लोकसभा के आम चुनाव में रॉबर्ट्सगंज की संसदीय क्षेत्र और दुद्धी विधानसभा के हुए उपचुनाव में कनहर बांध से हुए विस्थापित परिवारों ने भाजपा-आरएसएस की राजनीति को नकार दिया है। खुद मुख्यमंत्री द्वारा दुद्धी विधानसभा में सभा करने और सिंचाई एवं जल शक्ति मंत्री स्वतंत्र देव सिंह द्वारा अमवार गांव में कनहर विस्थापितों का सम्मेलन कर उनसे आशीर्वाद लेने के बावजूद विस्थापितों ने भाजपा को वोट नहीं दिया और वह विस्थापित बूथों पर बुरी तरह हारी। विस्थापित गांव गोहडा, सुदंरी, भीसुर, कोरची, अमवार, बधाडू, बैरखड, लाम्बी्र बरखोरहा में भाजपा-अपना दल गठबंधन सभी बूथों पर हारा है।
संसदीय क्षेत्र के बैरखड गांव में सपा को क्रमश: 328 व 304 और भाजपा को 102 व 82 वोट मिले। इसी प्रकार अमवार बनी विस्थापित कालोनी और गांव के विभिन्न बूथों में सपा को 290, 260, 265, 109, 245 और 236 वोट मिले। वहीं भाजपा-अपना दल गठबंधन को 65, 134, 129, 62, 61 और 69 वोट मिला। बधाडू में सपा को 391, 282, 427, 461 और 466 वोट मिला और गठबंधन को 150, 174, 101, 68 और 82 वोट मिला। लाम्बी में सपा को 208 वोट और एनडीए को 77 वोट मिला। कोरची में सपा को 359 और एनडीए को 157 वोट मिला। अमवार कालोनी में सपा को 242 और एनडीए को 56 वोट मिला। गोहडा में सपा को 236, 344 वोट मिला वहीं एनडीए को 85, 47 वोट मिला। बरखोरहा में सपा को 386 और एनडीए को मात्र 93 वोट मिले। यही स्थिति कमोवेश दुद्धी विधानसभा के उपचुनाव में भी दलों की रही है।
दरअसल कनहर के विस्थापित भाजपा-आरएसएस की राजनीति से मायूस हुए है। जबकि पिछले चुनाव में इन्हीं क्षेत्रों से भाजपा को काफी वोट मिले थे और उसकी जीत सुनिश्चित हुई थी। इसके कारणों पर जाने से पहले देखें की कनहर परियोजना है क्या और इससे विस्थापित हुए परिवारों के साथ हुआ क्या है।
उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जनपद के अमवार गांव में कनहर व पांगन नदी पर निर्मित हो रहे कनहर बांध का शिलान्यास 1976 में उ0प्र0 के तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने किया था। शिलान्यास के वक्त जारी दस्तावेज में कहा गया कि इस सूखाग्रस्त क्षेत्र के विकास के लिए परियोजना का निर्माण किया जा रहा है और यह बांध मूलतः सिंचाई परियोजना के लिए बनाया जाना है। इस सिंचाई परियोजना से अति पिछड़ी दुद्धी तहसील के 108 गांवों में सिंचाई व्यवस्था होनी है।
शिलान्यास के वक्त सरकार ने जनता से वायदा किया कि जमीन के बदले जमीन व रोजगार दिये जायेंगे और पूरे क्षेत्र में हरियाली आ जायेगी जिसका क्षेत्रीय जनता ने स्वागत किया। परन्तु सरकार ने वायदा खिलाफी करते हुए विस्थापित हो रहे परिवारों को सिर्फ 1894 के भूमि अधिग्रहण अधिनियम के तहत प्रतिकर देना शुरू किया। यही नहीं 1980 तक जो अधिग्रहण जमीनों का किया गया था, उसमें भी बहुत सारे परिवारों को मुआवज़ा भी नहीं प्रदान किया गया क्योंकि सर्वे में भारी अनियमितता के चलते उनके जमीन को डूब क्षेत्र में नहीं माना गया।
