मॉनसून की बेरुखी से झारखण्ड में सूखे के हालात, छोटे किसान रोजी-रोटी की तलाश में कर रहे हैं पलायन

जुलाई का महीना समाप्ति की ओर बढ़ रहा है इसके बावजूद झारखण्ड में किसानों को इस साल मॉनसून का साथ नहीं मिल रहा है। अच्छी बारिश नहीं होने से किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें बढ़ती जा रही हैं।

राज्य के मजदूरी करने वाले लोग हों या मेहनतकश किसान, सभी मॉनसून का साथ नहीं मिलने से परेशान हैं और वे दूसरे राज्यों चेन्नई, हैदराबाद, मुंबई, दिल्ली जैसे मेट्रो शहरों में मजदूरी करने के लिए गांव छोड़कर जा रहे हैं। पिछले साल भी ये किसान सुखाड़ की मार झेल चुके हैं। इस साल भी जिस तरह से मॉनसून साथ नहीं दे रहा है, जाहिर है खरीफ की फसल सुखाड़ की भेंट चढ़ सकती है। यही वह डर है जो राज्य के लोगों को रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में पलायन को मजबूर कर रहा है।

वैसे तो पूरा झारखंड मॉनसून की बेरुखी की चपेट में है, लेकिन राज्य के लोहरदगा, कोडरमा, देवघर, जामताड़ा जिले सहित संताल परगना प्रमंडल क्षेत्र के लगभग किसान मॉनसून की इस बेरुखी से काफी प्रभावित दिख रहे हैं।

राज्य का लोहरदगा जिले की अधिकांश आबादी पूरी तरह कृषि पर ही आश्रित है। यही वजह है कि हालिया दिनों में मौसम के बदलते रूख से किसानों की चिंताएं बढ़ गई हैं।

सुखाड़ की आशंका से व्याकुल क्षेत्र के किसानों का कहना है कि बड़ी उम्मीदों के साथ बेहतर उत्पादन की आशा में उम्दा किस्म के महंगे धान बीज की खरीदारी कर अपने खेतों में बीज की बुआई की है और लगातार अपने बूते पटवन करके धान का ‘बिचड़ा’ भी तैयार कर लिया। इस आशा में कि आगे तो बारिश होगी ही। लेकिन रोपाई की बारी आने के बाद मॉनसून ने दगा दे दिया। धान का बिचड़ा धीरे-धीरे पककर बूढ़ा होने लगा है। धनरोपनी का समय भी गुजरता जा रहा है।

मॉनसून की बेरूखी इसी तरह बनी रही तो निश्चित तौर पर इस वर्ष भी किसानों को सुखाड़ जैसी विभीषिका का सामना करना पड़ेगा।

■ लोहरदगा जिला

लोहरदगा जिला में जुलाई माह में औसत वर्षा 305 मिमी होती है, परंतु इस वर्ष 20 जुलाई तक मात्र 73.7 मिमी ही वर्षा हुई है। मतलब सामान्य वर्षा की तुलना में इस बार महज 24.17 प्रतिशत ही वर्षा हो पायी हैं।

बारिश की उम्मीद में किसान आसमान की ओर टकटकी लगाए रहते हैं। वैसे आसमान में घने बादल भी छा रहे हैं, परंतु हल्की बूंदा-बांदी के बाद आसमान साफ हो जा रहा है।

जिला कृषि विभाग के अनुसार जिले में अभी तक महज 1.73 प्रतिशत ही धान रोपनी का कार्य पूर्ण हुआ है। जबकि जिले में लगभग 50 हजार हेक्टेयर धान की रोपाई का लक्ष्य रखा गया है।

पानी के अभाव में सूख रहे धान के ‘बीचड़े’

कृषि वैज्ञानिक डॉ. हेमंत पांडेय की माने तो कम वर्षा से खेती प्रभावित हुई है। अभी तक हर हाल में धान की रोपाई शुरू हो जानी थी। लेकिन वर्षा की वर्तमान स्थिति को देखते हुए ऐसा संभव नहीं लग रहा हैं।

वे कहते हैं ऐसे हालात में किसानों को वैकल्पिक खेती की ओर ध्यान देना चाहिए। जैसे उरद, कुर्थी, मूंग, मसूर आदि की खेती की जा सकती है।

■ कोडरमा जिला

कोडरमा जिले में भी लोहरदगा जैसी ही स्थिति बनी हुई है। उम्मीद के अनुसार बारिश नहीं होने से किसान परेशान हैं। किसान कह रहे हैं, सावन का आधा माह बीत चुका है, अब भादो आने वाला है, परन्तु पर्याप्त बारिश नहीं होने से कोडरमा में सुखाड़ की स्थिति बन रही है। धान की खेती की तैयारी धरी की धरी दिख रही है। पूर्व में लगाये गये बिचड़े तैयार होने की बजाय कहीं काले, तो कहीं पीले हो रहे हैं। खेतों में दरारें पड़ने लगी हैं। यदि शीघ्र ही अच्छी बारिश नहीं हुई, तो धान की खेती शायद ही हो पाये।

