Wednesday, April 24, 2024

दिल्ली दंगेः तुषार मेहता की अध्यक्षता वाले पैनल पर क्यों अड़े हैं उप राज्यपाल

दिल्ली की केजरीवाल सरकार का मानना है कि क्रिमिनल जस्टिस का मूल सिद्धांत है कि जांच पूरी तरह से अभियोजन से स्वतंत्र होनी चाहिए। दिल्ली पुलिस दिल्ली दंगों की जांच एजेंसी रही है। ऐसे में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की अध्यक्षता वाले अधिवक्ताओं के पैनल को मंजूरी देने से निष्पक्षता पर सवाल खड़े हो सकते हैं।

दिल्ली सरकार ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की अध्यक्षता वाले अधिवक्ताओं के पैनल को स्वीकार करने से इनकार कर दिया है। दिल्ली सरकार ने वकीलों के पैनल के मामले में उपराज्यपाल की भूमिका पर भी सवाल उठाए हैं। कैबिनेट ने कहा है कि वकीलों के पैनल का फैसला करने के मामले में उप राज्यपाल का बार-बार हस्तक्षेप करना दुर्भाग्यपूर्ण है।

इस आशय का निर्णय दिल्ली सरकार के मंत्रिमंडल ने लेफ्टिनेंट गवर्नर के दिल्ली पुलिस के प्रस्ताव पर निर्णय लेने के लिए एक सप्ताह का समय देने के बाद लिया गया। इसमें उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के समक्ष दिल्ली दंगों के 85 मामलों में पैरवी के लिए ‘दिल्ली के छह वरिष्ठ वकीलों’ को ‘विशेष वकील’ के रूप में नियुक्त करने का प्रस्ताव था। इसमें सॉलिसिटर जनरल मेहता के अलावा, पैनल में अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अमन लेखी, स्थायी वकील अमित महाजन और एडवोकेट रजत नायर शामिल हैं।

दिल्ली दंगों में दिल्ली पुलिस की तरफ से पैरवी के लिए उच्चतम न्यायालय और हाई कोर्ट में वकीलों का पैनल नियुक्त करने को लेकर मंगलवार शाम को दिल्ली सरकार की कैबिनेट की बैठक हुई। इसमें दिल्ली सरकार ने दिल्ली पुलिस के वकीलों के पैनल को खारिज कर दिया। दिल्ली कैबिनेट का मानना है कि दिल्ली दंगों के संबंध में दिल्ली पुलिस की जांच को कोर्ट ने निष्पक्ष नहीं माना है। ऐसे में दिल्ली पुलिस के पैनल को मंजूरी देने से केस की निष्पक्ष सुनवाई संभव नहीं है।

दिल्ली सरकार उप राज्यपाल की इस बात से सहमत है कि यह केस बेहद महत्वपूर्ण है। इस कारण दिल्ली सरकार ने गृह विभाग को निर्देश दिया है कि दिल्ली दंगे के लिए देश के सबसे बेहतरीन वकीलों का पैनल बनाया जाए। साथ ही पैनल निष्पक्ष भी होना चाहिए। कैबिनेट ने दिल्ली सरकार के वकीलों के पैनल की नियुक्ति से सहमति जताई। उपराज्यपाल अनिल बैजल ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को पत्र लिखकर पैनल पर निर्णय लेने के लिए कहा था।

दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायधीश सुरेश कुमार ने दिल्ली दंगे के संबंध में दिल्ली पुलिस पर टिप्पणी की थी कि दिल्ली पुलिस न्यायिक प्रक्रिया का गलत इस्तेमाल कर रही है। सेशन कोर्ट ने भी दिल्ली पुलिस की निष्पक्षता पर सवाल खड़े किए थे। इसके अलावा कुछ मीडिया रिपोर्टों में भी दिल्ली पुलिस की निष्पक्षता पर सवाल खड़े किए गए थे। इस स्थिति में दिल्ली पुलिस के वकीलों के पैनल को मंजूरी देने से दिल्ली दंगों की निष्पक्ष जांच पर संदेह था।

इस वजह से दिल्ली सरकार ने दिल्ली पुलिस के पैनल को मंजूरी नहीं दी। दिल्ली सरकार का मानना है कि दिल्ली दंगों का केस बेहद महत्वपूर्ण है, इस कारण सरकारी अधिवक्ता निष्पक्ष होना चाहिए। दिल्ली कैबिनेट की बैठक में यह तय हुआ कि दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा पैदा करने के लिए जो भी दोषी हैं, उन्हें सख्त सजा मिलनी चाहिए। साथ ही यह भी तय हुआ कि निर्दोष को परेशान या दंडित नहीं किया जाना चाहिए।

