राजस्थान: गिग वर्कर्स को मिलेगा कल्याणकारी योजनाओं का लाभ

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राजस्थान ऐसा पहला राज्य होगा जहां गिग वर्कर्स को 200 करोड़ रुपये के कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिलेगा। पहली बार किसी प्रदेश के मुख्यमंत्री ने गिग वर्कर्स के हितों को ध्यान में रखते हुए उनके लिए कई लाभकारी योजनाओं की घोषणा की है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने फरवरी में अपने बजट भाषण में राजस्थान प्लेटफॉर्म-आधारित गिग वर्कर्स (पंजीकरण और कल्याण) विधेयक, 2023 लाने की घोषणा की। गहलोत ने बजट पेश करते हुए यह घोषणा की और कहा कि गिग वर्कर्स ओला, उबर, स्विगी, ज़ोमैटो, अमेज़न आदि कंपनियों के लिए काम करते हैं और इनकी संख्या तेजी से बढ़ रही है।

उन्होंने कहा कि राज्य में ‘गिग वर्कर्स’ की संख्या बढ़कर 3-4 लाख हो गई है और इनकी सामाजिक सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं है। राजस्थान सरकार गिग वर्कर्स (पंजीकरण और कल्याण) विधेयक, 2023 को लाने के लिए ओवरटाइम काम कर रही है, जिसमें गलत एग्रीगेटर्स के खिलाफ कड़े प्रावधान हैं, जिसमें उन्हें राज्य में संचालन से रोकना भी शामिल है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने फरवरी में अपने बजट भाषण में विधेयक लाने की अपनी सरकार की मंशा की घोषणा की थी।

गिग वर्कर्स वेलफेयर बोर्ड की स्थापना

ड्राफ्ट बिल में राजस्थान प्लेटफॉर्म-आधारित गिग वर्कर्स वेलफेयर बोर्ड की परिकल्पना की गई है, जो राज्य में अलग-अलग ऑनलाइन सेवा प्रदाताओं के साथ काम करने वाले तीन लाख से अधिक कर्मचारियों के लिए मदरशिप की तरह काम करेगा। यह बोर्ड नीतियों को डिजाइन करेगा और श्रमिकों की शिकायतें सुनेगा।

यूनिक आईडी

‘विधेयक में कहा गया है कि, किसी भी प्लेटफ़ॉर्म के साथ पंजीकृत सभी प्लेटफ़ॉर्म-आधारित कार्यकर्ता, प्लेटफ़ॉर्म के साथ उनकी जुड़ने की अवधि के बाद से स्वचालित रूप से बोर्ड के साथ पंजीकृत होंगे। बोर्ड राज्य में एक या एक से अधिक एग्रीगेटर्स के साथ पंजीकृत प्रत्येक प्लेटफॉर्म-आधारित गिग वर्कर के लिए एक यूनिक आईडी देगा। यह यूनिक आईडी तीन साल के लिए मान्य होगी।‘

गहलोत ने बोर्ड को अपना काम शुरू करने के लिए 200 करोड़ रुपये के सीड फंड देने की घोषणा की थी। लेकिन अहम बात ये है कि बिल, बोर्ड को यह अधिकार देता है कि वह यह तय कर सके कि प्रत्येक एग्रीगेटर को इस सामाजिक कल्याण कोष के लिए कितना टैक्स देना होगा। यह टैक्स प्लेटफॉर्म पर होने वाले हर लेनदेन का एक प्रतिशत होगा। मसौदा विधेयक अभी कानून विभाग के पास है, लेकिन उसे जल्द ही सार्वजनिक डोमेन में रखा जाएगा। सूत्रों के मुताबिक, अब तक फूड डिलीवरी प्लेटफॉर्म स्विगी के अलावा, किसी भी एग्रीगेटर से कोई सवाल नहीं किया गया है।

गिग वर्कर्स को कहा जाता है ‘पार्टनर’

मसौदा विधेयक को देश में अपनी तरह का पहला मसौदा बताया जा रहा है। राज्य के श्रम विभाग के सचिव विकास भाले का कहना है कि केंद्र और राज्य दोनों की तरफ से विनियमित कई श्रम कानून हैं, लेकिन दुर्भाग्य से कोई कर्मचारी-नियोक्ता संबंध नहीं है क्योंकि अधिकांश एग्रीगेटर्स ने गिग वर्कर्स को ‘पार्टनर’ के रूप में लेबल किया है। भाले ने कहा कि ‘यह तंत्र ऐसे प्लेटफार्मों के लिए अच्छी तरह से काम करता है क्योंकि यह व्यावहारिक रूप से श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा और दूसरे लाभ प्रदान करेगा।

उन्होंने कहा कि दूसरे राज्यों ने भी, खासकर पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश ने इस कानून में रुचि जताई है। राज्य में औसतन 20-35 वर्ष के लगभग तीन लाख गिग कार्यकर्ता काम कर रहे हैं। प्रदेश की कांग्रेस सरकार जल्द ही इसे लागू करना चाहती है। हालांकि, गिग वर्कर्स के लिए खास सामाजिक कल्याण नीतियों को तैयार करने के लिए इसे बोर्ड पर छोड़ दिया गया है।

(कुमुद प्रसाद जनचौक में सब एडिटर हैं।)

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