विस्थापित हो रहे इन परिवारों को न तो कहीं अन्यत्र बसाया गया और न ही उनके जीविकोपार्जन के लिए रोजगार व ज़मीन दी गयी। पूर्व में शासन द्वारा कनहर डैम का निर्माण कार्य स्थगित कर देने से डूब क्षेत्र के लोग अपने मूल स्थान पर बसे रहे। 1995 में पंचायत राज अधिनियम के तहत इन गांवों में पंचायतें गठित की गयीं और मनरेगा सहित अन्य सरकारी योजनाओं के तहत विकास कार्य कराये गये। वनाधिकार कानून बन जाने पर ग्रामीणों द्वारा इन क्षेत्रों के जंगल की जमीन पर दावे भी जमा कराये गये हैं।
1984 के सर्वे के अनुसार डैम का अधिकतम जल स्तर 267.92 मी0, कुल जल संचय क्षमता 0. 262 मिलियन एकड़ फुट, डैम की लम्बाई 3. 24 किमी, अधिकतम 39. 90 मी. अधिकतम डिस्चार्ज 9.80 लाख क्यूसेक, मुख्य नहर 141. 45 किमी, अन्य नहर 150.00 किमी, वार्षिक सिंचाई 81828 एकड़ व अतिरिक्त उत्पादन 6555 मी. टन था। इस परियोजना के पूर्ण होने का लक्ष्य वित्तीय वर्ष 1992-93 था। 26 फरवरी 1979 को राज्यपाल द्वारा इस क्षेत्र की भूमि को अधिग्रहित करते हुए भूमि अर्जन अधिनियम 1894 की धारा 4 की उपधारा (1) व धारा 17 की उपधारा (4) के अधीन करते हुए इसे सार्वजनिक उपयोग में अति आवश्यक बताया था।
लेकिन 1984 से 2011 तक कनहर डैम में कोई भी कार्य नहीं किया गया। 2015 में तात्कालीन अखिलेश सरकार द्वारा 22 अरब 39 करोड़ बजट आवंटित करने के पश्चात काम शुरू किया गया। इस कार्य के शुरू होने पर विस्थापित हो रहे हजारों परिवारों ने पुनर्वास व न्यूनतम जीवन निर्वाह योग्य जीविकोपार्जन का इंतजाम करने की मांग को लेकर आंदोलन शुरू कर दिया था। सिंचाई विभाग द्वारा दी गई रिपोर्ट के आधार पर उ0 प्र0 शासन द्वारा शासनादेश संख्या 2265/14-17-सि.-4-112(डब्लू)/ 14, दिनांक 30 अक्टूबर 2014 के अनुसार जिलाधिकारी सोनभद्र द्वारा प्रस्तावित पुर्नवास एवं पुर्नव्यवस्थापन के संबंध में चालू वित्तीय वर्ष 2014-15 के अनुसार 7 लाख 11 हजार रुपये का पैकेज व 150 वर्ग मी प्लाट देने की घोषणा की गयी।
इस पैकेज में जमीनों के पुनः अधिग्रहण और विस्थापितों की जमीन व मकान का कोई मुआवजा नहीं था और न ही रोजगार की तथा रोजगार न देने की स्थिति में भत्ते को देने कोई व्यवस्था थी। जबकि भूमि अधिग्रहण कानून 2013 की धारा 24 के अनुसार यदि 5 वर्ष तक अधिग्रहित भूमि पर निर्माण कार्य शुरू नहीं किया जाता है तो वह अधिग्रहण शून्य माना जाएगा और उस जमीन का पुनः अधिग्रहण किया जायेगा। 2013 के कानून के अनुसार इस पुनः किए अधिग्रहण के अनुसार विस्थापित लोगों को मुआवजा देने और रोजगार व रोजगार के बदले मुआवजा का प्रावधान है।
यही नहीं उक्त विस्थापित पैकेज का लाभ मूल विस्थापित (प्रथम पीढ़ी) के 1044 परिवारों की तीन पीढ़ी के हर वयस्क व शादीशुदा परिवार जिसका अलग चूल्हा हो को ही देने की बात कही गयी है, इस प्रकार प्रशासन ने 1810 परिवारों की सूची जारी कर दी। मौजूदा स्थिति में इस सूची की कोई वैधता नहीं है क्योकि सर्वें व सीमांकन में ही भारी अतंर आता रहा है और 1980 के बाद डूब क्षेत्र में आ कर बसे अथवा भूमिहीन-आवासविहीन या फिर अन्य किसी कारण से मूल सूची में नाम दर्ज नहीं होने वाले परिवारों को इस पैकेज का लाभ नहीं प्रदान करना अन्याय है। इस पैकेज में उन भूमिहीन परिवारों को जो अधिग्रहण के वक्त जंगल की जमीन व वन संपदा-नदी पर निर्भर थे, उन्हें भी किसी तरह के विस्थापन पैकेज देने से प्रशासन ने इंकार कर दिया।
