विधानसभा सत्र: केंद्र और राज्यपाल के गैर-जिम्मेदाराना रवैए से मणिपुर में संवैधानिक संकट

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नई दिल्ली। पिछले तीन महीनों से मणिपुर सरकार समर्थित हिंसा से तड़प रहा है। पहाड़ पर रहने वाले कुकी-जो आदिवासियों के जानमाल पर सरकार संरक्षित अपराधी हमला कर रहे हैं। राज्य में खूनी खेल का अंतहीन सिलिसला चल रहा है। अब मणिपुर हिंसा और खूनी खेल के साथ संवैधानिक संकट के दौर में प्रवेश कर गया है। इस संकट से उबरने के लिए अब केंद्र सरकार के पास मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह सरकार को बर्खास्त करके राज्य को संवैधानिक संकट से बचाने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा है।

नियमों के मुताबिक विधानसभा और लोकसभा का सत्र 6 महीने में कम से कम एक बार आयोजित किया जाना चाहिए। मणिपुर विधानसभा का पिछला सत्र मार्च में अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हुआ था। इस लिहाज से अगले विधानसभा का सत्र 2 सितंबर के भीतर बुला लिया जाना चाहिए। लेकिन इसके लिए एक विधायी प्रक्रिया है। सदन के सदस्यों को सत्र शुरू होने की तिथि की सूचना 15 दिन पहले देनी होती है। सूचना भी राज्य के राज्यपाल के माध्यम से दी जाती है।

सूचना के मुताबिक मणिपुर सरकार को विधानसभा सत्र बुलाने में कोई परेशानी नहीं है। राज्य कैबिनेट ने 4 अगस्त को राज्यपाल अनुसुइया उइके को पत्र भेजकर 21 अगस्त से विधानसभा सत्र बुलाने की सिफारिश की थी। यानि सोमवार से विधानसभा का सत्र शुरू होना था। लेकिन राज्यपाल ने सत्र शुरू करने की सिफारिश नहीं मानी। अब सवाल उठता है कि किसी भी राज्य में राज्यपाल संवैधानिक प्रमुख और केंद्र का प्रतिनिधि होता है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या केंद्र सरकार के दबाव या निर्देश पर राज्यपाल अनुसुइया उइके ने विधानसभा सत्र बुलाने की मंजूरी नहीं दी। राजभवन के अधिकारी इस पर मौन हैं। लेकिन यदि 2 सितंबर तक विधानसभा का सत्र नहीं बुलाया गया तो राज्य में संवैधानिक संकट खड़ा हो जायेगा।

कांग्रेस महासचिव एवं संचार विभाग के प्रमुख जयराम रमेश ने कहा कि राज्यपाल अनुसुइया उइके मणिपुर की सरकार के आग्रह के बावजूद विधानसभा का विशेष सत्र नहीं बुला रही है। जो इस बात का प्रमाण है कि प्रदेश में संवैधानिक तंत्र ध्वस्त हो गया है। उन्होंने कहा कि ‘‘27 जुलाई को मणिपुर की सरकार ने प्रदेश के राज्यपाल से अगस्त के तीसरे सप्ताह में विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने का अनुरोध किया था। चार अगस्त को राज्यपाल से एक बार फिर विशेष सत्र बुलाने का अनुरोध किया गया, लेकिन इस बार एक निश्चित तिथि यानी 21 अगस्त को सत्र बुलाने के लिए कहा गया। लेकिन विधानसभा का सत्र बुलाने की मंजूरी नहीं मिली।’’

मणिपुर के अधिकारियों का कहना है कि राज भवन की तरफ से इस संबंध में अभी तक ‘कोई अधिसूचना’ जारी नहीं किए जाने के कारण भ्रम की स्थिति बनी हुई है। एक अधिकारी ने कहा, “पिछला विधानसभा सत्र मार्च में अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया गया था। यह संवैधानिक बाध्यता है कि अगला सत्र दो सितंबर से पहले आयोजित किया जाए।”

राज्य में जारी हिंसा और पहाड़ पर रहने वाली कुकी आदिवासियों के साथ भेदभाव का आरोप लगाते हुए मणिपुर के विभिन्न दलों से जुड़े कुकी समुदाय के 10 विधायकों ने विधानसभा सत्र में शामिल होने में असमर्थता जताई है। कुकी विधायकों ने मणिपुर विधानसभा सत्र का बहिष्कार करने का फैसला लिया है।

पूर्व मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस विधायक दल ने 26 जुलाई को राज्यपाल से मुलाकात की और संविधान के अनुच्छेद 174 (1) के तहत विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने की मांग की थी।

कांग्रेस नेता मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग कर रहे हैं। वह कहते रहे हैं कि राज्य विधानसभा मौजूदा उथल-पुथल पर चर्चा और बहस करने के लिए सबसे उपयुक्त मंच है, जहां सामान्य स्थिति बहाल करने के उपायों के सुझाव पेश किए जा सकते हैं और चर्चा की जा सकती है।

सत्तारूढ़ भाजपा के सात विधायकों सहित दस आदिवासी विधायक, कई अन्य आदिवासी संगठनों के साथ, 12 मई से आदिवासियों के लिए एक अलग प्रशासन की मांग कर रहे हैं। आदिवासी विधायकों ने यह भी कहा कि वे ‘सुरक्षा कारणों’ से इंफाल में विधानसभा सत्र में भाग नहीं ले पाएंगे।

ज्ञात हो कि 3 मई को राज्य में जातीय हिंसा भड़कने के बाद से 160 से अधिक लोग मारे गए हैं और 600 से अधिक घायल हुए हैं। मणिपुर में जातीय संघर्ष के मद्देनजर विभिन्न समुदायों के लगभग 70,000 पुरुष, महिलाएं और बच्चे विस्थापित हो गए हैं। अब वे मणिपुर में स्कूलों, सरकारी भवनों और सभागारों में स्थापित 350 शिविरों में शरण लिए हुए हैं और कई हजार लोगों ने मिजोरम सहित पड़ोसी राज्यों में शरण ली है।

(जनचौक की रिपोर्ट।)

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