हम भारतवासियों को 2014 में हुआ चुनाव अवश्य याद होगा, जब कॉर्पोरेट पूंजी के रथ पर सवार मोदी भारतीय राजनीति के क्षितिज पर धूमकेतु की तरह उभरे और आत्मविश्वास के साथ धड़धड़ाते हुए दिल्ली की गद्दी पर जा बैठे। इस चुनाव में मोदी द्वारा उछाले गए कुछ “जुमले” बहुत लोकप्रिय हुए थे। मोदी ने कहा था कि सत्ता में आएंगे तो “चीन से लाल आंखें” दिखा कर बात करेंगे। दूसरा, पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादी कार्रवाई में मारे जाने वाले हर एक भारतीय के सर के बदले 10 सर लायेंगे।
भारत में दमित इच्छा और गुलाम मानसिकता वाले मध्यवर्ग ने इन हवाई दावों को इस तरह से लपक लिया मानो भारत में कोई चक्रवर्ती सम्राट अवतरित हुआ हो। जो भारत के चारों दिशाओं में स्थित देशों को घुटने पर ला देगा। 2014 का चुनाव अभियान जहां देश में झूठ लफ्फाजी सांप्रदायिकता के त्रिकोण के आधार पर लड़ा जा रहा था।
वहीं विदेश नीति में पड़ोसी देशों के ऊपर वर्चस्व कायम करने के विस्तारवादी दावे को भी चुनावी जुमलों की लड़ी में पिरो दिया गया था। चुनावों के दौरान मोदी के द्वारा झाड़ी गई लफ्फाजियों अब भारत के लिए त्रासदी बनती जा रही हैं।
भाजपा अंधराष्ट्रवाद, सांप्रदायिकता व विस्तारवाद के रास्ते से नागरिकों में अतीत कालीन गौरव को पुनर्स्थापित करने का मिथ्या दंभ भरती रही है। अंध राष्ट्रवादी विचार संघ के राष्ट्र निर्माण के प्रोजेक्ट का स्थायी भाव है। जिससे देश के अंदर लोकतांत्रिक आवाजों का दमन और पड़ोसी देशों पर धौंस कायम किया जा सके। संघ भाजपा की अंधराष्ट्रवादी नीतियों का मोदी शासन के 10 वर्ष बाद हास्यास्पद असर दिखने लगा है।
जब मोदी भारत के सबसे करीबी देश मालदीव के ऊपर टूरिज्म स्ट्राइक पर निकले, तो मोदी के अलग चाल, चरित्र, चलन वाले भक्त इस हवाई युद्ध में जोश के साथ कूद पड़े हैं। जिसमें खासकर फिल्म इंडस्ट्रीज के व्यावसायिक कारोबारी और विदेशी कंपनियों के लोगो टांगे क्रिकेटर्स की भरमार है। (इसमें कई तो दुबई अबूधाबी और कतर में शेखों के मनोरंजन की खातिर पैसे के लिए नृत्य करने के लिए तैयार रहते हैं)।
भाजपा सरकार बनने के बाद मोदी नेपाल की यात्रा पर गये। तो उनकी देहयष्टि देखकर ऐसा लगता था कि ब्रिटिश कालीन कोई बादशाह अपने उपनिवेश में घूमने आया हो। जिससे नेपाली नागरिकों के स्वाभिमान को गहरी चोट लगी थी। कोढ में खाज तो उस समय दिखने लगा जब नेपाल के संविधान निर्माण के समय मोदी के हस्तक्षेप को नेपाली संविधान सभा ने ठुकरा दिया।
मद्धेशियाओं के सवाल पर मोदी और संघ ने नेपाल के नेताओं पर दबाव डालना चाहा, तो स्थिति कितनी खतरनाक हो गई थी, यह हम सब लोगों ने भारत द्वारा अघोषित नाकेबंदी के समय नेपाल को गहरे संकट से जूझते हुए देखा था। जिसका परिणाम हुआ कि भारत का सहोदर माना जाने वाला नेपाल आज चीन के पाले में खड़ा है।
भूटान भारत का संरक्षित देश रहा है, लेकिन मोदी जी के सत्ता में आने के बाद संघी अंध राष्ट्रवाद का दुष्परिणाम यह हुआ कि भूटान स्वतंत्र विदेश नीति के रास्ते पर चल पड़ा है। सार्वभौमराष्ट्र के रूप में अपनी दावेदारी पेश करते भारत से दूर जाकर वह चीन के साथ घनिष्ठ रिश्ता बना चुका है। चीन वहां सड़क निर्माण से लेकर ढेर सारी विकास योजनाओं पर काम कर रहा है।