किसान क्या कहते हैं

बिसोडीह के किसान मेहीउद्दीन कहते हैं कि एक तो  केटीपीएस के निर्माण के दौरान हम लोगों की काफी जमीन अधिग्रहण में चली गयी। शेष जमीन पर हम लोग सब्जियां व धान, मक्का की खेती कर रहे हैं। भीषण गर्मी के कारण सब्जियों की बेहतर खेती नहीं हुई और अब जब धान की खेती का समय आया, तो बारिश गायब है। स्थिति यह कि धान का बिचड़ा भी बच पाएगा या नहीं कहना मुश्किल है।

चरकी पहरी के बुलाकी यादव कहते हैं कि क्या करें क्या न करें, मौसम के बदलाव ने परेशान कर रखा है़। धान ही एक ऐसी फसल है, जो साल भर के लिए चावल और पशुचारा उपलब्ध कराती है। इस बार मौसम की बेरुखी से यह समस्या बढ़ने वाली है। बिचड़ा तैयार होने का समय है और बारिश नहीं होने के कारण बिचड़ा खतरे में हैं।

सोनपुरा के कन्हैया यादव का कहना है कि हम किसानों की सबसे ज्यादा उम्मीद धान की खेती से रहती है, लेकिन इस वर्ष धान का होना संभव नहीं लगता है। बादल दिखता है तो बारिश की थोड़ी उम्मीद बंधती है, लेकिन बारिश नहीं होती है। ऐसे में लगाये गये बिचड़े पानी के अभाव में सूखने की स्थिति में हैं।

खरियोडीह पंचायत के मुखिया राजेंद्र यादव का कहते हैं, जून में बारिश हुई नहीं। जुलाई में थोड़ी बारिश हुई तो धान का बिचड़ा लगाया गया। बिचड़ा तैयार होने का समय आया, तो बारिश गायब। अब तो बिचड़ा बचाया कैसे जाय समझ में नहीं आ रहा।

■ देवघर जिला

मॉनसून की बेरुखी की मार से देवघर जिला भी प्रभावित है। यहां बारिश के अभाव में धान का बिचड़ा सूखने लगा है, ऊपरी इलाके में बिचड़े झुलस रहे हैं, खेतों में दरारें पड़ रही हैं।

कृषि विभाग के अनुसार, देवघर में एक फीसदी भी रोपनी नहीं हुई है। रोपनी के लिए 273 एमएम बारिश की जरूरत है, तभी 80 फीसदी रोपनी की जा सकती है। बारिश के अभाव में 20 फीसदी बिचड़े झुलस भी गये हैं। निचले इलाकों में किसानों ने इस धूप में भी किसी तरह सिंचाई कर बिचड़ा बचाने में लगे हैं। मौसम विभाग के पूर्वानुमान के अनुसार अगले तीन दिनों में 30 से 40 फीसदी ही बारिश का अनुमान है, जबकि 25 से 27 जुलाई तक बारिश होने की संभावना नहीं है। वहीं 29 जुलाई को बारिश की संभावना है।

देवीपुर प्रखंड में बारिश नहीं होने से किसानों के चेहरे पर मायूसी छायी हुई है। मॉनसून की खराब स्थिति को देखते हुए उन्होंने धान का बिचड़ा तक नहीं डाला है। पिछले वर्ष की सुखाड़ को देखते हुए किसान इस वर्ष कोई भी जोखिम नहीं उठाना चाहते हैं। वहीं क्षेत्र के किसान महेंद्र मरीक, गोपाल मरीक, कामदेव मरीक, संजय यादव आदि का कहना है कि किसी तरह पैसों का जुगाड़ कर बिचड़ा तो डाल दिये हैं, अगर दो-तीन दिनों में बारिश नहीं हुई तो वे कर्ज में डूब जायेंगे।

परती पड़े खेत

मोहनपुर, बाराकोला के आनंदी राय कहते हैं, पिछले साल में सुखाड़ से काफी नुकसान हुआ है। इस वर्ष कर्ज लेकर धान का बिचड़ा तो डाले थे, लेकिन बारिश के अभाव में 80 फीसदी बिचड़ा सूख गया है। अब तो बारिश हुई भी तो कोई फायदा नहीं होगा।