ऐसी स्थिति में नए सिरे से 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून के अनुसार अधिग्रहण करने और इसके अनुरूप न्यायोचित पुर्नवास एवं जीविकोपार्जन की गारण्टी पाने की उम्मीद में 23 दिसम्बर 2015 से कनहर डैम के पास पांगन नदी पर विस्थापितों ने घरना शुरू कर दिया था जिस पर पुलिस व प्रशासन ने जर्बदस्त दमन किया। विस्थापितों पर रबर की गोली और आंसू गैस चलाए गए, भीषण लाठीचार्ज किया गया। इसमें अकलू बैगा को गोली लगी और किसी तरह उसकी जान बची। सैकड़ों लागों पर गम्भीर धाराओं में मुकदमें कायम किए गए।
बहरहाल 2016 से शुरू हुआ मूल बांध का निर्माण कार्य 2022 में जाकर पूरा हुआ। इस मूल बांध के बन जाने से सभी विस्थापित गांव जलमग्न हो गए और वहां के लोग अमवार कालोनी की विस्थापित बस्ती में आकर बस गए हैं। सरकार ने 1044 मूल विस्थापित परिवार चिन्हित किए थे जिनकी तीन पीढ़ी को 711000 रुपए का विस्थापन पैकेज दिया जाना था। सरकारी सूची के 4143 परिवारों में से लगभग 200 ऐसे परिवार हैं जिन्हें विस्थापन पैकेज अभी तक नहीं दिया गया। इसी तरह बाद में जोड़े गए प्रपत्र छह के 424 परिवारों में से लगभग 390 परिवारों को अभी तक विस्थापन पैकेज का लाभ नहीं मिल पाया है।
यह भी गौर करने लायक है कि उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता के अनुसार पुत्रियां भी पिता की पुश्तैनी जमीन में अधिकार प्राप्त करती हैं। बावजूद इसके सरकार द्वारा जो सूची बनाई गई उसमें विस्थापितों की लड़कियों को शामिल नहीं किया गया और उन्हें विस्थापन पैकेज से वंचित कर दिया गया। इसी तरह जिन लोगों के पास प्रपत्र 3 या 11 है अर्थात जिनका मकान बना था लेकिन सूची में उनका नाम नहीं था वह भी विस्थापन पैकेज के लाभ से वंचित कर दिए गए हैं। अगर विस्थापितों की मानें तो बधाडू में 66, गोहडा में 60, अमवार में 158, कुदरी में 122, बरखोहरा में 346, सुगवामान 331, कोरची में 733, भीसुर में 425, सुंदरी में 776, लाम्बी में 88, रन्दह में 18 लगभग 3100 परिवार विस्थापन पैकेज के लाभ से वंचित हो गए हैं।
अखिलेश सरकार के दमन के विरूद्ध और मुआवजा की आस में कनहर विस्थापित बड़ी संख्या में भाजपा के साथ चले गए और 2017 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने भाजपा-अपना दल के विधायक प्रत्याशी को बड़ी संख्या में वोट दिया और उनकी जीत सुनिश्चित की थी। यह सिलसिला 2019 के लोकसभा चुनाव और 2022 के विधानसभा चुनाव में भी जारी रहा। इसी दौरान भाजपा और आरएसएस इस क्षेत्र में छोटी-छोटी बातों पर साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण कराने की भी कोशिश करती रही।
