Sunday, April 28, 2024

योगी की गौशालाओं में गौ-हत्या: चारा-पानी के अभाव में दम तोड़ रही गायें

लखनऊ। केंद्र की मोदी और उत्तर प्रदेश की योगी सरकार गौवंश के संरक्षण पर बड़े-बड़े बयान देती रहती है। लेकिन उत्तर प्रदेश में सरकारी सहायता से चलने वाले गौशालाओं में गोवंश की दुर्दशा है। चारे-पानी के अभाव में गोवंश दम तोड़ रहे हैं और गौशालाओं के संचालक भ्रष्टाचार करने में लगे हैं तो योगी सरकार गौशालाओं को अनुदान देकर अपने कर्तव्यों को इतिश्री मान बैठी है।

उत्तर प्रदेश के हरदोई और सीतापुर जिले में स्थित कई गौशालाओं का निरीक्षण करने पर यह तथ्य सामने आया कि अधिकांश गौशालाओं में गायें उचित रख-रखाव के अभाव में दम तोड़ रही हैं।

इस सर्वे को आधार बनाकर सामाजिक कार्यकर्ता एवं सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) के महासचिव संदीप पाण्डेय ने 6 सितम्बर, 2023 को हरदोई जिले के अतरौली थानाध्यक्ष को एक पत्र लिखकर गौशालाओं में मरने वाले गोवंश के लिए योगी आदित्यनाथ को जिम्मेदार बताते हुए उनपर गौ-हत्या का मामला दर्ज करने की मांग की है।

थानाध्यक्ष को लिखे पत्र में उन्होंने कहा कि 7 अगस्त को ग्राम गौढ़ी, ग्राम सभा छावन, विकास खण्ड भरावन, थाना अतरौली, तहसील सण्डीला में एक जवान बछड़ा मरा हुआ पड़ा था। अन्य गौशालाओं व गौ-आश्रय स्थलों पर भी गोवंश मरणासन्न अवस्था में मिले। मरने के बाद इन गोवंश को वहीं या आस-पास गाड़ दिया जाता है।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने गौशालाओं की योजना इसलिए चला रखी है ताकि गौहत्या रुके। किंतु यदि गोवंश गौशालाओं व गौ-आश्रय स्थलों पर ही मर रहे हैं, कौवों द्वारा अपने घावों पर किए जा रहे हमलों से अपने को बचा नहीं पा रहे, मरणासन्न पड़े हैं तो गौ-हत्या तो हो ही रही है। ग्राम प्रधानों से उम्मीद की जाती है कि वे गौ-आश्रय स्थल संचालित करें लेकिन गौ-आश्रय स्थल के निर्माण या भूसा का पैसा अग्रिम नहीं दिया जाता। उत्तर प्रदेश सरकार की नीतियों के कारण गोवंश गौ-आश्रय स्थलों व गौशालाओं में मर रहे हैं।

हरदोई जिले की सण्डीला तहसील एवं सीतापुर जिले के गोंदला मऊ विकास खण्ड में स्थित कुछ गौ-आश्रय स्थलों व गौशालाओं की स्थिति बहुत ही दर्दनाक है।

हरदोई में जनवरी 2023 में गांव में खुले गोवंश से परेशान ग्रामीणों ने गांव में ही धरना शुरू किया। धरना शुरू होते ही शाम को खण्ड विकास अधिकारी गांव पहुंचे। रातों रात एक जे.सी.बी. मशीन बुला पहले जहां एक अस्थाई गौ-आश्रय स्थल बनाया गया था वहीं फिर से गड्ढ़ों को गहरा कर और उसकी सीमा पर लगे तारों को ठीककर गौ-आश्रय स्थल को पुनर्जीवित किया गया। गांव से पकड़ कर गोवंश उसमें लाए गए। पिछली बार जब यहां गौ-आश्रय स्थल बना था तो बताया गया कि चूंकि चारे का भी पैसा नहीं मिल रहा था अतः अंत में गोवंश जो उन्हें ढकने के लिए तिरपाल लगा था, वह भी खाकर चली गईं।

शुरू में तो जनता का दबाव था इसलिए गौढ़ी में अस्थाई गौ-आश्रय स्थल बना दिया गया और ग्राम प्रधान ने पैसा खर्च किया। किंतु जब ग्रामीणों का दबाव कम पड़ा तो चारा आना बंद हो गया। गौढ़ी में जहां धीरे धीरे करके पशुओं की संख्या जनवरी में 53 से बढ़कर 130 तक पहुंच गई थी, चारे के अभाव में करीब 80 पशु तार तोड़ कर खाई फांद कर भाग गए। करीब दस पशु भूख व बीमारी के कारण मर गए जिन्हें वहीं दफना दिया गया। सबसे कमजोर 41 पशु रह गए। 7 अगस्त को इनमें से एक पशु मर चुका था और दो मरणासन्न अवस्था में थे। जिलाधिकारी व प्रमुख सचिव, पशुधन को सूचित किया गया। ग्राम प्रधान आए और मरे पशु को हटवा दिया। एक महीने से ऊपर हो चुका था किंतु पशु चिकित्साधिकारी नहीं आए थे।

