सुनीता पोटाम गिरफ्तार, बस्तर के आदिवासियों के अधिकारों की बात की तो जाना होगा जेल

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बस्तर। बस्तर के आदिवासियों के अधिकारों का हनन होने पर आवाज़ उठाने वालों को जेल भेजा जायेगा-ऐसा क्यों? आदिवासियों का अधिकार उनके जल, जंगल और जमीन से जुड़ा है, परन्तु जंगल के पेड़ों की कटाई को रोकना, या प्राकृतिक नदियों के प्रदूषित होने की बात रखना या अपने ही पूर्वजों की ज़मीन से बेदख़ल होने के विरुद्ध आवाज़ उठाने पर उन्हें विकास विरोधी बताया जायेगा। और इन “विकास परियोजनाओं” को लागू करने के पुलिस बल का क्रूर इस्तेमाल होने पर उसके खिलाफ आवाज़ उठाया जायेगा तो उनको माओवादी समर्थक या माओवादी घोषित कर गिरफ्तार कर लिया जायेगा।

इसका उदाहरण सुनीता पोटाम हैं। उनकी गिरफ़्तारी से साफ़ झलक रहा है कि आदिवासियों के हक और अधिकारों की बात करने वाला शासन-प्रशासन की नजर में अपराधी है। बीजापुर जिले के गांव कोरचोली की रहने वाली 25 वर्षीय आदिवासी कार्यकर्ता और मानव अधिकार संरक्षक-सुनीता पोटाम को सोमवार सुबह 8.30 बजे बीजापुर डीएसपी गरिमा दादर की अगुवाई में बीजापुर ज़िला पुलिस का दस्ता, जो कि वर्दी में नहीं थे, उनको रायपुर के अस्थायी निवास से घसीटते हुए ले गए।

सुनीता रायपुर में अपनी 10वीं कक्षा ओपन स्कूल में भरती के लिए आई थी। वे यहां महिला मण्डल के साथियों के साथ रह कर प्रवेश परीक्षा की तयारी भी कर रही थी। ऐसे में उन्हें उनके निवास से उठा लिया गया। सबसे संदेहास्पद बात तो यह है कि इस को अंजाम देने के लिए अन्य दो साथियों को एक कमरे के अंदर धकेल कर उन्हें बाहर से कुंडी लगाकर बंद कर दिया गया और मकान मालकिन को दरवाजा खोलने से मना करते हुए पोटाम को बिना नम्बर वाली गाड़ी में ले गए।

सुनीता जब नहा कर घर से बहार निकली ही थी, पुलिस ने उसे दोनों तरफ से पकड़ कर जबरन ले जाने की कोशिश करने लगी। मासिक के चलते सेनेटरी पैड और कपड़े बदलने का भी मौका न देकर डीएसपी गरिमा ने उसे दो थप्पड़ मार कर घसीटते हुए उसे बिना रजिस्टर की गाड़ी में घुसा के ले गईं। सुनीता ने ये बात कांकेर और बिलासपुर के वकीलों को बताया। पकड़ने के आधे घंटे के भीतर डीएसपी गरिमा लौटीं और पीपुल्स यूनियन ऑफ सिविल लिबर्टीज (PUCL) सदस्य श्रेया खेमानी, जिनके साथ वो रायपुर में रुकी थीं, उनको वारंट की कॉपी बताया परन्तु कापी देने से मना करके बीजापुर के लिए रवाना हो गए।

आदिवासी एक्टिविस्ट सोनी सोरी के साथ सुनीता पोटाम।

देर शाम पुलिस ने एक प्रेस नोट जारी कर सुनीता पोटाम को ‘बीजापुर के विभिन्न थानों में हत्या, हत्या का प्रयास, आगजनी जैसे गंभीर मामलों में लिप्त बताया है जिनमें से 11 में स्थायी वारंट जारी” बताया है’ और ‘माओवादियों में शहरी नेटवर्क की महत्वपूर्ण कड़ी बताया है’। तीन दिन बीत चुके हैं पर अभी तक इनके खिलाफ एफआईआर में IPC की कौन सी धारा लगाई गयी है इसका खुलासा नहीं हो पाया है।

कौन है सुनीता पोटाम ?

