अफ़सोसनाक है, महाकुम्भ में नाबालिग बच्चों का दान

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पिछले दिनों आगरा के एक पेठा व्यवसायी ने अपनी नाबालिग 13 साल की बेटी को जूना अखाड़े के महंत को दान दे दिया। कहा जा रहा है कि बेटी की इच्छा संन्यास लेने की थी जिसे हमने पूरा कर दिया है। हालांकि इस दान की खबर मिलते ही चाइल्ड राइट्स वालों ने घोर आपत्ति जताई और इसे किशोर न्याय संहिता के विरुद्ध माना। पाक्सो एक्ट के तहत कार्रवाई होते देख पंचदशनाम जूना अखाड़े के संरक्षक हरिगिरि महाराज ने नाबालिग लड़की को दीक्षा देना गलत बताते हुए अखाड़े के महंत कौशल गिरि को सात वर्ष के लिए अखाड़े से निकाल दिया है और बालिका को घर वापस भेज दिया है। विदित हो कुख्यात आसाराम इसी धारा के तहत आजीवन कारावास भोग रहा है।

गनीमत है, महंत जेल की हवा खाने से बच गए, बच्ची के पालक भी बचे और सबसे अच्छी बात कि एक होनहार बालिका 6 दिन सन्यासिन रहने के बाद चंगुल से बच गई। 19 जनवरी को उसका पिंडदान होना था।

बच्ची के शाला प्रमुख का कहना है वह बहुत होशियार है किंतु धर्म का रंग उस पर इस कदर चढ़ा है कि वह नवरात्र में बिना जूते पहने विद्यालय आती थी। भजन कीर्तन उसे पसंद थे। वह आईएएस अधिकारी बनना चाहती थी। उसे अखाड़े के महंत ने संत गौरी महारानी बना दिया।

सोचिए यह विचार उसमें कहां से आया। पड़ताल करने पर पता चला है कि जूना अखाड़े वाले महंत कौशल गिरि के उसके मां बाप परम शिष्य थे। वे उनसे मिलते रहते थे। उनका प्रशस्तिगान घर में होता होगा। इस माहौल का निश्चित तौर पर असर ज़रूर नाबालिग बच्ची पर पड़ा होगा, इसलिए उसने ऐसी मन:स्थिति को जन्म दिया हो। लेकिन उन मां-बाप को क्या कहेंगे जो अपनी बालिका को अखाड़े को दान कर दिए। वे कहते हैं बच्ची की खुशी के लिए यह किया है। विदित हो, इस दम्पत्ति की दो बच्चियां हैं जो आगरा के कान्वेंट स्कूल में पढ़ती थीं। बड़ी बच्ची 9वीं में और छोटी दूसरी क्लास में। इन्हें बेरहम ही कहा जाएगा। ऐसे माहौल और पालकों से बचाने चाइल्ड राइट्स को उसे उचित माहौल दिया जाना चाहिए।

आजकल दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक समागम महाकुंभ में वैसे तो संत और महात्माओं का आध्यात्मिक कुनबा जुट रहा है। इसमें एक ऐसे भी संत हैं जिनकी उम्र अभी केवल साढ़े तीन साल की है। उनका नाम है श्रवण पुरी। इन्हें संत का दर्जा जूना अखाड़े के बाबाओं ने अभी से दे दिया है। ऐसा इसलिए क्योंकि श्रवण पुरी के लक्षण साधु संन्यासियों के जैसे हैं।

श्रवण पुरी जूना अखाड़े के अनुष्ठान में शामिल होते हैं और आरती करते हैं। श्रवण पुरी का व्यवहार आम बच्चों से बिल्कुल अलग है। भोजन के अलावा चॉकलेट नहीं बल्कि फल खाना पसंद करते हैं। वो गुरु भाइयों के साथ खेलते हैं। पापा मम्मी को याद करने के बजाए संतों के साथ तुतलाती भाषा में श्लोक, मंत्र बोलते हैं।

क्या इस बच्चे की भी ख़बर ली जाएगी। ये नादान बच्चा वहां कैसे पहुंचा। इसे यहां किसने भेजा वगैरह-वगैरह? जबकि हरि गिरि महाराज ने‌ स्वयं बालिका वाले मामले की बैठक में यह बताया है कि अखाड़े में संत बनने की आयु 22 वर्ष है।

अफ़सोसनाक है महाकुम्भ जैसे महत्वपूर्ण आयोजन में जहां सिर्फ स्नान दान-दक्षिणा करने की परम्परा है किंतु बच्चे-बच्चियों के दान की ये घटनाएं विचलित करने वाली हैं। उम्मीद है बाल कल्याण समितियां मुखर होकर मेले में होने वाले बच्चों के दान और शोषण पर पैनी नज़र रखेंगे। धर्मभीरु लोगों के बीच इस बात के शिविर भी लगाए जाएं ताकि बच्चों के साथ इस तरह का असंवैधानिक और संवेदनहीन व्यवहार ना होने पाए। आगरा के चाइल्ड राइट्स एक्टिविस्ट नरेश पारस का कहना है कि लड़की कोई वस्तु नहीं जिसे दान दिया जाए। यह कृत्य मानव तस्करी के अन्तर्गत आता है।

विदित हो, भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 143 के तहत यह अपराध है।किशोर न्याय देखरेख संरक्षण अधिनियम 2015 का उल्लंघन है। किसी भी बच्चे का परित्याग सिर्फ़ बाल कल्याण समिति के समक्ष उपस्थित होकर ही किया जा सकता है जो बच्चे को सुरक्षित स्थान पर आश्रय दिलाती है और आगे गोद दिलाने की कार्रवाई भी करती है।

(सुसंस्कृति परिहार लेखिका और एक्टिविस्ट हैं।)

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