मोहनपुर, कटवन के प्रकाश मंडल की माने तो शुरुआत में बारिश होने से काफी उम्मीद से धान का बिचड़ा इस वर्ष डाले थे। अब धूप की वजह से तेजी से बिचड़ा झुलस रहा है। अगले तीन दिनों में बारिश नहीं हुई, तो पूरी तरह बिचड़ा झुलस जायेगा।

देवघर के जिला कृषि पदाधिकारी के.के. कुजूर का कहना है कि देवघर में इस वर्ष मॉनसून में अब तक महज 53 एमएम बारिश हुई है, जबकि 273 एमएम बारिश की आवश्यकता है। जिले भर में 55 फीसदी बिचड़ा डाला गया है। अभी भी 10 से 15 दिन का समय है। अगर बारिश हो गयी, तो रोपनी हो सकती है। 10 दिनों बाद ही सुखाड़ की रिपोर्ट मुख्यालय भेजी जायेगी।

■ जामताड़ा जिला

जामताड़ा जिला अंतर्गत नारायणपुर प्रखंड के सैकड़ों किसानों के साथ विगत कुछ वर्षों से बारिश तो दगा दे रही है, लेकिन मौसम की इस दगाबाजी में बीमा कंपनी भी बहुत पीछे नहीं है।

वहीं जिले के नाला प्रखंड जो विधानसभा क्षेत्र भी है का बिंदापाथर क्षेत्र के किसानों की भी मानसून की बेरुखी ने चिंता बढ़ा दी है। जुलाई के दूसरे सप्ताह बीत जाने के बावजूद बारिश नहीं होने और आसमान से आती कड़कड़ाती धूप से खेती पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगा है। बिंदापाथर समेत पूरे जिले में इस प्राकृतिक आपदा ने किसानों की कमर तोड़ दी है। जिस कारण किसान काफी चिंतित है और उनका खेती से मोहभंग होते देखा जा रहा है। लोग अब खेती-बाड़ी छोड़कर दूसरे धंधे में अपना भविष्य तलाशने लगे हैं।

क्षेत्र के लोग चैन्नई, हैदराबाद, मुंबई, दिल्ली जैसे मेट्रो शहरों में मजदूरी करने के लिए गांव छोड़कर जा रहे हैं। पिछले साल भी किसान सुखाड़ की मार झेल चुके हैं। अनुमान है कि इस साल भी खरीफ की फसल सुखाड़ की भेंट चढ़ सकती है।

इलाके के किसान सुकुमार मंडल, बारिन सिंह, खकन घोष, अजित मंडल, राम किस्कू, सरोज सोरेन, विजय यादव आदि ने बताया कि पिछले के हर साल अब तक खेतों की जुताई पूरी हो चुकी होती है। और धान के बिचड़े लगाने का काम शुरू हो जाता है। लेकिन इस बार मौसम की बेरुखी ने हमें चिंता में डाल दी है।

पहले इस सावन के महीने में खेतों में चहल-पहल देखने को मिलता था, चारों तरफ हरियाली छायी रहती थी। हमलोग खेतों की जुताई से लेकर धान के बिचड़े की रोपाई की कार्य में व्यस्त रहते थे। वहीं इस साल मानसून की बेरुखी से ना सिर्फ हमारे अरमानों पर पानी फेर दिया है, बल्कि हमारी कमर ही तोड़ दी है।

वहीं इस मौसम की मार के साथ साथ बीमा कंपनी की दगाबाजी ने नारायणपुर प्रखंड के सैकड़ों किसानों को हिलाकर रख दिया है।

वित्तीय वर्ष 2018-19 में प्रखंड के लगभग सभी गांवों के किसानों ने प्रधानमंत्री फसल बीमा के तहत बीमा करवाया था। वहीं कई किसानों ने वित्तीय वर्ष 2017-18 में भी बीमा करवाया था। किसानों ने इस उम्मीद से बीमा करवाया था कि उन्हें उनकी क्षति हुई फसलों की शायद भरपाई हो जाये, लेकिन उनके उम्मीदों पर लगातार कई वर्षों से पानी फिर जा रहा है।

बड़ी उम्मीद लगाकर किसानों ने प्रति एकड़ भूमि के लिए 440 रुपये की राशि अपनी फसलों की बीमा में खर्च किये, लेकिन अभी तक बीमा की राशि नहीं मिलने से किसान खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं।

किसान गणेश पंडित कहते हैं कि हमने वित्तीय वर्ष 2017-18 में पीएम फ़सल बीमा योजना के तहत ख़रीफ़ फ़सल के लिए बीमा किया था। लगातार कई वर्षों से अच्छी वर्षा नहीं होने के कारण धान की फ़सल नहीं हो सकी है। बीमा की राशि मिलनी चाहिए थी, लेकिन अभी तक नहीं मिलने से ख़ुद को ठगा महसूस कर रहे हैं।

