प्रवासी श्रमिकों के सवालों पर माले का राज्यव्यापी धरना, वर्कर्स फ़्रंट ने मज़दूरों की मौतों के लिए मोदी सरकार को ठहराया जिम्मेदार

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लखनऊ। भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माले) ने प्रवासी श्रमिकों को मुफ्त घर पहुंचाने, श्रम कानूनों को यूपी में तीन साल तक स्थगित करने का फैसला वापस लेने व अन्य मांगों के लिए शुक्रवार को राज्यव्यापी धरना दिया। इस मौके पर आंध्र प्रदेश में गैस लीक की घटना में मारे गए लोगों और महाराष्ट्र में मालगाड़ी से कट कर जानें गंवाने वाले मजदूरों को श्रद्धांजलि दी गयी। धरना कोरोना सतर्कता मापदंडों का पालन करते हुए घरों में व पार्टी कार्यालयों पर सुबह 10 से शाम चार बजे तक दिया गया।

पार्टी के राज्य सचिव सुधाकर यादव ने यह जानकारी देते हुए कहा कि विशाखापत्तनम के रासायनिक संयंत्र में गैस रिसाव से मरे 12 और महाराष्ट्र में लॉकडाउन में पुलिस के भय से रेलवे ट्रैक पकड़ कर घर जाने के दौरान थक कर पटरी पर ही सो रहे 16 मजदूरों को मालगाड़ी द्वारा कुचल दिए जाने की दोनों घटनाएं दुर्घटना नहीं बल्कि सरकार की आपराधिक लापरवाही का परिणाम हैं। यह मजदूरों का जनसंहार है और इसकी जवाबदेही तय की जानी चाहिए।

राज्य सचिव ने कहा कि श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से वापस यूपी लौटने वाले प्रवासी मजदूरों ने रेल किराये को लेकर जो बातें बतायीं हैं, उससे यह साबित हुआ है कि सरकार दो रंगी बातें बोल रही है। केंद्र व राज्य द्वारा 85 व 15 प्रतिशत किराया भुगतान का दावा सरासर झूठ है और तथ्य यह है कि मजदूरों को कर्ज लेकर या अपना सामान बेच कर किराये का पैसा भरना पड़ा है। माले नेता ने कहा कि कोरोना संकट से लड़ने के लिए बनाया गया पीएम केयर्स फण्ड आखिर किस मर्ज की दवा है और जब रोजगार गवां चुके मजदूरों को खाने के लाले पड़े हैं, तो उनके किराये की अदायगी पीएम केयर्स फंड से क्यों नहीं की जा रही है।

राज्य सचिव ने कहा कि आज के धरने के माध्यम से अन्य जो मांगें उठायी गयीं, उनमें प्रवासी मजदूरों को दस-दस हजार रुपये महीना लॉकडाउन भत्ता व तीन महीने का मुफ्त राशन देने, कार्ड या बिना कार्ड वाले सभी गरीबों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) से निःशुल्क अनाज व जरूरी वस्तुएं देने, मनरेगा मजदूरों की मजदूरी बढ़ाकर 500 रुपये करने व 200 दिन तक काम देने, दूध-सब्जी-पान उत्पादकों व किसानों को असमय बारिश-ओलावृष्टि से हुए नुकसान का मुआवजा देने, स्वास्थ्यकर्मियों को सभी सुरक्षा उपकरण व क्वारंटाइन सेंटरों में जरूरी सुविधायें मुहैया कराने, कोरोना की आड़ में साम्प्रदायिकता फैलाने पर रोक लगाने और जन स्वास्थ्य के हित में शराब की दुकानों को बंद रखना शामिल थीं। इन मांगों के साथ प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को संबोधित ज्ञापन भी प्रेषित किये गये।

राजधानी लखनऊ में लालकुआं स्थित पार्टी कार्यालय पर सुबह से शाम तक धरना दिया गया। इसके अलावा, गाजीपुर, चंदौली, वाराणसी, मिर्जापुर, सोनभद्र, आजमगढ़, देवरिया, बलिया, गोरखपुर, भदोही, इलाहाबाद, रायबरेली, कानपुर, लखीमपुर खीरी, सीतापुर, जालौन, मथुरा, मुरादाबाद व अन्य जिलों में धरना हुआ।

दूसरी तरफ आज सुबह औरंगाबाद से अपने घर लौट रहे 14 प्रवासी श्रमिकों की ट्रेन से कटकर और साईकिल से लखनऊ से छत्तीसगढ़ जा रहे पति पत्नी श्रमिकों की वाहन से कुचलकर हुई मौतों पर अपनी गहरी संवेदनाएं व्यक्त करते हुए वर्कर्स फ्रंट ने इसके लिए मोदी सरकार को जिम्मेदार ठहराया है। और केन्द्र सरकार से हर मृत श्रमिकों को 50 लाख रूपया गुआवजा देने की मांग की है। 

वर्कर्स फ्रंट के अध्यक्ष दिनकर कपूर ने प्रेस को जारी अपने बयान में कहा कि बिना योजना व समुचित व्यवस्था के लागू किए लॉकडाउन में प्रवासी मजदूरों को सुरक्षित उनके घरों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की थी। लेकिन उसे प्रवासी मजदूरों की तकलीफों-बेइंतहा परेशानियों से कोई लेना देना नहीं है। एक सर्वेक्षण के अनुसार अभी तक सैकड़ों प्रवासी मजदूर भूख-प्यास, बीमारी व दुर्घटनाओं में बेमौत मर चुके हैं। दरअसल महामारी के दौर में मजदूर सरकार के एजेण्डा में है ही नहीं और न सिर्फ उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया गया है बल्कि उन पर घोर दमन ढाने की ओर सरकार बढ़ रही है।

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