मैनपुरी (किशनी)। प्राथमिक विद्यालय चितायन में सामाजिक भेदभाव का एक निंदनीय मामला सामने आया है। विद्यालय में शनिवार को मिड-डे मील (एमडीएम) तैयार करने की जिम्मेदारी निभाने वाली रसोइयों ने अनुसूचित जाति की एक छात्रा द्वारा आलू काटे जाने के कारण खाना बनाने से इनकार कर दिया। इस घटना ने न केवल शिक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि समाज में गहराई तक जमी जातिगत भेदभाव की मानसिकता को भी उजागर किया है।
घटना का खुलासा
शनिवार को विद्यालय में बच्चों को खुद मिड-डे मील बनाते हुए देखा गया। घटना का वीडियो वायरल होने के बाद मामला प्रकाश में आया। रविवार को प्रशासन ने इस घटना को गंभीरता से लेते हुए जांच के आदेश दिए। खंड शिक्षाधिकारी (बीईओ) सर्वेश यादव स्वयं विद्यालय पहुंचे और घटना की जांच की।
खंड शिक्षाधिकारी ने विद्यालय की शिक्षिका, रसोइया कमलेश और सुशीला समेत बच्चों से भी अलग-अलग पूछताछ की। पूछताछ के दौरान एक चौंकाने वाली सच्चाई सामने आई। रसोइयों ने स्वीकार किया कि अनुसूचित जाति की छात्रा द्वारा आलू काटे जाने पर उन्होंने खाना बनाने से इनकार कर दिया और विद्यालय छोड़कर चली गईं।
इंचार्ज प्रधानाध्यापक द्वारा इस मामले को स्पष्ट करने के लिए एक ऑडियो क्लिप भी जांच अधिकारियों को सौंपी गई। इस क्लिप में प्रधानाध्यापक और रसोइया कमलेश के बीच की बातचीत दर्ज है। बातचीत में रसोइया स्पष्ट तौर पर कहती हैं कि वह इसलिए खाना नहीं बना पाईं क्योंकि एक अनुसूचित जाति की छात्रा ने आलू काटे थे।
जांच के दौरान यह स्पष्ट हुआ कि विद्यालय में मिड-डे मील की व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई थी। रसोइयों के चले जाने के बाद बच्चों को खुद ही खाना बनाने के लिए मजबूर होना पड़ा। यह स्थिति बेहद गंभीर और चिंताजनक है, क्योंकि मिड-डे मील योजना का उद्देश्य बच्चों को पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराना है, लेकिन इस घटना में न केवल बच्चों को भोजन से वंचित रखा गया बल्कि उन्हें ऐसी स्थिति में डाल दिया गया जहां उन्हें खाना बनाने का कार्य खुद करना पड़ा।
खंड शिक्षाधिकारी ने इस घटना को गंभीर मानते हुए कहा कि रसोइयों और शिक्षिका के लिखित बयान दर्ज कर लिए गए हैं। घटना की विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर उच्चाधिकारियों को सौंपी जाएगी। उन्होंने आश्वासन दिया कि दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी और ऐसी घटनाओं को दोहराने से रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएंगे।
सामाजिक भेदभाव पर बड़ा सवाल
यह घटना केवल विद्यालय के प्रशासनिक कुप्रबंधन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज में गहराई तक मौजूद जातिगत भेदभाव की एक दुखद तस्वीर प्रस्तुत करती है। अनुसूचित जाति के बच्चों के साथ इस तरह का व्यवहार न केवल उनकी शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन है बल्कि उनके आत्मसम्मान और सुरक्षा को भी आघात पहुँचाता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे मामलों में कड़ी कार्रवाई के साथ-साथ सामाजिक जागरूकता अभियान चलाए जाने की जरूरत है। शिक्षा व्यवस्था को जातिगत भेदभाव से मुक्त करना समय की मांग है ताकि सभी बच्चों को समान अवसर और सम्मान मिले।
मैनपुरी की यह घटना हमारे समाज के उन अंधेरे पहलुओं को सामने लाती है जिन्हें हम अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं। बच्चों की शिक्षा और उनके सम्मान की सुरक्षा की जिम्मेदारी केवल प्रशासन की नहीं, बल्कि पूरे समाज की है। ऐसे मामलों में दोषियों पर सख्त कार्रवाई और बच्चों के हितों की सुरक्षा सुनिश्चित करना आवश्यक है ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।
(जनचौक की रिपोर्ट)
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