पंजाब में शामलात (पंचायती जमीनें) जरूरतमंद किसानों से छीन कर उद्योगपतियों को देने के राज्य सरकार के फैसले और नीति के खिलाफ बाकायदा आंदोलन बड़े पैमाने पर शुरू हो गया है। ‘जनचौक’ ने पूरे मसले पर विस्तृत रिपोर्ट की थी। 24 जनवरी को समूचे पंजाब में 19 जिलों के साथ 25 जगहों पर राज्य सरकार की इस कारगुजारी के विरोध में मंत्रियों और विधायकों के घर घेरे गए और बड़ी तादाद में शिरकत करके लोगों ने विरोध-प्रदर्शन किए और धरने दिए।
हर जगह सामूहिक मांग की गई कि सरकार शामलात जमीनों से किसानों और कृषिकर्मियों को वंचित न करे और सरकारी संरक्षण में चलने वाली इस लूट को सदा के लिए बंद करे। पंजाब की आठ ग्रामीण और खेत मजदूर जत्थेबंदियों की अगुवाई में कायम ‘पंचायती जमीन बचाओ एक्शन कमेटी’ ने इस आंदोलन और धरना प्रदर्शनों की अगुवाई की, जिनमें हर जगह हजारों महिलाओं ने भी शिरकत की। सुबह से ही 19 जिलों के विभिन्न 25 मंत्रियों और कांग्रेस विधायकों के घर घेर लिए गए।
कुछ जगहों पर मंत्री और विधायक अपने घरों में मौजूद थे और अन्य में उनका स्टाफ। उन्हें विरोध एवं मांग पत्र सौंपे गए और उनके घरों के बाहर हजारों किसान और खेत मजदूर शांतिपूर्ण ढंग से शाम तक डटे रहे। भूख-प्यास से एकदम बेपरवाह होकर। सभी चिंतित थे कि किसान हितैषी होने का दावा करने वाली पंजाब सरकार उनकी सांझी जमीनें जबरन छीन कर उन्हें रोजी-रोटी के गहरे संकट में डाल रही है लेकिन सबका एक ही नारा था, ‘हम लड़ेंगे साथी!’ आंदोलनकारियों को अपने घरों के ऐन आगे धरना-प्रदर्शन करते देख कर कई मंत्री और विधायक घरों से बाहर नहीं आए।
आंदोलनकारियों ने हर मंत्री और विधायक के निवास के बाहर पोस्टर चिपकाए कि शामलात जमीनें नईं नीतियों के मकड़जाल में उलझा कर पंचायतों से छीनकर, कारपोरेट घरानों को कौड़ियों के दाम देने का सिलसिला फौरन बंद किया जाए, हर गांव की पंचायती जमीन का तीसरा हिस्सा खेत मजदूरों और दलित परिवारों को देना सुनिश्चित किया जाए, गांवों में रह रहे तमाम बेघरों को सांझी जमीन में से दस-दस मरले के रिहायशी प्लाट दिए जाएं। यह कानूनी हक उन्हें पहले से बना पंचायती एक्ट देता है और राज्य सरकार इसमें छेड़छाड़ अथवा फेरबदल न करे।
सूबे में यह पहला मौका था कि इतने बड़े पैमाने पर जमीन के हक के लिए सरकार के पैरोकारों की ‘आरामगाहें’ बेघर और बेजमीन किसानों और खेत मजदूरों ने मुखालफत में घेरा। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के पटियाला स्थित मोती महल के आगे भी रोष प्रदर्शन हुआ। इसके अतिरिक्त संगरूर, बठिंडा, मानसा, फरीदकोट, फिरोजपुर, लुधियाना, जालंधर, अमृतसर, नवां शहर, होशियारपुर, गुरदासपुर, कपूरथला, तरनतारन, मोहाली, फतेहगढ़ साहिब, फिल्लौर, मुक्तसर, मोगा, बरनाला, फाजिल्का, बटाला और पठानकोट में भी एक ही वक्त, एक अवधि में यह सिलसिला हजारों आंदोलनकारियों ने दोहराया।
हक की इस लड़ाई में 90 साल की बुजुर्ग औरतों-पुरुषों के साथ-साथ छोटे बच्चों ने भी शिरकत की। जालंधर जिले के गांव मानक की 87 वर्षीय वृद्धा करतार कौर ने इस संवाददाता से कहा, “यह हमारे जीवन-मरण का सवाल है। हम अपने अधिकारों के लिए सर्दी, भूख प्यास की परवाह नहीं करेंगे।” कपूरथला के गांव से सैदोवाल के अस्सी साल के बुजुर्ग तारा सिंह के मुताबिक, “सरकार हमारे हक पर खुलेआम डकैती डाल रही है। ऐसा जुल्म अंग्रेज हुकूमत ने भी नहीं किया।”
