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भगवान के मुख पर लहू का धब्बा—!

(डेरा मुखिया राम रहीम को सलाखों के पीछे भेजने में पीड़ित साध्वियों, सीबीआई और कोर्ट के अलावा जिस चौथे शख्स की सबसे अहम भूमिका थी वो हैं पत्रकार रामचंद्र छत्रपति। उन्होंने ही सबसे पहले इस मामले का खुलासा किया था। और इसे अपने पेपर में जगह दी थी। बाद में उन्हें इसकी कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। पेश है उनके ऊपर केंद्रित पत्रकार पुष्पराज का एक लेख जो उन्होंने कुछ दिनों पहले लिखा था।-संपादक)

क्या सिर्फ सच लिखने की जिद किसी लोकतांत्रिक देश में अक्षम्य अपराध हो सकता है और इस अपराध में आप मारे जा सकते हैं—-? आप इसे एक किंवदंती कह सकते हैं कि एक मुफस्सिल पत्रकार ने सच को आधार और कलम को टेक बनाकर एक बार व्यवस्था को हिलाने की कोशिश की थी। 21 नवम्बर 2002 को हरियाणा के सिरसा शहर में झूठ नहीं लिखने के जुर्म में मारे गये पत्रकार रामचंद्र छत्रपति हर बार जिंदा होते रहेंगे, जब आप अपनी कलम से सच और झूठ का फर्क करना चाहेंगे। वे किसी चैनल के चमकते हुए पत्रकार नहीं थे, उन्होंने कभी प्रधानमंत्री जी के साथ हवाई यात्रएं नहीं की थीं, उन्हें कभी पत्रकारिता का कोई पुरस्कार नहीं मिला था लेकिन उन्होंने भारतीय पत्रकारिता को नयी लीक दी है।
हम उनके बारे में लिखते हुए गौरव का अहसास कर रहे हैं। क्या आप शहीद पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की लीक पर खड़ा होने के लिए तैयार हैं?

शहीद छत्रपति ने ‘सच्चा सौदा डेरा’ नामक धार्मिक अड्डे को पहली बार ‘झूठा सौदा डेरा’ साबित करने की कोशिश की। अरबों की अकूत संपदा, सत्ता की शह और लाखों धर्मान्ध भक्तों की जड़ आस्था पर टिके सच्चा सौदा डेरा के छद्म को पहली बार छत्रपति ने मजबूत शिकस्त दी। खेती और किसानी की कमाई से एक कृषक पत्रकार ने शायद पहली बार एक दैनिक अखबार प्रकाशित करने का सपना देखा और चार पन्ने का ‘पूरा सच’ 2 फरवरी 2000 से सिरसा से प्रकाशित हो गया।

डेरा प्रमुख गुरमीत ने करोड़ों के कारोबार, अरबों की संपदा का स्वामित्व रखते हुए खुद को स्वयंभू भगवान की तरह पेश किया। डेरामुखी, संत-महाराज, राम-रहीम और हुजूर भगवान जैसे अलंकार की डेरा प्रमुख ने मीडिया को नसीहत दी। डेरा की ओर से उनके खिलाफ कुछ भी नहीं लिखने की खुली चेतावनी दी गयी पर ‘पूरा सच’ ने धर्म की सौदागिरी और डेरा प्रमुख की करतूतों के खिलाफ हर हाल में सच लिखने की जिद ठान ली।

