नई दिल्ली। पिछले हफ्ते मेरठ की एक अदालत ने 23 मई, 1987 को मलियाना में हुए नरसंहार के सभी 41 आरोपियों को बरी कर कर दिया। इस हत्याकांड में कुल 68 मुसलमानों की जान चली गयी थी। इन हत्याओं के पीछे राज्य की पुलिस बटालियन पीएसी का खुला हाथ बताया गया था।
दिलचस्प बात यह है कि यह हत्याकांड मेरठ के हाशिमपुरा में हुए 38 मुसलमानों के नरसंहार के ठीक एक दिन बाद हुआ था। इस कांड में पीएसी ने हिरासत में लिए गए इन मुसलमानों को बेहद ठंडे दिमाग से अपनी गोलियों से भून दिया था। इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने अक्तूबर 2018 में पीएसी के 16 कर्मियों को हत्या का दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
मलियाना की तरह हाशिमपुरा केस में भी निचली अदालत ने सभी अभियुक्तों को छोड़ दिया था। जिसमें उसका कहना था कि पूरे मामले में संदेह के बीज मौजूद हैं।
हाशिमपुरा और मलियाना के हत्याकांड उस समय रचाए गए थे जब फरवरी 1986 में बाबरी मस्जिद का ताला खोले जाने के बाद पूरा मेरठ जिला सांप्रदायिक माहौल में डूब गया था। उस समय गाजियाबाद में एसपी के पद पर कार्यरत रिटायर्ड पुलिस अफसर विभूति नरायण राय का कहना है कि हत्याकांड के पहले महीनों से पूरे जिले में सांप्रदायिक घटनाएं हो रही थीं।
इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए उन्होंने कहा कि ऐतिहासक तौर पर उस इलाके ने ढेर सारे दंगे देखे थे। हाशिमपुरा और मलियाना से ठीक पहले बहुत सारी सांप्रदायिक घटनाओं ने इलाके का माहौल खराब कर दिया था। इस दौरान लगातार छिट-पुट दंगों की घटनाएं हो रही थीं। ऐसे में इस तरह की किसी एक घटना को चिन्हित कर पाना मुश्किल है जिसके चलते ये हालात पैदा हुए हों।
मलियाना केस की ग्राउंड रिपोर्टिंग करने वाले वरिष्ठ पत्रकार कुर्बान अली ने एक ऐसे वाकये को चिन्हित किया जिसमें एक धार्मिक समारोह के दौरान झगड़ा होने के बाद एक पुलिस अफसर द्वारा गोली चलाने की घटना हुई थी। उनका कहना था कि तमाम घटनाओं के साथ यह एक प्रमुख घटना थी जिसने पूरे मामले को यहां तक पहुंचाया।
उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि 18 अप्रैल, 1987 को मेरठ के नौचंदी मेले के दौरान एक स्थानीय इंस्पेक्टर के पटाखों के बीच फंस जाने के बाद गोली चला देने से दो मुस्लिम युवकों की मौत हो गयी थी। और उसके साथ ही पूरे इलाके में हिंसा फैल गयी। अली का कहना था कि उसी दौरान मुसलमानों द्वारा पुरवा शैखलाल के पास स्थित चौराहे पर एक धार्मिक समारोह आयोजित किया गया था जबकि उसके ठीक नजदीक एक हिंदू परिवार द्वारा एक मुंडन समारोह आयोजित किया गया था। गानों को लेकर दोनों पक्षों में बहस शुरू हो गयी और उसने फिर झगड़े का रूप ले लिया।
जैसे ही दंगा फैला प्रशासन ने तुरंत कई जगहों पर कर्फ्यू लगा दिया। और इसके साथ ही शहर में चार सौ से ज्यादा पुलिसकर्मियों को अलग-अलग जगहों पर तैनात कर दिया गया। इस दौरान स्थानीय पुलिस की सहायता के लिए पीएसी की ढेर सारी कंपनियों को बुलाया गया। बावजूद इसके तनाव और हिंसा का दौर जारी रहा।
हाशिमपुरा हत्याकांड
19 मई, 1987 की रात को उस समय स्थिति ज्यादा खराब हो गयी जब लिजारीगेट, लाल कुर्ती, सदर बाजार, सिविल लाइंस के कुछ हिस्सों और मेडिकल कॉलेज समेत तमाम पुलिस थानों के इलाकों में दंगा फैल गया। 22 मई हाशिमपुरा हत्याकांड के दिन जिले में 50 से ज्यादा लोगों की मौत हो गयी थी। 22 मई को पीएसी ने 42-45 मुसलमानों को पकड़ लिया और उन्हें ट्रक में बैठा कर उन्हें दूर ले गयी। और बाद में इन सभी को .303 राइफल से सटाकर गोली मार दी गयी और उसके बाद उनके शवों को हिंडन नदी से निकली गंग नहर में फेंक दिया गया।
