कोलकाता। क्या पश्चिम बंगाल में अल्पसंख्यकों का तृणमूल कांग्रेस से मोहभंग हो रहा है। राज्य के मुसलमानों को अब ममता दीदी पर भरोसा नहीं है। सागरदिघी विधानसभा उपचुनाव में मिली करारी हार के बाद टीएमसी के अंदर यही बहस चल रही है। अल्पसंख्यकों के मोहभंग की बात तो दूर अब पार्टी मुस्लिम नेता भी ममता बनर्जी से दूरी बनाने लगे हैं। ताजा घटनाक्रम जनाधार का नहीं उनके समर्थक नेताओं का है, जो उनका साथ छोड़ना चाह रहे हैं।
तृणमूल कांग्रेस के अनुभवी अल्पसंख्यक चेहरे और 1967 से पश्चिम बंगाल के उत्तर दिनाजपुर जिले में इस्लामपुर विधानसभा क्षेत्र से 11 बार निर्वाचित विधायक अब्दुल करीम चौधरी बागी हो गए हैं। उन्होंने राज्य में त्रिस्तरीय पंचायत प्रणाली के लिए आगामी चुनावों की रणनीति को अंतिम रूप देने के लिए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की अध्यक्षता में शुक्रवार दोपहर कोलकाता में होने वाली पार्टी की महत्वपूर्ण बैठक में शामिल न होने का फैसला किया है। बैठक का मुख्य एजेंडा आगामी पंचायत चुनाव है। वहां पार्टी आलाकमान निर्देश देगा।
चौधरी ने कहा कि “वहां कुछ कहने की गुंजाइश नहीं है। इसलिए, मैं बैठक में शामिल नहीं होऊंगा।”
यही नहीं चौधरी बुधवार को उत्तर दिनाजपुर जिला कोर कमेटी की बैठक में भी शामिल नहीं हुए, जिसे पार्टी के जिला अध्यक्ष कन्हैया लाल अग्रवाल ने बुलाया था, जिनके साथ चौधरी के मतभेद हाल के दिनों में कई बार सामने आए थे।
हाल ही में चौधरी ने पार्टी विधायक पद से इस्तीफा देने तक की धमकी दी थी। हालांकि, अगले ही दिन उन्होंने कहा कि वह तृणमूल कांग्रेस में बने रहेंगे लेकिन बागी विधायक के तौर पर।
चौधरी ने सार्वजनिक रूप से मांग की थी कि अग्रवाल को पार्टी के जिलाध्यक्ष के पद से हटा दिया जाना चाहिए क्योंकि वह जिले में पार्टी के भीतर अंतर्कलह को हवा दे रहे हैं।
दक्षिण कोलकाता में मुख्यमंत्री के आवास पर आयोजित होने वाली पार्टी की शुक्रवार की बैठक विभिन्न पहलुओं पर पार्टी के सामने आने वाले संकट को देखते हुए कई मायने में महत्वपूर्ण है।
पार्टी सूत्रों ने कहा कि बैठक का एक महत्वपूर्ण एजेंडा मुर्शिदाबाद जिले के सागरदिघी विधानसभा क्षेत्र में हाल ही में संपन्न उपचुनाव होगा, जिसमें तृणमूल कांग्रेस 20,000 से अधिक मतों के अंतर से कांग्रेस से हार गई थी। सागरदिघी एक पूरी तरह से अल्पसंख्यक बहुल निर्वाचन क्षेत्र और पारंपरिक रूप से तृणमूल कांग्रेस का गढ़ होने के कारण, परिणामों ने पार्टी नेतृत्व को चिंतित कर रखा है, इसे अपने समर्पित अल्पसंख्यक वोट बैंक में क्षरण की शुरुआत के संकेत के रूप में माना है।
बैठक का एक अन्य महत्वपूर्ण एजेंडा बीरभूम जिला होगा और वहां पार्टी का संगठन अपने जिला अध्यक्ष अनुब्रत मंडल की अनुपस्थिति में पंचायत चुनावों के लिए कैसे काम करेगा, जो वर्तमान में नई दिल्ली में मवेशी तस्करी घोटाला मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की हिरासत में हैं।
सूत्रों के अनुसार तीसरा महत्वपूर्ण एजेंडा भ्रष्टाचार के आरोपों का मुकाबला करने पर होगा, खासकर करोड़ों रुपये के शिक्षक भर्ती अनियमितता घोटाले के संबंध में, जिसमें राज्य के पूर्व शिक्षा मंत्री और तृणमूल कांग्रेस के महासचिव पार्थ चटर्जी सहित पार्टी के कई नेता शामिल हैं।
पश्चिम बंगाल में अल्पसंख्यकों की अच्छी संख्या है। लोकतंत्र मे संख्याबल काफी मायने रखता है। विगत कुछ वर्षों से राजनीति में अल्पसंख्यकों को लेकर कुछ अजीब सी बहस चल रही है। केंद्र में सत्तारूढ़ संघ-बीजेपी सरकार अल्पसंख्यकों खासकर मुसलमानों पर निशाना साधती रहती है। जिन राज्यों में बीजेपी की सरकार है, वहां पर मुसलमानों के उत्पीड़न की खबरें आती रहती है। कारण साफ है उनका बीजेपी के विरोधी दलों की तरफ झुकाव होना।
पश्चिम बंगाल में लंबे समय वामपंथी गठबंधन की सरकार रही। बाद में तृणमूल कांग्रेस की सरकार बनी जो अभी तक चल रही है। लेकिन इधर बंगाल में मुसलमानों का टीएमसी से मोहभंग होने की खबरें भी आने लगीं हैं।
राज्य में हुए विधानसभा उपचुनाव के परिणाम के बाद यह कहा गया कि ममता बनर्जी का जनाधार खिसक रहा है और राज्य में सीपीएम और कांग्रेस एक बार फिर पुनर्जीवित हो सकती है। इसके बाद ममता बनर्जी की राजनीतिक लाइन में बदलाव देखने को मिले। उन्होंने 2024 में लोकसभा का चुनाव अकेले लड़ने का ऐलान कर दिया। उनको डर है कि कहीं सीपीएम-कांग्रेस के साथ गठबंधन में जाने से उनका जनाधार बीजेपी की तरफ न खिसक जाए।
(जनचौक की रिपोर्ट।)