यहां तक कि जिस डोकलाम पर हमने चीन से टकराव मोल लिया था। ऐसी खबरें आ रही हैं कि उसे भी भूटान ने चीन के हवाले कर दिया है, जहां चीन ने बस्तियां बसा ली हैं। चीन उस क्षेत्र में सड़कें तथा अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने में लगा है और भूटान में भारी पूंजी निवेश कर रहा है।
पाकिस्तान हमारा पारंपरिक शत्रु रहा है, जहां से आतंकवाद सहित सीमा पर ढेर सारी घटनाएं होती रही हैं। हिंदुत्व की ताकतें इन घटनाओं को केंद्र कर भारत में सांप्रदायिक उन्माद और मुस्लिम विरोधी अभियान चलाती रहीं। 2014 के चुनाव के समय भक्तों ने ऐसा नैरेटिव गढ़ा था कि मोदी का नाम सुनते ही पाकिस्तान थर-थर कांपने लगा है। मोदी के सत्ता में आने के बाद पाकिस्तान घुटनों के बल आ जाएगा और मोदी उसे बर्बाद करके नष्ट कर देंगे।
स्वयं मोदी दहाड़ मारते हुए कह रहे थे की एक के बदले 10 सर काट कर लाऊंगा, लेकिन परिणाम निकला कि बिना बुलाए मोदी पाकिस्तान के मेहमान बन गए और बिरयानी खाकर डकार मारने लगे।अगर भारत में कोई शांति प्रिय व्यक्ति और संगठन पाकिस्तान के साथ सामान्य संबंध बनाने की बात करे तो उसे पाकिस्तान का एजेंट घोषित कर दिया जाता है।
मोदी के सत्ता में रहते हुए सीमा पर रोज हमारे सैनिक मारे जा रहे हैं। यही नहीं मोदी काल में हमारे दो सैन्य बेसों में आतंकवादी घुस गए। वहां तांडव मचाया। कई जवान शहीद हुए। लेकिन मोदी ने इन हमलों की जांच के लिए आईएसआई के एजेंटों को हमारे सैन्य ठिकानों में जाने की इजाजत दे दी।
संघ के भोंपू गोदी मीडिया और मोदी सरकार के अनुसार पुलवामा में आतंकी हमला पाकिस्तान प्रायोजित था। यहां भी मोदी सर्जिकल स्ट्राइक का प्रहसन करने के अलावा किसी भी पैमाने पर पाकिस्तान की कूटनीति का ठोस जबाव नहीं ढूंढ सके। जिस कारण भक्तों को ताली बजाने का मौका नहीं मिल पा रहा है। 10 वर्ष बाद भी हमारे जवानों की लाश उनके घरों तक राष्ट्रीय झंडे में लिपटी हुई पहुंच रही हैं।
लाल आंखों वाला बादशाह- मोदी ने घमंड के साथ चुनाव में कहा था कि चीन से लाल आंखें करके बात करूंगा और देश की हड़पी गई एक एक इंच भूमि वापस लाऊंगा। उन्होंने कहा था कि मैं जब सत्ता में आऊंगा तो यह करके दिखाऊंगा। (आज के मोदी की गारंटी की तरह)
लेकिन आप जानते हैं कि गलवान में हमारे 40 सैनिकों की शहादत के बाद भी आज तक मोदी के जुबान से चीन शब्द तक नहीं निकला और चीन गलवान से लेकर डोकलाम तक लगातार अपनी शक्ति बढ़ाता जा रहा है। लद्दाख के कई महत्वपूर्ण प्वाइंट उसके कब्जे में चले गए हैं। जहां अभी तक भारतीय सेना पेट्रोलिंग किया करती थी।
डोकलाम के भारतीय इलाके में कई जगह चीन ने बस्तियां बना ली हैं और उस क्षेत्र में इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने में लगा है। लेकिन भारत सरकार चीन से व्यापार बढ़ाने में लगी है और चीनी कंपनियों से प्रधानमंत्री सहायता कोष में भारी धन आ रहा है। चीन के साथ रोज नए-नए समझौते मोदी सरकार और उसके मित्रों द्वारा किये जा रहे हैं। मोदी सरकार की नीतियों के कारण चीन के साथ हमारा व्यापार घाटा बढ़ता गया है।
पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, चीन के अलावा भारत के सभी पड़ोसी देश श्रीलंका, म्यांमार और बांग्लादेश में भी भारत की विदेश नीति ने जिस तरह से मुंह की खाई है, वैसा स्वतंत्र भारत के इतिहास में कभी नहीं हुआ था। चीन ने इन सभी देशों के साथ व्यापारिक, राजनयिक और सामरिक संबंध मजबूत कर लिए हैं।
भारतीय उप महाद्वीप के लगभग सभी देश चीन के साथ खड़े हैं। श्रीलंका में हंबनटोटा बंदरगाह द्वारा चीन हिंद महासागर में अपनी व्यापारिक सामरिक गतिविधियां संचालित कर रहा है, जो भारत के लिए खतरनाक स्थिति है। यह बंदरगाह चीन के नियंत्रण में जाना मोदी सरकार की विदेश नीति की असफलता का स्मारक है।
हिन्द महासागर स्थित श्रीलंका से लगभग 700 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में 1192 टापुओं वाला देश मालदीव है। जिसके सिर्फ 20 द्वीपों पर आबादी है, जो कुल मिलाकर 5 लाख 21 हजार से कुछ ऊपर होगी। मालदीप के ऊपर आए कई संकटों के समय भारत ने उसकी रक्षा की थी, जिस कारण से मालदीव भारत के घनिष्ठ सहयोगी देशों में रहा है।
परंपरा के अनुसार मालदीव की विदेश नीति में भारत को प्रथम स्थान प्राप्त था। जहां करीब 700 भारतीय सैनिक हैं, जो हर मौके पर हेलीकॉप्टर सेवा के अलावा अन्य मदद दिया करते थे। छोटे पड़ोसी देशों के प्रति मोदी सरकार की धौंस धमकी वाली नीति ने इन देशों को भारत से दूर कर दिया है। बड़े भाई वाली हिंदुत्ववादी नीतियों के उलट परिणाम आने लगे हैं।
इस समय वहां जो सरकार है वह “आउट इंडिया” के नारे के साथ सत्ता में आई है। मोहम्मद मोइज्जू भारत विरोध के नारे पर राष्ट्रपति बने हैं। सत्ता में आते ही मोइज्जू ने भारत सरकार को यह संदेश दे दिया कि आप हमारे ऊपर वर्चस्व कायम करने की कोशिश न करें और अपने सैनिक वापस बुला लें।परंपरा रही है कि चुनाव के बाद जो भी मालदीव में राष्ट्रपति बनता रहा है, वह पहले भारत की यात्रा पर जाता था, लेकिन वर्तमान राष्ट्रपति ने चुनाव जीतते ही चीन यात्रा को प्राथमिकता दी।
अखंड भारत जैसे काल्पनिक विस्तारवादी नारों को संघ परिवार लंबे समय से उछालता रहा है, जिससे छोटे पड़ोसी देश सशंकित होते गए। इसका दुष्परिणाम पड़ोसी देशों के साथ राजनीतिक, कूटनीतिक, व्यापारिक संबंधों के बिगड़ने और तनावपूर्ण होने में दिखाई दे रहा है। ऐसा लगता है कि जिस तरह से देश के अंदर तानाशाही और एक व्यक्ति के हाथ में सत्ता केंद्रित होती गई है, उसी तर्ज पर भारतीय उपमहाद्वीप के पड़ोसी देशों के साथ भी बड़े भाई वाला व्यवहार करने की कोशिश हो रही है।
चूंकि मालदीव की 90% से ज्यादा आबादी मुस्लिम धर्मावलंबी है इसलिए भारत में हो रही घटनाओं का असर मालदीप के नागरिकों पर जरूर पड़ रहा होगा। जिस कारण से वहां भारत विरोधी भावनाएं बढ़ी होंगी। भारत सरकार व्यावहारिक जीवन में धर्मनिरपेक्षता को नकारते हुए हिंदुत्ववादी और वर्चस्ववादी सरकार बन गई है। भारत में तेजी से घट रही घटनाओं ने पड़ोसी देशों खासकर मुस्लिम बहुमत वाले देशों पर गहरा असर डाला है।