इसी जिले के गांव जैनपुर के युवा अवतार सिंह भट्टी कहते हैं, “राज्य सरकार ने शामलाट जमीनें गरीब किसानों और कृषि श्रमिकों से छीनकर पूंजी शाहों को देने का इतना बड़ा फैसला कर लिया, लेकिन जिन पर इस सबका अति नुकसानदेह तथा नाकारात्मक असर पड़ेगा, उनसे पूछा तक नहीं गया। यहां तक कि जिन नुमाइंदों को चुनकर हमने विधानसभा में भेजा, वे भी खामोश रहे, लेकिन हम खामोश नहीं रहेंगे। जितनी लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी, लड़ेंगे। मर जाएंगे पर हार नहीं मानेंगे।”
पंजाब खेत-मजदूर यूनियन के महासचिव लक्ष्मण सिंह सेवेवाला ने कहा, “एक तरफ राज्य के लाखों गरीब किसान और खेत मजदूर परिवार लगातार गरीबी का नर्क भोग रहे हैं और उनके सिरों पर अपनी छत तक नहीं है, दूसरी तरफ सरकार कार्पोरेट घरानों को उनके हिस्से में आती खेतिहर जमीनें जबरन छीनकर कार्पोरेट घरानों को देने के लिए इतनी बेताब और तत्पर है कि सारी सरकारी मशीनरी इसी काम के लिए झोंक दी गई है।”
जमीन प्राप्ति संघर्ष कमेटी के नेता मुकेश मलौद कहते हैं, “शामलात जमीनों कि यह सरकारी लूट दरअसल अरबों-खरबों रुपयों के घोटाले की ‘कानूनी बुनियाद’ पर हो रही है। खुद को किसान हितों की हिफाजत करने का दावा करने वाला शिरोमणि अकाली दल इस पर इसलिए खामोश है कि उससे जुड़े कुछ असरदार नेता भी इस खेल में शामिल हैं। इस लूट तंत्र में उनकी गुप्त हिस्सेदारी है। भाजपा भी इसलिए इस मुद्दे की ओर पीठ किए बैठी है कि पंचायती जमीनें उद्योगों के नाम पर सस्ते दामों में हड़पने वाले बड़े-बड़े सरमाएदार चुनावों के दौरान उन्हें मोटा चंदा देते हैं।”
मजदूर मुक्ति मोर्चा पंजाब के भगवंत सिंह के अनुसार, “एक तरफ देश और पंजाब में पंचायती राज मजबूत करने के बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं और दूसरी तरफ पंचायतों को मिले संवैधानिक अधिकारों को इस तरह बाकायदा सरकारी नीतियां बनाकर कुचला जा रहा है। गांवों और भूमिहीन गरीब कृषि कर्मियों की परवाह न दिल्ली में बैठी भाजपा सरकार को है और न चंडीगढ़ से शासन चला रही कांग्रेस सरकार को। अदालतों के फैसलों को भी धत्ता बताया जा रहा है।”
पंजाब के मंत्रियों और विधायकों के घरों के बाहर लगे जनमोर्चों की बाबत कतिपय मंत्रियों और विधायकों से फोन पर संपर्क किया गया तो उनके सहायकों ने विषय सुनते ही राग अलापा कि ‘साहब मीटिंग में हैं’, ‘साहब दौरे पर हैं’, ‘साहब की तबियत ठीक नहीं’, ‘साहब सोए हुए हैं’…..! एक मंत्री के यहां से तो यह जवाब मिला कि मंत्रीजी गणतंत्र दिवस की तैयारियों में मशगूल हैं और 27 जनवरी को ‘थकान’ उतारने के बाद जवाबी फोन करके बात करेंगे।
वरिष्ठ अधिकारियों ने भी इसी मानिंद टाल दिया कि वे 26 जनवरी की रिहर्सल में व्यस्त हैं और इस मामले पर पूरी जानकारी के बाद ही कुछ कह पाएंगे। असल में तमाम सरकारी अमला बखूबी जानता है कि क्या हो रहा है और उसे क्या करना है, लेकिन जुबान कोई नहीं खोलना चाहता। सिवाय उन लोगों के जिन पर इसका सीधा नागवार असर पड़ना है या पड़ रहा है।
जमीन बचाओ आंदोलन की अगुवाई करने वाले संगठनों, खेत मजदूर यूनियन, पेंडू मजदूर यूनियन, पंजाब खेत मजदूर सभा, क्रांतिकारी पेंडू मजदूर यूनियन, देहाती मजदूर सभा, मजदूर मुक्ति मोर्चा के नेताओं ने बताया कि आने वाले दिनों में जेल भरो आंदोलन शुरू किया जाएगा। पंचायत की सांझी शामलात जमीन के एक-एक इंच के लिए संघर्ष जारी रहेगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और जालंधर में रहते हैं।)
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