Friday, April 26, 2024

शहीद क्रांतिकारी जतिन दास की शहादत के मौके पर जेल की समस्याओं को लेकर पत्रकार रूपेश अनशन पर

रांची। सरायकेला खरसावां जेल में बंद पत्रकार रूपेश कुमार सिंह ने आज क्रांतिकारी जतिन दास की शहादत के मौके पर जेल की विभिन्न समस्याओं को लेकर एक दिवसीय अनशन पर बैठ गए हैं। इस सिलसिले में उन्होंने राष्ट्रपति को एक पत्र भी लिखा था जिसे उनके द्वारा झारखंड की सरकार को फारवर्ड कर दिया गया है।

इन कुछ सालों का भारत का इतिहास जब लिखा जाएगा तो बड़ा ही विचित्र रहेगा, क्योंकि इन कुछ सालों से जेलें उन लोगों द्वारा भरी जा रही हैं जो समाज के लिए जी रहे हैं, सामाजिक कार्यकर्ता, वकील, शिक्षक, जनपक्षीय पत्रकार, गायक, प्रोड्यूसर तथा अन्य न्यायपसंद लोगों को जेल भुगतना पड़ रहा है, वह भी अपने जन सरोकार के कारण। सत्ता के द्वारा असहमति की हर आवाज को जेलों में भरा जाने वाला यह समय स्पेशल इतिहास रचेगा।

17 जुलाई 2022 को भी ऐसी ही गिरफ्तारी झारखंड के पत्रकार रूपेश कुमार सिंह की हुई थी, जिसका कारण उनकी जनपक्षीय लेखनी ही है, जिन्हें अभी मंडलकारा सरायकेला में रखा गया है।

रूपेश जी को जेल के पहले दिन से लेकर अब तक खाने-पीने, रहने, शारीरिक सुरक्षा को लेकर बार-बार सवाल उठाने की जरूरत पड़ती रही है। जेल में भी वे अपनी जनपक्षधरता से दूर नहीं है, और जेल की बदतर व्यवस्था में बदलाव के लिए आवाज उठाने की पहल उन्होंने शुरू कर दी है। हमारे शहीद क्रांतिकारी जतिंद्र नाथ दास उर्फ जतिन दास जिन्होंने अपनी जान की कुर्बानी तक ब्रिटिश काल की बदतर जेल व्यवस्था के खिलाफ 62 दिनों तक के भूख हड़ताल के कारण दे दी थी, की शहादत दिवस 13 सितंबर यानी आज रुपेश कुमार सिंह सरायकेला जेल की वर्तमान बिगड़ी व्यवस्था में बदलाव के लिए एक दिवसीय भूख हड़ताल कर रहे हैं। और यदि फिर भी व्यवस्था में बदलाव न किया गया तो शहीद जतिन दास की विरासत को आगे बढ़ाते हुए अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठ जाएंगे, इस संबंध में रूपेश ने एक आवेदन राष्ट्रपति महोदया के नाम भी भेजा है।

आज जेलों की स्थिति इतनी बदतर बनाई जा चुकी है, कि जेल में जेल मेन्युअल के हिसाब से खाना तो दूर उससे कहीं निम्न स्तर का खाना खाकर भी कैदी चुप रह रहे हैं, और यदि किसी को अच्छा खाना चाहिए होता है तो हर कोई एक ही रास्ता जानता है, चोर दरवाजे से अच्छे खासे रकम देकर पाना।

इसी तरह के और भी मुद्दे हैं, जैसे क्षमता से अधिक बंदियों का भरा जाना, मुलाकात के लिए 15 दिनों में एक दिन रखा जाना वह भी बहुत कम समय के लिए, और व्यवस्था ऐसी कि चेहरा भी ठीक से न दिख पाए, आवाज भी ठीक से न सुनाई दे या आपकी बातचीत रिकॉर्ड होती रहे। 

जेल को तो कहने को सुधारगृह कहा जाता है मगर अगर इसे यातना गृह कहा जाए, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। क्या यह व्यवस्था यातना देने से कम है, जेल में तो कई तरह के लोग कैद किए जाते हैं, कुछ वास्तविक अपराधी होते हैं, कुछ अपराध के लिए मजबूर होने वाले लोग हैं और कई तो निर्दोष ही होते हैं, झूठे केस में फंसाए गए। तो ऐसे लोग आखिर किस बात की सजा भुगतते हैं। अपनी अच्छी खासी जिंदगी छोड़कर जेल की इन बदतर स्थिति को झेलने को क्यों अभिशप्त हैं?