30 मई 2002 को ‘पूरा सच’ में एक गुमनाम साध्वी के पत्र को आधार बनाकर एक खबर छपी, जिसमें डेरा प्रमुख के साध्वियों के साथ यौन संबंध का पर्दाफाश किया गया। अनाम साध्वी का पत्र भारत के राष्ट्रपति, तत्कालीन प्रधानमंत्री और मानवाधिकार आयोग को प्रेषित था। ‘पूरा सच’ हरियाणा-पंजाब में अखबार की बजाय पर्चा की तरह बंटने लगा और इस खबर ने डेरा प्रमुख का मुखौटा हटा दिया। डेरा प्रमुख ने ‘पूरा सच’ को अपना शत्रु घोषित कर दिया और धर्मांन्ध डेरा भक्त सड़क पर पागलों की तरह उधम मचाने लगे। उन जिराक्स केन्द्रों पर हमले होने लगे, जहाँ से ‘पूरा-सच’ की छाया प्रति वितरित हो रही थी। आप कह सकते हैं अनाम साध्वी के पत्र को आधार बनाकर खबर प्रकाशित कर ‘पूरा सच’ ने पत्रकारीय मानदंडों का उल्लंघन किया था। लेकिन ‘पूरा सच’ में प्रकाशित पत्र की प्रासंगिकता तब ज्यादा बढ़ गयी, जब सितम्बर 2002 में पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने अनाम साध्वी के पत्र को आधार मानकर सच्चा सौदा डेरा के खिलाफ सीबीआई जाँच का आदेश दे दिया। डेरा की पोल खुलने लगी तो खुलती ही गयी और खलबली डेरा के अन्दर भी मची। डेरा की दस सदस्यीय प्रबंधकारिणी परिषद का सदस्य रणजीत अपनी साध्वी बहन के साथ अचानक डेरा से भाग निकला।
डेरा प्रमुख को डेरा के भीतर का यह विद्रोह रास नहीं आया और डेरा के गुंडों ने डेरा से भागे साध्वी के भाई व अपने विश्वस्त साधु रणजीत की हत्या कर दी। साध्वी विद्रोह व सीबीआई जाँच के बाद डेरा प्रमुख को पक्का यकीन हो गया कि डेरा के खिलाफ जो कुछ भी हो रहा है, वह छत्रपति के कारण ही हो रहा है और अब अंदर-बाहर उभरते विद्रोह-जनाक्रोश से बचने का एक ही उपाय है, डेरा के सबसे बड़े शत्रु रामचंद्र छत्रपति का नामो-निशान मिटा दिया जाए। 24 अक्टूबर 2002 की रात डेरा के अधिकृत गुंडों ने छत्रपति के घर में घुसकर उन्हें गोली मारी और बुरी तरह घायल छत्रपति की 28वें दिन 21 नवम्बर को दिल्ली के अपोलो अस्पताल में मौत हो गयी।

कृषक पत्रकार रामचंद्र छत्रपति ने मरने से पहले मृत्यु शैया से अपने पुत्र अंशुल छत्रपति से कहा था- ‘आप भी मारे जा सकते हो, लेकिन कभी डरना मत। ‘पूरा सच’ कभी बंद नहीं होगा। एक के बाद दूसरा भाई शहीद होगा। जब तुम दोनों भाई मार दिये जाओगे, फिर कोई तीसरा इस कतार में खड़ा होगा। वह मेरा बेटा नहीं ‘पूरा सच’ का सच्चा साथी होगा। 10 नवम्बर 2003 को पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने पत्रकार छत्रपति की हत्या और साध्वी के भाई रणजीत की हत्या के मामले की सीबीआई जाँच का आदेश जारी किया। डेरा के खिलाफ जारी सीबीआई के सभी जाँच सुप्रीम कोर्ट ने जब रोक दिये तो मशहूर न्यायविद् (पूर्व न्यायाधीश) राजेन्द्र सच्चर ने छत्रपति की हत्या के खिलाफ जारी सीबीआई जाँच रोकने की वजह सुप्रीम कोर्ट से जानने की कोशिश की। राजेन्द्र सच्चर की पहल से वर्षों रुकी सीबीआई जाँच फिर से गतिशील हुयी। सीबीआई ने अनाम साध्वी के पत्र, छत्रपति और साध्वी के भाई की हत्या सहित डेरा के खिलाफ जारी तीनों मामले की जांच पूरा कर 31 जुलाई 2007 को पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में चार्जशीट दायर किया।
सीबीआई ने तीन मामलों की एक साथ दी गयी जाँच रिपोर्ट में डेरा प्रमुख गुरमीत को दो हत्या का मुख्य साजिशकर्ता और दो बलात्कारों का एकल अभियुक्त साबित किया। सीबीआई के तमाम साक्ष्यों के बावजूद अदालत ने सहायक अभियुक्तों को जेल और मुख्य अभियुक्त डेरा प्रमुख को स्थायी जमानत दे दी।