बीजापुर जिले से 55 किमी दूर कोर्चोली नाम का एक गांव है जो गंगालूर क्षेत्र में आता है। सुनीता पोटाम उसी गांव की एक खेत-मजदूर दम्पति आयतु पोटाम और मंगली पोटाम के सात बच्चों-पांच बहनों और दो भाइयों- में से एक है। सुनीता पोटाम को मैं 2018 में उसी के गांव में मिली थी जब एक घटना के सम्बन्ध में रिपोर्टिंग के लिए गई थी। उससे बात करते समय ये कतई महसूस नहीं होता कि वो कम पढ़ी लिखी महिला है।

“पढ़ने का मुझे बहुत शौक है दीदी, पर सलवा जुडूम के चलते स्कूल बंद हो गया और बढ़ती हिंसा के डर से हमें गांव छोड़ कर घने जंगलों में बीच रहन पड़ा”, सुनीता ने एक लम्बी सांस लेते हुए बताया जब मैंने स्कूल न जाने की वजह पूछा। गांव में उसके इर्द-गिर्द कई महिलायें और युवकों को देखकर लगता था कि वो लोकप्रिय थी। क्यूं न हो। ठीक दो साल पहले, 2016 में 19 वर्ष की छोटी उम्र में उसी के गांव की 18 वर्षीय मुन्नी के साथ सुनीता पोटाम ने छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में बीजापुर जिले के गंगालूर क्षेत्र के कड़ेनार, पालनर, कोरचोली, और अंडरी गांवों में हुई 6 व्यक्तियों की न्यायेतर हत्याओं (extra judicial killings) के खिलाफ याचिका दायर की थी। (Suneeta Pottam & Others Vs State of Chhattisgarh and Others WP(PIL)82/2016)

पुलिस की धमकियां और न्याय के उम्मीद के बीच

हाई कोर्ट में केस के दाखिल होने के बाद, सुनीता और गांव के लोगों में स्थानीय पुलिस के दबाव के बावजूद न्याय की उम्मीद जगी। इसके चलते सुनीता पोटाम एवं मुन्नी पोटाम को पुलिस की तरफ से धमकियां मिलने लगीं, जिसे वकीलों ने राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (NHRC) के संज्ञान में अक्टूबर 2016 को किया। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) के हस्तक्षेप के बाद तत्काल बीजापुर पुलिस अधीक्षक के उनके सुरक्षा के आश्वासन के बाद केस को समाप्त किया गया।

प्रगतिशील महिला संगठन एवं मानव अधिकार संस्थान के सदस्यों का सहयोग मिलने पर सुनीता और गांव वालों की हिम्मत बढ़ी। 2015 अक्टूबर 19-24 में पेग्डापल्ली, चिन्नागेलुर, पेद्दगेलुर, गुन्डम और बुर्गिचेरू के गांव में, फिर जनवरी 2016 में बीजापुर के बल्लम नेन्द्र और सुकमा जिले के कुन्ना गांव के( महिलाओं के साथ पुलिस द्वारा बलात्कार, यौन शोषण जैसे मामले धीरे धीरे बहार निकलने लगी, जिसका संज्ञान राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने अपने स्वतंत्र जांच में सही पाने के बाद उन महिलाओं को 37 लाख रुपयों का मुआवजा देने का आदेश  दिया। इन सभी मुद्दों को सामने लाने में सुनीता पोटाम की सक्रिय भूमिका रही है।

सुनीता पोटाम एक बैठक को संबोधित करती हुईं।


विडम्बना ये थी कि संविधान के दायरे में इस तरह के कदम को प्रशासन सुनीता और सुनीता जैसे अन्य ग्रामीणों को माओवादी घोषित करते हुए कई केस दाखिल करने लगे। यह बात महिला संगठन, वीमेन अगेंस्ट सेक्सुअल एक्स्पलायटेशन एंड स्टेट रिप्रेशन (WSS), द्वारा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) के संज्ञान में भी लायी गयी है (Diary No।1050/IN/2021) ।

छत्तीसगढ़ सरकार को आदिवासियों के प्रति जवाबदेह ठहराने में अगुवाई

क्षेत्रीय स्तर पर वे कई प्रतिरोधों की अगुवाई करती रही हैं, जैसे, PESA अधिनियम का उल्लंघन करते हुए और बिना ग्राम सभा बिठाए सड़कों का गांवों के बीचों-बीच से चौड़ीकरण करना एवं ग्रामीणों के कई लाभदायक पेड़ों का काटा जाना। बस्तर में पुलिस एवं शासन-प्रशासन का स्थानीय आदिवासियों, खास कर वे गांव जिन्हें शासन ने ‘माओवादग्रस्त” घोषित किया है, के प्रति हिंसक व्यवहार के विरूद्ध युवा पीड़ियों की अगुवाई में जन आन्दोलन बीजापुर और सुकमा के सीमावर्ती ग्राम सिल्गेर से शुरू हुआ, जोकि मई 2021 को पुलिस कैंप के शांतिपूर्वक विरोध में पुलिस की अंधाधुंध फायरिंग में तीन ग्रामीणों की तुरंत मौत हुई

