कल्याणकारी राज्य की अवधारणा के उलट है यूपीएस

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आज कर्मचारी संगठनों द्वारा केन्द्र सरकार की यूनिफाइड पेंशन स्कीम के खिलाफ चलाया गया ‘नो यूपीएस, नो एनपीएस ओनली ओपीएस’ ट्वीटर या एक्स कैम्पेन नम्बर एक पर ट्रेंड करता रहा। इस अभियान ने सरकार के उस दावे की हवा निकाल दी जिसमें सरकार ने कहा था कि इसे सौ से ज्यादा संगठनों से बातचीत करके लागू किया गया है।

कुछ कर्मचारी संगठनों जिसमें रेलवे में पकड़ रखने वाले संगठन के नेता भी थे, इसकी सराहना करते हुए इसे कर्मचारी हितैषी बताने में लगे थे।

भाजपा के वरिष्ठ नेता रविशंकर प्रसाद ने तो मोदी सरकार द्वारा 24 अगस्त को लागू की गई यूनिफाइड पेंशन स्कीम की तारीफ करते हुए कहा कि भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी कर्मचारियों के दर्द से वाकिफ हैं और यह सरकार काफी सोच समझ कर, विचार करके निर्णय लेती है।

उन्होंने कहा कि सरकार के इस निर्णय से 23 लाख केन्द्रीय कर्मचारियों और उनके परिवारों के हित पूरे होगें। प्रधानमंत्री मोदी के इस निर्णय में कल्याणकारी राज्य की अवधारणा दिखती है।

यह सरकार कितना सोच-समझ कर निर्णय लेती है, इसका उदाहरण नोटबंदी, जीएसटी, लॉकडाउन, कृषि कानूनों आदि के समय हम देख ही चुके हैं और कितनी मजदूर कर्मचारी हितैषी है, उसे हम चार लेबर कोड में देख सकते है, जिसमें सैकड़ों वर्ष पूर्व हासिल काम के घंटे 8 के अधिकार को छीन करे इसे 12 घंटे कर दिया गया है।

बहरहाल देखना यह है कि क्या आजादी के वक्त देश के अगुआ नेताओं द्वारा भारत के सत्ता संचालन के लिए ग्रहण की गई कल्याणकारी राज्य की अवधारणा के अनुरूप यह पेंशन योजना है।

देश की आजादी के समय दुनियाभर में मजदूर वर्ग की सत्ता स्थापित की जा रही थी। इससे बचने के लिए पूंजीवादी अर्थशास्त्री कीन्स ने कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को पेश किया। भारत के शासक वर्ग ने भी इसे शासन चलाने की नीति के रूप में स्वीकार किया और इसी रोशनी में हमारा संविधान भी निर्मित हुआ।

जिसके मौलिक अधिकारों में अनुच्छेद 21 के तहत भारत के हर नागरिक के सम्मानजनक जीवन को सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी है। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और सामाजिक सुरक्षा जैसे विभिन्न आयाम सरकार का दायित्व माना गया।

इसी के तहत कर्मचारियों की न्यूनतम आवश्यकता के अनुसार वेतन और सेवानिवृत्ति के बाद वृद्धावस्था में सम्मानजनक जीवन जीने के लिए गैर अंशदायी पेंशन योजना को स्वीकार किया गया था।

इस पुरानी पेंशन व्यवस्था में कर्मचारियों को कोई अंशदान नहीं देना पड़ता और 20 साल की सेवा पूरी करने के बाद अंतिम वेतन का 50 प्रतिशत पेंशन के रूप में मिलता था। उसकी मृत्यु के बाद उसके परिवारजनों को इसका 60 प्रतिशत पेंशन के रूप में प्राप्त होता था।

इसके अलावा यह भी प्रावधान था कि कर्मचारी जीपीएफ (जनरल प्रोविडेंट फंड) में अपनी सेवा काल में अंशदान जमा करता था, जो सेवानिवृत्ति के वक्त में ब्याज सहित उसे प्राप्त हो जाता था। इसके अलावा कर्मचारियों को ग्रेच्युटी का भी भुगतान किया जाता था।

मोदी सरकार की यूनिफाइड पेंशन स्कीम (यूपीएस) कर्ममचारियों के अंशदान से ही चलाई जाने वाली पेंशन स्कीम है। इस पेंशन योजना में सेवा अवधि के दौरान कर्मचारियों से 10 प्रतिशत अंशदान जमा किया जायेगा और सरकार का 18.5 प्रतिशत अंशदान जमा होगा।

इस अंशदान के भुगतान पर सरकार द्वारा कुछ नहीं बोला गया है। जबकि इससे पहले चल रही नई पेंशन स्कीम में भी जो अंशदान था इसका 60 प्रतिशत सेवानिवृत्ति के समय कर्मचारियों को मिलता था।

इस पेंशन स्कीम में सुनिश्चित पेंशन के नाम पर कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति वर्ष के 12 महीनों में प्राप्त वेतन के बेसिक पे के 50 प्रतिशत को पेंशन के रूप में देने का प्रावधान किया गया है। शर्त यह है कि कर्मचारी 25 साल की नौकरी पूरा करें तभी उसे यह पेंशन मिलेगी।

इस अवधि तक सेवा करने वाले कर्मचारियों के परिवारजनों को उसकी मृत्यु पर पेंशन का 60 प्रतिशत पारिवारिक पेंशन मिलेगी। जबकि पुरानी पेंशन स्कीम में सेवा अवधि 20 साल थी।

