Sunday, September 24, 2023

जन कल्याणकारी योजनाओं के प्रति प्रशासनिक उदासीनता से क्षेत्र के लोग हलकान 

झारखंड। पश्चिमी सिंहभूम जिले में जन कल्याणकारी योजनाओं, उनके अधिकारों और संबंधित कार्यक्रमों के प्रति प्रशासनिक उदासीनता से क्षेत्र के लोग परेशान हैं। लगातार शिकायतों के बाद भी संबंधित विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों के कान पर जूं तक नहीं रेंगता है। क्षेत्र के मनरेगा मजदूरों की मजदूरी भुगतान लंबित होने और काम नहीं मिलने पर बेरोज़गारी भत्ता के प्रावधान के बावजूद बेरोज़गारी भत्ता नहीं मिलने से मजदूर और उनका परिवार भूखे रहने को मजबूर हैं।

वहीं बाल-विकास को बढ़ावा देने वाली सरकारी संस्था आंगनबाड़ी केंद्र में आए दिन घपले हो रहे हैं। ठेकेदारी योजनाएं जैसे पीसीसी सड़क, भवन निर्माण, नल-जल योजना, डीएमएफ़ योजना में मजदूरों को न्यूनतम मज़दूरी दर नहीं दिया जा रहा है। इन तमाम तरह की समस्याओं के लेकर खाद्य सुरक्षा जन अधिकार मंच, पश्चिमी सिंहभूम का प्रतिनिधिमंडल ने 8 अगस्त को ज़िला के उपायुक्त अनन्य मित्तल से मिला और इसके निराकरण की मांग की। 

इस बावत प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों ने बताया कि संबंधित शिकायत और आवेदन प्रखण्ड और संबंधित पदाधिकारियों को कई बार दिया गया है। लेकिन अधिकांश शिकायतों पर कार्यवाही नहीं हुई है। वहीं उपायुक्त ने मुद्दों और मांगों पर कार्यवाही का आश्वासन दिया है।

प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों के अनुसार जिले के कई प्रखण्डो सोनुआ, तांतनगर, मंझरी, खूंटपानी आदि से बकाया मनरेगा मजदूरी भुगतान और बेरोज़गारी भत्ता का आवेदन कई बार प्रखण्ड और उपविकास आयुक्त को दिया गया है। लेकिन कई महीनों के बाद भी आवेदन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई और आजतक मजदूरों का मनरेगा मजदूरी भुगतान और बेरोज़गारी भत्ता लंबित है। मंच ने मांग किया कि मनरेगा मज़दूरों को मुआवज़ा सहित लंबित भुगतान एवं बेरोज़गारी भत्ता का भुगतान सुनिश्चित किया जाए। 

प्रतिनिधिमंडल ने ज़िले के आंगनबाड़ी सेवाओं की दयनीय स्थिति को भी साझा किया। मंच के सर्वेक्षण में पाया गया था कि केवल 55 प्रतिशत आंगनबाड़ी केंद्र नियमित रूप से खुलते हैं एवं केन्द्रों में सेविका नियमित रूप से उपस्थित रहती है। वहीं केवल 17 प्रतिशत केन्द्रों में ही बच्चों को नियमित रूप से शिक्षा मिल रही है। अनेक केन्द्रों में बच्चों को सिर्फ हल्दी, चावल और थोड़ी सी दाल मिलाकर केवल खिचड़ी ही दिया जाता है। ज़िला प्रशासन को इस विषय में अवगत कराने के बावजूद भी स्थिति में सुधार नहीं हुई है। कई सुदूर गावों, जहां के बच्चे आंगनबाड़ी सेवाओं से वंचित हैं, में आंगनबाड़ी के आवेदन पर कार्यवाही महीनों से लंबित है। व्यापक कुपोषण वाले ज़िला के लिए यह शर्मनाक स्थिति है। 

उल्लेखनीय है कि आंगनबाड़ी केंद्र सरकार द्वारा चलाई जाने वाली एक सरकारी संस्था है जो शिशुओं और बाल-विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से स्थापित की गई है। यहां पर बच्चों को उचित पोषण, वैकल्पिक शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं और सामाजिक विकास के लिए विभिन्न सेवाएं प्रदान की जाती हैं। आंगनबाड़ी केंद्रों का उद्देश्य गरीब और निर्धन परिवारों में रहने वाले बच्चों को एक सुरक्षित, स्वस्थ और शिक्षित माहौल प्रदान करना है। 