हाशिम अंसरी का कहना है कि हमलोग लगातार कई वर्षों से सुखाड़ की मार झेल रहे हैं। हमने फसल बीमा कराया, लेकिन लाभ नहीं मिला। जबकि समीप के देवघर जिला में किसानों को पीएम फसल बीमा योजना का लाभ दिया गया है, लेकिन हमलोगों को नहीं देकर सौतेला व्यवहार हो रहा है।

पानी के इंतजार में धान के पौधे

किसानन अब्दुल सत्तार का कहना है कि सूबे के कृषि मंत्री के क्षेत्र में किसानों को पीएम फसल बीमा योजना का लाभ मिला है, लेकिन हमलोग अभी तक वंचित हैं। हमलोग भी विगत कई वर्षों से सुखाड़ की मार झेल रहे हैं।

इस संबंध में नारायणपुर प्रखंड के कृषि पदाधिकारी राजेंद्र प्रसाद सिंह कहते हैं कि पीएम फसल बीमा योजना के लाभुकों को राशि देने के लिए सरकार द्वारा पहल की जा रही है। जिन किसानों को आपदा के कारण विगत वर्षों में फसलों का नुकसान हुआ था और वे बीमा करवाए थे। उनका आंकड़ा तैयार किया गया था। उसी के आधार पर बीमा राशि सीधे उनके बैंक खाते में भेजे जा रहे हैं।

मॉनसून की बेवफ़ाई की बात करें तो संताल परगना प्रमंडल क्षेत्र में अच्छी बारिश नहीं होने की वजह से महज 5.2 प्रतिशत ही धनरोपनी पूरे संताल परगना में अब तक हो सकी है, जबकि मक्का का आच्छादन भी इस साल अब तक 21.1 प्रतिशत ही हो पाया है।

पूरे संताल परगना में खरीफ के मौसम में धान के आच्छादन का लक्ष्य 3,64,500 हेक्टेयर है। इसके विरुद्ध 20 जुलाई तक महज 18,939 हेक्टेयर में ही धनरोपनी हो सकी है। दुमका, जामताड़ा व देवघर की उपलब्धि एक प्रतिशत भी नहीं है। जबकि अन्य तीन जिलों गोड्डा में 4.4, साहिबगंज में 19.7 और पाकुड़ में 14.2 प्रतिशत आच्छादन हो चुका है।

दुमका में अमूमन धान की फसल प्रभावित होती भी थी, तो मक्के की खेती पर उस तरह का असर नहीं दिखता था, परंतु इस साल मक्का का आच्छादन भी दुमका में अब तक महज 11 प्रतिशत ही हो पाया है। जबकि देवघर में 18.2, जामताड़ा में 5.9, गोड्डा में 10.6, साहिबगंज में 66.9 तथा पाकुड़ में 16.7 प्रतिशत आच्छादन हो चुका है।

बारिश के अभाव में इस साल अपने खेतों में विभिन्न गांव के छोटे किसान धान रोपनी नहीं कर पाये हैं। उनके खेत खाली पड़े रह गये हैं। अब वे कहते हैं कि बंगाल जाकर मजदूरी करेंगे। खेत और बीज रहने के बावजूद वे केवल पानी की कमी के कारण खेती नहीं कर पा रहे हैं।

सबसे दुखद स्थिति यह है कि वे अकेले नहीं बल्कि अपने साथ काम करने के लिए स्कूल में पढ़ने वाले अपने बच्चों को भी लेकर पलायन कर रहे हैं।

मुरजोड़ा के ग्राम प्रधान शिव शंकर टुडू बताते हैं कि इस साल बारिश नहीं होने से खेत खाली पड़ा है। खेती नहीं होने से मजदूरों को काम नहीं मिल पा रहा है तथा छोटे-छोटे किसान जिनके दो चार बीघे जमीन है, वैसे लोग भी मजदूरी करने को दूसरे राज्यों पलायन कर रहे हैं। वे बताते हैं कि इसी पंचायत के सिजुआ मोड़ के पास भी दर्जनों मजदूरों को बंगाल पलायन करते देखा गया है। बस की प्रतीक्षा कर रहे मसलिया प्रखंड के कोल्होड़ गांव के मिस्त्री हेंब्रम से पूछे जाने पर बताया कि इस बार बारिश नहीं होने से अपने खेतों में धान रोपनी नहीं कर पाये। खेत खाली रह गया और क्षेत्र में भी काम नहीं मिल पा रहा है। इसलिए रोजगार के लिए सपरिवार पलायन कर रहे हैं। हमारे साथ और भी कई लोग बाहर मजूरी करने जा रहे हैं।

(विशद कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं और झारखंड में रहते हैं।)

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