Wednesday, April 24, 2024

इलाहाबाद में अधिवक्ता उतरे सीएए के प्रदर्शनकारियों के समर्थन में

इलाहाबाद के मंसूर पार्क में सीएए और एनआरसी के खिलाफ चल रहे धरना प्रदर्शन के समर्थन में अधिवक्ता भी आ गए हैं। धरने पर बैठे लोगों के खिलाफ करेली और खुल्दाबाद थाने ने दफा 149 के तहत नोटिस दिए जाने पर वकीलों ने सवाल उठाया है।

उन्होंने कहा कि यह धरना किसी भी लिहाज़ से गैरकानूनी नहीं है। शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन करना संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत हर नागरिक का मौलिक अधिकार है। धारा 144 भी इस अधिकार का हनन नहीं कर सकती। वकीलों का कहना है कि धारा 144 का प्रयोग नागरिकों को मिले इस संवैधानिक अधिकार का हनन करने और अभिव्यक्ति की आज़ादी पर प्रतिबंध लगाने के लिए किया जाना अन्यायपूर्ण है। उन्होंने दफा 144 लगाने को अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक बताया।

वकीलों ने कहा कि हाल ही में माननीय सुप्रीम कोर्ट की फुल बेंच ने इंटरनेट बंदी और धारा 144 पर अपना फैसला सुनाते हुए कहा है कि धारा 144 का इस्तेमाल लोगों की अभिव्यक्ति, मतभिन्नता रखने और शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक प्रदर्शन के अधिकार का दमन करने के लिए कभी नहीं किया जा सकता। धारा 144 लागू किए जाने की परिस्थितियों का स्पष्ट उल्लेख करते हुए यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि धारा 144 नागरिकों के मौलिक अधिकारों में कोई कटौती न करे और जब तक अपरिहार्य न हो धारा 144 का उपयोग नहीं किया जा सकता।

उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के इस दिशा निर्देश के अनुसार धारा 144 के अंतर्गत दिया गया आदेश, यदि कोई हो, अनौचित्यपूर्ण है। यह और कि ऐसा कोई आदेश किसी को भी नहीं दिया या दिखाया गया जो कि धारा 134 के अंतर्गत अनिवार्य है। अधिवक्ताओं ने कहा कि यह धरना एक पार्क के अंदर ऐसी जगह पर हो रहा है, जहां किसी को किसी प्रकार की कोई असुविधा नहीं हो रही है, न ही इससे यातायात बाधित हो रहा है।

उन्होंने कहा कि ऐसा कोई नियम नहीं है कि कोर्ट में मामला विचाराधीन रहने पर कोई शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन नहीं कर सकता। बल्कि इस संदर्भ में पुलिस प्रशासन की निष्पक्षता पर हमें संदेह होता है, क्योंकि उनके तर्क ‘कोर्ट में मामला विचाराधीन होने’ और ‘धारा 144’ लागू होने के बावजूद CAA, NRC और NPR के पक्ष में लगातार शहर और प्रदेश में जुलूस निकल रहे हैं। रैलियां की जा रही हैं, लेकिन उनमें से किसी के पास भी ऐसी कोई नोटिस नहीं भेजी गई है।

उन्होंने कहा कि नोटिस में यह कहना कि पुलिस के संज्ञान में आया है कि मंसूर पार्क के धरने में ‘कुछ असामाजिक तत्व घुस गए हैं’, यह सरासर ग़लत है। यह वक्तव्य शांतिपूर्ण ढंग से आंदोलन चला रहे लोगों को अपमानित करने वाला है और एक जायज लोकतांत्रिक आंदोलन को बदनाम करने की कोशिश है। हम नोटिस में लिखी इस बात की निंदा और पुरजोर विरोध करते हैं।

इस मंशा के तहत ही धरने को सुचारू रूप से चलाने वाले साथियों के खिलाफ झूठी एफआईआर दर्ज करने की कार्रवाई भी पुलिस द्वारा शुरू की जा चुकी है। दिनांक 26-1-2020 को इस आंदोलन में शामिल दो लोगों के खिलाफ खुल्दाबाद थाने के अंदर बिना किसी जांच के धारा 354, 323, 504, 506 के तहत मुकदमा दर्ज किया जा चुका है, जो कि अन्यायपूर्ण है।

अधिवक्ताओं ने यह बातें विरोध प्रदर्शन के बाद एडीएम सिटी को दिए ज्ञापन में भी कहीं। उन्होंने कहा कि महोदय आप अवगत होंगे कि हमारा देश एक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक देश है और हमारे संविधान के अनुच्छेद 14 के अनुसार धर्म, जाति, लिंग, जन्म स्थान, आदि के आधार पर विभेद करने वाला कोई कानून या नीति देश में नहीं लागू की जा सकती।

किंतु वर्तमान नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 धर्म के आधार पर विभेदकारी है अतः असंवैधानिक है। इसीलिए देशभर की जनता इसके खिलाफ आंदोलनरत है। लोकतांत्रिक आंदोलन किसी लोकतंत्र की मजबूती की निशानी होती है और लोकतंत्र हमेशा इनसे मजबूत होता है किंतु जनांदोलनों का पुलिस के द्वारा दमन निश्चित ही लोकतंत्र को कमजोर करता है।

उन्होंने कहा कि मंसूर पार्क में शांतिपूर्वक धरने पर बैठे लोगों के खिलाफ पहले एफआईआर दर्ज करना और फिर नोटिस भेज कर सामान्य लोगों में दहशत पैदा करना, फिर बगैर जांच किए फर्जी मुकदमे दर्ज करना सरासर असंवैधानिक और गैरकानूनी है। अधिवक्ताओं ने मांग की कि आप करेली और खुल्दाबाद थाने द्वारा भेजी गई उक्त नोटिसों को रद्द करते हुए शांतिपूर्ण प्रदर्शन में पुलिस को बेजा हस्तक्षेप से बाज आने का निर्देश दें ताकि शांति कायम रहे। साथ ही शांतिपूर्ण तरीके से धरने में शामिल लोगों पर बिना किसी जांच के फर्जी मुकदमे दर्ज करने का गैरकानूनी काम तत्काल रोका जाए।

प्रदर्शन में केके राय, राजवेंद्र सिंह, फ़रमान अली, माता प्रसाद पाल, सीमा आजाद, विश्वविजय, काशान सिद्दीकी, लाल जी यादव, संतोष यादव, संदीप गौतम, अली अहमद, मुंशी लाल बिंद,  जफर अहमद, मो. शौबा, मो. फहीम, शमशुल, धीरेन्द्र यादव, महाप्रसाद, मुकेश गौतम, अली अकबर अंसारी, क़मर उज़ जमां, शाहिद अख्तर, गुफरान अहमद, नफीस अहमद खान, असद हामिद, वसी अहमद, रियाजत अली सिद्दकी, बीयू जमन, नौशाद खान, संतोष सिंह, सुनील मौर्य, नागरिक समाज के ओडी सिंह, शाह आलम, आशीष मित्तल, आनंद मालवीय, डॉ. कमल उसरी, अमित समेत दर्जनों अधिवक्ता शामिल हुए।

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