सुनीता पोटाम और उनके जैसे अन्य आदिवासी युवा नेता मौजूदा सरकार को बस्तर के आदिवासियों के वास्तविक विकास न करने के लिए जवाबदेह ठहराया। असल विकास के लिए स्कूल, अस्पताल, वन-आधारित जीवनोपार्जन के विकल्प आदि की व्यवस्था का दबाव बनाया गया, बजाए कि निजी कंपनियों को खनन की लीज़ देकर विकास की अपेक्षा करना जिनकी रुचि केवल उनके घने वन के नीचे दबे खनिज संपदा में है। इन मुद्दों को लेकर आन्दोलन-जो मूलवासी बचाओ मंच के बैनर तले हो रहा था-की सुनीता पोटाम सहित अन्य सक्रिय युवा नेता मौजूदा कांग्रेस के बस्तर संभाग में अन्य विधायकों से मई 2021 में और मुख्यमंत्री, भूपेश बघेल से अगस्त 2021 के बीच बात-चीत भी हुई

इसके अलावा, गंभीर मुद्दे, जैसे नक्सल ऑपरेशन के नाम पर ग्रामीणों को नक्सल घोषित कर गिरफ्तार करना, या ‘फर्जी मुठभेड़ में मार गिराना’, माओवादी घोषित करके उन्हें जबरन सरेंडर करवाना, इस सब बातों को भी साझा करती थी, साथ ही सरका को इस बात की भी चुनौती देती कि उन्हीं नक्सालियों को सरेंडर करा कर अपने फोर्स में जोड़ कर उनसे ग्रामीणों को प्रताड़ित करवाती है। एडेस्मेता एवं सार्केगुदा कांड, जिसे स्वतंत्र न्यायिक जांच ने पुलिस को जिम्मेदार ठहराया। तत्कालीन कांग्रेस सरकार की चुप्पी पर सवाल उठाते हुए कई ग्रामीण आन्दोलन पर उतर आये, कांग्रेस सरकार का 2018 के चुनाव के पहले वादा जिसमें जेल में बंद निर्दोष आदिवासियों को रिहा करने का वादा, इत्यादि पर सवाल उठाते थे

इन सब सवालों पर फिर से चुप्पी साधने पर, मुलवासी बचाओ मंच के युवा नेता जनवरी 2022 को मौजूदा छत्तीसगढ़ राज्यपाल अनुसूया उइके से मिलने के लिया रवाना हुए, परन्तु उन्हें पुलिस ने कोविड का हवाला देते हुए बीजापुर से निकले साथियों को कोंडागांव में रोककर, कोविड हॉस्पिटल में दाखिल कर घर को रवाना किया। उन युवाओं में सुनीता पोटाम भी मौजूद थी।

गिरफ़्तारी से इंकार करते हुए और कोविड का हवाला देते हुए एवं सेक्शन 144 के लागू होने के कारण, बस्तर IGP. सुन्द्रराज ने कहा इनका आन्दोलन का चलना मुमकिन नहीं बताया और इन्हें क्वारंटाइन सेंटर में रखा गया है, स्वस्थ होने पर रिहा किय जायेंगे.

बीजापुर पुलिस के लिए सुनीता पोटाम एक अड़चन

दिसम्बर 2023 में भाजपा की बहुल्य जीत के बाद, आदिवासी मुख्यमंत्री विष्णु देव साईं के शपथ लेने से पहले (मुख्या मंत्री विशु देव साईं के शपत ) ही एंटी-नक्सल ऑपरेशन को बढ़ावा मिला, जिसके चलते कई मुठभेड़ों को संदेहास्पद बताया गया, जैसे बीजापुर जिले के 1 जनवरी को गंगालूर थाना अंतर्गत ग्राम मुत्वेंदी में 6 माह की बच्ची मारी गई, जिसे पुलिस ने क्रॉस-फायरिंग में मारे जाने का दावा किया, 20 अप्रैल को बासागुडा थाना अंतर्गत ग्राम बेल्लम नेन्द्र में 3 कथित माओवादियों का मारा जाना, 30 जनवरी को भैरमगढ़ थाना अंतर्गत ग्राम बोडगा एक ग्रामीण जिसे पुलिस ने बाद में क्रॉस-फायरिंग में मारा जाना बताया, 27 मार्च को तेलंगाना-छत्तीसगढ़ के सीमावर्ती ग्राम चिपुरभट्टी, बीजापुर जिला में मारे गए 6 कथित माओवादी, 2 अप्रैल को ग्राम कोर्चोली-नेन्द्र में मारे गए 13 कथित माओवादी, 10 मई को गंगालूर थाना अंतर्गत ग्राम पीडिया में मारे गए 10 कथित माओवादी, कांकेर जिले के छोटे बेठीया थाना अंतर्गत कोयलीबेडा में मारे गए 3 कथित माओवादी।