मलियाना हत्याकांड
मेरठ शहर से 10 किमी दूर स्थित मलियाना गांव की आबादी उस समय 35000 थी। जिसमें 5000 मुस्लिम थे। इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक हाशिमपुरा हत्याकांड के बाद उसी दिन हथियारों की तलाश के नाम पर पीएसी कर्मियों के साथ दंगाइयों की एक भीड़ गांव पहुंची और उसके साथ ही हिंसा शुरू हो गयी।
हालांकि मलियाना के मुस्लिम बाशिंदों का आरोप है कि पीएसी कर्मियों ने बगैर किसी वजह के महिलाओं, बच्चों और उनके ऊपर गोलियां चलायीं। जबकि उस समय के अधिकारियों का दावा था कि छतों के ऊपर से प्रतिरोध के साथ फायरिंग हो रही थी जिसके चलते पुलिस को कार्रवाई में जाना पड़ा। (27 मई, 1987 इंडियन एक्सप्रेस)
अपनी किताब हाशिमपुरा, 22 मई…में विभूति नरायण राय ने लिखा है कि मलियाना में हिंदू हिंसक भीड़ और पीएसी के कर्मियों ने दर्जनों मुसलमानों की बेरहमी से हत्या कर दी। अंतर केवल इतना था कि हाशिमपुरा की तरह यहां के पीड़ित पुलिस कस्टडी में नहीं थे।1987 में दंगों के दौरान मलियाना हाशिमपुरा से ज्यादा बदनाम हुआ था….
घटना के तीन दिन बाद इंडियन एक्सप्रेस के रिपोर्टरों ने देखा कि मलियाना में लोग बिल्कुल असहाय थे और माहौल बेहद दुख भरा था। उन्होंने लिखा था कि सुबकते इंसान और रोती औरतें और बच्चे समूह में बैठे हुए थे और उनके चेहरों पर भय का माहौल व्याप्त था।
इसके साथ ही रिपोर्टरों को इलाके की घरों की दीवारों पर सैकड़ों गोलियों के निशान दिखे। जिसके बारे में स्थानीय बाशिंदों का कहना था कि वो पीएसी की गोलियों के हैं।
मलियाना और पास की संजय कालोनी, इस्लाम नगर और मुल्तान नगर के 80 से ज्यादा लोग लापता थे। 24 मई तक स्थानीय लोगों ने 16 लोगों को दफनाया था जिन शवों को उन्हें पोस्टमार्टम के बाद सौंपा गया था। वहां इस तरह के भी आरोप लगे थे कि एक दर्जन से ज्यादा शवों को एक कुएं से फेंक दिया गया था और बाद में उसे कीचड़ से ढंक दिया गया।
इस पूरे मामले के चश्मदीद गवाह होने का दावा करने वाले सलीम अकबर सिद्दीकी ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि “जब यह महसूस हो गया कि हम जिंदा रहने वाले नहीं हैं तब दो घंटे बाद हाथों को ऊपर उठाकर हमने समर्पण कर दिया। सभी आदमी, औरतें और बच्चे गांव के तालाब के पास इकट्ठा हो गए थे और अपनी जान की भीख मांग रहे थे।”
सिद्दीकी का कहना था कि इलाके में कभी भी दंगा नहीं हुआ था यहां तक कि बंटवारे के दौरान भी नहीं। उन्होंने कहा कि हम नहीं जानते इस बार क्या हुआ।
एक बुजुर्ग ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि घटना से एक दिन पहले हिंदुओं और मुसलमानों की बैठक हुई थी जिसमें मुसलमानों को भरोसा दिलाया गया था कि कुछ नहीं होगा। आने वाली ईद के लिए दोनों समुदायों के लोगों ने दान दिए थे।
उसी के साथ मलियाना हिंसा के लिए 100 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया था। इंडियन एक्सप्रेस ने रिपोर्ट किया था कि घटना के बाद अधिकारियों ने पीएसी को हटाकर वहां सेना को तैनात करने का फैसला लिया।
( कुमुद प्रसाद जनचौक की सब एडिटर हैं।)
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