मंच के सदस्यों ने बताया कि ज़िला में अधिकांश ठेकेदारी योजनाओं जैसे पीसीसी सड़क, भवन निर्माण, नल-जल योजना, डीएमएफ़ योजना में मजदूरों को न्यूनतम मज़दूरी दर नहीं दिया जा रहा है। कई बार इससे संबन्धित शिकायत भी की गयी है लेकिन स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है। मंच ने इस पर तुरंत कार्यवाही करने की करने की मांग की। 

मंच ने वर्तमान में चल रहे बच्चों के जन्म प्रमाण पत्र अभियान में हो रही समस्याओं को भी साझा किया। 30 दिनों के पहले हुए जन्म के लिए कोर्ट से एफ़िडेविट मांगा जा रहा है, जो सुदूर गावों के लोगों के लिए बनवाना बहुत मुश्किल और महंगा है। 1-5 कक्षा के बच्चों के लिए जन्म प्रमाण पत्र को अनिवार्य बोला जा रहा है, जिसके कारण अनेक बच्चे शिक्षा से वंचित होने के कगार पर हैं। इसे लेकर प्रतिनिधिमंडल ने उपायुक्त से मांग की कि साप्ताहिक स्तर पर प्रखंड स्तरीय कैंप का आयोजन किया जाए जिसमें मजिस्ट्रेट की नियुक्ति हो जो निःशुल्क एफिडेविट बना दें। साथ ही प्रतिनिधिमंडल ने ज़िला खनिज कोष (डीएमएफ़) को जनता की मांग अनुरूप एवं पारदर्शी बनाने की मांग की। 

सदस्यों ने बताया कि ज़िला में ज़िला खनिज कोष (डीएमएफ़) से 2,300 करोड़ रुपये से अधिक जमा हो चुका है, जिसका आधे से ज़्यादा खर्च हो चुका है। अभी तक इस कोष के इस्तेमाल में कई गंभीर समस्याएं दिखती हैं। अधिकांश योजनाएं सामग्री विशेष और ठेकेदार आधारित हैं जिनमें अक्सर मजदूरों के शोषण की सूचना मिलती है एवं कार्यान्वयन में जवाबदेही और पारदर्शिता नहीं होती है।

अधिकांश योजनाओं का चयन वास्तविक रूप से ग्राम सभा द्वारा नहीं किया गया है। अनेक मामलों में पूर्व से तय योजनाओं पर ग्राम सभा के सदस्यों द्वारा फर्ज़ी सहमति ली जा रही है। योजनाओं की खर्च की जानकारी ग्राम सभा को नहीं दी जाती है। डीएमएफ़ के कार्यान्वयन में पांचवी अनुसूची प्रावधानों और पेसा का व्यापक उल्लंघन होता है। 

मंच ने मांग किया कि डीएमएफ का इस्तेमाल मुख्यतः कुपोषण, स्वास्थ्य, शिक्षा और रोज़गार के मुद्दों के निराकरण के लिए हो, न कि केवल भवन, सड़क निर्माण कार्यों और ठेकेदारी के लिए। साथ ही, डीएमएफ का कोष ग्राम सभा और ग्राम पंचायतों को दिया जाए, ताकि वे योजनाओं का कार्यान्वयन कर सकें, ताकि केवल लाइन डिपार्टमेंट और ठेकेदारों को ही लाभ न पहुंचाया जाए। वहीं नियमित रूप से डीएमएफ़ योजना के खर्च और कार्यान्वयन सम्बंधित जानकारी ग्राम सभा को दी जाए एवं पंचायत और प्रखंड कार्यालयों में सार्वजनिक किया जाए।

प्रतिनिधिमंडल में हेलेन सूंडी, जयंती मेलगंडी, कमला दास, मानकी तुबिड, नारायण कांडेयांग, संदीप प्रधान, रामचंद्र माझी समेत मंच के कई कार्यकर्ता शामिल थे। 

(विशद कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of

guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles

पानीपत सामूहिक बलात्कार कांड की SIT करेगी जांच

नई दिल्ली। हरियाणा के पानीपत में नकाबपोश हथियारबंद गिरोह के चार लोगों द्वारा तीन...