सुनीता पोटाम इन मुठभेड़ों के बारे में जानकारी, पत्रकारों को उनके परिजनों से तथ्य की पुष्टि के लिए या मानवाधिकार कार्यकर्ताओं या वकीलों को इनके परिजनों से मिलवाने में मदद करती थी। बतौर मानवाधिकार रक्षक, सुनीता पोटाम बीजापुर पुलिस के रास्ते की अड़चन बनी हुई थी।

गिरफ्तारी का प्रयास

इसी वर्ष 9 फरवरी को बीजापुर के गंगलूर क्षेत्र में एक वारदात के पीड़ितों की अस्पताल में मदद करने के लिए बीजापुर ज़िला अस्पताल आई पोटाम को पुलिस वालों ने मुख्य सड़क पर दौड़ा कर पीछा किया और जबरदस्ती मोटर साइकिल पर बिठाने की कोशिश की। किसी तरह वो दौड़कर एक दुकान पर पहुंची जहां कुछ पत्रकार थे जो उन्हें जानते थे। उन्होंने पुलिस से अरेस्ट वॉरन्ट दिखाने को कहा। पत्रकारों, स्थानीय नेता एवं समाज के लोगों में उनकी लोकप्रियता देख पुलिस पीछे हट गई।

इस घटना को मानवाधिकार कार्यकर्ता एवं अधिवक्ता बेला भाटिया और आदिवासी कार्यकर्ता सोनी सोरी एवं मुल्वाई बचाओ मंच के अध्यक्ष रघु मिडियाम एवं अन्य सदस्य द्वारा मूल निवासी बचाओ मंच के सदस्यों को पुलिस द्वारा धमकियां और प्रताड़ना वाली बात को 17 फ़रवरी को IG बस्तर, पी. सुन्दर राज के संज्ञान में लाया गया और उसी दिन सुनीता पोटाम व युवा आदिवासियों ने जगदलपुर प्रेस क्लब में एक प्रेस सम्मेलन में भी आप-बीती साझा किया।

बीजापुर पुलिस ने सुनीता पोटाम के खिलाफ यह भी आरोप लगाया है कि सुनीता अपनी ‘पहचान एवं पता छुपा कर रायपुर में निवासरत थी, माओवादियों के शहरी नेटवर्क (फ्रंटल ऑर्गेनाइज़ेशन) की महत्वपूर्ण कड़ी थी’। इस बात का खंडन करते हुए PUCL की सदस्य श्रेया खेमानी कहती हैं कि सुनीता रायपुर में हमारे बीच रहकर ओपन स्कूल से 10वीं में दाखिला के लिए आई थी। उसने न तो अपना नाम बदला है, और न ही छिपी हुई थी। पिछले तीन सालों से, जब से उनके खिलाफ केस दाखिल किया है और वारंट होने की बात पुलिस बता रही है, तब से सुनीता सार्वजानिक स्थलों में गांव में होने वाले मानव अधिकार का हनन सम्बंधित काम कर रही थी – पुलिस, कलेक्टर, IG, मीडिया से वार्ता, सब कर रही थी, फिर पुलिस यह आक्षेप कैसे लगा सकती है कि सुनीता अपनी पहचान छिपा रही है।

सुनीता पोटाम को उसके बूढ़ी मां और भाई के साथ जगदलपुर जेल में मिलवाने के बाद, आदिवासी नेता सोनी सोरी बोलीं: बस्तर एक बहुत कठिन दौर से गुज़र रहा है। बीजेपी की सरकार बनने के बाद बस्तर में एक जंग का माहौल खड़ा हो गया है। आये दिन किसी की गिरफ़्तारी या मारे जाने की खबर हमको गांव से मिलती है। सुनीता पोटाम जैसे युवा वर्ग इन हादसों का खुलासा कर रहे थे, इन आवाजों का सुनना ज़रूरी है ताकि दोबारा एडेस्मेटा या सर्केगुडा जैसी शर्मनाक घटना न घटे। मूल निवासी बचाओ मंच, जो आदिवासी युवाओं का एक सक्रिय संगठन है, उसने अपने काम को संविधान के दायरे में ही रखकर काम किया है फिर इन्हें गलत दिखा कर गिरफ्तार क्यों किया जा रहा है। इस तरह की घटनाएं और गिरफ्तारियां बंद होने से ही बस्तर के आम ग्रामीणों का विश्वास हासिल कर सकेगी।

(बस्तर से मालिनी सुब्रह्मण्यम की रिपोर्ट)

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