दिल्ली पुलिस ने तुषार मेहता और अमन लेखी सहित छह वरिष्ठ वकीलों को नार्थ ईस्ट दंगों और एंटी सीएए प्रोटेस्ट से जुड़े 85 मामलों में हाईकोर्ट और उच्चतम न्यायालय में स्पेशल वकील नियुक्त किए जाने का प्रस्ताव दिल्ली सरकार को भेजा था। दिल्ली सरकार ने दिल्ली पुलिस का यह प्रस्ताव ख़ारिज कर दिया था और दिल्ली सरकार के वकील राहुल मेहरा और उनकी टीम का मामले में सक्षम बताया था।

इसके बाद उपराज्यपाल अनिल बैजल ने दिल्ली के गृह मंत्री को भेजे प्रस्ताव पर असहमति जताई और अपने स्पेशल पावर का इस्तेमाल करते हुए इस फाइल को सम्मन किया। इसी फाइल के आधार पर दिल्ली के गृह मंत्री और उप राज्यपाल की बैठक हुई। इस बैठक में भी कोई निर्णय नहीं हो सका। इसके बाद एलजी ने सीएम को पत्र लिख कर कहा कि कैबिनेट बैठक कर इस मामले में निर्णय करे।

दिल्ली सरकार के अनुसार सीआरपीसी के सेक्शन 24 में भी इस बात का जिक्र है कि लोक अभियोजक की नियुक्ति का अधिकार दिल्ली सरकार के पास है। संविधान के तहत दिल्ली के उपराज्यपाल के पास स्पेशल अधिकार हैं कि वह दिल्ली की चुनी हुई सरकार के किसी निर्णय पर हस्तक्षेप कर सकते हैं और उसे पलट सकते हैं, लेकिन उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने चार जुलाई 2018 के अपने आदेश में स्पष्ट उल्लेख किया है कि उपराज्यपाल इस अधिकार का इस्तेमाल दुर्लभ मामलों में ही कर सकते हैं। सरकार के अनुसार वकीलों के पैनल का मसला दुर्लभ मामला नहीं है। इस कारण वकीलों की नियुक्ति का अधिकार पूरी तरह से दिल्ली सरकार के पास है।

दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली पुलिस के लिए पैरवी को लेकर केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार के बीच हमेशा रस्साकशी रहती है। कई बार यह झगड़ा कोर्ट में भी सुनवाई के दौरान खुलकर सामने आ चुका है। कई बार कोर्ट रूम के बाहर भी दोनों तरफ के वकील झगड़ते देखे जा चुके हैं।

दरअसल दो साल पहले 2018 में उच्चतम न्यायालय केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार के बीच अधिकारों की जंग को लेकर एक फैसला सुनाया था। इसके मुताबिक दिल्ली सरकार के पास सीआरपीसी की धारा 24(8) के जरिए स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर नियुक्त करने का अधिकार है।

कैबिनेट के दिल्ली पुलिस के पैनल को मंजूरी नहीं देने के बाद अब ऐसा माना जा रहा है कि दिल्ली में एक बार फिर  उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच टकराव हो सकता है और यह भी कहा जा रहा है कि उपराज्यपाल अपने विशेष अधिकारों के उपयोग से दिल्ली पुलिस के पैनल को मंजूरी दे सकते हैं।

(लेखक कानूनी मामलों के जानकार हैं और इलाहाबाद में रहते हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

AICCTU ने ऐप कर्मियों की मांगों को लेकर चलाया हस्ताक्षर अभियान, श्रमायुक्त को दिया ज्ञापन।

दिल्ली के लाखों ऐप कर्मचारी विषम परिस्थितियों और मनमानी छटनी से जूझ रहे हैं। उन्होंने कम प्रति ऑर्डर रेट, अपर्याप्त इंसेंटिव्स, और लंबे कार्य समय के खिलाफ दिल्ली भर में हस्ताक्षर अभियान चलाया। ऐप कर्मचारी एकता यूनियन ने बेहतर शर्तों और सुरक्षा की मांग करते हुए श्रमायुक्त कार्यालय में ज्ञापन दिया।

Related Articles

AICCTU ने ऐप कर्मियों की मांगों को लेकर चलाया हस्ताक्षर अभियान, श्रमायुक्त को दिया ज्ञापन।

दिल्ली के लाखों ऐप कर्मचारी विषम परिस्थितियों और मनमानी छटनी से जूझ रहे हैं। उन्होंने कम प्रति ऑर्डर रेट, अपर्याप्त इंसेंटिव्स, और लंबे कार्य समय के खिलाफ दिल्ली भर में हस्ताक्षर अभियान चलाया। ऐप कर्मचारी एकता यूनियन ने बेहतर शर्तों और सुरक्षा की मांग करते हुए श्रमायुक्त कार्यालय में ज्ञापन दिया।