आरएसएस के स्थानीय प्रचारक के नेतृत्व में कनहर विस्थापितों के संघ का निर्माण कर छूटे हुए विस्थापितों का नाम सूची में शामिल कराने और शेष बचे परिवारों को मुआवजा दिलाने का आश्वासन दिया जाता रहा। लेकिन इन सवालों के हल होने की कौन कहे सरकारी संवेदनहीनता की पराकाष्ठा यह रही कि विस्थापित कॉलोनी में लोगों को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गरिमापूर्ण जीवन जीने के अधिकार से भी वंचित कर दिया गया और उन्हें बुनियादी सुविधाएं भी मुहैया नहीं कराई गई।
विस्थापित बस्ती की हालत यह है कि वहां जो अस्पताल बना है वह चालू नहीं है उसमें ताला लटका हुआ रहता है। वहां बने प्राथमिक विद्यालय में मात्र दो अध्यापक हैं। अध्यापकों की नियुक्ति ना होने से बच्चों की पढ़ाई बाधित हो रही है। विस्थापितों के लिए इंटर कालेज बनाने का वायदा पूरा नहीं हुआ। विस्थापित कॉलोनी में ना तो सड़क बनाई गई है और ना ही शौचालय यहां तक कि सफाई का कोई इंतजाम नहीं है परिणामतः कभी भी वहां बड़ी महामारी फैलने का खतरा है।
केंद्र और राज्य में भारतीय जनता पार्टी की सरकार रही और डबल इंजन सरकार की ताकत का बार-बार बड़ा प्रचार किया जाता रहा है। लेकिन कनहर बांध को पूरा करने के लिए 1050 करोड़ रुपए पिछले दो वर्ष से केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई परियोजना से मांगा जाता रहा जिसे नहीं दिया गया। परिणाम स्वरूप कनहर बांध का काम अधूरा है, नहरें बन नहीं पा रही हैं और विस्थापितों को भी मुआवजा प्राप्त नहीं हो पा रहा है।
गौरलतब है कि सरकार के नीति आयोग के अनुसार सोनभद्र जनपद देश के अति पिछड़े जनपद में आता है उसकी दुद्धी तहसील तो और भी पिछड़ी हुई है। यहां आज भी लकड़ी के हल बैल से खेती होती है और सिंचाई का साधन न होने से खेती बड़े पैमाने पर अनुत्पादक बनी हुई है। गांव में आजीविका का साधन न होने के कारण यहां से बड़े पैमाने पर रोजगार के लिए पलायन होता है। ऐसे में कनहर सिंचाई बांध बनने से यहां की खेती किसानी उन्नत व उत्पादक होती और आजीविका का इंतजाम होने से पलायन भी रूकता।
इन परिस्थितियों में पिछले वर्ष आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट ने हस्तक्षेप किया और नागरिक समाज की तरफ से 16 अगस्त को बड़ा सम्मेलन दुद्धी सिविल बार के हाल में किया गया। इस सम्मेलन में बार एसोसिएशन के पदाधिकारी, कई जिला पंचायत सदस्य, वर्तमान व पूर्व प्रधान, बीडीसी, सपा, आइपीएफ, सीपीएम, सीपीआई के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इस सम्मेलन में दुद्धी में सिंचाई व्यवस्था के लिए उसकी लाइफलाइन कनहर सिंचाई परियोजना को तत्काल पूरा करने और विस्थापितों के सवाल को हल करने की बात उठी।
इस चुनाव में भी एजेण्डा लोकसभा चुनाव को लेकर लगातार विस्थापितों के बीच अभियान चलाया गया और भाजपा द्वारा विस्थापितों को वोटबैंक बनाकर इस्तेमाल करने की राजनीति का भंडाफोड़ किया गया। परिणामतः इस चुनाव में विस्थापितों ने भाजपा की राजनीति को खारिज कर दिया। अब नए चुने गए सपा सासंद और दुद्धी के सपा विधायक से कनहर सिंचाई बांध को हल कराने की यहां के लोगों को उम्मीदें है।
(दिनकर कपूर ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के प्रदेश महासचिव हैं)