मार्च 2023 में ग्रामीण दो बार पशुओं को लेकर इस ऐलान के साथ निकले कि उन्हें मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ के घर लखनऊ ले जाएंगे। पुलिस ने दोनों बार रास्ता रोक लिया किंतु कोई भी ऐसा अधिकारी – खण्ड विकास अधिकारी, पशु चिकित्साधिकारी अथवा उप-जिलाधिकारी मौके पर नहीं पहुंचा जो समस्या का समाधान कर सकते थे। अंत में पुलिस के दबाव से ग्राम प्रधान ने एक जे.सी.बी. मशीन लगा कर खाई खुदवाने का काम शुरू किया। एक दिन काम होकर रुक गया। आज तक गौ-आश्रय स्थल का काम अपूर्ण है और वहां कोई पशु रखा ही नहीं गया।

16-17 अगस्त को पिपरी ग्राम सभा, हरदोई में गौ-आश्रय स्थल निर्माण को लेकर राम किशोर सिंह अनशन पर बैठे। खण्ड विकास अधिकारी, नायब तहसीलदार, ग्राम पंयाचत अधिकारी मौके पर आए, उप-जिलाधिकारी से 25 अगस्त को सण्डीला में वार्ता हुई किंतु आज तक काम नहीं शुरू हुआ। ग्राम पंचायत अधिकारी ने अपनी आख्या में लिख दिया था कि गांव से सारे पशु भटपुर गौ-आश्रय स्थल भेजे जा चुके हैं।

हरदोई के कान्हा गौशाला में 335 गोवंश मौजूद थे। यहां नौ कर्मचारी काम करते हैं। सिर्फ सूखा चारा खिलाया जा रहा था। अभी तक तीन सालों में अनुमान है कि प्रत्येक माह औसत 10-12 गोवंश तो असामयिक मौत का शिकार होते हैं। वहां जमीन पर पड़े तीन गोवंश पीड़ादायक मौत की कहानी बयां कर रहे थे। यह गौशाला तो सरकार द्वारा वित्तपोषित है फिर भी इसकी स्थिति दयनीय है। यदि कान्हा गौशाला की यह स्थिति है तो ग्राम प्रधानों से कैसे अपेक्षा की जाती है कि बिना संसाधन के वे गौ-आश्रय स्थल अच्छी तरह संचालित कर लेंगे?

लालामऊ गांव में 2 एकड़ पर 1.20 रुपये की लागत से बने 100 की क्षमता वाले गौ-आश्रय स्थल में 95 गोवंश हैं। यहां के ग्राम प्रधान राम प्रकाश ने समझदारी से काम लेते हुए किसानों से चारा खरीदकर कमी पूरी की और 6 एकड़ पशुचर भूमि पर हरा चारा बोया है। 35,000 रुपये इन्होंने सिर्फ चारा ढोकर लाने में खर्च किया। राम प्रकाश केन्द्रीकृत चारा आपूर्ति व्यवस्था के खिलाफ हैं। यह एकमात्र गौ-आश्रय स्थल हमने देखा जहां सूखे चारे के साथ हरा चारा भी दिया जाता है। इसलिए गोवंश का स्वास्थ्य शेष गौ-आश्रय स्थलों व गौशालों से बेहतर दिखाई पड़ा। ग्राम प्रधान ने तीन कर्मचारी रखें हैं जिन्हें रु. 6,000 प्रति माह पंचायत से मिलता है और 1,000 ग्राम प्रधान अपनी तरफ से देते हैं। क्षेत्र पंचायत प्रमुख से टिन शेड व पानी की टंकी लगवाई किंतु तार लगवाने के पैसे का राज्य वित से भुगतान नहीं हुआ है। एक टिन शेड की आवश्यकता और है। अभी तक 2-4 गोवंश मरे होंगे।

ढिकुन्नी में स्थित गौशाला में पंजीकृत 48 की जगह 41 गोवंश ही मिले। खाने के लिए सूखा भूसा दिया जाता है। पीने के पानी की टंकी गंदी पाई गई। एक मरणासन्न बीमार पशु जमीन पर पड़ा हुआ मिला जो कौवों द्वारा अपने घावों पर किए जा रहे हमलों से अपने आप को बचा पाने में अक्षम था।

अतरौली गौशाला में पंजीकृत 92 गोवंश की जगह मौके पर 80 मिले। यहां पीने के पानी की व्यवस्था ठीक है। चारा काटने के लिए बिजली से चलने वाली मशीन लगी है और जनरेटर की भी व्यवस्था है लेकिन यहां भी सूखा चारा ही खिलाया जा रहा है। शेष गौ-आश्रय स्थलों से यहां व्यवस्था कुछ बेहतर नजर आई।

