लखनऊ। 2023 के आम बजट ने एक बार फिर से पुष्टि की है कि मोदी सरकार सप्लाई साइड इकोनॉमी यानी आपूर्ति पक्ष के अर्थशास्त्र की आर्थिक नीति के तहत काम कर रही है। इसलिए इस बजट ने सारा फायदा कार्पोरेट और अपर-मिडिल क्लास को दिया है।
यह बजट पूरी तरह जन विरोधी, किसान विरोधी और ग्रामीण व शहरी जनता विरोधी है। मनरेगा के तहत बजट को पिछले साल के 73,000 करोड़ से घटाकर सिर्फ 60,000 करोड़ कर दिया गया है जो कि पिछले 4 साल की तुलना में सबसे कम है।
लोगों को उम्मीद थी कि बेरोजगारी की चुनौती से निपटने के लिए मनरेगा के तहत बजट बढ़ाया जाएगा और शहरी बेरोजगारी को पूरा करने के लिए भी कुछ बजट दिया जाएगा।
किसानों की एमएसपी मांग पर कुछ भी नहीं किया गया और पीएम किसान सम्मान निधि के तहत भी राशि नहीं बढ़ाई गई है। सिंचाई और अन्य कृषि बुनियादी ढांचे के विकास पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है। जहां तक किसानों के लिए क्रेडिट फंड की बात है, तो 18 लाख करोड़ से 20 लाख करोड़ तक सिर्फ 2 लाख करोड़ की बढ़ोतरी हुई है।
वर्तमान मुद्रास्फीति की प्रवृत्ति में, यह बिल्कुल भी वृद्धि नहीं है। 10 लाख करोड़ का पूंजीगत व्यय भी कॉर्पोरेट को लाभ पहुंचाने के लिए है क्योंकि इसे एयरपोर्ट और हेलीपोर्ट के विकास पर खर्च किया जाना है।
जहां तक कौशल विकास योजना का संबंध है, जो पारंपरिक कारीगरों जैसे कुम्हार, बढ़ई और लुहार आदि की मदद करने का दावा करती है, वह वास्तव में बहुत छोटी है और इससे उन्हें ज्यादा मदद नहीं मिलने वाली है। दूसरी ओर इसका मतलब सिर्फ बीजेपी के चुनावी लोकलुभावनवाद की सेवा करना है।
जहां तक सामाजिक क्षेत्र के बजट का संबंध है, स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्र में मामूली वृद्धि हुई है। पीएम आवास योजना के तहत बजट को 66% बढ़ाकर 48,000 करोड़ से 79,000 करोड़ कर दिया गया है जो फिर से आने वाले चुनाव की चिंता को दर्शाता है।
इसी तरह, नया आयकर ढांचा मुख्य रूप से कर्मचारियों और आम मध्यम वर्ग के बजाय उच्च मध्यम वर्ग की मदद करने वाला है।
(एस आर दारापुरी ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं)
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