मौतों के पीछे लीची नहीं, असल वजह है कुपोषण

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बिहार लीची की खेती के लिए मशहूर है। मुजफ्फरपुर की लीची देश विदेश में लोकप्रिय है। गर्मियों में वहां लीची के साथ बच्चों की अकाल मृत्यु भी आती है। किंवदंती है कि लीची की कुछ नस्लें जहरीली हैं जिनको खाकर बच्चे बीमार पड़ जाते हैं। हकीकत में बच्चों की अकाल मृत्यु के लिए लीची नहीं कुपोषण जिम्मेदार है। क्षेत्र में दिमागी बीमारी का प्रकोप अप्रैल, मई व जून में घातकता के साथ फैलता है। विगत वर्ष मरीजों की संख्या के अनुपात में सरकारी चिकित्सालयों में बेड न मिलने से सरकार की किरकिरी हुई थी। बीमार बच्चे वार्ड के बाहर गलियारों तक में जमीन पर लेटे हुए थे। डॉक्टर समुचित संख्या में नहीं थे। उच्च मृत्यु दर एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम के कारण थी जो मेनिनजाइटिस, एनसिफेलाइटिस एन्सेफैलोपैथी बीमारियों का ग्रुप है।

चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार लंबे समय तक खाली पेट रहने से खून में शर्करा की मात्रा की कमी बन जाती है तथा ऐसे बच्चों में इस बीमारी का अपेक्षाकृत घातक प्रभाव रहता है।

विश्व के अन्य राष्ट्रों की तुलना में भारत कुपोषण सूचकांक में नीचे से 13वीं पायदान पर है। विगत दो वर्षों से 117 देशों की सूची में 103-104वीं रैंक पर है, जिससे स्पष्ट है कि सरकार सही दिशा में कार्य नहीं कर रही है। भारत की 14 फीसद आबादी अल्पपोषित है। विश्व में भारत को महाशक्ति बनाने का दावा करने वालों से यह अवश्य पूछा जाएगा कि स्वास्थ्य पर सरकार के उपेक्षापूर्ण रवैये को देखते हुए कुपोषण को समाप्त करने की कोई राह क्यों नहीं दिख रही है? भुखमरी का सूचकांक सन् 2020 में 107 देशों की सूची में भारत को 94वें स्थान पर दिखा रहा है। सरकार इस बात से प्रसन्न हो सकती है कि मुद्दों को सम्बोधित किए बिना भी वह धन व सरकारी बल पर राज्यों में सरकार बना रही है अथवा जनादेश प्राप्त सरकारों को जबरन गिरा कर अपनी कठपुतली सरकार बना रही है। वर्तमान केन्द्र सरकार की प्राथमिकता में सत्ता प्राप्ति तथा उसके बाद आधिपत्य स्थापित करना ही है।

अप्रैल दूर नहीं है, बिहार सरकार को जाग जाना चाहिए। पोषक खाद्य पदार्थों के वितरण के लिए खजाने को खोलना होगा। इलाज की व्यवस्था भी सुधारनी होगी वरना अबोध बच्चों की अकाल मौत से सरकार के साथ देश पर भी कलंक लगेगा।

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