भटपुर स्थित गौशाला प्रभारी सुंदर ने गौ-आश्रय स्थल में प्रवेश नहीं करने दिया। आस-पास के ग्रामीणों से बातचीत कर जानकारी प्राप्त की गई। बताया गया कि यहां 55 गोवंश हैं। छाए की उचित व्यवस्था नहीं है। खाने के लिए सड़ा हुआ भूसा खिलाया जा रहा है। एक पशु मरणासन्न या मरा हुआ पड़ा था।

सईयापुर गौशाला में मौके पर 55 गोवंश मिले। सड़ा हुआ भूसा खिलाया जा रहा है। सफाई की कोई व्यवस्था नहीं है। जगसरा गौशाला में पंजीकृत 50 की जगह मौके पर 30 गोवंश ही मिले। सड़ा हुआ भूसा खिलाया जा रहा है। सफाई व बिजली की कोई व्यवस्था नहीं है। एक पशु बीमार पाया गया। जबकि हाजीपुर गौ-आश्रय स्थल बंद पड़ा है, वहां एक भी पशु नहीं है।

उमर ताली गौशाला में पंजीकृत 56 की जगह मौके पर 27 गोवंश ही मिले। खाने के लिए सिर्फ सूखा भूसा ही दिया जा रहा है। पीने के पानी व सफाई की व्यवस्था ठीक नहीं।

सर्वे टीम ने विभिन्न गौशालाओं को देखने के बाद कहा कि गौ-आश्रय स्थलों के लिए धन आवंटित किए बिना सिर्फ राज्य वित्त व मनरेगा से गुणवत्तापूर्ण गौ-आश्रय स्थल नहीं संचालित किए जा सकते। ग्राम प्रधानों से अपेक्षा की जाती है कि वे बिना किसी अग्रिम राशि के अपने पास से भूसा, आदि की व्यवस्था करें।

खुले घूम रहे गोवंश की तुलना गौ-आश्रय स्थलों पर रह रहे गोवंश से की जाए तो बाहर वालों का स्वास्थ्य अपेक्षाकृत अच्छा है। गौशालाओं का निर्माण करके गौ-हत्या रोकने का उद्देश्य असफल रहा है। गौशाला में गायें भूख से मर रही हैं, बीमार पशु का कोई इलाज नहीं है।

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

AICCTU ने ऐप कर्मियों की मांगों को लेकर चलाया हस्ताक्षर अभियान, श्रमायुक्त को दिया ज्ञापन।

दिल्ली के लाखों ऐप कर्मचारी विषम परिस्थितियों और मनमानी छटनी से जूझ रहे हैं। उन्होंने कम प्रति ऑर्डर रेट, अपर्याप्त इंसेंटिव्स, और लंबे कार्य समय के खिलाफ दिल्ली भर में हस्ताक्षर अभियान चलाया। ऐप कर्मचारी एकता यूनियन ने बेहतर शर्तों और सुरक्षा की मांग करते हुए श्रमायुक्त कार्यालय में ज्ञापन दिया।

ग्राउंड रिपोर्ट: पुंछ में केसर उत्पादन की संभावनाएं बढ़ीं

जम्मू के पुंछ जिले में किसान एजाज़ अहमद पांच वर्षों से केसर की सफल खेती कर रहे हैं, जिसे जम्मू विश्वविद्यालय ने समर्थन दिया है। सरकार से फसल सुरक्षा की मांग करते हुए, अहमद पुंछ को प्रमुख केसर उत्पादन केंद्र बनाना चाहते हैं, जबकि महिला किसानों ने भी केसर उत्पादन में रुचि दिखाई है।

Related Articles

AICCTU ने ऐप कर्मियों की मांगों को लेकर चलाया हस्ताक्षर अभियान, श्रमायुक्त को दिया ज्ञापन।

दिल्ली के लाखों ऐप कर्मचारी विषम परिस्थितियों और मनमानी छटनी से जूझ रहे हैं। उन्होंने कम प्रति ऑर्डर रेट, अपर्याप्त इंसेंटिव्स, और लंबे कार्य समय के खिलाफ दिल्ली भर में हस्ताक्षर अभियान चलाया। ऐप कर्मचारी एकता यूनियन ने बेहतर शर्तों और सुरक्षा की मांग करते हुए श्रमायुक्त कार्यालय में ज्ञापन दिया।

ग्राउंड रिपोर्ट: पुंछ में केसर उत्पादन की संभावनाएं बढ़ीं

जम्मू के पुंछ जिले में किसान एजाज़ अहमद पांच वर्षों से केसर की सफल खेती कर रहे हैं, जिसे जम्मू विश्वविद्यालय ने समर्थन दिया है। सरकार से फसल सुरक्षा की मांग करते हुए, अहमद पुंछ को प्रमुख केसर उत्पादन केंद्र बनाना चाहते हैं, जबकि महिला किसानों ने भी केसर उत्पादन में रुचि दिखाई है।