जेलों की इन्हीं स्थितियों पर रूपेश द्वारा राष्ट्रपति को आवेदन पत्र भेजा गया है, चूंकि वे जेल में बंद हैं इसलिए पत्र उन्होंने जेल सुपरिटेंडेंट को सुपुर्द कर दिया है, इस उम्मीद के साथ कि जल्द से जल्द उसे राष्ट्रपति को भेज दिया जाए।

राष्ट्रपति को भेजे गए पत्र में उन्होंने शुरू में अपना पूरा परिचय देते हुए कहा है कि “जैसा कि आप जानती हैं कि ब्रिटिश काल में हमारे देश के महान क्रांतिकारी जतिंद्र नाथ दास उर्फ जतिन दास ने तत्कालीन लाहौर जेल में बंदियों के मूलभूत सुविधा उपलब्ध कराने एवं जेल में बंदियों के शोषण के खिलाफ 13 जुलाई 1929 से भूख हड़ताल प्रारंभ किया था, जो अनवरत 62 दिन तक उनके शहादत तक चला, अंततः 13 सितंबर 1929 को बंदियों के अधिकार के लिए भूख हड़ताल के कारण जतिन दास शहीद हो गए”।

उन्होंने कहा कि हमारे देश से अंग्रेजों को गए हुए 75 साल हो गए, आज हमारा देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, लेकिन आज भी हमारे देश की जेलों की स्थिति बहुत बेहतर नहीं है। आज हमारे देश की जेलें क्षमता से अधिक कैदियों से भरी हुई हैं। जेलों में न तो पर्याप्त सिपाही हैं, और न ही पर्याप्त कर्मचारी। जेल कर्मियों को प्रत्येक दिन दो शिफ्ट में लगभग 10 से 11 घंटे ड्यूटी करनी पड़ती है, जो कि भारतीय श्रम कानून 8 घंटे कार्य दिवस के खिलाफ है। इन सिपाहियों को साप्ताहिक छुट्टी भी नहीं मिलती है।

पत्र में रूपेश ने कहा है कि जेल में सबसे बुरी स्थिति विचाराधीन बंदियों की है, छोटे-छोटे मुकदमों में भी उन्हें वर्षों बिना जमानत के जेल में रहना पड़ता है। मैं 18 जुलाई 2022 से झारखंड के मंडलकारा सरायकेला में बंद हूं, जहां ना तो बंदियों को पौष्टिक भोजन मिलता है, और ना ही बंदी मरीजों को पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधा, यहां नाश्ता में सप्ताह में तीन दिन मूढ़ी-प्याज, तीन दिन चना-प्याज, एक दिन चूड़ा-गुड़ मिलता है। दोपहर भोजन में प्रत्येक दिन चावल, दाल और सब्जी एवं रात के खाने के लिए रोटी, दाल और सब्जी मिलती है। (जिसकी गुणवत्ता बिल्कुल बदतर होती है, जिससे पौष्टिकता की उम्मीद नहीं की जा सकती) हां खानापूर्ति के लिए 15 दिन में एक दिन दो पीस मुर्गा का मीट भी मिलता है।

क्या यह बंदियों के लिए पौष्टिक आहार है?

उन्होंने कहा कि यहां पर कुष्ठ रोगी बंदी एवं एड्स रोगी बंदी को अस्पताल में रखने के बजाय सेल में बंद कर रखा जाता है, क्या यह बंदी मरीजों के मानवाधिकार का उल्लंघन नहीं है?

यहां बंदियों को अपने परिजनों को फोन करने में प्रति मिनट के लिए 2:50 रूपये देना होता है। मुलाकाती 15 दिन में एक दिन होती है, जिसमें सिर्फ 10 मिनट बात करने की अनुमति है, क्या यह बंदियों की आर्थिक व मानसिक प्रताड़ना नहीं है?

इस कड़ी में उन्होंने बंदियों को उचित पौष्टिक आहार देने, मरीज बंदियों को अस्पताल में रखने, बंदियों को मुफ्त फोन सुविधा उपलब्ध कराने, मुलाकाती सप्ताह में एक दिन करने व कम से कम 20 मिनट बात करने की अनुमति देने की मांग की है।

(इलिका प्रिय की रिपोर्ट।)

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