Tuesday, March 19, 2024

बस्तर में सुरक्षाबल कैंपों का विरोध: कैसे खत्म होगा आदिवासियों का डर

बस्तर में पिछले 3 सालों से स्थानीय आदिवासी लगातार सुरक्षाबल कैंपों का विरोध कर रहे हैं। स्थानीय आदिवासियों को डर है सुरक्षाबल उन पर ज्यादती करेंगे। क्योंकि कैंप खुलने से उनके रहन-सहन से लेकर दूसरी गतिविधियों पर सुरक्षाबलों की निगरानी बढ़ जाती है। दूसरी ओर पुलिस के आला अधिकारियों का  कहना है कि यह विरोध नक्सलियों के दबाव में किया जा रहा है।

छत्तीसगढ़ प्रदेश के बस्तर अंचल के उत्तर बस्तर क्षेत्र में भी 3 जगहों पर कैंप का विरोध जारी है। कांकेर के छोटेबेटिया क्षेत्र के बेचाघाट में कोटरी नदी के किनारे एक साल से पुल और कैंप का विरोध किया जा रहा है। वहीं कोयलीबेड़ा विकासखण्ड के ग्राम पंचायत पानीडोबीर का आश्रित गांव चीलपरस में 18 ग्राम पंचायत के 68 गांव के आदिवासी 52 दिनों से नए कैंप के विरोध में बैठे हैं।

हाल ही में कोयलीबेड़ा विकासखंड के ही ग्राम पंचायत मेंडरा के आश्रित गांव नदीचुआ में नया बीएसएफ कैंप खोलने से 40 गांव के ग्रामीण 8 दिनों से विरोध में बैठे हुए हैं। विरोध में बैठे इन ग्रामीणों से अब तक किसी प्रशासनिक अधिकारी ने बात नहीं की है। 

नदीचुआ में बैठे ग्रामीण बलिराम बड्डे का कहना है कि 21 जनवरी को रातों-रात एक किसान की जमीन पर बीएसएफ कैंप बना दिया गया है। हम मांग करते हैं कि वहां से बीएसएफ कैंप हटाई जाए। ग्रामीणों का कहना है कि हम विकास के लिए स्कूल मांगते हैं, अस्पताल मांगते हैं लेकिन सरकार वह सब सुविधाएं नहीं दे रही है बल्कि कैंप बना रही है।

BSF कैंप का विरोध

ग्रामीणों का ये भी कहना है कि इस क्षेत्र के पहाड़ों में कॉपर, लौह, अयस्क हैं। वे पहाड़ों में कैंप बनाकर खदान चालू करेंगे तो कई तरह की बीमारियां पैदा होंगी। पूरे बस्तर संभाग में लगभग 18 जगहों पर विरोध चल रहा है। हम यही मांग करते हैं कि कैंपों को हटाया जाए,  महिलाओं के साथ सुरक्षाबल के जवान जो अत्याचार करते हैं वो बन्द हो। अभी तक एसडीएम हमसे मिलने आए थे। दो दिन का अल्टीमेटम दिया गया है। हमारी मांगें पूरी नहीं हुई तो चक्काजाम करेंगे। 

यही हाल कोयलीबेड़ा ब्लॉक के ही ग्राम पंचायत पानीडोबीर के आश्रित गांव चिलपरस का है। जहां दिसम्बर 2022 में रात के अंधेरे में बीएसएफ कैंप खोले जाने के विरोध में कागबरस में हजारों ग्रामीणों ने विरोध प्रदर्शन करते हुए चक्काजाम कर दिया।  चक्काजाम में 18 ग्राम पंचायतों के 68 गांवों के हजारों ग्रामीण शामिल हुए।

इस दौरान ग्रामीणों ने प्रशासन को अल्टीमेटम देते हुए कहा कि कागबरस में तीन दिनों तक चक्काजाम के बाद भी बीएसएफ कैंप नहीं हटा तो यह आंदोलन कोयलीबेड़ा की तरफ बढ़ेगा।  हम सभी आदिवासी जल, जंगल, जमीन की रक्षा कर रहे हैं और सरकार कैंप खोलकर हमें परेशान कर रही है।

विरोध करते आदिवासी

ग्रामीणों ने कहा कि उन्होंने गांव के विकास के लिए स्कूल, अस्पताल और धान खरीदी केंद्र खोलने के लिए प्रशासन को ज्ञापन सौंपा था। क्षेत्र के विधायक और सांसद के सामने भी स्कूल, अस्पताल और धान खरीदी केंद्र खोलने के लिए गुहार लगाया था। लेकिन ग्रामीणों की मांगों को रद्दी की टोकरी में डालते हुए प्रशासन ने यहां बीएसएफ कैंप खोल दिया है। 52 दिनों तक गांव में आंदोलन करने के बाद भी उच्चाधिकारी और क्षेत्र के विधायक और सांसद मौके पर नहीं आए तो अब ग्रामीणों ने खुद एक-एक कदम कोयलीबेड़ा की तरफ बढ़ाने का निर्णय लिया है।

बेचाघाट में भी कैंप के विरोध में ग्रामीणों का आंदोलन जारी

ग्रामीणों ने कहा कि हम जल, जंगल, जमीन की रक्षा के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं। यही नहीं बेचाघाट और मेंडरा में बीएसएफ कैंप के विरोध में आंदोलन चल रहा है। सरकार ग्रामसभा की शक्तियों को सही ढंग से लागू नहीं कर रही है। अगर ग्रामसभा को नहीं माना जा रहा है तो पेशा कानून क्यों लागू किया गया।

ग्रामीणों ने कहा की बीएसएफ कैंपों के माध्यम से जंगलों को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। कैंप के नाम पर पेड़ काटे जा रहे हैं। हम जंगलों पर आश्रित लोग हैं। पेड़, पौधे, नदी, पहाड़ और जंगलों में हमारे देवी-देवता का वास रहता है। पर सरकार बस्तर में जगह जगह कैंप खोलकर विकास के नाम पर जंगल, पहाड़ों और पेड़ पौधों को नुकसान पहुंचा रही है।

बस्तर के पुलिस अधिकारियों के अनुसार पिछले 1 साल में बस्तर संभाग में 23 नए कैंप खोले गए हैं। अफसरों के मुताबिक कैंप खुलने से नक्सली गतिविधियां वर्ष 2022 में सबसे कम दर्ज की गई हैं। बस्तर संभाग के नक्सल प्रभावित जिलों में विशेष बल डीआरजी, एसटीएफ, कोबरा और स्थानीय पुलिस बल के साथ ही केंद्रीय अर्धसैनिक बल भी तैनात हैं।

सुरक्षाबल के जवानों की ओर से नक्सल विरोधी अभियान लागातार संचालित किए जा रहे हैं। इसी के तहत हर साल नए कैंप खोले जाते हैं। लेकिन पिछले साल वर्ष 2022 में कुल 23 नए कैंप खोले गए हैं। वहीं पिछले 4 सालों की बात की जाए, तो 2019 से 2022 तक 54 नए कैंप खोले गए हैं। बस्तर संभाग में 7 जिले हैं।  इनमें सबसे ज्यादा सुकमा जिले में 13 कैंप पिछले 4 साल में खोले गए हैं।

(बस्तर से तामेश्वर सिन्हा की रिपोर्ट)

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