भारत विशाल आबादी वाला एशिया का महत्वपूर्ण देश है। जो बहुत बड़ा बाजार है, इसलिए बाजार की मजबूरियों को ध्यान में रखते हुए मुस्लिम देश भारत के साथ संबंधों को सामान्य बनाए दिखते हैं। लेकिन वहां के नागरिक भारत को लेकर आशंकित हैं। चूंकि मालदीव बहुत छोटा देश है, जहां उद्योग और व्यापार नहीं के बराबर है। उसकी अर्थव्यवस्था पर्यटकों के आने पर निर्भर है।
सफेद बालुओं की चादर वाले टापुओं की खूबसूरती नीले जल सागर से घिरे होने के कारण देखते बनती है, इसलिए दुनिया के पर्यटक मालदीव की तरफ आकर्षित होते हैं। मालदीव की अर्थव्यवस्था पर्यटन पर आधारित है। सवा 5 लाख आबादी वाले देश में 2023 में 17.57 लाख से ज्यादा पर्यटक आए, जिसमें दो लाख नौ हजार भारतीय थे।
पर्यटन के बल पर ही मालदीव की अर्थव्यवस्था भारतीय उप महादीव में सबसे बेहतर होने के साथ प्रति व्यक्ति आय सबसे ऊंची है। इस कारण समृद्ध और खूबसूरत राजधानी माले दुनिया को आकर्षित करती है।
मालदीव की राजनीति भारत समर्थन और भारत के विरोध के दो ध्रुवों पर केंद्रित हो चुकी है। भारत समर्थक पूर्व राष्ट्रपति सालेह के बाद आए मोहम्मद मोइज्जू चीन समर्थक माने जाते हैं।
भारतीय विदेश नीति के संचालक अखंड और विशाल भारत के दंभी दृष्टिकोण से मुक्त नहीं हो पा रहे हैं। इसलिए वे विश्व के यथार्थ को समझने में अक्षम हैं। वे विदेश नीति को गले लगने, नमस्ते करने, झूला झुलाने जैसे इवेंट से बाहर जाकर नहीं देख पाते। विश्व पूंजीवाद के नेता यथार्थवादी और क्रूर होते हैं। इस बात को हमारे अल्प बुद्धि व आत्म मुग्ध राजनेता समझने में अक्षम हैं।
साम्राज्यवादी पूंजी के सबसे क्रूर और लुटेरे दौर में विदेश नीति उत्सव या भोज द्वारा निर्धारित नहीं होती। इसका प्रमाण हमें जी-20 के सम्मेलन के तत्काल बाद जो बिडेन द्वारा वियतनाम में जाकर भारत के खिलाफ दिए गए बयानों से स्पष्ट हो जाता है।
इस वैश्विक यथार्थ में मालदीप में विदेशी ताकतों को हस्तक्षेप करने का मौका मिला और मालदीव अपनी सुरक्षा के लिए चीन के पाले में चला गया। एक-एक कर भारतीय उपमहाद्वीप के देश चीन के साथ व्यापारिक, सामरिक रिश्ते मजबूत करते जा रहे हैं। जो मोदी सरकार की अयोग्यता व असफलता का प्रमाण है। जिसे देश ने फिलिस्तीन इजरायल युद्ध के दौरान सरकार की दिशाहीन विदेश नीति में देखा था।
मोदी जी कहां से चले थे और कहां पहुंच गए। 10 वर्षों में उन्होंने भारत के पड़ोसी देशों को भारत से दूर छिटका दिया है। जहां वह एक के बदले 10 सर लाने वाले थे और लाल आंखों से चीन से बात करने वाले थे, वहीं हमारे देश में एक तहसील से भी कम आबादी वाले देश मालदीव के साथ टूरिज्म युद्ध में उतर पड़े हैं।
उनके भक्त हमेशा की तरह ताली पीटते हुए ट्विटर पर बायकॉट मालदीव युद्ध लड़ रहे हैं। शायद विदेश नीति के पैमाने पर इससे हास्यास्पद स्थिति आजादी के बाद हमारे देश भारत की कभी नहीं हुई थी। जो संकेत दिख रहे हैं आगे भी ऐसा ही होने वाला है। आगे आगे देखिए होता है क्या?
(जयप्रकाश नारायण किसान नेता और स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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