सरकार का यह प्रावधान अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के कर्मचारियों के हितों के पूर्णतया विरुद्ध है। क्योंकि आमतौर पर नौकरी में आयु सीमा की छूट के कारण इस तबके के लोग 40 साल तक की आयु में नौकरी पाते हैं और 60 साल की सेवानिवृत्ति में वह मात्र 20 साल ही पूरा कर पाएंगे। जिसके कारण उन्हें इस पेंशन का पूर्ण लाभ नहीं मिल सकेगा।

इसके अलावा 10 साल नौकरी करने वालों को न्यूनतम 10000 रूपए पेंशन राशि देना निर्धारित किया गया है।

यूनिफाइड पेंशन स्कीम में सरकार ने कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति के समय दी जा रही पेंशन में डियरलेस अलाउंस देने की कोई बात नहीं की है। सुनिश्चित पेंशन प्राप्त होने के बाद इन्फ्लेशन इंडेक्सेशन यानी मुद्रास्फीति सूचकांक के अनुसार डियरलेस रिलीफ दी जाएगी।

सरकार ने कहा है कि सेवानिवृत्ति के समय ग्रेच्युटी के अलावा कर्मचारियों को एकमुश्त भुगतान किया जाएगा। यह एकमुश्त भुगतान उसके अंतिम वेतन और डीए को मिलाकर जो वेतन बनेगा उसका दसवां हिस्सा होगा और उसकी कुल सेवा अवधि को 6-6 महीने में बांटकर इस 10 प्रतिशत का गुणांक का उसको भुगतान किया जाएगा।

उदाहरण से हम इसको समझ सकते हैं, यदि किसी कर्मचारी की सेवा अवधि 25 साल है और उसका अंतिम वेतन 1 लाख रुपए है तो उसे 50 छमाही अवधि का 10 हजार के गुणांक यानी 5 लाख रुपए का भुगतान किया जाएगा।

साफ है कि यूपीएस किसी कल्याणकारी राज्य की अवधारणा से बनी सामाजिक सुरक्षा की योजना नहीं बल्कि कर्मचारियों के अंशदान से जमा धन की लूट के लिए बनाई गई है। यही कारण है कि वर्ल्ड बैंक से लेकर रिर्जव बैंक तक इसके पक्ष में खड़े हैं।

दरअसल 1991 में नई आर्थिक-औद्योगिक नीतियों आने के बाद सरकार ने कल्याणकारी राज्य की अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे जो सुविधा मजदूरों और कर्मचारियों को मिलती थी उनमें एक-एक कर कटौती की जाती रही।

2004 में अटल बिहारी वाजपेई की एनडीए सरकार ने पुरानी पेंशन योजना को खत्म करके नई पेंशन योजना चालू किया। इस पेंशन योजना में कर्मचारियों का अंशदान 10 प्रतिशत रखा गया और सरकार शुरुआत में 10 प्रतिशत का अंशदान करती थी जिसे बाद में बढ़ाकर 14 प्रतिशत कर दिया गया।

इससे सेवाकाल में जो पूरी धनराशि बनती थी उसका 60 प्रतिशत कर्मचारियों को सेवानिवृति के समय मिल जाता था और शेष 40 प्रतिशत को शेयर मार्केट में लगाया जाता था और उसके लाभांश के रूप में पेंशन दी जाती रही।

इस योजना के कारण बहुत सारे कर्मचारियों को 5000 से भी कम पेंशन प्राप्त हुई। स्वाभाविक रूप से कर्मचारियों में इसके विरुद्ध एक बड़ा गुस्सा था। लोकसभा चुनाव और इसके पहले के विधानसभा चुनावों में यह मुद्दा बना।

भाजपा और आरएसएस भी समझ रही है कि कर्मचारियों को नाराज करके वह देश में लम्बे समय तक राज नहीं कर सकती है। इसलिए मोदी सरकार ने वित्त सचिव टी वी सोमनाथन के नेतृत्व में नई पेंशन स्कीम में सुधार के लिए एक कमेटी का भी गठन किया।

हालांकि इस कमेटी के अध्यक्ष द्वारा पुरानी पेंशन को लागू करने से साफ इनकार कर दिया गया और इसे सरकार पर बड़ा वित्तीय भार बताया। वित मंत्री निर्मला सीतारमन ने भी पुरानी पेंशन बहाली पर आर्थिक संसाधन न होने और यूपीएस पर किसी वित्तीय भार के न पड़ने की बात की है।

वास्तव में पुरानी पेंशन देने में सरकार का संसाधन ना होने का तर्क भी बेमानी है। इस देश में संसाधनों की कमी नहीं है। यदि यहां कॉरपोरेट और सुपर रिच की सम्पत्ति पर समुचित टैक्स लगाया जाए, तो इतने संसाधनों की व्यवस्था हो जाएगी कि कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना लागू की जा सकती है।

साथ ही साथ इससे शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के अधिकार की भी गारंटी होगी और किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य का कानूनी अधिकार भी दिया जा सकता है। इसके अलावा सामाजिक सुरक्षा के दायरे को असंगठित क्षेत्र तक विस्तारित करना होगा।

सरकार को यूपीएस जैसी योजनाओं को लाकर कर्मचारियों को भ्रमित करने की जगह पुरानी पेंशन योजना को बहाल करना चाहिए।

(दिनकर कपूर आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के प्रदेश महासचिव हैं)

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