सत्ता के नशे में बेसुध शिवराज ने पार की संवैधानिक लक्ष्मण रेखा!

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सत्ता के नशे में भाजपा की राज्य सरकारें कानून व्यवस्था से लेकर संवैधानिक प्रावधानों का भी उल्लंघन करने से बाज नहीं आ रही हैं। उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को बुधवार 22 जुलाई, 20 को हिदायत दिया है कि विकास दुबे एनकाउंटर जैसी गलती भविष्य में न हो। हालांकि विकास दुबे कांड में भी एमपी सरकार की इस प्रकार संलिप्तता है कि उसके अधिकारियों ने विकास दुबे को सीआरपीसी के प्रावधानों का उल्लंघन करके बिना ट्रांजिट रिमांड के यूपी पुलिस को सौंप दिया।

यदि ट्रांजिट रिमांड पर सौंपा होता तो शायद एनकाउंटर न होता। अब उच्चतम न्यायालय में एक याचिका से यह सामने आया है कि दल बदलुओं को समायोजित करने के नाम पर एमपी में संविधान का घोर उल्लंघन किया गया है और शिवराज मंत्रिमंडल में 4 मंत्री अधिक बना दिए गये हैं ।यही नहीं महामहिम राज्यपाल ने भी शपथ दिलाने के पहले यह सुनिश्चित नहीं किया कि निर्धारित संवैधानिक कोटे से अधिक मंत्री तो नहीं बनाए जा रहे हैं।

उच्चतम न्यायालय में अनुच्छेद 32 के तहत दायर याचिका में मुद्दा उठाया गया है कि हाल ही में शिवराज सरकार ने 28 मंत्रियों की नियुक्ति की है, जबकि पूर्व में पहले से ही छह मंत्री नियुक्त किए गए थे। इस लिहाज से मध्य प्रदेश के मंत्रिमंडल में सदस्यों की कुल संख्या 34 हो गई है। यह संविधान के अनुच्छेद 164 1 ए का स्पष्ट उल्लंघन है। अनुच्छेद 164 ए के तहत विधानसभा की कुल सदस्यों के 15 प्रतिशत सदस्य ही मंत्री बनाए जा सकते हैं। जिसका कुल आंकड़ा सिर्फ 30 मंत्रियों का होता है।

मध्य प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष एनपी प्रजापति ने शिवराज मंत्रिमंडल के आकार को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। उन्होंने कोर्ट में याचिका दायर कर सवाल उठाया है कि शिवराज मंत्रिमंडल का आकार विधानसभा में सदस्यों की संख्या को देखते हुए वैधानिक व्यवस्था के खिलाफ है। इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्य के सीएम शिवराज सिंह चौहान और मुख्य सचिव को नोटिस जारी किया है।

मध्य प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष एनपी प्रजापति ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर शिवराज मंत्रिमंडल के विस्तार का मुद्दा उठाया है। याचिका में कहा गया है कि वर्तमान विधानसभा सदस्यों की संख्या के मुताबिक 34 मंत्री नहीं बनाए जा सकते। विधानसभा में जितनी सदस्य संख्या है उसके हिसाब से विधानसभा सदस्यों की 15% से ज्यादा मंत्री नहीं बनाए जा सकते। ये वैधानिक व्यवस्था है। लेकिन शिवराज मंत्रिमंडल में तय संख्या से ज़्यादा मंत्री बनाए गए हैं। प्रजापति ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। एनपी प्रजापति की इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्य के सीएम शिवराज सिंह चौहान और मुख्य सचिव को नोटिस जारी किया है।प्रजापति की ओर से सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और विवेक तनखा ने पक्ष रखा।

मध्यप्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष नर्मदा प्रसाद प्रजापति ने याचिका दायर करते हुए मंत्रिमंडल विस्तार को चुनौती दी है। याचिकाकर्ता की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पक्ष रखने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और विवेक तनखा ने दलील दी कि प्रदेश में हुआ मंत्रिमंडल विस्तार संविधान के अनुच्छेद 164 1ए का स्पष्ट उल्लंघन है। आर्टिकल 32 के तहत दायर याचिका में मुद्दा उठाया गया है कि हाल ही में शिवराज सरकार ने 28 मंत्रियों की नियुक्ति की है, जबकि पूर्व में पहले से ही छह मंत्री नियुक्त किए गए थे। इस लिहाज से मध्य प्रदेश में मंत्रिमंडल में सदस्यों की कुल संख्या 34 हो गई है।

दरअसल 164 ए के तहत विधानसभा की कुल सदस्यों के 15 प्रतिशत सदस्य ही मंत्री बनाए जा सकते हैं, जिसका कुल आंकड़ा सिर्फ 30 मंत्रियों का होता है। बावजूद इसके चार मंत्री ज्यादा बना दिए गए हैं। मंत्रिमंडल गठन के साथ ही यह बात उठ रही थी कि नियम के विपरीत जाते हुए सदस्यों की संख्या ज्यादा कर दी गई है जो संविधान का उल्लंघन है।

वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक तनखा के मुताबिक संविधान के अनुच्छेद 164 1ए के तहत किसी भी विधानसभा में मंत्रिमंडल की संख्या उसकी वर्तमान विधानसभा विधायकों की संख्या के 15 प्रतिशत से ज्यादा की नहीं होनी चाहिए। यानी संख्यात्मक रूप से समझें तो अगर विधानसभा में वर्तमान में 230 विधायक होते तो कुल 34 मंत्री बनाए जा सकते थे। लेकिन जिस दिन मंत्रिमंडल का गठन हुआ, उस वक्त 22 विधायक इस्तीफा दे चुके थे, जबकि 2 सीटों पर उपचुनाव होने थे। ऐसे में 206 विधायकों के मत से मंत्री परिषद की कुल संख्या 30.9 होनी चाहिए।

अभी हाल में शिवराज कैबिनेट में मंत्रियों को पद का बंटवारा हुआ है। बीजेपी के अंदर से भी कुछ नाराजगी की आवाजें आईं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के खेमे को ज्यादा तरजीह दी गई। सिंधिया के करीबी माने जाने वाले गोविंद सिंह राजपूत को राजस्व और परिवहन विभाग दिया गया। ऐसे ही इमरती देवी को महिला एवं बाल विकास विभाग का मंत्री बनाया गया। कमलनाथ सरकार में भी गोविंद सिंह राजपूत और इमरती देवी के पास इन्हीं विभागों की जिम्मेदारी थी। कमलनाथ सरकार में तुलसी सिलावट प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री थे, लेकिन शिवराज सरकार में उन्हें जल संसाधन विभाग की जिम्मेदारी सौंपी गई। स्वास्थ्य मंत्रालय की जिम्मेदारी सिंधिया के करीबी डॉ प्रभुराम चौधरी को ही सौंपी गई है। इससे पहले प्रभुराम चौधरी कमलनाथ सरकार में बेसिक शिक्षा मंत्री थे।

इस याचिका पर मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे और जस्टिस ए एस बोपन्ना और वी रामसुब्रमण्यम की पीठ ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनकी सरकार को नोटिस जारी किया है। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, विवेक तनखा और अधिवक्ता वरुण तनखा और सुमेर सोढ़ी ने प्रजापति की पैरवी करते हुए कहा कि मध्य प्रदेश मंत्रिमंडल में 28 मंत्रियों की नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद 164 (1 ए) का स्पष्ट उल्लंघन है। पीठ ने कहा कि वह नोटिस जारी कर रही है और मामले की सुनवाई करेगी।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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