया कि सरकार ट्रैक्टरों को आन्दोलन से हटाने के लिए बहकाने में लगी है । सरकार आन्दोलन को कुचलने का प्रयास कर रही है लेकिन किसान अपनी मांग मनवा कर ही धरना स्थल से हटेंगे।

(मदन कोथुनियां स्वतंत्र पत्रकार हैं और आजकल जयपुर में रहते हैं।)

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