जिस डेरा प्रमुख को देश की प्रतिष्ठित सर्वोच्च निगरानी संस्था ने तीन-तीन संगीन मामलों की जाँच के बाद हत्या और बलात्कार का मुख्य अभियुक्त प्रमाणित किया हो, उस डेरा प्रमुख को हाईकोर्ट ने जेल की बजाय जमानत क्यों दी है? सीबीआई ने आरोप पत्र में साबित मुख्य अभियुक्त को जेल भेजने के लिए सुप्रीम कोर्ट में क्यों नहीं अपील की? जानकार बताते हैं कि पंजाब-हरियाणा के 35 विधानसभा क्षेत्रों में जीत-हार का समीकरण सच्चा सौदा डेरा के धर्मभीरू भक्तों के वोट बैंक से तय होता है। पिछले विधानसभा में डेरा प्रमुख ने घोषित तौर से कांग्रेस को वोट देने की अपील की थी। क्या यह केन्द्र और राज्य सरकार के साथ आपसी गठबंधन की यह जरूरी शर्त है कि आप हमें वोट दिलाइये, हम हर हाल में आपकी हिफाजत करेंगे। डेरा प्रमुख के खिलाफ सीबीआई का आरोप पत्र दायर होने के बाद अदालत से मिली विशेष राहत में पंजाब-हरियाणा में एक तरह का गलत संदेश प्रसारित हुआ है। न्यायविद, पत्रकार समूह, बुद्धिजीवी और आम समाज में यह मान्यता पक्की होती जा रही है कि डेरा प्रमुख बड़े रसूख वाले हैं, इसलिए हर अपराध के बावजूद उनके लिए इस देश में कोई सजा संभव नहीं है।
देश के प्रचलित मीडिया ने सिख समुदाय के साथ सच्चा सौदा डेरा की तनातनी, रगड़-झगड़ में उलझ कर एक सच के सिपाही पत्रकार के हत्यारे-व्यभिचारी डेरा प्रमुख को क्या रहम कर दिया है? मीडिया घराने के प्रबंधक, संपादक, राय बहादुर पत्रकारों की आवभगत में डेरा का हृदय अक्सर बड़ा हो जाता है। मीडिया की आँखें डेरा की बाहरी चमक में ज्यादा चौंधरा जाती है और सच पीछे छूट जाता है। शहीद पत्रकार की पहली बरसी पर सिरसा में खड़ा होकर मशहूर पत्रकार प्रभाष जोशी ने कहा था-‘पत्रकारिता के सामने आज छोटे-बड़े हिटलर खड़े हैं और हमें इन हिटलरों से भी युद्ध रचना होगा’। हमारी पूरी न्याय व्यवस्था और सरकारें इस समय कटघरे में खड़ी हैं। सीबीआई अगर सच कह रही है तो डेरा प्रमुख को जेल की बजाय जेड श्रेणी की हिफाजत क्यों दी जाये? छत्रपति ने सच कहने के लिए एक अखबार निकाला था। अगर आप उनके सच के साथ खड़े हैं तो अपनी कलम को तलवार बनाइये। इस भगवान के मुख पर लहू का धब्बा लगा है, सच का शत्रु पत्रकार बिरादरी ही नहीं संपूर्ण समाज का शत्रु है।

(पुष्पराज पत्रकार होने के साथ नंदीग्राम डायरी किताब के लेखक हैं।)

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